(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

की हमहूँ रहबै कुमार ?

यौ पाठक गण की कहू अपन मिथिला राज्य चौपट भ' गेल ( से कोना यौ ) एक त कमला कोशीक दहार आ दोसर दहेज़ प्रथाक व्यवहार ! कमला कोशी लेलक पेटक आहार त दहेज़ प्रथा केलक आर्थिक लाचार ! कन्यादान से कतेक पिता लोकनि सेहो भेला बीमार आ कतेको बर छथि ओही बाधा सँ सेहो कुमार आ बीमार ! ओही सभ बात के लs क' हम नब युबक संघक बाधा कs ल'क' पाठक गणक समक्ष अपन गाम घर पर हाजिर छी.......

की हमहूँ रहबै कुमार ?

जय गणेश मंगल गणेश, सदिखन रटलो मंत्र उचार !
सभ बाधाक हरय बाला, कते गेलो अहाँ छोड़ि संसार !!
अपना लेल अगल - बगल मे, हमरा लेल किए दूर व्यवहार !
आब कहू यो गणपति महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार...? !!

बरख बीत गेल देखते देखते, जन्म कुंडली मे थर्टी ! (३०)
दहेजक आस मे हम नै बैसब, हमरो उम्र भो जेत सिक्सटी !! (६०)
गाम - गाम मे जे के बाजब, बाबू हमर छथि दुराचार !
आब कहू यो बाबू - काका, की हमहूँ रहबै कुमार... ?!!

ब्रह्म बाबा के सभ दिन गछ्लो, लगाबू अहि लगन मे बेरापार !
ओही खुशी मे अहाँ के देब, हम अपन गाय के दूधक धार !!
हे कुसेश्वर हे सिंघेश्वर, अहाँक महिमा अछि अपरम पार !
अहि लगन मे पार लगाबू, हम आनब दूध दही आ केराक भार !!
आब कहू यो भोले दानी, की हमहूँ रहबै कुमार ....?...

सौराठ सभा मे जे के बैसलों, सातों दिन आ सातो राति !
कियो नै पुछलक नाम आ गाम, की भेल अपनेक गोत्र मूल बिधान !!
घर मे आबी के खाट पकरलो, नै भेल आब हमर कुनू जोगार !
आब कहू यो बाबा - नाना, की हमहूँ रहबै कुमार --?!!

दौर - दौर जे पंडित पुर्हित, सभ दिन पूछी राय बिचार !
पंडित जी के मुहँ से फुटलैन ई बकार ..........
जेठ अषाढ़ त बितैते अछि, अघन से परैत अछि अतिचार !!
आब कहू यो पंडित पुर्हित, की हमहूँ रहबै कुमार ....?.

नै पढ़लो हम आइये - बीए, छी हमहूँ यो मिडिल पास !
डॉक्टर भइया - मास्टर भइया, ओहो काटलैथ एक दिन घास !!
ओही खान्दानक छी यो हमहूँ, जून करू आब हमर धिकार !
आब कहू यो बाबू - भैया, की हमहूँ रहबै कुमार ?!!

गोर - कारी सभ के सब दिन रखबै, लुल्ही - लंगरी से घर के सजेबई !
बौकी पगली के दरभंगा में देखेबाई, कन्ही कोतरी से करब जिन्दगी साकार !!
आब कहू यो संगी - साथी, की हमहूँ रहबै कुमार ..?........

अघन के लगन देख हम झूमी उठलो, जेना करैत अछि नाग फुफकार !
लगन बीत गेल माघ फागुन के, गुजैर रहल अछि जेठ अषाढ़ !!
अंतिम लगन ओहिना बितत, नैया डूबत हमरो बिच धार !
आब कहू यो मैथिल आर मिथिलाक पाठक गन,
की हमहू रहबै कुमार --?-!!

नब युवक के बातक रखलो मान, शादी.कॉम में लिखेलो अपन नाम !
नै कुनू भेटल कतो से मेल, लागैत अछि जे ईहो भेल फैल !!
कतेक दिन करब मेलक इंतजार........
आब कहू यो कम्पूटर महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार --?!!

भोरे उठी गेलो खेत खलिहान, उम्हरे से केना एलो कमला स्नान
देखलो दुई चैर आदमी के, बात करैत छल कन्यादान !
पीड़ी छुई हम भगवती के, पहुँच गेलो हम अपन दालान !!
हाथ जोरी हम सबके, विनती केलो बारम् बार !
आब कहूँ यो घटक महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार --?

मदन कुमार ठाकुर,
पट्टीटोला, कोठिया (भैरव स्थान )
झंझारपुर (मधुबनी)बिहार - ८४७४०४।
मो-९३१२४६०१५०

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

गुरू की पहचान भाग-4

गुरु की पहचान

अब एक छोटा सा या मोटा सा प्रश्न कभी-कभी यह उठता है कि गुरु की पहचान कैसे की जाय? यह पता कैसे चले कि कोई व्यक्ति जिसे अन्य लोग गुरु समझते हैं वह गुरु है भी या नहीं इसकी पहचान कैसे हो? कहीं वह धोखेबाज तो नहीं जैसा कि आमतौर पर आजकल देखने-सुनने में आता है. यह संदेह बिलकुल सत्य है क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के अन्दर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास नहीं है तो उसे न तो सच्चे संत महात्मा/ सच्चे सदगुरू से कुछ मिल सकता है और न ही ढोंगी बाबा से. इसके विपरीत जिसको जिस पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास है उसे उससे मनोवांछित फल मिलने कि पूरी सम्भावना रहती है. अब इसके साथ ही एक प्रश्न यह भी पैदा होता है कि आप के पास ऐसा कौन सा औजार है, कौन सा बारोमीटर है, कौन सा स्केल या पैमाना है जिससे आप यह अंदाज लगा सकते हैं कि कोई व्यक्ति सच्चा सदगुरू है या पाखंडी है. अगर आप समझते हैं कि आप औरों कि नक़ल करके गुरु कि पहचान कर सकते हैं तो भी आप गलती खा सकते हैं क्योंकि उसने अपने अनुभव या अपनी मान्यता के आधार पर किसी को गुरु माना है जिसकी तुलना आप नहीं कर सकते और यदि आप अपनी बल बुद्धि के आधार पर कोई निर्णय लेते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप गुरु कि परीक्षा लेने के काबिल हैं अर्थात आप गुरु से ज्यादा समझ रखते हैं . क्योंकि एक एम० ए० के विद्यार्थी कि कापी उससे उच्च ज्ञान रखने वाला ही जाँच सकता है कोई हाई स्कूल पास नहीं.

देखिये आदि संत कबीर साहिब गुरु के बारे में कहते हैं :

गुरु को मानुस जानते, ते नर कहिये अंध
दुखी होएँ संसार में आगे जम का फंद

गुरु किया है देह को सतगुरु चीन्हा नाहीं
कहें कबीर ता दास को तीन ताप भ्रमाहीं

गुरु नाम आदर्श का गुरु है मन का इष्ट
इष्ट आदर्श को ना लाखे समझो उसे कनिष्ट

इससे तो यह स्पष्ट होता है कि गुरु आम आदमी की तरह ही दीखता है, आम आदमी की तरह खाता-पीता है और आम आदमी की तरह ही सब जगत-व्यवहार करता है परन्तु उसमें एक खास बात होती है जो अन्य सामान्य व्यक्तियों में नहीं होती जिसके कारण गुरु अन्य व्यक्तियों से भिन्न होता है और वह खास बात यह है की गुरु के अन्दर परमतत्व पूर्ण रूप से अवतरित हुआ होता है. यूँ तो परमतत्व इस संसार/इस ब्रह्माण्ड और कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों के एक-एक अणु और परमाणु में भी मौजूद रहता है क्योंकि सब कुछ उसी से निकला है, उसी में समाया हुआ है और उसी में विलीन हो जायगा फिर भी सभी संत- महात्मा और सभी प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ यही कहते आये हैं कि वह परमतत्व जड़ पदार्थों में सुप्त अवस्था में रहता है, वनस्पतियों में वह अचेतन, पशु -पक्षियों में अर्धचेतन, मनुष्यों में चेतन अवस्था में और संत्सत्गुरु में वह पूर्ण चेतन अवस्था में रहता है और अपने निज स्वरुप में वह चेतनघन अवस्था में रहता है. चूंकि संत्सत्गुरु में वह पूर्ण चेतन अवस्था में रहता है इसलिए संत सत्गुरुवक्त ही उस पूर्ण चेतनता को दूसरे व्यक्तियों में प्रवाहित करने में सक्षम है. इस द्रष्टिकोण से भी यही प्रमाणित होता है कि गुरु मनुष्य रूप में स्वयं परमतत्व ही होता है.

सांसारिक आवश्यकताओं की पूर्ति, एश्वर्य और धन -धन्य की पूर्ति तो किसी भी देवी-देवता, या किसी भी वस्तु को इष्ट मान कर पूजा करने से हो सकती है, इससे लोक और परलोक भी सुधर सकते हैं परन्तु इनकी पूजा से आवागमन से छुटकारा नहीं मिल सकता. आवागमन से छुटकारा यदि कोई दिला सकता है तो वह हस्ती संत सत्गुरुवक्त ही है वह इस प्रकार की एक तो वह स्वयं निर्बंध होता है दूसरे वह आपकी शंकाओं का आपके संदेहों का निवारण मुंह-दर-मुंह फेस-टू - फेस कर सकता है जिससे आपकी प्रगति अबाधित रूप से होने लगती है जो अन्य प्रकार से संभव नहीं.

अब रही बात यह कि गुरु पर श्रद्धा और विश्वास कैसे लाया जाय? यह बिलकुल निजी मामला है और इसके लिए कोई सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किये जा सकते क्योंकि जितना भी इस बारे में कहा जायगा वह विवादित बन जायगा. जैसे कोई किसी को रोना नहीं सिखा सकता, किसी को प्रेम करना नहीं सिखा सकता, इसी प्रकार कोई किसी को किसी पर श्रद्धा और विश्वास करना भी नहीं सिखा सकता. यह तो जब होता है तब होता है और नहीं होता तो नहीं होता. फिर भी अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार और अपने अनुभव के आधार पर मैं यहाँ पर लिखना चाहता हूँ कि यदि किसी को किसी महापुरुष के पास बैठकर मानसिक शांति मिलती है, उसके काम-क्रोध में कमी आने लगती है, उसकी वासनाएँ बदलने लगती हैं, उसके विकारों में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है, उसकी चंचलता घटने लगती है तो समझो कि वह आपका मार्गदर्शन करने में सक्षम है. यदि वह अपनी प्रशंसा नहीं करता/करवाता, अहंकारवश कोई बात नहीं कहता, वाह्य-आडम्बरों से दूर रहता है और किसी का खंडन-मंडन नहीं करता और अपने अनुभव के आधार पर आपकी समस्स्याओं का समाधान बताता है तो ऐसा महापुरुष गुरु स्वीकार करने के योग्य है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि उसके पास बैठकर आपके मन में यह भावना जाग्रत हो जाय कि जिसकी मुझे तलाश थी बस वह यही है. यदि ऐसी चिंगारी आपके मन मंदिर में जाग उठती है तो आप का काम उससे बन जायगा और आपका कल्याण हो जायगा. अब एक बात यहाँ पर और स्पष्ट करने योग्य है कि क्या गुरु कि खोज हम करते हैं? मेरी धारणा है कि गुरु कि खोज तो स्वयं गुरु कि प्रेरणा से ही होती है. वही हमारे अन्दर यह भावना पैदा करता है कि हम-एक-दूजे के लिए हैं.

गुरू की पहचान

गुरु की पहचान

संतमत में सबसे ज्यादा जोर, सबसे ज्यादा महिमा गुरु की गाई जाती है. संतमत में गुरु को भगवान से भी बढ़ कर माना जाता है. संतमत के आदि गुरु संत कबीर ने तो यहाँ तक कह दिया :
गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लांगू पॉंव
बलिहारी गुरु अपनों जिन गोबिंद दियो बताय

पता है ऐसा क्यों कहा गया है? इसके अनेक कारण हो सकते हैं. ज्ञानी और विद्वान तो अपने-अपने तर्कों के अनुसार अनेकोंअनेक कारण ढूंढ कर विषय को और भी अधिक जटिल बना सकतें हैं क्योंकिं शब्द जाल महा जाल होता है और उससे बच निकलना आसान नहीं होता और विद्वानों के पास तो शब्दों का अपार भंडार होता है. इसलिए मैं अपनी तुच्छ बुद्धि के आधार पर इसका साधरण सा कारण इस प्रकार व्यक्त करता हूँ:
सभी धर्म सभी संत महात्मा अनादी काल से कहते आये हैं कि ईश्वर ने मनुष्य को अपने ही रूप में बनाया है परन्तु किसी ने भी आज तक असली ईश्वर को बाहर में नहीं देखा है जिसने भी ईश्वर को पाया है उसने अंतर में ही दर्शन पाया है और अंतर में दर्शन पाकर गूंगा बन गया है क्योंकि असली ईश्वर का न तो वर्णन हो सकता है और न ही उसकी व्याख्या हो सकती है. वाणी तो उसे व्यक्त करने का एक कमजोर साधन है जिसके चलते अर्थ का अनर्थ हो जाता है अर्थात वाणी के चलते सत्य असत्य हो जाता है. ईश्वर अनुभव का विषय है और इस अनुभव को वही दूसरे को अनुभव करा सकता है जिसने स्वयं इसका अनुभव किया हुआ होता है. यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के अन्दर ईश्वर मौजूद है तथापि हरेक उसका अनुभव स्वयं करने में असमर्थ है. इसके भी अनेक कारण हो सकते हैं- जैसे पूर्व जन्मो के प्रारब्ध कर्म और उनका संस्कार, इस जन्म के संचित कर्म और क्रियमाण कर्म और उनके संस्कार; इसके अतिरिक्त काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्षा, आशा, तृष्णा, वासना और कामना आदि ऐसी मानवी वृतियां हैं जिनके चलते घर में ही खजाना होते हुए भी हम जीवन भर कंगाल ही बने रहतें हैं. जो इन पर विजय प्राप्त कर लेता है या जिसे उस खजाने कि चाबी मिल जाती है वही उस धन का उपयोग कर सकता है.
जिसको इसका ज्ञान हो जाता है वही दूसरों को इसका ज्ञान दे सकता है और गुरु ही वह हस्ती है जिसे अंतर का ज्ञान हो चूका होता है और वही इस ज्ञान को दूसरों को बाँटने में सक्षम होता है. मेरी समझ के अनुसार गुरु की आवश्यकता इसीलिए जानी जाती है.

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

रुपैया बीस (सुईद ब्याजक संग )

रुपैया बीस (सुईद ब्याजक संग )
ई चुटकुला मुसाय बाबाक सन्दर्भसँ लेल गेल अछि ! --

ओना तs बाबाक समाजक प्रति अनेको उपकार छन्हि ताहिमे एक - दोसराक प्रति परोपकार सेहो बही - खातामे लिखल गेल छनि ! मुसाय बाबाक १ अगस्त २००३ कs देहवासन भs गेलन्हि मुदा हुनकर कृति एखनो धरी समाजमे व्याप्त अछि ! बाबाकेँ धन - सम्पति अपार छलनि ताहिसँ समाजमे मान-मर्जादा बहुत निक भेटैत छलनि ! दस बीस कोससँ लोक सभ मुसाय बाबासँ सुईद (व्याज) पर पाई लैक लेल आबैत छल ! कतेको ठिकेदार कतेको महाजन सभ हुनक दालानपर बैसल रहैत छलनि !

एक बेर मुसहरबा भाइ सेहो अपन विवाहक लेल मुसाय बाबासँ बीस (२०)गो टका लेने छल ! मुसहरबा भाइ बाबाक खास नोकर छलाह तs ओकरा मुसाय बाबा कहलखिन हे मुसहरबा भाइ हम जे तोरा २०गो टका देलियो से हमरा कहिया देबह? मुसहरबा भाइ बाबासँ कहलकनि जे मालिक हम तँ बीस गो टका सुईद (व्याजक) साथ दऽ देने छी ! अहि बातपर दुनू आदमीकेँ आपसमे बहस चलय लगलनि, बहुत हद तक झगड़ा आगू बढ़ि गेल ! ताबे मे किम्हरोसँ कारी बाबु एलथि। कहलखिन- " यौ। अहाँ दुनू आदमीक आपसमे किएक झगड़ा भs रहल अछि "!मुसाय बाबा सभ बात कारी बाबुकेँ कहलखिन आर मुसहरबा भाइ सेहो सभ बात कारी बाबुकेँ सुनेलखिन्ह ! तखन कारी बाबु कहलखिन- " हे मुसहरबा भाइ । अहाँ हिनका कखन - कखन आर कोना पाइ देलियनि से हमरा कहू ........मुसहरबा भाइ बजलाह - "

सुनू कारी बाबु, आ मुसाय बाबू --- अहूँ ध्यान राखब हमर कतय गलती अछि ?
हमरा लग अपनेक टका छल बीस (२०)
आहाँ आँखी गुरारीकेँ तकलहुँ हमरा दिसएक टका तखने देलहुँ .........

टका बचल उनैस (१९)
अहाँ कहलहुँ अही ठाम बैसएक टका तखने देलहुँ ......

टका बचल अठारह (१८)
आहाँ लागलहुँ हमरा जोर सँ धखारहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल सतरह (१७)
आहाँ लागलहुँ हमरा जखन तखन तंग करहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल सोलह (१६)
आहाँ लागलहुँ हमर पोल खोलहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल पंद्रह (१५)
आहाँ लागलहुँ हमरा टांग गरैरकऽ पकरहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल चौदह (१४)
आहाँ लागलहुँ हमरा घर पर पहुँचहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल तेरह (१३)
आहाँ लागलहुँ हमर रस्ता घेरहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल बारह (१२)
आहाँ लागलहुँ हमरा लाठीसँ मारहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल एगारह (११)
आहाँ लागलो हमर कुर्ता फारहएक टका तखने देलहुँ ......

टका बचल दस (१०)
अहाँ कहलहुँ हमरा जमीन पर बसएक टका तखने देलहुँ ......

टका बचल नौउह (९)
आहाँ कहलहुँ हमरा ओहिठाम नोकर बनिरहएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल आठ (८)
आहाँ घोरैत छलहुँ खाटएक टका तखने देलहुँ ....

टका बचल सात (७)
आहाँ खाइत छलहुँ नून भातएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल छः (६)
आहाँ उपारैत छलहुँ जौएक टका तखने देलहुँ ....

टका बचल पॉँच (५)
आहाँ देखैत छलहुँ चौकी तोर नाचएक टका तखने देलहुँ......

टका बचल चारि (४)
आहाँक सभ भाई मे बाझल मारिएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल तीन (३)
आहाँ सभ भाई भेलहुँ भीनएक टका तखने देलहुँ .....

टका बचल दू (२)
आहाँ कहलहुँ महादेवक पिड़ी छूएक टका तखने देलहुँ ......

टका बचल एक (१)
आहाँ के बाबूजीक बरखी मे दक्षिणा देलएक टका तखने देलहुँ ......

बाँकी के बचल सुईद आर व्याज
ओहिमे देलहुँ ढाई मोन प्याज ॥"


जय मैथिल , जय मिथिला धाम ,

याद राखु बस अप्पन गाम



मदन कुमार ठाकुर,
कोठिया पट्टीटोला,
झंझारपुर (मधुबनी)
बिहार - ८४७४०४,
मोबाईल +919312460150 ,

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

अप्रैल,2010 केर पाबनि-तिहार

2 अप्रैल: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत
5 अप्रैल: शर्करा सप्तमी
6 अप्रैल: कालाष्टमी व्रत
7 अप्रैल: चण्डिका नवमी
11 अप्रैल: प्रदोष व्रत
12 अप्रैल: मासिक शिवरात्रि व्रत
14 अप्रैल: खरमास समाप्त। सतुआइन संक्रान्ति। मेष-संक्रान्ति भोरे 6.57 बजे, पुण्यकाल सूर्योदय सं दुपहर 1.21 बजे तक। हरिद्वार में कल्पवास प्रारंभ। हरिद्वार के महाकुम्भ मे पूर्ण कुम्भयोगक मुख्य स्नान तथा तृतीय (अंतिम) शाही स्नान। चडक पूजा (बंगाल)। सौर नववर्ष प्रारंभ, वैशाखी पर्वोत्सव। स्नान-दान-श्राद्ध केर अमावस्या।
15 अप्रैल: जूडशीतल। मलमास प्रारंभ। बंगाली नववर्ष 1417 प्रारंभ।
18 अप्रैल: वरदविनायक चतुर्थी व्रत।
19 अप्रैल: स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत। स्वामी कार्तिकेय केर दर्शन-पूजन ।
20 अप्रैल: सूर्य सायन वृष मे भोरे 10.01 बजे। सौर ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ।
22 अप्रैल: श्रीदुर्गाष्टमी व्रत। श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत। व्यतिपात महापात देर राति 3.14 सं।
23 अप्रैल: बाबू कुँवर सिंह जयंती। व्यतिपात महापात प्रात: 7.44 तक। कुमार योग अपराह्न 1.52 सं रात्रिपर्यन्त।
25 अप्रैल: षाण्मासिक रविव्रत पूर्ण। पुरुषोत्तमी कमला एकादशी व्रत।
26 अप्रैल: सोम-प्रदोष व्रत
27 अप्रैल: पुरुषोत्तमी पूर्णिमा व्रत, श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा
28 अप्रैल: स्नान-दान केर पुरुषोत्तमी पूर्णिमा। तीर्थ अथवा पवित्र नदी सभ में स्नान विशेष पुण्यदायक। हरिद्वार महाकुंभ में स्नान

प्रस्तुतकर्ताक ब्लॉगः स्वास्थ्य-सबके लिए

समय-सालक नव अंक बजार मे

1. कार्टून बाला साहेबक-मन्त्रेश्वर झा
2. के अछि कृषकक मर्मांतक पीड़ा देखनिहार(संपादकीय)
3. किछु जानल किछु सोचल(विभिन्न खबरि पर रिपोर्ट)
4. शहरी सुख सं वंचित किसान-महाकान्त मंडल
5. कांग्रेसक विरूद्ध विपक्षक अभाव-मधुकान्त झा
6. मिथिलांचल राज्य चाही-
7. अम्बेदकर सत्य आ सपना-जयराम यादव
8. मिथिला आ मैथिली-राजनन्दन लाल दास
9. सराप(लघुकथा)-रानी झा
10. अबंड जकां बौआइत(कविता)-डॉ. वीरेन्द्र मल्लिक
11. ग़ज़ल-विजयनाथ झा
12. सवाल जागल अछि(कविता)-मधुकान्त झा
13. एहेन त भेल अछि(कविता)-अंशुमान सत्यकेतु
14. पराकाष्ठा(कथा)-भक्तीश्वर झा सारथी
15. सरकार दर्शन- राजशेखर
16. फगुआ में माछ?किन्नहु नहि !-शिवकुमार नीरव
17. स्वर्गक चुनावी दंगल-ज्योतीरीश्वर झा
18. श्रेष्ठतम मैथिली साहित्यकार-अरविन्द कुमार सिंह झा
19. मैथिली भाषाक विकासक बाधक तत्त्व-डॉ. वीरेन्द्र झा
20. जीवन प्रेमीक देह यात्रा थिक-लतिका

पत्रिका प्राप्ति सम्पर्कः 9899891808

प्रस्तुतकर्ताक ब्लॉगः सा विद्या या विमुक्तये


हम नै ई दुनियाँ कहैया - मदन कुमार ठाकुर


हम नै ई दुनियाँ कहैया

हमरा राज्य में ई सब भेल ,
फल्ला के राज्य में कि सब भेल
फूसी - फटक सब नेता बजैया ,
इलेक्शन बाद फेर के पुझैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

गाम - गाम में मुखिया सरपंच ,
एक दोसरक सब खाइया अंस
ग्राम विकासक काज कहैया ,
अपन रोजी- रोटी के मार्ग बनबैया,
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

बढिक दाही रौदिक अकाली ,
घर- खसि ई सब लोग कहैया
एसडियो -बीडीओ सब के लेखा - जोखा ,
भगवती से सद्दा ईहा मनबैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

हॉस्पिटल चकर सब दिन लगैया ,
बिमारी सबहक खान भेटैया
डाक्टर सब नै नजैर परैया ,
अपन किल्निक सदीखन बैसैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

तिलक द्हेजक जखन बात चलैया ,
लाख डेढ़ लाख से कम नै कहैया
अपना पर जखन विपैत परैया ,
बापरे - बाप कहिय दूर भगैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

साधू – संत के जो बात चलैया ,
लोक -लाज से भीन्ने मरैया
आसन लगा सब भाषण करैया ,
अपन पेट लेल खुद्ये मरैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

चिठ्ठी - पत्री के आब पढ़ेया ,
हेंड सेट से फुर्सत नै भेटैया
खन दरिभंगा , खन मधुबनी ,
अपना में सब लोक बजैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया

हाय - हेलो सब लोग बजैया ,
छोरी - छोरा संग नाच करैया
अपना के महान बुझैया ,
अपन मान- सम्मान गम्बैया
हम नै ---- ई दुनियाँ कहैया