(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

सम्बन्ध

साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

कहू माताक आँचर मे की सुख भेटल।
चढ़ते कोरा जेना सब हमर दुःख मेटल।
आय ममता उपेक्षित कियै रति-दिन,
सोचि कोठी मे मुंह कय नुकाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

खूब बचपन मे खेललहुं बहिन-भाय संग।
प्रेम साँ भीज जाय छल हरएक अंग-अंग।
कोना सम्बन्ध शोणित कय टूटल एखन,
एक दोसर के शोणित बहाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

दूर अप्पन कियै अछि पड़ोसी लगीच।
कटत जिनगी सुमन के बगीचे के बीच।
बात घर घर के छी इ सोचब ध्यान सँ,
स्वयं दर्पण स्वयं के देखाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

निरीक्षण

अपने सँ देखब दोष कहिया अपन।
ध्यान सँ साफ दर्पण मे देखू नयन।।

बात बडका केला सँ नञि बडका बनब।
करू कोशिश कि सुन्दर बनय आचरण।।

माटि मिथिला के छूटल प्रवासी भेलहुँ।
मातृभाषा विकासक करू नित जतन।।

नौकरीक आस मे नञि बैसल रहू।
राखू नूतन सृजन के हृदय मे लगन।।

खूब कुहरै छी पुत्री विवाहक बेर।
अपन बेटाक बेर मे दहेजक भजन।।

व्यर्थ जिनगी अगर मस्त अपने रही।
करू सम्भव मदद लोक भेटय अपन।।

सत्य-साक्षी बनू नित अपन कर्म के।
आँखि चमकत फुलायत हृदय मे सुमन।।

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

मैं वह हूं जो आप हैं,


आदि शंकराचार्य शिष्यों के साथ नर्मदा नदी तट पर स्नान के लिए जा रहे थे। शिष्य उनके लिए मार्ग साफ करते चल रहे थे। इस दौरान एक पथिक वहां से गुजरा। शिष्यों ने उससे कहा-मार्ग छोड दें। स्वामी जी यहां से गुजरेंगे। शिष्यों के बार-बार आग्रह करने के बावजूद पथिक रास्ते से नहीं हटा। इतने में आदि शंकराचार्य भी वहां आ गए। उन्होंने उस पथिक से पूछा कि आप कौन हैं? पथिक ने अत्यंत धैर्य से उत्तर दिया-मैं वह हूं, जो आप हैं।

पाथिक के इस कथन को सुनकर शंकराचार्य कुछ क्षण के लिए शांत खडे रहे और फिर झुक कर पथिक के चरणों को स्पर्श कर लिया। उन्होंने कहा-आज आपने मुझे जीवन का वास्तविक ज्ञान दे दिया। मैं आपको अपना गुरु स्वीकार करता हूं।

वहपथिक निम्न कुल का था। शंकराचार्य आजीवन उसे अपना गुरु मानते रहे। पथिक के कथन की उन्होंने दार्शनिक व्याख्या की, जिससे अद्वैत दर्शन का निर्माण हुआ। मानवतावादी चिंतन के लिए अद्वैत दर्शन एक आध्यात्मिक प्रेरणा है। सब एक हैं। कोई दूसरा नहीं है। इसका कारण है सर्वव्यापी ईश्वर और आत्म तत्व का ब्रह्म तत्व का अंश होना।

जबसृष्टि का नियामक एकमेव ब्रह्म है, तो फिर कोई किसी अन्य से पृथक क्यों? सब में वही आत्म तत्व है, जो सभी में है। उपनिषद में ऋषि कहते हैं कि अपने को जान, उसे जान, मुझे जान, और ईश्वर को जान। स्वयं से साक्षात्कार करने की स्थिति व्यक्ति को अमरत्व के दर्शन कराती है। जो आपमें है, उसमें है और हम में भी। छान्दोग्यउपनिषद में ऋषि कहते हैं कि सब कुछ ब्रह्म ही है। मनुष्य उसी से उत्पन्न हुआ है।

तैत्तिरीय उपनिषद में ऋषि ब्रह्म को आनंद का प्रतीक मानते हुए कहते हैं कि जिसने सृष्टि बनाई है, वह सबमेंहै और सब उसमें है। यह विचार भी अद्वैत दर्शन को पुष्ट करते हैं। साथ ही, ब्रह्म में आनंद की उपस्थिति उसके कल्याण रूप का प्रतीक है। ऋषि कहते हैं कि आनंद से ब्रह्म है, आनंद में ही ब्रह्म है, आनंद से ही ब्रह्म जीव पैदा होते हैं, आनंद से ही वे जीवित रहते हैं, आनंद में ही फिर समा जाते हैं।
भारतीय दर्शन में विभेद को मान्यता नहीं दी गई है। समरूपता,समरसता और एकाग्रता आत्मा के लक्षण हैं। उसे स्वीकार करते हुए कहा गया है कि एक ही ईश्वर सब प्राणियों के भीतर विराजमान है। वह सबको गति और ऊर्जा प्रदान करता है। सबके भीतर वही समाया है। वह सभी कर्मो का स्वामी है। वह साक्षी भी है, ज्ञाता भी है और न्यायाधीश भी। ईश्वर निर्गुण और अनंत है।

साधक की इच्छा होती है कि वह जीवन-जगत के रहस्यों को समझें। इसके लिए वह परमपिता परमेश्वर की निकटता चाहता है, क्योंकि उसकी निकटता का अनुभव मात्र ही अनेक रहस्यों को अनावृत्त कर देता है।

इश्वर को जानने से सारे संशय दूर हो जाते हैं और जीव के मोह भाव नष्ट हो जाते हैं। कोई गैर नहीं होता, किसी से बैर नहीं होता। सब अपने होते हैं और व्यक्ति अद्वैत की स्थिति प्राप्त कर लेता है।
स्वामी चक्रपाणि
मैं वह हूं जो आप हें

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

लिखैत रही - किशन कारीग़र



मोन होइए जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
मुदा कहियो कऽ किछू-किछू लिखैत रही
कनेक हमरो गप पर धियान देबैए
मोन होइए जे पाठक सभ सॅं भेंट करैत रही।

ग़ालिब सेहो एक मिसिया कऽ पिबैत छलाह
मुदा किछू-किछू तऽ लिखैत छलाह
अपना लेल नहि पाठक लोकनिक लेल
मुदा बड्ड निक लिखैत छलाह।

पद्य लिखनाई तऽ आब हम सीख रहल छी
हमरा तऽ नहि लिखबाक ढंग अछि
मुदा किछू निक पद्य लिखि नेनापन सॅं
एतबाक तऽ हमर सख अछि।

िक िलखू िकछू ने फुरा रहल अिछ
बढलैऍ मँहगाई तऽ अधपेटे भूखले रहैत छी
िकऍक ने रही जाऍ भूखल पेट मुदा
िकछू िलखबाक लेल मोन सुगबुगा रहल अछी।

पोथि लिखलनि महाकवि विद्यापति
लिखलनि पोथि बाबा नागार्जुन
किछू नव रचना जे नहि लिखब
तऽ कोना भेटत मैथिली साहित्यक सद्गुण।

लेखक समाजक सजग प्रहरी होइत छथि
अपना लेल तऽ नहि अनका लेल लिखैत छथि
कतेक लोक हुनका आर्थिक अवस्था पर हॅसैत अछि
मुदा तइयो ओ चुपेचाप लिखैत रहैत छथि।

कहू एहेन उराउल हॅसी पर कोनो लेखक
एक मिसिया कऽ पिबत कि नहि
अपन दुःखित भेल मोन के
कखनो के अपनेमने हॅंसाउत कि नहि

कतेक लोक गरियअबैत अछि
एक मिसिया पीब कऽ लिखब ई किएक सीखू
मुदा आई किशन’ मोनक गप कहि रहल अछि
पिबू आ कि नहि पीबू मुदा किछूएक तऽ लिखब सीखू।

आई हमरो मोन भए रहल अछि
जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
अपना लेल नहि तऽ पाठक लोकनिक लेल
मुदा किछू नव रचना लिखैत रही।
(समप्प्त )
लेखक:- छैथि - संचार मिडिया से
किशन कारीग़र

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

ध्यान करने की सही विधि

ध्यान एक तकनीक है जिसका कि मात्र एक ही तरीका है एवं वह एक वैज्ञानिक तरीका है जो कि बहुत ही यथार्थ एवं स्पष्ट है। यदि आप यह सीखते हैं कि सही तरीके से ध्यान का अभ्यास कैसे किया जाए तो यह आपको शिखर तक पहुंचाने में अधिक समय नहीं लेगा, बशर्ते आप पूर्ण तकनीक से परिचित हों। सबसे पहले अंदर से एक दृढ व ज्वलंत इच्छा का होना जरूरी है। जब आपके पास ध्यान करने की ज्वलंत इच्छा होगी तो यही आपका नेतृत्व करेगी। संकल्पशक्ति की आवश्यकता होती है। आज मैं ध्यान में बैठूंगा। किसी के पास मुझे रोकने की शक्ति नहीं है। विचार मन का उत्पाद है। मैं विचारों से संबंधित नहीं हूं। यदि आप मन की अस्पष्ट बातों से परे जाना सीख लेते हैं एवं चेतना के गहनतम कक्ष तक जा सकते हैं तब शरीर, श्वांस व मन आपके रास्ते में नहीं आते हैं। ये मार्ग में आते हैं क्योंकि आपने इन्हें प्रशिक्षित नहीं किया है, आपने ध्यान करने का निर्णय नहीं लिया है। एक बार व हमेशा के लिए आपको निर्णय लेना सीखना चाहिए और आपको ध्यान के लिए प्रात:काल एवं सोने से पूर्व एक समय निश्चित करना चाहिए।
आपको बाह्य संसार में वस्तुओं को देखने एवं परीक्षण करने के लिए सिखाया गया है। किसी ने आपको अंतर्मन में देखना एवं खोजना नहीं सिखाया है। संसार की कोई वस्तु आपको वह शक्ति प्रदान नहीं कर सकती जो आपको ध्यान प्रदान कर सकता है। यदि आप ध्यान के लिए प्रवृत्त नहीं हैं तो मत कीजिए। यदि ध्यान करना चाहते हैं तो आपको आदत का निर्माण करना होगा, क्योंकि आदतें आपके चरित्र एवं व्यक्तित्व को बुनती हैं। यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं तो आपको अपने समस्त मुखौटों को उतारना पडेगा। पूर्णरूप से नग्न होना पडेगा। अग्नि में जाना पडेगा। आप इसके लिए तैयार हैं तो ध्यान के मार्ग पर चलना सीख सकते हैं। बाह्य संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो आपको प्रसन्न कर सके, क्योंकि सभी वस्तुएं परिवर्तन, मृत्यु, क्षय एवं विघटन का विषय हैं। वह जो परिवर्तन का विषय है एवं शाश्वत नहीं है, कभी भी प्रसन्नता नहीं दे सकता है। केवल क्षणिक आनंद दे सकता है। क्षणिक आनंद उदाहरण है कि कहीं कुछ ऐसा है जिसे आनंद कहते हैं। आप गलत स्थान में इसे ढूंढ रहे हैं। यदि आपने शाश्वत आनंद को प्राप्त कर लिया है तो आप स्वतंत्र होंगे। आप उस स्वतंत्रता व उस महान आनंद के लिए जीवित हैं।
मैं आपको सलाह देता हूं कि जब आप ध्यान में बैठते हैं तो विभिन्न प्रकार के प्रकाश को देखने की चिंता न करें। आपको अपने स्थान को पूर्ण अंधकार में बनाना सीखना होगा ताकि आप उस मधुर प्रकाश को देख सकें। यदि आप कोई प्रकाश नहीं देखते या कोई अनुभव नहीं करते अथवा कुछ नहीं देखते तो चिंता मत कीजिए। यदि आपके पास धैर्य है एवं आप स्थिर होकर बैठना सीख जाते हैं, तो जीवन एवं प्रकाश का केंद्र आपके समक्ष स्वयं को प्रकट करना आरंभ कर देगा। तब तक व्यर्थ के प्रकाशों की कल्पना हानिप्रद है। प्रकाश की प्रतीक्षा करते हुए अंधकार में रहना सीखें। ध्यान में किसी प्रकार का अनुभव न होना ही सही अनुभव है। यदि आप ध्यान की विधि का क्त्रमिक रूप से अनुसरण कर रहे हैं तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं पडेगी कि आप उन्नति नहीं कर रहे हैं। जब कभी आप ध्यान कर रहे हैं या ध्यान का प्रयास कर रहे हैं तो आप कुछ न कुछ कर रहे हैं। यह मत सोचिए कि आप अपने कमरें का फल प्राप्त नहीं कर रहे हैं। यह संभव नहीं है।
यदि आप क्त्रमिक रूप से ध्यान करना सीखते हैं तो पाएंगे कि विवेक की शक्ति, बुद्धि आपको जीवन के बाहर एवं भीतर दोनों यात्रा में सहायता करेगी। आपको चार मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना पडेगा दृढ निश्चय का निर्माण करना, प्रार्थना करना सीखना, निर्देशों के अनुसार ध्यान करना सीखना एवं अपने मन को स्वचरित अपराध का धब्बा लगाने की आज्ञा न देना जो कि आंतरिक आध्यात्मिक शक्तियों को नष्ट करती है।
नि:स्वार्थ कर्म को करते हुए दैनिक जीवन में आध्यात्मिक बनना सीखें। प्रतिदिन कुछ मिनटों तक ध्यान करना सीखें। लंबे समय तक बैठकर एवं विभ्रम करते हुए पाखंडी न बनें। कुछ मिनटों तक ध्यान कीजिए एवं जीवन का आनंद लीजिए। ध्यान करना सीखिए एवं यहां और अभी में रहना सीखिए। ध्यान स्वयं का प्रयास है, आंतरिक जीवन का एक निरीक्षण है और यह समय आने पर समस्त रहस्यों को आपके समक्ष प्रकट कर देगा।
आवश्यक है प्रार्थना
अनेक शिक्षार्थी जो ध्यान करते हैं, सोचते हैं कि प्रार्थना आवश्यक नहीं है। क्योंकि वे यह नहीं समझते हैं कि प्रार्थना क्या होती है। आप प्रार्थना क्यों करना चाहते हैं? सुबह से शाम तक प्रार्थना करते रहते हैं, ईश्वर मुझे यह दो, वह दो। आप वास्तव में क्या कर रहे हैं? अपने अहं का पोषण कर रहे होते हैं, जो बुरी आदत है। यह अहं केंद्रित प्रार्थना है। इच्छाओं एवं चाहतों द्वारा डांवाडोल किए जाने से मनुष्य अहं केंद्रित प्रार्थना के शिकार बन चुके हैं जो कि उन्हें वास्तव में भिखारी बनाती है। फिर भी यह प्रार्थना है और इसीलिए कुछ भी न करने से बेहतर है। अपनी भाषा में जीवन के ईश्वर से प्रार्थना कीजिए जो कि आपके अस्तित्व के आंतरिक प्रकोष्ठ में बैठा हुआ है। वह आपको किसी भी अन्य की अपेक्षा बेहतर ढंग से जानता है। वह आपका मार्गदर्शन करता है, आपकी रक्षा करता है एवं आपकी सहायता करता है। शक्ति व बुद्धिमत्ता प्रदान करने के लिए हृदय से जीवन के ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, ताकि आप समस्त दृष्टिकोणों से जीवन को समझ सकें।
प्रात: एवं सायंकाल दिन में दो बार प्रार्थना अति आवश्यक है। हमारी सफलता के लिए अतिरिक्त ऊर्जा हेतु प्रार्थना एक निवेदन है। प्रार्थना किसे करनी चाहिए? ईश्वर समस्त शक्तियों का स्त्रोत, केंद्र, प्रकाश का शक्तिशाली घर, जीवन एवं प्रेम है। प्रार्थना द्वारा हम इस शक्तिशाली घर तक पहुंच सकते हैं एवं अपने मन के क्षेत्र एवं चेतना के क्षितिज को विस्तृत करने के लिए ऊर्जा ले सकते हैं। आप उससे प्रार्थना कर रहे हैं जो कि शरीर, श्वांस एवं मन नहीं है किंतु जो इस नश्वर ढांचे के पीछे एवं इससे परे बैठा है, जिसका केंद्र आपके भीतर एवं विस्तार विश्व है। एक ही असीम सत्ता अस्तित्व में है और यही सत्ता आपके भीतर है। कुछ उच्चतर शक्ति जिसे आप ईश्वर कहते हैं, उस तक पहुंचना एवं उसे स्पर्श करना चाहते हैं। अपने मन को एक इच्छा के तहत एक लक्ष्य पर बना लेते हैं जो आपको प्रार्थना के लिए प्रेरित करता है, प्रार्थना के लिए आपकी इच्छा में विलीन मन शांत बन जाता है। जब मन शांत होता है तो वह महान रहस्य स्वयं को प्रकट करता है और तब प्रार्थना का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है। प्रार्थना के कई चरण होते हैं, प्रथम कुछ मंत्रों का उच्चारण करना, फिर मानसिक रूप से इन मंत्रों को स्मरण करना, फिर उत्तर पाने की प्रतीक्षा करना। प्रत्येक प्रार्थना का उत्तर मिलता है। जब आप शरीर को दृढ एवं स्थिर रखते हुए, श्वांस को शांत बनाते हुए तथा मन को उपद्रवों से मुक्त करते हुए ध्यान करते हैं तो यह आपको आंतरिक अनुभव की एक स्थिति तक ले जाएगा। आप किसी उच्चतर को स्पर्श करते हैं एवं ज्ञान को प्राप्त करते हैं जो कि मन से नहीं, बल्कि भीतर की गहराई से आता है।
आपको इस भाव से ध्यान करना चाहिए कि शरीर एक पवित्र मंदिर है एवं अंतर्वासी जीवन का स्वामी ईश्वर है। मन एक साधक है। यह अपने आचरणों, मनोदशाओं एवं हथियारों का समर्पण करना यह कहते हुए सीखता है कि मेरे पास कोई क्षमता नहीं है, मेरी क्षमताएं सीमित हैं। ईश्वर मेरी सहायता करो, मुझे शक्ति दो, ताकि मैं समस्त समस्याओं का साहस के साथ समाधान कर सकूं। मात्र मैं की तरफ झुकाव बनाए बिना मन इस प्रकार से जीवन के स्वामी पर निर्भर हो जाने के लिए एक आदत का निर्माण कर लेता है। मात्र मैं अहं है एवं सत्य मैं अंतर्तम् ईश्वर है। यह अंतर्मुखी प्रक्त्रिया ध्यान एवं प्रार्थना है। अन्य समस्त प्रार्थनाएं तुच्छ इच्छाओं एवं चाहतों से परिपूर्ण, स्वार्थ से पूर्णतया रंगी हुई एवं अहं को ख्ुश करने के लिए होती हैं। किसी भी स्वार्थ के लिए कभी प्रार्थना मत कीजिए। ईश्वर से प्रार्थना कीजिए ताकि आपका मन ऊर्जा ग्रहण करे एवं आपके लिए तथा दूसरों के लिए जो सही है ईश्वर आपको उसे करने के लिए प्रेरित करे। वह जिसे किसी भी अन्य साधन के द्वारा पूर्ण नहीं किया जा सकता है उसे प्रार्थना के द्वारा पूर्ण किया जा सकता है। बाइबिल में एक ख्ूबसूरत पंक्ति है-खटखटाओ और यह आपके लिए खोल दिया जाएगा। यह नहीं लिखा है कि व्यक्ति को कितनी बार खटखटाना है।
प्रार्थना एवं प्रायश्चित महान शुद्धिकर्ता हैं, जो जीवन के मार्ग को विशुद्ध बनाते हैं एवं हमें आत्म-अनुभूति की तरफ ले जाते हैं। बिना प्रायश्चित के प्रार्थना अधिक सहायता नहीं करती है। प्रार्थनाएं सदैव सुनी जाती हैं (इनका उत्तर मिलता है), इसलिए अपने पूरे मन एवं हृदय के साथ प्रार्थना कीजिए। डॉ. स्वामीराम

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

भोरे सूती उठी देखलो
आँखी सं अपन नोर पोछैत ,
माए पुछलक कियाक कनैत छीक ?
की देखलो स्वप्न में कुनू दोस ?
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

जतय सीता जन्मली मैट सं
ओहो एकटा नारी भेली ,
जिनका रचायल वियाह स्वम्बर
हमहूँ ओहिना एगो नारी छीक
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

आय देखैत छीक घर - घर में
दहेजक कारन कतेक घरसे बहार ,
उमर वियाहक बितैत अछि हमरो --
की करू हमहूँ अपन उपचार ?
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

धिया - पुत्ता में कनियाँ - पुतरा संग
अपन जिनगी के केलो बेकार ,
बाबु - काका लगनक आश में
सालक - साल लागोलैन जोगार ,
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

वियाह देखलो संगी - सहेली क
नयन जुरयल मन में आस भेटल ,
बट सावित्री आ मधुश्रवणी पूजितो
सेहो आई सपनोहूँ से छुटल
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?
(समाप्त )

लेखिका ---सोनी कुमारी ( नॉएडा )
पट्टीटोल , भैरव स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार



रविवार, 10 अक्तूबर 2010

इ कहानी 1352-1448 बिचक अछि जाही में महा कवी विद्यापति के जन्म बिस्फी गाम में भेलानी और ओ मैथिलीक बहुत पैघ कवी भेला जिनका कबी कोकिल के उपाधि देल गेलनी और ओ महादेव के बहुत पैघ भक्त सेहो छलाकवी विद्यापतिक रचना एतेक प्रभाबी होईत छलनी जे जखन ओ आपण रचना के गबैत छला त कैलाश पर बईसल भगबान महादेव प्रशन्न भ जाईत छला और हरदम हुनक रचना सुनबाक इच्छा राखैत छला, ई इच्छा एतेक बड़ी गेलनि जे ओ एक दिन माता पार्वती के कहलखिन " हे देवी सुनु, हम मृत्युलोक जा रहल छी कवी विद्यापतिक रचना हमरा बहुत नीक लागैत अछि और हमर मोन भ रहल अछि जे हम हुनका संगे रही क' हुनक रचना सुनी, त अहां अही ठाम कैलाश में रहू और हम जा रहल छी मृत्युलो" और रचना सुनबाक लेल धरती पर आबी गेला, और विद्यापति के ओतै नौकर बनी क उगना के नाम स काज कर लागला ओ विद्यापतिक चाकरी में लागी गेला ओ हुनकर सब काज करथिन हुनका पूजक लेल फूल और बेलपत्र तोरी क आनैथ बरद के चरबैथ सब चाकरी करैत और राइत में सुत्बा काल में हुनकर पैर सेहो दबबैथ (धन्य ओ विद्यापति जिनक पैर देवक देव महादेव दबबैथ) अहि प्रकारे जखन बहुत दीन बीत गेल, ओम्हर माता पार्बती बहुत चिंतित भ गेली हुनका लगलैन जे आब महादेब मृत्यु लोक स वापस नै एता, और ओ हुनका बापस अनबाक प्रयास में लैग गेली, ओ क्रोध के आदेश देलखिन जे आहा जाऊ और विद्यापतिक पत्नी सुधीरा में प्रवेश क जाऊ जाही स उगना द्वारा कोनो गलत काज भेला पर सुधीरा हुनका मारी क भगा देती, लेकिन माता पार्वती के इ प्रयाश सफल नै भेलैन तखन ओ दोसर प्रयाश केलि ओ प्याश के कबी विद्यापतिक ऊपर तखन सवार क देलखिन जखन ओ एकटा जंगल के रास्ता स उगना संगे राजा शिव शिंह के ओतै जारहल छला ओ घोर जंगल छलाई ओत दूर दूर तक ज'लक कोनो आस नै छलाई और ओही बिच में कवी विद्यापति प्याश स तरपअ लागला "रे उगना जल्दी सँ पाइन ला रउ नै ता हम मइर जेबउ बर जोर स प्यास लागी गेलौ" कहैत जमीन पर ओन्घ्रे लगला, आब उगना की करता ओ परेशान भ गेला एम्हर उम्हर पाइन के तलाश में भट्क' लगला हुनका पाइन नै भेटलैन, तखन ओ एकटा गाछक पाछू में नुका गेला और अपण असली रूप धारण क' अपन जटा सँ गंगाजल निकालला' और फेर उगनाक रूप धारण क विद्यापति के ज'ल देलखिन, विद्यापति जल पिबैते देरी चौक गेला ओ उगना स पूछ' लागला " रे उगना इ त गंगाजल छऊ, बता एता गंगाजल कत स अन्लाए" आब उगना की करता ओ कतबो बहाना बनेला लेकिन हुनकर एको नै चलल, ओ कि करता हुनका विबश भ अपन रूप देखाब' परलानी और ओ अपन असली रूपक दर्शन कवी विद्यापति के देलखिन, विद्यापति महादेवक अशली रूपक दर्शन करिते देरी चकित रही गेला और हुनक चरण पर खसी क हुनका स छमाँ माँग' लागला "प्रभु हमरा छमाँ करू हम अहां के चिन्ह नै सकलौं हमरा स पहुत पैघ अपराध भ गेल" तखन हुनका उठाबैत महादेव कहलखिन "हम आहा संगे एखन और रहब, लेकिन हमर एकता शर्त अछि जे आहा इ बात केकरो स नै कहबनी और जखने आहा इ बात केकरो लंग बाजब ओही छन हम अहाँ लंग स चली जायब" विद्यापति शर्त के मंजूर करैत और दुनु गोटे राजदरबार के तरफ चली गेला, माता पार्बती के इहो प्रयाश सफल नै भेलैन. तखन एक दिन उगन के बेलपत्र लावय में कनिक देरी भ गेलनि ताहि पर सुधीरा एतेक क्रोधित भ गेली कि ओ चुल्हा में जरैत एकटा लकड़ी निकली क हुनका मारबाक लेल उठेल्खिन "सर'धुआ आय तोरा नै छोर्बाऊ तू बड शैतान भ गेला हन हमर बच्चा सब भूख स बिलाय्प रहल अछि और तू एतेक देर स बेलपत्र ल' क' एलै हन" कहैत हुनका दिश बढ़लखिन, तखन विद्यापति स देखल नै गेलन्हि और ओ बजला "हे हे इ की करैत छि इ त साक्छात महादेव छैथ" और एतबे कहिते महादेव गायब भ गेलखिन, फेर विद्यापति हुनका जंगले जंगले तक' लगला और "उगना रे मोर कतै गेला" गबैत रहला लेकिन उगना फेर हुनका नै भेटलखिन, और ओ अपन प्राण तियैग देलखिन I
ओ स्थान जाहि ठाम देवक देव महादेव कवी-कोकिल विद्यापति के अपन अशली रूपक दर्शन देने छलखिन ओही ठाम "बाबा उगना" के मंदिर छैन और ओहिमे शिवलिंग जे छाई से अंकुरित छाई, जेकर कहानी किछु एहन, छाई जे एक बेर गामक एक बुजुर्ग ब्यक्ति के महादेव सपना देलखिन की "हम एकता गाछक जैर में छी" और ओतै बहुत पैघ जंगल छलई तखन गामक लोक सब तैयार भ क ओय ठाम गेला और पहुँच क जखन खुदाई केला त देखलखिन की एकटा बहुत सुन्दर शिवलिंग छाई, सब गेटे बहुत खुश भेला और विचार भेलय की हिनका बस्ती पर ल चलू ओय ठाम मंदिर बना क हिनक स्थापना करब और हुनका उठेबाक लेल जखने हाथ लगेलखिन की ओ फेर स जमीन के भीतर चली गेला, फेर स कोरल गेल और हुनका निकलवाक प्रयाश कैल गेलई, इ प्रयाश दू तीन बेर कैल गेल मुदा सब बेर ओ जमीन के भीतर चली जायत छला, तखन सब गोटे के बुझबा में एलईन जे इ अहि ठाम रहता और अय ठाम स नै जेता, तखन ओही ठाम साफ सफाए कैल गेल और तत्काल मंडप बनैल गेल और बाद में मंदिरक निर्माण सुरु भेल जे १९३२ में जा क तैयार भेल और अहि मंदिरक परिसर में ओ अस्थान सेहो अछि जाहि ठाम महादेव अपना जटा स गंगाजल निकलने छला और आय ओ इनारक रूप में अछि जेकरा "च्न्द्रकुप" के नाम स जानल जैत छाई और एखनो ओकर जल शुद्ध गंगाजल छाई, जे लैब टेस्टेड छाई !
दरभंगा के एकटा बहुत प्रशिद्ध डॉक्टर अपना मेडिकल लैब में एकर टेस्ट केने छलखिन और ओ अय बात के सुचना ग्रामीण सब के देलखिन जे अय में पूरा गंगाजल के तत्व बिद्यमान अछि, और इ दोसर रुपे सेहो टेस्टेड छाई, अय जल के यदि अहां बोतल में राखि देबय ता इ ख़राब नै होइत छाई
इ स्थान मधुबनी जिलाक भवानी पुर गाम में स्थित अछिएत' सब गेटे एकबेर जरुर आबी, एही स्थानक कुनु तरहक जानकारिक लेल अहां हमरा स संपर्क क सकैत छि"जय बाबा उग्रनाथ"
बसंत झा
e-mail- jha.basant@gmail.com
9310350503

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

करब नै हम नेतागिरी रोजगार


यो बाबु करब नै,
हम नेतागिरी रोजगार --
लोग कहैत अछि--
ई छी मतलबी दुनियां ,
कम काज पर नै कोनो विचार
लुट - माइर में सब से आगू ,
अपना के कहैत अछि होशियार
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

अपन जिनगी के शर्थक बुझायथ
गरीब जिनगी के नै कोनो उपचार ,
भोट मंगैय लेल दउर - दउर आबैथी
आ काज परलैन त नै कोनो सरोकार ,
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

खन दरिभंगा खन मधुबनी
सब दिन भागैथी बिधान सभा के द्वार ,
खेती - बारी के देखैत अछि ,
जोन- हरवाह के कतेक उपकार
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

रेडियो टी वी सब दिन कहिया
नेता लोकिन नै केलेन परोपकार ,
अपन पेटक रोजी - रोटी लै
हरदम उठेलैन अपन ललकार ,
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

लेखक -
मदन  कुमार  ठाकुर  
पट्टीटोल , भैरब स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार
Mo -9312460150

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

रचनाक नक़ल नहि हेबाक चाही - मनीष झा "बौआभाई"





पाठकगण,


हमरा लोकनिक समक्ष एक-दू टा एहेन रचना एहि चर्चित ब्लॉग पर प्रकाशित भेल अछि, जे कि स्पष्ट रूप स' नक़ल कयल गेल अछि आ ओहि रचनाक शीर्षक एहि प्रकारे अछि-

पहिल-  तरुवाक पंच तिलकोर - रचनाकार (मुकेश मिश्रा)
दोसर-  आमक झगरा -रचनाकार (मुकेश मिश्रा)

ई प्रसंग हम एहि दुआरे नहि उठा रहल छी, जे हमरा रचनाकार (मुकेश मिश्रा) स' कोनो तरहक आपसी द्वेष वा ईर्ष्या अछि (जहां तक हमरा लोकनि एक-दोसर स' अपरिचित छी), मुदा ई प्रसंग हुनका पक्ष में उठायब अत्यधिक उचित बुझना जा रहल अछि, जे एकर मूल रचनाकार छथि आ इन्टरनेट के दुनिया स' दूर एहि प्रकारक जानकारी स' शायद अनभिज्ञ हेताह I
ई बहुत दुःखक बात अछि जे मूल रचनाकार के श्रेय त' दूर हुनक नामों वा सौजन्य के चर्चा तक कतहु नई देखना जा रहल अछि I हम एहि रचना पर टिप्पणी दैत रही मुदा अकस्मात् रचना देखल सन बुझना गेल, हम ठमकि गेलहुँ आ ओहि दिन स' ओहि पुस्तकक खोज में लागि गेलहुँ अंततः सफलता भेटल अर्थात साक्ष्य भेटल, तैं अपनें लोकनिक समक्ष एहि प्रसंग के रखबा में बिलम्ब सेहो भेल क्षमा चाहै छी I

पोथीक जानकारी :
पोथीक नाम- संगम सुधा
(पन्ना सं.-६ आ पन्ना सं.-२४)
लेखक- महेन्द्र कुमार पाठक "अमर"
पेशा स'- मधुबनी कोर्ट में वकील
मैथिल भाषा में एतेक बेसी समर्पणता जे अपन लिखल एहि पोथी के स्वयं ट्रेन में घूमि-घूमि क' एकर प्रचार-प्रसार व्यावसायिक दृष्टिकोण स' नहि, अपितु भाषक उत्थान हेतु करैत रहलाह अछि हुनक एहि असाध मेहनति के बिसरि कियो अपना नाम स' वाहवाही ल' रहल छी ई युक्तिसंगत नहि, नकले करक छल त' ओहि विषय के ल' क' अपन शब्द सजबितौं आ परसितौं I
हमरा एखन जिंदगी के कोनो प्रकारक अनुभव नहि अछि तथापि एकटा निवेदन रचनाकार लोकनि स' ज़रूर करब जे, हमर मिथिलाक माटि ककरो स' ज़रूर बेसी समृद्ध अछि ओ चाहे धन में होय, बल में होय वा बुद्धि में होय, ककरो स' दस डेग आगुए रहैत छी तैं अपन ह्रदय स' निकलल, अपन बुद्धि स' उपजल जे रचना होय ओएह टा प्रकाशित कराबी जाहि स' अपन आत्मसंतुष्टि सेहो भेटत संगहि लोकक अपार स्नेह आ प्रतिष्ठा I खास क' एहेन तरहक चर्चित ब्लॉग पर त' कथमपि नहि राखी जकरा लग रोज़ के लाखो पाठक अछि I हम आशा करै छी जे रचनाकार अपन मूल रचनाक संग समय-समय पर उपस्थित होइत रहताह आ एहेन तरहक क्रियाकलाप स' बचताह I

स्नेहाभिलाषी :
मनीष झा "बौआभाई"
Mailto: manishjhaonline@gmail.com
Blog: http://manishjha1.blogspot.com/

अपन गाम घर:- पहिल- तरुवाक पंच तिलकोर आ दोसर- आमक झगरा
एहि जालवृत्तसँ हटा देल गेल अछि आ मुकेश मिश्रा जीसँ आग्रह जे एहि प्रकारक रचनाक प्रस्तुति प्रविष्टिकर्ता वा आन रूपमे अपना नामसँ नहि करथि


जेना कि बौआभाइ ठीके लिखै छथि-
"हमर मिथिलाक माटि ककरो स' ज़रूर बेसी समृद्ध अछि ओ चाहे धन में होय, बल में होय वा बुद्धि में होय, ककरो स' दस डेग आगुए रहैत छी तैं अपन ह्रदय स' निकलल, अपन बुद्धि स' उपजल जे रचना होय ओएह टा प्रकाशित कराबी जाहि स' अपन आत्मसंतुष्टि सेहो भेटत संगहि लोकक अपार स्नेह आ प्रतिष्ठा I खास क' एहेन तरहक चर्चित ब्लॉग पर त' कथमपि नहि राखी जकरा लग रोज़ के लाखो पाठक अछि I हम आशा करै छी जे रचनाकार अपन मूल रचनाक संग समय-समय पर उपस्थित होइत रहताह आ एहेन तरहक क्रियाकलाप स' बचताह I"