(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

ध्यान करने की सही विधि

ध्यान एक तकनीक है जिसका कि मात्र एक ही तरीका है एवं वह एक वैज्ञानिक तरीका है जो कि बहुत ही यथार्थ एवं स्पष्ट है। यदि आप यह सीखते हैं कि सही तरीके से ध्यान का अभ्यास कैसे किया जाए तो यह आपको शिखर तक पहुंचाने में अधिक समय नहीं लेगा, बशर्ते आप पूर्ण तकनीक से परिचित हों। सबसे पहले अंदर से एक दृढ व ज्वलंत इच्छा का होना जरूरी है। जब आपके पास ध्यान करने की ज्वलंत इच्छा होगी तो यही आपका नेतृत्व करेगी। संकल्पशक्ति की आवश्यकता होती है। आज मैं ध्यान में बैठूंगा। किसी के पास मुझे रोकने की शक्ति नहीं है। विचार मन का उत्पाद है। मैं विचारों से संबंधित नहीं हूं। यदि आप मन की अस्पष्ट बातों से परे जाना सीख लेते हैं एवं चेतना के गहनतम कक्ष तक जा सकते हैं तब शरीर, श्वांस व मन आपके रास्ते में नहीं आते हैं। ये मार्ग में आते हैं क्योंकि आपने इन्हें प्रशिक्षित नहीं किया है, आपने ध्यान करने का निर्णय नहीं लिया है। एक बार व हमेशा के लिए आपको निर्णय लेना सीखना चाहिए और आपको ध्यान के लिए प्रात:काल एवं सोने से पूर्व एक समय निश्चित करना चाहिए।
आपको बाह्य संसार में वस्तुओं को देखने एवं परीक्षण करने के लिए सिखाया गया है। किसी ने आपको अंतर्मन में देखना एवं खोजना नहीं सिखाया है। संसार की कोई वस्तु आपको वह शक्ति प्रदान नहीं कर सकती जो आपको ध्यान प्रदान कर सकता है। यदि आप ध्यान के लिए प्रवृत्त नहीं हैं तो मत कीजिए। यदि ध्यान करना चाहते हैं तो आपको आदत का निर्माण करना होगा, क्योंकि आदतें आपके चरित्र एवं व्यक्तित्व को बुनती हैं। यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं तो आपको अपने समस्त मुखौटों को उतारना पडेगा। पूर्णरूप से नग्न होना पडेगा। अग्नि में जाना पडेगा। आप इसके लिए तैयार हैं तो ध्यान के मार्ग पर चलना सीख सकते हैं। बाह्य संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो आपको प्रसन्न कर सके, क्योंकि सभी वस्तुएं परिवर्तन, मृत्यु, क्षय एवं विघटन का विषय हैं। वह जो परिवर्तन का विषय है एवं शाश्वत नहीं है, कभी भी प्रसन्नता नहीं दे सकता है। केवल क्षणिक आनंद दे सकता है। क्षणिक आनंद उदाहरण है कि कहीं कुछ ऐसा है जिसे आनंद कहते हैं। आप गलत स्थान में इसे ढूंढ रहे हैं। यदि आपने शाश्वत आनंद को प्राप्त कर लिया है तो आप स्वतंत्र होंगे। आप उस स्वतंत्रता व उस महान आनंद के लिए जीवित हैं।
मैं आपको सलाह देता हूं कि जब आप ध्यान में बैठते हैं तो विभिन्न प्रकार के प्रकाश को देखने की चिंता न करें। आपको अपने स्थान को पूर्ण अंधकार में बनाना सीखना होगा ताकि आप उस मधुर प्रकाश को देख सकें। यदि आप कोई प्रकाश नहीं देखते या कोई अनुभव नहीं करते अथवा कुछ नहीं देखते तो चिंता मत कीजिए। यदि आपके पास धैर्य है एवं आप स्थिर होकर बैठना सीख जाते हैं, तो जीवन एवं प्रकाश का केंद्र आपके समक्ष स्वयं को प्रकट करना आरंभ कर देगा। तब तक व्यर्थ के प्रकाशों की कल्पना हानिप्रद है। प्रकाश की प्रतीक्षा करते हुए अंधकार में रहना सीखें। ध्यान में किसी प्रकार का अनुभव न होना ही सही अनुभव है। यदि आप ध्यान की विधि का क्त्रमिक रूप से अनुसरण कर रहे हैं तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं पडेगी कि आप उन्नति नहीं कर रहे हैं। जब कभी आप ध्यान कर रहे हैं या ध्यान का प्रयास कर रहे हैं तो आप कुछ न कुछ कर रहे हैं। यह मत सोचिए कि आप अपने कमरें का फल प्राप्त नहीं कर रहे हैं। यह संभव नहीं है।
यदि आप क्त्रमिक रूप से ध्यान करना सीखते हैं तो पाएंगे कि विवेक की शक्ति, बुद्धि आपको जीवन के बाहर एवं भीतर दोनों यात्रा में सहायता करेगी। आपको चार मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना पडेगा दृढ निश्चय का निर्माण करना, प्रार्थना करना सीखना, निर्देशों के अनुसार ध्यान करना सीखना एवं अपने मन को स्वचरित अपराध का धब्बा लगाने की आज्ञा न देना जो कि आंतरिक आध्यात्मिक शक्तियों को नष्ट करती है।
नि:स्वार्थ कर्म को करते हुए दैनिक जीवन में आध्यात्मिक बनना सीखें। प्रतिदिन कुछ मिनटों तक ध्यान करना सीखें। लंबे समय तक बैठकर एवं विभ्रम करते हुए पाखंडी न बनें। कुछ मिनटों तक ध्यान कीजिए एवं जीवन का आनंद लीजिए। ध्यान करना सीखिए एवं यहां और अभी में रहना सीखिए। ध्यान स्वयं का प्रयास है, आंतरिक जीवन का एक निरीक्षण है और यह समय आने पर समस्त रहस्यों को आपके समक्ष प्रकट कर देगा।
आवश्यक है प्रार्थना
अनेक शिक्षार्थी जो ध्यान करते हैं, सोचते हैं कि प्रार्थना आवश्यक नहीं है। क्योंकि वे यह नहीं समझते हैं कि प्रार्थना क्या होती है। आप प्रार्थना क्यों करना चाहते हैं? सुबह से शाम तक प्रार्थना करते रहते हैं, ईश्वर मुझे यह दो, वह दो। आप वास्तव में क्या कर रहे हैं? अपने अहं का पोषण कर रहे होते हैं, जो बुरी आदत है। यह अहं केंद्रित प्रार्थना है। इच्छाओं एवं चाहतों द्वारा डांवाडोल किए जाने से मनुष्य अहं केंद्रित प्रार्थना के शिकार बन चुके हैं जो कि उन्हें वास्तव में भिखारी बनाती है। फिर भी यह प्रार्थना है और इसीलिए कुछ भी न करने से बेहतर है। अपनी भाषा में जीवन के ईश्वर से प्रार्थना कीजिए जो कि आपके अस्तित्व के आंतरिक प्रकोष्ठ में बैठा हुआ है। वह आपको किसी भी अन्य की अपेक्षा बेहतर ढंग से जानता है। वह आपका मार्गदर्शन करता है, आपकी रक्षा करता है एवं आपकी सहायता करता है। शक्ति व बुद्धिमत्ता प्रदान करने के लिए हृदय से जीवन के ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, ताकि आप समस्त दृष्टिकोणों से जीवन को समझ सकें।
प्रात: एवं सायंकाल दिन में दो बार प्रार्थना अति आवश्यक है। हमारी सफलता के लिए अतिरिक्त ऊर्जा हेतु प्रार्थना एक निवेदन है। प्रार्थना किसे करनी चाहिए? ईश्वर समस्त शक्तियों का स्त्रोत, केंद्र, प्रकाश का शक्तिशाली घर, जीवन एवं प्रेम है। प्रार्थना द्वारा हम इस शक्तिशाली घर तक पहुंच सकते हैं एवं अपने मन के क्षेत्र एवं चेतना के क्षितिज को विस्तृत करने के लिए ऊर्जा ले सकते हैं। आप उससे प्रार्थना कर रहे हैं जो कि शरीर, श्वांस एवं मन नहीं है किंतु जो इस नश्वर ढांचे के पीछे एवं इससे परे बैठा है, जिसका केंद्र आपके भीतर एवं विस्तार विश्व है। एक ही असीम सत्ता अस्तित्व में है और यही सत्ता आपके भीतर है। कुछ उच्चतर शक्ति जिसे आप ईश्वर कहते हैं, उस तक पहुंचना एवं उसे स्पर्श करना चाहते हैं। अपने मन को एक इच्छा के तहत एक लक्ष्य पर बना लेते हैं जो आपको प्रार्थना के लिए प्रेरित करता है, प्रार्थना के लिए आपकी इच्छा में विलीन मन शांत बन जाता है। जब मन शांत होता है तो वह महान रहस्य स्वयं को प्रकट करता है और तब प्रार्थना का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है। प्रार्थना के कई चरण होते हैं, प्रथम कुछ मंत्रों का उच्चारण करना, फिर मानसिक रूप से इन मंत्रों को स्मरण करना, फिर उत्तर पाने की प्रतीक्षा करना। प्रत्येक प्रार्थना का उत्तर मिलता है। जब आप शरीर को दृढ एवं स्थिर रखते हुए, श्वांस को शांत बनाते हुए तथा मन को उपद्रवों से मुक्त करते हुए ध्यान करते हैं तो यह आपको आंतरिक अनुभव की एक स्थिति तक ले जाएगा। आप किसी उच्चतर को स्पर्श करते हैं एवं ज्ञान को प्राप्त करते हैं जो कि मन से नहीं, बल्कि भीतर की गहराई से आता है।
आपको इस भाव से ध्यान करना चाहिए कि शरीर एक पवित्र मंदिर है एवं अंतर्वासी जीवन का स्वामी ईश्वर है। मन एक साधक है। यह अपने आचरणों, मनोदशाओं एवं हथियारों का समर्पण करना यह कहते हुए सीखता है कि मेरे पास कोई क्षमता नहीं है, मेरी क्षमताएं सीमित हैं। ईश्वर मेरी सहायता करो, मुझे शक्ति दो, ताकि मैं समस्त समस्याओं का साहस के साथ समाधान कर सकूं। मात्र मैं की तरफ झुकाव बनाए बिना मन इस प्रकार से जीवन के स्वामी पर निर्भर हो जाने के लिए एक आदत का निर्माण कर लेता है। मात्र मैं अहं है एवं सत्य मैं अंतर्तम् ईश्वर है। यह अंतर्मुखी प्रक्त्रिया ध्यान एवं प्रार्थना है। अन्य समस्त प्रार्थनाएं तुच्छ इच्छाओं एवं चाहतों से परिपूर्ण, स्वार्थ से पूर्णतया रंगी हुई एवं अहं को ख्ुश करने के लिए होती हैं। किसी भी स्वार्थ के लिए कभी प्रार्थना मत कीजिए। ईश्वर से प्रार्थना कीजिए ताकि आपका मन ऊर्जा ग्रहण करे एवं आपके लिए तथा दूसरों के लिए जो सही है ईश्वर आपको उसे करने के लिए प्रेरित करे। वह जिसे किसी भी अन्य साधन के द्वारा पूर्ण नहीं किया जा सकता है उसे प्रार्थना के द्वारा पूर्ण किया जा सकता है। बाइबिल में एक ख्ूबसूरत पंक्ति है-खटखटाओ और यह आपके लिए खोल दिया जाएगा। यह नहीं लिखा है कि व्यक्ति को कितनी बार खटखटाना है।
प्रार्थना एवं प्रायश्चित महान शुद्धिकर्ता हैं, जो जीवन के मार्ग को विशुद्ध बनाते हैं एवं हमें आत्म-अनुभूति की तरफ ले जाते हैं। बिना प्रायश्चित के प्रार्थना अधिक सहायता नहीं करती है। प्रार्थनाएं सदैव सुनी जाती हैं (इनका उत्तर मिलता है), इसलिए अपने पूरे मन एवं हृदय के साथ प्रार्थना कीजिए। डॉ. स्वामीराम

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