(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

गुरू की पहचान - भाग २

गतांक से आगे ........
अब तक हमने गुरु के स्थूल स्वरुप की आवस्यकता एवं महानता के बारे में जानने का संक्षिप्त रूप में प्रयास किया था क्योंकि गुरु के स्थूल स्वरुप का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना कोई हँसी खेल नहीं और न यह गुड्डे गुडियों का ही खेल है। जब कोई सच्चा जिज्ञासु श्रद्धा एवं विस्वास पूर्वक अपने सदगुरु के मार्ग निर्देशन में अपनी सांसारिक गति विधियों का संचालन एवं निर्वाह अनासक्त रूप से करता हुआ निष्काम आगे बढ़ता रहता है तो उसे अपने सदगुरु के, अपने इष्ट के सभी गुप्त रहस्यों का ज्ञान धीरे - धीरे हो जाता है और वह स्वयं एक दिन बीजरूप से बदल कर एक छायादार एवं फलदायक वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है। उसका बीजरूप, छायादार और फलदायक होना स्वयं उसके अन्दर ही था परन्तु यह सब उसे पता नहीं था; इसका पता उसे माली की कृपा से अर्थात गुरु कृपा से मिला।
गुरु के सूक्ष्म रूप की पहचान प्राप्त करने के लिए तो और भी ज्यादा सावधानी, मेहनत, मसक्कत और बलिदान करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि जब बाहर में ही इतने अधिक छल प्रपंच हैं की बाहरी गुरु के स्थूल स्वरुप का ज्ञान भी जिज्ञासु की समझ में आसानी से नहीं आता तो अन्दर में तो इससे भी अधिक प्रलोभन हैं; इसलिए गुरु के सूक्ष्म स्वरुप का ज्ञान यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसका एक कारण तो यह है की इसका सम्बन्ध मन से है और मन को वश में करना या मन को नियंत्रण में करना हर किसी के वश में नहीं होता। वैसे जो यह कहते हैं कि उन्होंने मन को मर दिया है वे झूंठ कहते हैं क्योंकि मन को मार कर कोई जीवित कैसे रह सकता है। हमें मन से न दुश्मनी करनी है न मित्रता क्योंकि दोनों ही हमें मन के साथ बंधन में बांधने में सक्षम हैं ।
मन कि शक्ति का पता लगाना भी कोई हँसी खेल नहीं है। इस विषय को लंबा न करते हुए सिर्फ़ इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मन अपने आप में वैसे तो जड़ है, निष्क्रिय है परन्तु जब वह हमसे अर्थात हमारी आत्मा से शक्ति प्राप्त करके हमारी इन्द्रियों के भोगों को भोगनें कि ओर प्रवत्त होता है तो इसकी शक्ति हजार गुना बढ़ जाती है। इस मन कि इस प्रवत्ति को संत अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए संत मन के मारने कि बात नहीं करते बल्कि मन कि प्रवत्तियों को परिस्कृत करने का प्रयाश करते हैं।
चूंकि मन पर जो भी प्रभाव संसार कि घटनाओं का या स्थूल पदार्थों का पड़ता है जिससे तथा कथित प्रवत्तियां जन्म लेतीं हैं उनका सम्बन्ध स्थूल पदार्थों से ही होता है अतः इस स्थूल प्रभाव को कम करने के लिए या इसे समाप्त करने के लिए ही स्थूल गुरु कि आवश्यकता पड़ती है। शेष फ़िर कभी ..........
मालिक सबका कल्याण करे

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

मिथिला चालीसा

                     मिथिला चालीसा

                 दोहा

अति आबस्यक जानी के शुनियो मिथिला के वास
बेद पुराण सब बिधि मिलल लिखल भोला लाल दास

पंडित   मुर्ख    अज्ञानी    से मिथिला   के ई   राज 
पाहुनं    बन    आएला    प्रभु   जिनकर    आज 
   चोपाई
जय - जय मैथिल सब गुन से सागर
कर्म बिधान सब गुन छैन आगर


जनक नन्दनी गाम कहाबैन
दूर - दूर से कई जन आबैन


देखीं क सीता राम के स्वम्बर
भेला प्रसन्य लगलैन अतिसब सुन्दर


पुलकित झा पंचांग से सिखलो
बिघन - बाधा से अति शिग्रः निपट्लो


         मंत्र उचार केलो सब दिन भोरे
ग्रह - गोचर से भेलोहूँ छुट्कोरे


विद्यापति जी के मान बढ़ेलन
बनी उगाना महादेव जी ऐलन

                                                                                                                       
जय - जय भैरवी गीत सुनाबी
सब संकट अपन दूर पराबी


लक्ष्मीस्वर सिंह राजा बन ऐला
पुनह मिथिला क स्वर्ग बनेला


भूखे गरीब रहल सब चंगा
सब के लेल ऐला राज दरिभंगा


बन योगी शंकरा चार्य कहोलैथ
अनेको शिव मंठ निर्माण करोलैथ


धर्म चराचर रहल सत धीरा
जय - जय करैत आयल संत फकीरा


जन्म लेलैन लक्ष्मीनाथ सहरसा
जिनकर दया से भेल अति सुख वर्षा


साधू संत के भेष अपनोलैन
फेर गोस्वामी लक्ष्मीनाथ कहोलैन


मंडन मिश्र क शास्त्राथ कहानी
हिनकर घर सुगा बजल अमृत बाणी


पत्त्नी धर्म निभेलैन विदुषी
जिनकर महिमा गेलें तुलशी


आयाची मिसर क गरीबी कहानी
हिनकर महिमा सब केलैनी बखानी


साग खाई पेटक केलनी पालन
हिनकर घर जन्मल सरोस्वती के लालन


काली मुर्ख निज बात जब जानी


भेला प्रसन्य उचैट भवानी


ज्ञान प्राप्त काली दाश कहोलैथ
फेर मिथिला शिक्षा दानी बनलैथ


गन्नू झा के कृत्य जब जानी
हँसैत रहैत छैथ सब नर प्राणी


केहन छलैथ ई नर पुरूषा
कोना देलखिन दुर्गा जी के धोखा


खट्टर काका के ईहा सम्बानी


खाऊ चुरा - दही होऊ अंतर यामी

मिथिला के भोजन जे नाही करता
तिनों लोक में जगह नै पाउता


सोराठ सभा क महिमा न्यारी
गेलैन सब राजा और नर - नारी


जनलैथ सब के गोत्र - मूल बिधान
फेर करैत सब अपन कन्या दान


अमेरिका लंदन सब घर में सिप्टिंग
देखलो सब जगह मिथिला के पेंटिंग


छैट परमेस्वरी के धयान धराबैथ
चोठी चन्द्र के हाथ उठाबैथ


जीतवाहन के कथा सुनाबैथ
फेर मिथिला पाबैन नाम बताबैथ


स्वर संगीत में उदित नारायण
मिथिला के ई बिदिती परायण

होयत जगत में हिनकर चर्चा
मनोरंजन के ई सुख सरिता


शिक्षा के जखन बात चलैया
मिथिला युनिभर्सिटी नाम कहाया


कम्पूटिरिंग या टैपिंग रिपोटर
बजैत लिखैत मिथिला शुद्ध अक्षर


है मैथिल मिथिला के कृप्पा निधान
रखियो सब कियो संस्कृति के मान


जे सब दिन पाठ करत तन- मन सं
भगवती रक्षा करतेन तन धन सं


हे मिथिला के पूर्वज स्वर्ग निवासी
लाज बचायब सब अही के आशी

    दोहा

कमला कोषी पैर परे गंगा करैया जयकार

शत्रु से रखवाला करे सदा हिमालय पाहार

( माँ मैथिल की जय , मिथिला समाज की जय -----------)
      
                                (   समाप्प्त )
लेखक :-

मदन कुमार ठाकुर
पट्टीटोल , कोठिया , (भैरव स्थान)

झंझारपुर , मधुबनी , बिहार -८४७४०४
mo - 9312460150


जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल , कोठिया , (भैरव स्थान)
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार -८४७४०४


रविवार, 20 दिसंबर 2009

चारि टा टेलीग्राम मदन कुमार ठाकुर


चारि टा टेलीग्राम -------
हमरा गाममे एक टा पुजेगरी बाबा छलथि ! ओऽ सभ भगवानक परम भक्त छलथि (खाश कs भैरब बाबाक बेसी पूजा पाठ करैत छलथि) मानू जेना ओऽ सभ देवता गणकेँ अपना बसमे कs लेने छथि ! गाममे बहुत प्रतिष्ठा आऽ मान सम्मान हुनका भेटैत छलनि, सभ कियो पुजेगरी बाबा पुजेगरी बाबा हरदम अनघोल करैत रहैत छल ! सबटा धिया पुता सभ साँझ-भोर-दुपहरिया बाबासँ कहानी आऽ चुटुक्का सुनए के लेल ललाइत रहैत छल ! बाबा सबकेँ केवल भलाई करैत छलखिन ! किएकी बाबा भैरबक परम भक्त छलखिन ! चारी घंटा केवल पूजा पाठ करयमे समय लागैत छलनि ! शीत-लहरी ठंढी रहए वा वर्षा होइत रहए, हुनका केवल पूजा पाठसँ मतलब रहैत रहनि ! खेती बारीसँ कुनू मतलब नञि रहैत रहनि, पूजा केलाक बाद केवल समाजक भलाईमे ध्यान दैत छलखिन ! जे की केला सँ, समाजमे यश आर प्रतिष्ठा रहत आऽ ग्रामीण लोकनिक भलाई होइत रहत!
एतबे नञि दू चारि गाममे यदि किनको झगड़ा होइत छलनि तँ पुजेगरी बाबा पंचैती करैत छलखिन !मुदा पुजेगरी बाबाकेँ एकटा बातक विशेष ध्यान रहैत छलनि, जे हम यदि मरि जायब तँ हमर समाजक की होयत ! हमर मृत शरीरकेँ केना अग्निमे जराओल जायत, ई सब बात हुनका परेशान केने रहैत छलनि !
एक दिन पुजेगरी बाबा यमराजसँ प्रार्थना आऽ विनती केलथि, जे हे यमराजजी, हमर मरए के समय जखन नजदीक आबए तँ हमरा डाक द्वारा टेलीग्राम, वा नञि तँ ककरो दिआ समाद पठा देब ! जाहिसँ हम निश्चिंत भs जायब आऽ अपन सबटा काजकेँ समेट लेब, आर हमर जे अपन सम्पति अछि (पूजा पाठक सब सामान) से हम कुनू निक लोककेँ दऽ देबैन जाहिसँ आगू ओऽ हमर काज धंधाकेँ देखताह !
समय बितल जाइत छल ! पुजेगरी बाबा वृद्ध सेहो हुअ लगलथि ! केश सेहो पाकि गेलनि ! दाँत सेहो आस्ते-आस्ते टूटए लगलनि आऽ डाँर सेहो झुकए लगलनि, ओऽ आब यमराजक टेलीग्रामक इंतजार करए लगलाह !एक दिन पुजेगरी बाबा भगवानक पूजा-पाठ केलथि आऽ भैरब बाबाक सेहो ध्यान केलथि ! भोजन केलाक उपरांत कुर्सी पर बैसल छलथि, अचानक पेटमे दर्द उठलनि, ओहिसँ आधा घंटाक बाद हुनकर शरीरसँ प्राण निकलि गेलनि, सब ग्रामीण लोकनि मिलि कए हुनक अंतिम संस्कार कs देलकनि ! किएकी पुजेगरी बाबाकेँ किओ वंशज नञि छलनि,ताहि लेल ग्रामीणक सहयोगसँ पंचदान-श्राद्ध कर्म बिधि पूर्वक कs देल गेलनि !
पुजेगरी बाबा जखन स्वर्ग लोक गेलाह तँ हुनका लेल चारू द्वार खुजल छल! यमराज हुनका आदर पूर्वक सभा भवनमे लs गेलथि ! हिनकर बही खातामे सबटा नीके कर्म कएल गेल छलनि, ताहि लेल पुजेग्अरी बाबाकें निक स्थान निक व्यबहार आऽ निकसँ स्वागत कएल गेलनि!हुनका स्वर्गमे कुनू तरहक कष्ट नञि होइत छलनि, मुदा ओऽ पूजा पाठ, पूजाक सामिग्री आर समाजक कल्याण लs कए बहुत चिंतित छलाह ! हुनका कनियोटा स्वर्गलोकमे मोन नञि लागए छनि !
एक दिन पुजेगरी बाबा खिसिआ कए यमराजसँ कहलखिन, जे हम अहाँकेँ कहने रही जे हमरा मरएसँ पहिने अहाँ टेलीग्राम भेज देब ताकि हम अपन काज धंधाकेँ सही सलामत कs कए स्वर्ग लोक आबितहुँ से अहाँ नञि केलहुँ ?यमराज कहलखिन :पुजेगरी बाबा हम अहाँकेँ चारि टा टेलीग्राम भेजलहुँ मुदा अहाँ ओकरापर ध्यान नञि देलहुँ से कहू हमर कोन कसूर अछि ? पुजेग्री बाबा सुनि कए चकित भs गेलाह, जे हमरा तँ कोनो टेलीग्राम नञि आयल! नञि यौ यमराज, अहाँ झूठ बजैत छी ! दुनु व्यक्तिकेँ आपसमे बहस चलए लगलनि तँ यमराज कहलखिन, सुनू पुजेगरी बाबा, हम अहाँकेँ कखन-कखन टेलीग्राम पठेलहुँ, अहाँ ओकर ध्यान राखब !
(१): हम पहिल टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँकेँ कारी केश पाकय लागाल
(२): हम दोसर टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँक आस्ते-आस्ते सभ दाँत टूटय लागल
(३): हम तेसर टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँकेँ आस्ते-आस्ते डाँर झुकय लागाल
(४): हम चारिम टेलीग्राम जखन केलहुँ, तखन अहाँ एतेक देरी कs कए हमरा ओहिठाम एलहुँ !
आब अहीँ कहू पुजेगरी बाबा, हमर कते गलती अछि ?
पुजेगरी बाबा कहलखिन :
यमराजजी अहाँ ठीके कहैत छी ! हम अपन काज-धंधामे लागल रही, ताहि द्वारे नञि ध्यान दए सकलहुँ आऽ नञि पढ़ि सकलहुँ अहाँक चारि टा टेलीग्राम ........
जय मैथिली, जय मिथिला-:
लेखक :-
मदन कुमार ठाकुर
पट्टी टोल ,कोठिया ,
झंझारपुर , (मधुबनी)बिहार - ८४७४०४
मो - ९३१२४६०१५०
ईमेल - madanjagdamba@yahoo.co

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

आत्मिक संतुष्टि - जगदम्बा ठाकुर

 आत्मिक संतुष्टि

 
हमर समस्त ज्ञान व् प्रयाश , शारीरिक किछ हद तक , मानसिक आ किछ अहि ज्ञान बुधि स्तर तक केवल मात्र सिमित रहैत अछि अंतर में जतय हमार विशुद्ध आत्मा या सुरत ( नेचर ) मात्र रहैत अछि , ओताहि तक हम जीवन भर नही पहुंच पावैत छि क्याकि हमरा ओही सब्द के भेद बतावै बाला गुरू नही मिलला

यदि ककरो पूर्ण रूप से गुरू भेटलें त ओ ओकर उपयोग नही क दुरोपयोग बैब्हर केलैन आ बाहरी गुरू सब के इहा कोशिस रहैत छैन की ओ अपन शिष्य के अंतर आत्मा में जे गुरू विराज मान अछि से ओकर भेद बता दै मुदा गुरू के पास अहि भेद के जनय के लेल सब जयत अछि , सब के सब दिखाब्ती दुनिया में विस्वाश आ इच्छ पूर्ति करेक लेल गुरू के पास जायत अछि और गुरू हुनकर इच्छ पूरा करैत छथिन लेकिन असली भेद जे ओबताव चाहैत छैथ से ओ नही बता पावैत छैथ , क्याकि ओही हिशाब से हुनका निक ग्राहक नही भेटैत छैन संसारिक इच्छा ता पूरा होयत छैन जे हुनका पर श्रधा और विस्वाश क लैत अछि और जे हुनकर बात के अपन बुईध क डिक्सनरी में से नीकाली के संशय करैत अछि या ओही पर बहस करैत अछि

एगो बात हमरा दिमाग में आबैत अछि की , गुरू ओ एगो तत्व थिक जे मनुष्यक शरीर से प्रकट होयत अछि , जकरा ओ स्वं चुनैत छैथ गुरू नहीं पैदा होयत छैथ नहीं ओ मरैत छैथि अहि दुवारे बाहरी गुरू जिनका अन्दर ओ तत्व प्रकट होयत छैन ओ मालिक के रूप में होयत छैथि , लेकिन हम ओही मनुस्यक मायन के बरका टा भूल करैत छि

  कवीर दास कहैत छैथ —-

गुरू को मानुस जानते ते नर कहिए अन्ध ,
दुखी होय संसार में आगे जम का फंद

गुरू किया है देह को सत गुरू चीन्हा नहीं ,
कहें कवीर ता दास को तीन ताप भरमाही

गुरू नाम आदर्श का गुरू हैं मन का इस्ट ,
इस्ट आदर्श को ना लाखे समझो उसे कनिस्ट

चेला तो चित में बसे सतगुरू घट के आकाश ,
अपने में दोनों लाखे वही गुरू का दास

   गुरू जे अपन साधन अभ्यास अपन शिष्य के दैत छथिन ओ हुनकर मंजिल नही छियन , आ ने हुनकर ओहिसे आबाग्मन छुट तैन , वल्कि ओत अहिद्वारे देल जायत अछि की जे अहि से शिष्य क मन काबू में आबिजय आ स्थिर भ जाय , ताकि आगू के जीवन सीढ़ी चढाई में आसानी होय अहिदुवरे गुरू के दुवारा बतायल गेल तरीका से अभ्यास केनाय बहूत जरूरी होयत छैक , लेकिन अहि के मंजिल मय्न लेनाय बहूत पैघ भूल होयत अछि जिनका अभ्यास नही होयत छैन हुनका नीरास होयके जरूरत नही होयत छैन हाँ मगर प्रयास करैत रहैत ई हुनका लेल जरूरत अछि क्याकि ऐना नही केला सं गुरू के आज्ञा के उलंघना होयत छैन , जे मालिक क बरदास्त नही होयत छैन

जिनका अभ्यास नही बनल छैन हुनका लेल जरूरी अछि की ओ ककरो से जरूर प्रेम करैथ , लेकिन प्रेम एहन होय जाही में काम-वासना या स्वार्थ बिलकुल नै होय और ई प्रेम – प्यार गुरू के प्रति भ जाय त सबसे निक बात अछि , अन्य था ककरो से निस्वार्थ रूप से प्रेम क सकैत छि } हां अगर अहा गुरु के परम तत्व मणिके प्रेम करब त सोना पे सुहागा बाली बात कहाबत सावित भ जायत अछी अगर निस्वार्थ प्रेम भाब नहि बैन पबैत अछी त कूनू व्यक्ति के प्राप्ति समर्पण क दियो या ककरो सरण में चली जाऊ अगर इ समर्पण गुरु के प्रति भ जय त अति उतम अन्य -अन्य के प्रति समर्पण भेनाय कूनू बरई नहि , मुदा समर्पण एहन होय जहि में सबटा अंहकार पिघैल क पैन जेका बहि जाय , क्याकि मालिक के और नोकर के सुरत (नेचर ) के विच में अहंकारे टा एगो मोट पर्दा अछि जे एक दोसर से मिलान नही हूव देत अछि

जखन ककरो ई विस्वास भ जायत छैक जे हमर इस्ट हरदम अंग – संग में रहैत अछि त हुनका जिनगी में कहियो गलत काज और नही हुनका से कुन्नु संसारिक या परम्परिक काज कहियो नही रुकी सकैत अछि अभ्यास बनल या बनेला से जीवन के कर्म से और किछ अपने ही पराबंध कर्म से प्रभवित होयत रहैत अछि लेकिन लगातार प्रयास करैत रहला सं मन एक दिन कबू में आवी जायत अछि और अपन ई प्रयास जीवन के मूल खता में लिखल जायत अछि , भले ही ओ चंचल मन से क्याक नही होय

कियो ई नही समझू की गृहस्था जीवन में रहला से अभ्यास नही होयत छैक , गृहस्थ में रहिके मन सदिखन बेकाबू में रहैत छैक और ओही से छुट करा पाबाई के एक मात्र साधन अछि सन्यास , ई धारणा गलत अछि क्याकि एक त संतमत के गुरु गृहस्थी रूप भेल छैथि , क्याकि गृहस्ती में एक दोसर पर उपकार करैय के जतेक अवसर भेटैत छैक ओ एगो सन्यासी के नही मिलैत उल्टे सन्यासी त स्वम् अपन आबस्य्कता के लेल गृहस्थ पर निर्भर रहैत छैथ, तेसर सन्यासी क असली मतलब संत में न्यास केनाय या संत में रहनाय, लेकिन असली सत्य त

एकटा अछि ओ अछि मालिक के कुल में लाय भेनाय जे ब्यक्ति हरदम अपन इस्ट के चिंतन – मग्न ध्यान में लागल रहैत छैथि ओहय सच्चा सन्यासी भेला , भलेही ओ कुनौ नाम के जाप करैत या नही , सत्य धर्म जरूर करैत और ओही धर्म के पालन करैत -

    ईहा आत्मिक संतुस्ट कहल जायत अछि ,



प्रेम से कहु जाय मैथिल जाय मिथिला
जय  अपन गाम  घर ---



  जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल , भैरव स्थान ,
झांझरपुर, मधुबनी , बिहार- 847404

ई मेल – madanjagdamba@rediffmail.com
mo -9312460150

सोमवार, 30 नवंबर 2009

आब कहू कतय गेल रोजगार ----

(आब कहू कतय गेल रोजगार ----)

छी गरिब निर्धन के घर सं
आशा भेटल कतेको हजार ,
नही अहि फंड त अगिला फंड में
बढिक घर खसी केर कतेक इंतजार ,,
      आब कहू यो बीडियो सहिब
       कतय गेल इंदरा आबस अधिकार ?

आरीये - धुरे चलिते फिरते
खसैत - परैत भेलो लाचार ,
अहि गाम से ओही गाम धरी
कतोउ नही भेटल सरक शुधार ,,

      आब कहू यो डी एम् साहिब
       कतय गेल प्रधानमंत्री योजना अधिकार ?

टी वी , रेडियो सब दिन सुनलो
होयत जगत में शिक्षा केर पहचान ,
स्कुल कालेज सब दिने देखय छि
मास्टर नहीं त बिद्दार्थी शुने मशान ,,

      आब कहू यो केंद्र सरकार
      कतय गेल ई सर्व शिक्षा अभियान अधिकार ?

सब दिन भगलो पटना दिल्ली
गाम घर से भेलो लाचार ,
जायत -जायत दरभंगा , मधुबनी
कतेको बुजुर्गो केलानी सिधार ,,

      आब कहू यो स्वास्थ विभाग
       कतय गेल स्वास्थ पंचायत समिति अधिकार ?

रौदी - दाही साले - साले
पेट से भूखल रहल परिवार ,
घुस खोरी बैमानी के चकर
सब दिन चलल ई रोजगार ,,

        आब कहू यो ग्राम सेबक जी
        कतय गेल अन्तोदय अनपुर्ना अधिकार ?

चोरी - डकैती बाटे घाटे
अपहरण देखै छी बिच बाजार ,
रंगदारी आ टेक्स वसूली
गामे - गामे चलैया ई रोजगार ,,

        आब कहू यो कमिशनर साहब
        कतय गेल क़ानून अधिकार ?

             the end

       









मदन कुमार ठाकुर
ग्राम/पोस्ट- कोठिया पट्टीटोल
ब्लाक - झंझारपुर
जिला - मधुबनी ,
बिहार ( 847404)
mo -91-9312460150
            madanjagdamba@yahoo.com

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

कि हमहूँ रहबै बेरोजगार ?

             कि हमहूँ रहबै बेरोजगार ?
            
खिचरी खायते- खायते समय गमेलो
नही भेटल शिक्षा के अधिकार ,
बौवा नेना कही घर से प्यार भेटल
नहीं भेटल आँगन बारि के केंद अधिकार ,,
आब कहू यो एस डी ओ साहिब
      कि हमहूँ रहबै बेरोजगार ?


डिग्री लेने गाम सहर सं
भैया हमरो सब कतेक हजार ,
शिक्षक पद के आश में सदिखन
घुमैत फिरैत छैथ हाट बाजार ,,
आब कहू यो नितीश सरकार
     कि हमहूँ रहबै बेरोजगार ?

दौरते - दौरते राईत दिन हम
दरभंगा , मधुबनी लोकसभा के दुवार ,
हारल थाकल घर आबि हम बैसलों
नै मिलल पंचसमिति के अधिकार ,,
आब कहू यो नेता - मुखिया
       की हमहूँ रहबै बेरोजगार ?

दिल्ली में किछ इज्जत अछि बाचल
माहाराष्ट्र सरकार केलक बहार ,
देश दुनिया के खोज खबरी सुनी
मन कहैत अछि, नै छोरू घर- दुवार ,,
आब कहू यो   बिहार सरकार
       कि हमहूँ रहबै बेरोजगार ?







 
 
 
 
 
 
 
 
 
  ठाकुर
मदन कुमार



ग्राम/पोस्ट- कोठिया पट्टीटोल
ब्लाक - झंझारपुर
जिला - मधुबनी ,
बिहार ( 847404)
E-mail -madanjagdamba@yahoo.com

शनिवार, 14 नवंबर 2009

'' कला अक्षर भैस बराबर ''

आखिर में कतेक दिन तक चलत ईकहाबत

'' कला अक्षर भैस बराबर ''

ई छि चर्बाहा स्कूलक हालत ,

देखू केना - केना क बच्चा सब स्कुल में अंग्रेजी पढ़य्ल जायत अछि ,

शिक्षक दुरा शब्द बय्ख्या --

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

''तुम्हें क्या मिला वह तो मैं नहीं जानता लेकिन एक बात जरूर जानता हूँ कि तुमने उस शख्स को खोया है जो कभी अपने आपसे भी ज्यादा तुम्हें प्यार करता hai। तुमने उसे धोखा दिया है जिसने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ तुम पर भरोसा किया। खैर तुम्हे जो करना था वह तुमने कर लिया बस अब एक आखिरी गुजारिश है। मेरे बाकी बचे जीवन में कभी भी और कहीं भी अगर तुम्हारा मुझसे सामना हो जाए तो भगवान के लिए अपना रास्ता बदल देना या फिर अपना मुँह फेर लेना। क्योंकि मैं जानता हूँ कि जब कभी भी मैं तुम्हारा चेहरा देखूँगा तब मुझे सिर्फ एक ही बात का अफसोस रहेगा कि मैंने इस चेहरे के पीछे छुपे हुए उस शख्स से प्यार किया जिसने आखिर तक मुझे धोखे के अलावा और कुछ भी नहीं दिया।

गुरु की पहचान भाग - ३

गुरू की वंदना

गुरू चरण कमल में शीश झुका दीन रात करूँ पूजा सेवा।
गुरू स्तुती नित्त करूँ मन से गुरू सम कोई और नही देवा॥

गुरू अर्थ देत गुरू धर्म देत गुरू काम मोक्ष देने हारे ।
गुरू महीमा जाने न ऋषी मुनी शीव शारद शेष की पार नहीं।
संसार असार की परीत छुटी गुरू भक्ती सम कोई सार नहीं॥
बहुत बरत कीये बहु दान दीये बहु तीरथ में जाकर अटके।
गुरू चरण कमल की परीत नहीं यम जाल में जो जाकर लटके ॥

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

गुरु की पहचान

गतांक से आगे ........
अब तक हमने गुरु के स्थूल स्वरुप की आवस्यकता एवं महानता के बारे में जानने का संक्षिप्त रूप में प्रयास किया था क्योंकि गुरु के स्थूल स्वरुप का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना कोई हँसी खेल नहीं और न यह गुड्डे गुडियों का ही खेल है। जब कोई सच्चा जिज्ञासु श्रद्धा एवं विस्वास पूर्वक अपने सदगुरु के मार्ग निर्देशन में अपनी सांसारिक गति विधियों का संचालन एवं निर्वाह अनासक्त रूप से करता हुआ निष्काम आगे बढ़ता रहता है तो उसे अपने सदगुरु के, अपने इष्ट के सभी गुप्त रहस्यों का ज्ञान धीरे - धीरे हो जाता है और वह स्वयं एक दिन बीजरूप से बदल कर एक छायादार एवं फलदायक वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है। उसका बीजरूप, छायादार और फलदायक होना स्वयं उसके अन्दर ही था परन्तु यह सब उसे पता नहीं था; इसका पता उसे माली की कृपा से अर्थात गुरु कृपा से मिला।
गुरु के सूक्ष्म रूप की पहचान प्राप्त करने के लिए तो और भी ज्यादा सावधानी, मेहनत, मसक्कत और बलिदान करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि जब बाहर में ही इतने अधिक छल प्रपंच हैं की बाहरी गुरु के स्थूल स्वरुप का ज्ञान भी जिज्ञासु की समझ में आसानी से नहीं आता तो अन्दर में तो इससे भी अधिक प्रलोभन हैं; इसलिए गुरु के सूक्ष्म स्वरुप का ज्ञान यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसका एक कारण तो यह है की इसका सम्बन्ध मन से है और मन को वश में करना या मन को नियंत्रण में करना हर किसी के वश में नहीं होता। वैसे जो यह कहते हैं कि उन्होंने मन को मार दिया है वे झूंठ कहते हैं क्योंकि मन को मार कर कोई जीवित कैसे रह सकता है। हमें मन से न दुश्मनी करनी है न मित्रता क्योंकि दोनों ही हमें मन के साथ बंधन में बांधने में सक्षम हैं ।
मन कि शक्ति का पता लगाना भी कोई हँसी खेल नहीं है। इस विषय को लंबा न करते हुए सिर्फ़ इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मन अपने आप में वैसे तो जड़ है, निष्क्रिय है परन्तु जब वह हमसे अर्थात हमारी आत्मा से शक्ति प्राप्त करके हमारी इन्द्रियों के भोगों को भोगनें कि ओर प्रवत्त होता है तो इसकी शक्ति हजार गुना बढ़ जाती है। इस मन कि इस प्रवत्ति को संत अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए संत मन के मारने कि बात नहीं करते बल्कि मन कि प्रवत्तियों को परिस्कृत करने का प्रयाश करते हैं।
चूंकि मन पर जो भी प्रभाव संसार कि घटनाओं का या स्थूल पदार्थों का पड़ता है जिससे तथा कथित प्रवत्तियां जन्म लेतीं हैं उनका सम्बन्ध स्थूल पदार्थों से ही होता है अतः इस स्थूल प्रभाव को कम करने के लिए या इसे समाप्त करने के लिए ही स्थूल गुरु कि आवश्यकता पड़ती है। शेष फ़िर कभी ..........
मालिक सबका कल्याण करे

बुधवार, 11 नवंबर 2009

गुरु की पहचान

आप सब गुरु गुरु चिल्लाते रहते हैं, गुरु के पीछे भागते रहते हैं मगर क्या आपको पता है की गुरु क्या होता है, गुरु कौन होता है? गुरु की सही समझ न होने के कारन हम सब भटक रहे हैं और इस कारन कुछ का तो गुरु पर से विश्वास ही उठ जाता है।

सभी संतो ने, महा पुरुषों ने तथा ऋषि मुनियों ने गुरु की महिमा को बड़े उच्च स्वर में गया है इसका एक कारन यह है की गुरु हमारे अज्ञान के अंधेरे को दूर करके प्रकाश का दीपक जलाता है। ऐसा गुरु हम जैसा ही शरीर धारी होता है और हमारी तरह ही सब कार्य करता हुआ प्रतीत होता है परन्तु वह एक ओर तो परमात्मा से जुडा होता है और दूसरी ओर हम जीवों से जुडा रहने के कारन विलक्षण होता है। वह कर्म करता हुआ भी कर्म बंधन में नहीं फंसता बल्कि दूसरों को भी उनके कर्म से मुक्ति प्रदान करने का महान कार्य करता है। ऐसे गुरु के प्रति आदि गुरु संत कबीर साहेब कहते हैं :

सात समंदर की मसि करों लेखन सब बन राय।
धरती को कागद करों गुरु गुन लिखा न जाय ॥
ऐसा गुरु जिज्ञासु जीव के मन को धीरे - धीरे अपने वचनों से संवारता है, सुधरता है और उसे इस योग्य बनता है कि उसके अन्दर गुरु ज्ञान या तत्त्व ज्ञान समां सके। क्योंकि जब तक जिज्ञासु का ह्रदय साफ सुथरा नहीं होगा उसमे तत्त्व ज्ञान ठहर नहीं सकता।
ज्यों कनक पात्र में रहत है सिंहनी का दुग्ध ।
त्यों ही तत्त्व ज्ञान रहत है हृदय होई जिसका शुद्ध ॥

यह पहचान तो उस गुरु कि बताई गई है जिसे आप देख सकते हैं, छू सकते हैं और उससे बातें कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त गुरु के अन्य स्वरुप भीं हैं जिनका परिचय आपको क्रमशः कराया जायगा। तब तक आप यह समझ लें कि गुरु एवं परमात्मा दो नहीं हैं। वास्तव में गुरु परमात्मा का ही स्थूल/शारीरिक रूप है जो जीवों के कल्याण के लिए स्वयं बंधन में फंस कर अपने ही अन्य स्वरूपों का बंधन काटने के लिए अवतरित होता है।

यदि आप मन से, वचन से और कर्म से किसी दूसरे जीव का दिल नहीं दुखाते, उसके दुःख दर्द को अपना दुःख दर्द समझते हैं तो आप गुरु के वचनों को समझने के पात्र बन सकते हैं।

मालिक सबका कल्याण करें
सस

शनिवार, 7 नवंबर 2009

आयल अपन गामक याद-


आयल अपन गामक याद- 

एक समयक बात छल हम दिल्लीसँ गाम गेल छलहुँ, हमर काकाक बेटा सेहो २६ सालक बाद गाम आयल छलथि ! हुनका सोझाँ देखि कs मन हर्षित भेल, जेना एकटा मरल प्राणीमे जान अबैत अछि, ओहिना हम अपनाकेँ महसूस करैत छलहुँ ! ई बात हमर जन्मसँ पहिनेक छी ! भैयाक मुखसँ सुनल ई वास्तविक कहानी छी ! हम भैयासँ पुछलियनि जे अहाँ अपन जीवनक यथार्थ कथा सुनाउ , अहाँ गामसँ केना भागलहुँ आऽ केना गामक मोन पड़ल, से हम अहाँसँ जानए चाहैत छी !



भैयाक मुखसँ निकलल बास्तविक सच ई अछि !
हम आठ सालक छलहुँ, बाबू काका सभ स्कूल जाय के लेल कहलथि, तँ हम आन गाम भागि जाइत छलहुँ ! एहिना सभ दिन कुनू न कुनू बहाने कतहु ने कतहु चलि जाइत छलहुँ ! एक दिन स्कुलक खातिर काका आओर बाबू बड़ मारि मारलथि, हम किताब कॉपी लए स्कुल चलि गेलहुँ, ओम्हरसँ अबैत काल किताब कोपीकेँ एगो बोनमे फेक देलियैक आर गाम छोरि देलियैक ! भगिते - भगिते विदेश्वरस्थान एलहुँ, पटना बला बसक पाछाँमे हम लटकि गेलहुँ। जतए टोकैत छल ओतय हम उतरि जाइत छलहुँ ! एहिना कऽ कए पटना पहुँचि गेलहुँ, पटना जाइत जाइत हमरा भूख बहुत जोर लागि गेल छल ! हम एकटा मारवाड़ी होटलक सामने गेलहुँ, जाऽ कए ठार भऽ गेलहुँ ! हमरा जेबमे एकोटा फुटल कौरी नञि छल, जे हम भोजन करितहुँ, आधा घंटा हम होटलक सामने ठार छलहुँ, तँ ओकर मालिक कहलक, जे "बेटा तोहार के भूख लागल बा का?" हम चुप - चाप मूड़ी डोलाऽ देलियनि। ओऽ हमरा रोटी आर तरकारी देलक, हम भरि पेट भोजन केलहुँ ! बादमे कहलियनि, जे हमरा होटलमे नोकरी देब की ? ओऽ हमरा ८५ रुपैया महिनाक हिसाबसँ नोकरी पर रखलक ! हम होटलमे तीन मास काज केलहुँ, ओतय एक दिन कारीगरसँ झगड़ा भऽ गेल, तँ हम स्टेसन पर आबि कए बैसि गेलहुँ, ओतय आठ घंटा बैसल छलहुँ ! चारिटा आदमी सेहो बैसल छलथि, ओऽ आपसमे बात करैत छलथि, जे गुजरातमे बड़ नीक नोकरी भेटैत छैक, से सभ आदमी ओतय चलितहुँ ! हम ई बात अपन कानसँ सुनलहुँ आर हुनका सभकेँ कहलियनि, हमहूँ अपने सभक संग चली? लेने जाएब ? ओ सब कहलथि, चलू। किए नञि लऽ जाएब ! हुनका सभक संग गुजरात पहुचलहुँ, ओइठाम सभ आदमी कपड़ा छपाई केर कंपनीमे काज पकड़लहुँ ! ओतय हमरा १६० रुपैआ महिनाक हिसाबसँ तनखा भेटए लागल ! दिन , महिना , साल बीति गेल, हम सेहो २० सालक भऽ गेलहुँ ! सोचलहुँ जे गाम चलि जाइत छी, ओतय बाबू काकाकेँ कह्बनि, विवाह दान कराऽ देताह, आऽ गामेमे रहब, खेती बारी करब ! फेर एक दिन अचानक मोन पड़ल, जे हमरा बाबु आऽ काका बड़ मारि मारलथि, आऽ घरसँ भगा देलथि। हम गाम नञि जायब ! समय बितल गेल, अचानक एक दिन दरभंगाक एक व्यक्ति भेटलाह, पुछलथि, जे अपनेक घर कतए भेल ? हम अपन घरक पता बिसरि गेल छलहुँ ! केवल अपन गामक नाम बतेलियनि आऽ बाबुक नाम ! ओऽ कहलथि, जे ओहि गाममे तँ १९८७ मे बड़ बाढ़ि आयल छल, ओहि गाममे बहुत लोक भसिया गेल, कतेक घर सेहो उजरि गेल ! पता नञि अहाँक घरक की भेल ! हम कहलियनि, जे हमरो घर फूसेक छल ! पता नञि, ओहो भासि गेल की ठीक अछि ! सुनि कऽ बड़ दुःख भेल, सोचलहुँ, आब की कएल जाय ! ओहि व्यक्तिसँ पुछलियनि ! जबाब भेटल, जे अहाँ एतहि विवाह दान कs लियऽ, हमरा एकटा सुपुत्री अछि हुनकेसँ !
            ओहिठाम विवाह केलहुँ, दुटा संतान सेहो उत्पन्न भेल, लक्ष्मी आर आनंद ! दुनुकेँ अएलासँ हमरा अपन परिवार , अपन घर , अपन गाम सभ बेर-बेर मोन आबए लागल, मुदा करब तँ करब की ! दुनुटा आठ आर छः सालक भऽ गेल छल ! ओऽ सभ बेर-बेर पुछैत छल, जे हमर बाबा आऽ मैयाँ कतए छथि ! हम मोनमे मात्र ईएह सोची, जे माई आर बाबु आब कतए हेथिन आऽ कोना ई जीबैत हेताह ! जेना हम लक्ष्मी आऽ आनंदक लेल जान प्राण दैत छी, तहिना हमरो माई आर बाबु हमरा लेल प्राण दैत हेताह ! नञि, हमरासँ बड़का भूल भेल, जे हम अपन गामकेँ त्यागलहुँ ! मोनमे मात्र माञि आर बाबुक याद अबैत छल ! जे बाबु केना हेताह, माई हमर कतए हेतीह ! पता नञि काका आऽ काकी कतय हेताह, बेर-बेर मोनमे ईएह खयाल अबैत छल ! सोचलहुँ जे एक महिनाक छुट्टी लए गामसँ घूमि आबी ! आऽ सभ धिया-पुताकेँ सेहो घुमा देबए ! जे कमसँ कम गामक याद तँ अबिते रह्तए ! सभ परिवार मिलि कए हम दरभंगा पहुचलहुँ ! ओतयसँ टेकर कऽ कए बिदेश्वर स्थान पहुचलहुँ, ओतयसँ हम ई नञि जानैत छलहुँ, जे हमर गाम किमहर अछि आऽ हम कतय जायब , हम की करब ! ओतय बाबा बिदेश्वरक पोखरिमे स्नान केलहुँ आऽ बाबाकेँ सेहो प्रणाम केलहुँ ! सभ बच्चा सभकेँ भूख सेहो लागि गेल छल ! सोचलहुँ जे गामक पवित्र भोजन चूडा दही चीनी होइत छञि, से ग्रहण करी ! भोजन केलाक उपरांत होटल मालिकसँ पुछलियनि, जे यौ हमरा पट्टीटोल जेबाक अछि, से हम केना जाएब ! ओऽ हमरा कहलथि जे अहिठामसँ रिक्सा भेटत, ओऽ अहाँकेँ घर तक छोड़ि देत ! हम सभ रिक्सापर बैसलहुँ, रिक्सा बाला भरि रस्ता ईएह पुछैत छल, जे मालिक अहाँक कोन टोल घर अछि ! जबाब किछु नञि भेटैत छल, जे हम रिक्साबाला के कहबइ ! जौँ जौँ हम अपन घरक दिस जाइत छलहुँ, किछु नञि किछु याद जरुर अबैत छल ! रिक्सा बालासँ बस केवल ईएह कहैत छलहुँ, जे कनिक दूर घर आर अछि ! अपन घरक लग जखन गेलहुँ तँ छोटका काका नज़र पड़लाह, हम हुनका चीन्हि गेलियनि, मुदा हमरा ओऽ नञि चीन्हि सकलाह। किएक तँ २६ साल भऽ गेल छल ओऽ बहुत जरुरी काजसँ हाथमे टेंगारी लए जाइत छलथि ! कनेक दूर जखन आगू गेलहुँ, देखलहुँ जे ओऽ फूसिक घर ओहि दिशामे अछि जाहि दिशामे हमरा सभ किछु यादि छल ! सभ ठीक-ठाकसँ याद आबए लागल ! हम जखन दलान पर पहुंचलहुँ, सब हमरा दिस घुरि-घुरि कए देखैत छल, जे ई व्यक्ति अपन परिवारक संग के थिकाह ! हम रिक्सा बालाकेँ पाइ दऽ देलियनि आऽ एकटा छोट बुच्चीसँ पुछलियनि, अपन बाबुक नाम लऽ कए, जे हुनकर घर कोन छियनि। ओऽ बुच्ची कहलथि जे ईएह छियनि हुनकर घर ! अंगनामे कन्नारोहट होइत छल, सभ जोर-जोरसँ कनैत छल, काकी यै काकी, हमरा छोड़ि कऽ कतय चलि गेलहुँ ! आँगन जखन पहुंचलहुँ, देखलहुँ, ओऽ लाश ओऽ मुर्दा हमर माइक छी ! हम अपन आपकेँ सम्हारि नञि सकलहुँ ! जोर-जोरसँ कानए लगलहुँ! लक्ष्मी आर आनंद पुछलक, जे पापा अहाँ किए कनैत छी ! हम कहलियनि, जे ई अहाँक दादी माइ छथि। ई अपना सभकेँ छोड़ि कए चलि गेलीह। बहुत गलती भेल जे हम एको दिन पहिने किएक नञि अएलहुँ ! हमरा आसमे हमर माइ आइ अपन प्राण त्याग कऽ लेलक ! हम बहुत अभागल छी, हम बहुत पापी छी, जे हम अपन माइ बाबुकेँ बात नञि मानलहुँ, हमरासँ आइ बहुत अपराध भेल ! हम आइ कतहु के नञि रहलहुँ ! एतबामे बाबु आऽ काका सभ क्यो बाँस काटि कए आबि गेलाह, माइक अंतिम संस्कार करबाक लेल ....










जय मैथिली, जय मिथिला


मदन कुमार ठाकुर


कोठिया पट्टीटोला


झंझारपुर (मधुबनी)


बिहार - ८४७४०४
MO  -9312460150
(हम खट्टर काका के दलान पर जखन पहुचलो खट्टर काका भोजनोपरांत कुर्सी पर बैसल छालैथ)

हम कहाल्यैन खट्टर काका गोर लगैत छी !

खट्टर काका - जिवैत रहू हम आहा के पह्चैन नै पेलो आहा के थिको !
हम - हम मैथिल और मिथिला सं आयल छी , हमर नाम मदन कुमार ठाकुर भेल, हमर घर कोठिया - पट्टीटोला अछि
खट्टर काका - तखन आहा हमरा सं की पुछेय चाहैत छी !
हम - आई सं किछ साल पहिने अपनेक ओहिठंम हरिमोहन भईया आयल छालैथ ओ आहा सं चुरा दही चीनी के मूल तत्व के वर्णन जाने आयल छलाह ! तीनो लोक से मिल के बनल अछि जे इ चुरा दही चीनी से आहा सं जानकारी हुनका भेटलैन ! ओही उद्देश सं हम आय अपनेक समक्ष मिथिला विकाश के संदर्भ मं किछ बात करै लेल आयल छी यदि अपनेक के आज्ञा होय त हम किछ अर्ज करी !
खट्टर काका - बाजल जाऊ आहा की पूछे चाहेत छी !

हम - खट्टर काका हम मिथिला के संस्कृति पर पहिने ध्यान देब चाहैत छी जे हमर संस्कृति कहेंन अछि, एकर मान - सम्मान, आचार - वैवहार एक दोसर के प्रति आदर - सत्कार, प्रेम - भावना कहेंन अछि ! आगा जेके एकर मिथिला के उत्पवित संतान पर कतेक प्रभाव परते और नारी जाती के कतेक सम्मान रहते ! मिथिला महान बनत की नै से हम अपने सं जाने चाहे छी !

खट्टर काका - मदन बाबु यदि मिथिला के संस्कृति के बात करी त पहिने बीतल इतिहास के देखि ! आय से कई साल पहिने विद्यापति जी छला मंडनमिश्र, अयाची मिश्र शंकराचार्य जी इत्यादि अनेक महाविद्वान सब भेलैथ ओ सब अपन - अपन कर्तव्य पुरा के क मिथिला के मान - सम्मान दैत चल बैसला ! एतबे नै हम राजा जनके लग सं सुनैत छी मिथिला वर्णन, मिथिला दर्शन, मिथिला के आचार - बिचार दोसर के प्रति सदभावना मधुरबचन इ सब त अपन मिथिला के देन अछि ! दोसर थम कथापी इ कतो नै भेटत क्येक त इ मिथिला मेखूबी छै जे एक - दोसर सं प्रेम मधुर बोली केना बाजल जायत अछि, आय यदि मिथिला बासी चाहैथ जे हमरा संस्कृति पर कुनू आंच नै आबय त पहिने अपन घर के संस्कृति पर ध्यान देब परतेय ! क्येक त हम आय घर - घर मे देखैत छी जे अपन संस्कृति के छोड़ी विदेशी कल्चर लोग अपनाबैत अछि ! माँ - बाबूजी कहब त दूर आब मोम - डैड कहल जायत अछि ! एक दोसर के प्रणाम केनाय त दूर आब हेल्लो - हाई बाजल जायत अछि ! मानलो आई - कैल मे लोग सब किछ अंग्रेजी ज्यादा पैढ़ - लिख लेलक अमेरिका लन्दन सब जाय लागल तकर माने की हम अपन संस्कृति के छोरी दिए इ हमर कर्तव्य अछि इ हमर अधिकार अछि जे विदेशो मे जाय के अपन संस्कृति के उपयोग करी ताहि मे हमर सब मिथिला वासी के कल्याण होयत , और हर मिथिला राज्य आगा - आगा मार्ग पर चलैत रहत ! हमर इ कामना आर दुवा अछि !

हम - खट्टर काका हम देखैत छी जे हमरा मिथिला मे महान - महान कविगन, लेखक, डॉक्टर, इंजिनियर,प्रेस रिपोर्टर सब छैथ ताहि उपरांत हमर मिथिला राज्य आगा विकाश क्येक नै के रहल अछि ! एकर की कारन अछि ?

खट्टर काका - देखु मदन बाबु आय कैल के जूग मे सब अपन - अपन रोजी - रोटी के मार्ग बनबैत छैथ ! दोसर से दोसर के ककरो - ककरो त मेलो - मिलाप नै होइत छैन ताहि हेतु ओ मिथिला विकाश की ओ त अपन घरो के विकाश नै कs सकैत छैथ !

हम - खट्टर काका हम देखैत और सुनैत छी जे आय कैल मे सरकार शिक्षा पर पूर्णरुपे खर्चा कs रहल अछि ! ताहि उपरांत कुनू परिवर्तन नै देखैत छी , सब कियो दिल्ली - मुम्बई भागैत फिरैत अछि !

खट्टर काका - सुनु सब के मन के सोच अपन अलग - अलग होइत छै यदि कुनू आदमी के पैसा ज्यादा भ जायत छै त ओकरा पैसा कूट-कूट काटे लगे छै त ओ अपन पाई के जोगार करतै न ! हुनके सब के देख के आस - पास के जे रहनिहार सब छैथ सब सोचैत छैथ जे फलना के बेटा दिल्ली गेले त हमर बेटा क्येक नै मुम्बई जेता इ जे गाम-घर के रित रिवाज बनल अछि दे बड ख़राब अछि ! अहि मे शिक्षक गन की करता ओ अपन हाजरी लगबैत छैथ और तनखा पबैत छैथ ! अहि मे मारल जायछी हम गाम - घर के गरीब लोकसब (नै घर के नै घाट के) और विषेस की कहब !

हम - खट्टर काका हम हर सहर मे सुनैत छी जे उत्तरी बिहार के सब जिला के सड़क यातायात पर केन्द्र सरकार के सेहो नज़र गेलैन हं ओ नितिस जी के माध्यम सं दिल्ली आसाम रोड सेहो बनी रहल अछि और साथ मे ग्रामीण सरक व्यवस्था के सेहो सूधार भ रहल अछि !
कट्टर काका - हाँ हाँ से तs हमहू सुनैत और देखैत छी सब इ चैल नेता सब के जे N H और ग्रामीण सरक व्यवस्था भ रहल अछि ! की कहू आहा के आय सs साठ साल पहिने हमरा गाम से पूरब पुल टूटल से त एखन तक कियो सोंगर दै बाला नही आयल ! बाढ़ी मे गामक गाम दैह गेल से तs देखेय लेल कियो नही आयल और आहा कहैत छी जे रोड बनबैत अछि ! पिछिला साल न्यूज़ मे सुनलो जे केवल मधुबनी बिकाश के लेल चारी हजार करोड़ रुपैया केन्द्र सरकार देल्कैय से तs नेता और मुखिया सब कुनू पैर - पैखी नही लगेय देल्कैय आ आहाँ कहैत छी जे यातायात व्यवस्था बरहल अछि यो मदन बाबु सब कियो अपन कुर्सी के फ़ायदा उठा रहल अछि !

हम - खट्टर काका तखन किसान भाई के लेल सेहो काफी मुवाब्जा भेट रहल अछि जेनाकी दहार के सुखार के और जगह जगह पर बिजली पम्प के व्यवस्था हर गाव हर पंचैत मे चालू होई बाला अछि कई जगह सब मे नहर के सेहो व्यवस्था भगेल और भो रहल अछि ! अहि विषय पर अपने'क की विचार अछि !
खट्टर काका - सुनू मदन बाबु हमरा सं जे पूछी तs हम सचे कहब की गामक - गाम दहा जायत छै आ मुवाब्जा भेटैय छै एक दु गाम मं जिनकर गाम मे कुछ नाम गाम छै ओ अपन पुरा पुरा प्रोपटी के नाम लिखा दैत छै इये हाल सब जिला के हरेक ब्लोक मे अछि ! और बिजली व्यवस्था के की कहू जिला मे दु तीन थम के नाम सुन्लीय हम आ नहर व्यवस्था व्यवस्था सब चौपट कs गेल जेता किसान भाई के खेती करैय बाला जमीन छल से तs नहर मे चल गेल ओ खेती की करता ! खेत गेला के बात हम १० वर्ष से देखैत छी जे नहर मे पैन नै, आब कतेक नहर पैन के आशा ओ तs धन्यवाद दियोंन इन्द्र देवता के जे हुन्कर कखनो कखनो दया दृष्टि हमरो सब पर भो जैट छैन !
हम - खट्टर काका हम मिथिला बासी के मुह सं सुनैत छी जे हमरा मिथिला राज्य चाही ताहि मे अपने'क की राय अछि ?

खट्टर काका - यदि हमर मिथिला राज्य अलग भो जायैत अछि तs बहुत गर्व के बात छी फेर पुनः मिथिला विदेहक नगरी कहाओत और मिथिला के मान - सम्मान पान मखान सं होयत

                               जय मैथिली, जय मिथिला



~: लेखक :~

मदन कुमार ठाकुर
कोठिया ,पट्टीटोल
झंझारपुर (मधुबनी)
बिहार - ८४७४०४
मो - 09312460150
Email -madanjagdamba@yahoo.com

          madanjagdamba@rediffmail.com