(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 10 मई 2010

उठो भाई जागो

ओ भारत के वीर जवानों ,
माँ का क़र्ज़ चुका देना ,
कटे फटे इस मानचित्र को
अबकी ठीक बना देना !!
पटना साहीब से मीलने को
ननकाना बैचेन खड़ा ,
अबकी तिरंगा रावलपिंडी में
घुस कर तुम फहरा देना !!
अटक कटक से सिन्धु नदी तक
सब कुछ हमको प्यारा है ,
कश्मीर मत मांगो कह दो
पाकिस्तान हमारा है !!
जो उपवन से घात करे
वो शाख तोड़ दी जायेगी ,
जो पीछे से वार करे
वो बांह मोड़ दी जायेगी ,
जो कुटुंब का नाश करे
वो गर्दन तोड़ दी जायेगी,
मेरे देश पे उठती
हर एक आँख फोड़ दी जायेगी ,
जो देश द्रोह की बात करे
वो मनुष्य हत्यारा है ,
कश्मीर मत मांगों
कह दो पाकिस्तान हमारा है !!
बन्दे- मातरं
जय हिन्द - जय भारत
(आनंद कुमार )

गुरुवार, 6 मई 2010

हम कौन हैं ?

हम कौन हैं या हम क्या हैं यह जानने के लिए हमें कुछ त्याग करना पड़ेगा और वह त्याग कोई भौतिक त्याग नहीं है अपितु हमें हमारी सांसारिक बुद्धि को स्थिर रखते हुए जो कुछ भी अब तक हमने सीखा है या जाना है उसे भूल कर इस नवीन सन्देश के लिए थोडा सा स्थान बनने देना है. यद्यपि यह प्रश्न हम सब के दिलो दिमाग पर जीवन में अनेक बार उठता है कि हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं, क्यों आयें हैं ( हम अपने आप तो आये नहीं हमें तो यहाँ भेजा गया है) लेकिन हम भौतिक जगत की आवस्यकताओं की पूर्ति करने में इतने व्यस्त रहते हैं कि हम अपने अंतर कि इस मौलिक एवं मूलभूत आवाज को अनसुना कर देते है. इसीलिए आपसे कुछ त्याग करने के लिए अनुरोध किया गया है ताकि जो गूढ़ बात अब यहाँ बताई जाने वाली है उस बात का प्रभाव यदि १००% नहीं तो कुछ अंश तक तो अवश्य आपके अन्दर प्रवेश कर सके.

एक शायर ने बहुत ही सटीक कहा है:

पहचान ले खुद को तो इन्सान खुदा है, जाहिर में गो खाक है मगर खाक नहीं है.
जलवों की खता क्या जो दिखाई नहीं देते, खुद देखने वालों की नजर पाक नहीं है.

जब हम इस संसार में सारी उम्र संघर्ष करने के बाद भी अपने आप को पूरी तरह से नहीं जान पाते तब खुदा को पाने या संसार का समस्त ज्ञान पाने का हमारा दावा खोखला ही माना जायगा. अपने आपको या दूसरों को जानने की इच्छा कभी-न-कभी हर इन्सान के मन में आती है; यह बात दूसरी है कि हममें से अधिकतर लोग इस जिज्ञासा का गला ही घोंट देते हैं. वास्तव में यह एक जटिल प्रश्न है और शायद इसीलिए हम इसको हल करना नहीं चाहते. या इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वर्तमान आधुनिकीकरण एवं अर्थवाद की गला-काट-प्रतिस्पर्धा के चलते ऐसे प्रश्नों को हल करने का कोई लाभ प्रतीत नहीं होता.

हम बाहरी तौर पर जो दिखाई देते हैं या वर्तमान में जो हमारी वाह्य पहचान बन गई है इसे नाकारा नहीं जा सकता परन्तु यही सब कुछ है; ऐसा भी नहीं है. हमारे इस भौतिक शरीर का सम्बन्ध ईश्वर के विराट स्वरूप से है. इस भौतिक शरीर में एक सूक्ष्म शरीर भी है जिसके अन्दर बहुत कुछ छिपा है जैसे- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, इच्छा, आशा, वासना, काम, क्रोध, लोभ, ईर्षा, द्वेष, घ्रणा, कल्पना, संतोष, सय्यम आदि. इस सूक्ष्म शरीर का सम्बन्ध ईश्वर के अव्याकृत रूप से है.

इसके अतिरिक्त इस शरीर का सम्बन्ध ईश्वर के हिरण्यगर्भ रूप से भी है जिसका प्रतिनिधि हमारी आत्मा है. यहाँ तक का ज्ञान तो आम आदमी पुस्तकों से पढ़ कर अथवा दूसरों से सुनकर प्राप्त कर सकता है यद्यपि ऐसा ज्ञान वाचक ज्ञान कहलाता है और यह हमें अधिक दूर तक नहीं ले जाता; तथापि इस ज्ञान से ही सत्य की खोज की चाह पैदा होती है-इसी में से सत्य जानने का अंकुर पैदा होता है.

इस हर-मंदिर में (गुरु नानक देव जी ने इस शरीर को हर-मंदिर कहा है क्योंकि इसमें हरी निवास करता है/ इस शरीर में ईश्वर रहता है) इन सबका साक्षी भी रहता है जिसे विशुद्ध आत्मा या सुरत कहते हैं जो ईश्वर का ही रूप होता है. इस रूप को ईश्वर का अंश कहना भी गलत होगा क्योंकि अंश का तात्पर्य सामान्य रूप से यह लगाया जाता है कि यह पूर्ण का टुकड़ा है जबकि वह ईश्वर या मालिक तो अविभाज्य है.

इस प्रकार एक अमूर्त भाव को मूर्तरूप में व्यक्त करने का प्रयास किया गया है जिसमे कहने और सुनने या लिखने और पढने वाले के अनुभवज्ञान के स्तर में भिन्नता होने पर अर्थ का अनर्थ होने कि सम्भावना बनी रहती है क्योंकि सामान्य लोग शब्दों का सामान्य अर्थ लगा कर बात को समझने का प्रयास करते हैं और इसी में गलती कर जाते हैं. इसका मूल कारण यह है कि:
यह करनी का भेद है नहीं बुद्धि विचार,
कथनी तज करनी करे तब पावे कुछ सार.

संक्षिप्त में कहने का तात्पर्य यह है कि हम कोई नश्वर शरीर मात्र ही नहीं हैं; न ही हम इस भौतिक संसार में केवल खाने-पीने और मौज उड़ाने आये हैं बल्कि हम तो ईश्वर के अंश हैं और पूर्ण हैं और इस संसार में ईश्वर को ढूंढने आये हैं क्योंकि इस सृष्ठी के आदि में उसने हमें अपने से दूर भेज दिया था और दूर भी इसलिए भेज दिया था ताकि हम उससे दूर होकर उसके विरह में व्यथित हों और उसे पाने का प्रयास करें. और यह प्रयास भी वही हमसे करवाता है; हम अपनी शक्ति के बल पर उसे ढूंढने का प्रयास भी नहीं कर सकते. अपने से दूर भेजने का एक कारण यह भी हो सकता है कि वह ईश्वर हमेशा लीला करता रहता है जैसे बच्चे लुका-छिपी का खेल खेलते हैं और उसी खेल-खेल में उसने हमें अपने से दूर भेज दिया ताकि हम उसे ढूंढे लेकिन हम उसे ढूंढ़ नहीं पाते. इसलिए वह अपने जीवों को निज धाम ले जाने के लिए संतो/सतगुरु के रूप में प्रगट होकर लेने आता है क्योंकि वह हर जीव से बेहद प्यार करता है. परन्तु फिर भी हम इस संसार के मेले में इतने मोहित हो जाते हैं कि हम उसकी बात को ही नहीं सुनते और वह जो शब्द कि नाव लेकर आता है उस पर बैठ नहीं पाते और वह निराश होकर चला जाता है.
मालिक सब का कल्याण करे

बुधवार, 5 मई 2010

शंकर - पार्वती जी के मूर्ति भेटल


लोग कहैत अछि अबक समय में धर्म - कर्म सब धीरे- धीर निप्टल जायत अछि , मुद्दा हम एखनो देखैत छिक गाम - घर में पूजा - पाठ एखनो धरी सर्बोपारित अछि , चाहे रौदिक अकाली होय या बढिक दाहर ओहिमे अपन कर्म पूजा पाठ के चलन जरी राखैत छैथि ,

देखू ने एखनो कलना (हरलाखी , मधुबनी ) नामक गांव गाम में , भिसन गरमी आ सुखार के कारने दामेस्वरी पोखैर के साफ - सुतरा आ खूनेय के कल में सोमदिन भगवान शंकर - पार्वती के आलिंगन मुद्रा में अति प्राचीन आकार्सक मूर्ति भेटल अहि मूर्ति के देखय आ पूजा करैक लेल हजारो के संख्यां में लोगक भीड़ उमैरी गेल ,
मूर्ति देखेक में अति सुन्दर लागैत अछि , प्रतिमा के निचला भाग में बसहा आ पार्वती मूर्ति के निचिका भाग में सिंह क मूर्ति सेहो सामिल अछि , ई पोखैर भिसन गरमी के कारने बिलकू सुखा गेल छल जहि के चलती गाम - घरक लोग सब अहि पोखैर में से मैट कैट के अपन घर अगना के भरैत छल ,
आखिर सत्य अछि ताहि दुवारे धर्म के सर्वब्याप्त रहै के लेल समय -समय पर धर्म के समाबेस होयत रहैत अछि --
अहि दुवारे कहल गेल अछि ---
सतेयन धारिते पृथ्वी सतेयें तपते रवि
सतेयं वती बयुस्यच सर्वम सत्यम परितिठितम

शनिवार, 1 मई 2010

मई,2010 केर पाबनि-तिहार

1 मई: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत
6 मई: कालाष्टमी व्रत, शीतलाष्टमी
9 मई: पुरुषोत्तमी कमला एकादशी व्रत
11 मई: भौम-प्रदोष व्रत (ऋणमोचन हेतु)
12 मई: मासिक शिवरात्रि व्रत
13 मई: श्राद्ध केर अमावस्या
14 मई: स्नान-दान केर अमावस्या, मलमास समाप्त
15 मई: वृष-संक्रान्ति केर पुण्यकाल प्रात: 10.11 बजे तक,गोदावरी-स्नान, नवीन चन्द्र-दर्शन
16 मई: अक्षय तृतीया
17 मई: वरदविनायक चतुर्थी व्रत, बगलामुखी जयंती
19 मई: चंदनषष्ठी
20 मई: गंगा सप्तमी-गंगा जयंती, मध्याह्न मे गंगा-पूजा
21 मई: श्रीदुर्गाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, बगलामुखी महाविद्या जयंती,
22 मई: मैथिली दिवस, सीतानवमी व्रत, जानकी जयंती महोत्सव,
24 मई: विजया एकादशी व्रत, मोहिनी एकादशी व्रत, रुक्मिणी द्वादशी,
25 मई: भौम-प्रदोष व्रत (ऋणमोचन हेतु),
26 मई: नृसिंह चतुर्दशी व्रत, नृसिंहावतार जयंती, छिन्नमस्ता महाविद्या जयंती,
27 मई: स्नान-दान-व्रत के वैशाखी पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा, गन्धेश्वरी पूजा (बंगाल), वैशाख स्नान-नियम पूर्ण
31 मई: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत


एहि मासक राशिवार शुभ-अशुभ तिथि

मेष राशि
शुभ तिथि :- 2,4,5,7,9,10,11,23,25,29,30
अशुभ तिथि :- 6,13,15,16,18,19,20

वृषभ
शुभ तिथि :- 1,5,11,17,18,21,23,26,28,29
अशुभ तिथि :-3,12,22,24,27,30,31

मिथुन
शुभ तिथि:-1,6,11,16,19,25,27,31
अशुभ तिथि:-8,10,18,22,26,30

कर्क राशि
शुभ तिथि:- 13,21,22,25,26,29,31
अशुभ तिथि:- 6,8,10,11,14,17,18,19

सिंह राशि
शुभ तिथि:-4,5,7,9,26,27,29,30
अशुभ तिथि:-3,8,12,13,16,18,21,22

कन्या
शुभ तिथि:6,17,22,24,25,26,27
अशुभ तिथि:3,6,7,8,10,13,14,20,21

तुला
शुभ तिथि:-1,10,14,15,16,19,30
अशुभ तिथि:9,16,18,20,26,29

वृश्चिक
शुभ तिथि:-10,18,19,20,25,26,27
अशुभ तिथि:-2,3,4,11,12,16,30,31

धनु
शुभ तिथि:6,13,17,19,20,23,25,30,31
अशुभ तिथि:3,8,11,16,26,28

मकर
शुभ तिथि:-6,9,15,20,22,24,29
अशुभ तिथि:- 3,8,13,16,18,23

कुम्भ
शुभ तिथि:-1,2,5,14,15,16,27,30
अशुभ तिथि:- 6,7,8,18,21,22,23

मीन
शुभतिथि:2,8,18,24,27,28
अशुभ तिथि:-3,7,19,21,26,31 

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