लेखक - मुकेश मिश्रा ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgadNHJFnMh1jrakMHklh9e4idPCKvnMaJxzC4F1EYrhH1pLMUFOGXGJPQT209V2rmyo7mZFXyetfHEZkXSJ2B6qHNgN5pI12FhHahZGVgvilrMx2M60PwKfwQDRBrnMLux86O1eiAG_UE/s320/M.jpg)
परदेश में
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परदेश में
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बर - सनम बेमन स छि हम परदेश में ,
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
कनिया- एतय आहाक बौआ पलैत अछी हमर पेट में
आगि लागल बज्र खसल धान बला खेत में
बर - की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
सनम बेमन स छि हम परदेश में ,
कनिया - बीघा के बीघा में आयल दहार यौ
खेत रहितो भेल छै जीवन पहार यौ
बर - अबै छि फागुन में चेन लेने भेट में
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
कनिया- गहुम के हालत खराबे खराब छै
गामक किसान त करैत बाप बाप छै
खेती ग्रहस्थी में साधनक अभाब छै
बिजली के नाम पर बस पोल ठार छै
बोडिंग गराउ आऊ पाइन दियौ खेत में
नाही त चली जायत इ रौदिक चपेट में
बर - की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
कनिया -एतय आहाक बौआ पलैत अछी हमर पेट में
बर - पत्र पढैत बात मोन केर छुबी गेल
करू की आखी स नोर बस चुबी गेल
सोचैत छि सुख दुःख गमायब हम साथ में
होली में मिली जायब गाम केर रंग में
जोरीक रहब हम आब साथ साथ में
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
सनम बेमन स छि हम परदेश में ,
गीत -- मुकेश मिश्रा
9990379449
e mail - mukesh.mishra@rediffmail.com
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