(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२क उद्घाटन कपिल सिब्बल द्वारा/ २१म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी (अवसर बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२, सौजन्य अंतिका प्रकाशन) २५ फरबरी २०१२ सँ ०४ मार्च २०१२ (रिपोर्ट प्रियंका झा)


आइ बीसम नव दिल्ली  विश्व पुस्तक मेला २०१२क उद्घाटन कपिल सिब्बल, केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री, भारत सरकार द्वारा हंसध्वनि ओपेन एयर थियेटर, प्रगति मैदान, नव दिल्लीमे कएल गेल। एकर आयोजक रहैत अछि नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत। ई विश्व पुस्तक मेला दू सालमे एक बेर होइत अछि आ ४० साल पहिने १९७२ ई. मे एकर पहिल आयोजन भेल छल।  कपिल सिब्बल कहलन्हि जे ओ एकरा सभ साल कएल जएबाक प्रयास करताह। ओ कहलन्हि जे यूनाइटेड किंगडम आ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिकाक बाद भारत अंग्रेजीमे सभसँ बेसी पोथी छापैत अछि, तकर अतिरिक्त विभिन्न भाषाक लगभग एक लाख पोथी भारतमे सभ साल छपैत अछि। विश्व भरिक १३०० प्रदर्शकक २५०० स्टाल ऐ मेलामे अछि। कार्यक्रमक अध्यक्षता श्री मनोज दास केलन्हि आ श्रीमती मृदुला मुखर्जी सम्माननीय अतिथि रहथि। यूनाइटेड किंगडम आ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिकाक बाद भारत अंग्रेजीमे सभसँ बेसी पोथी छापैत अछि। तकर अतिरिक्त विभिन्न भाषाक लगभग एक लाख पोथी भारतमे सभ साल छपैत अछि।
भारतीय सिनेमाक सए बर्ख, दिल्लीक राजधानी रूपमे सए बर्ख आ रवीन्द्रनाथ टैगोरक १५०म जयन्ती ई तीनू संयोग ऐ बेर एक्के संग पड़ि रहल अछि।
अहाँ मैथिली कथा संग्रह/ उपन्यास (जगदीश प्रसाद मण्डल/ गजेन्द्र ठाकुर/ सुभाष चन्द्र यादव आदि), कविता/ गजल संग्रह (राजदेव मण्डल, विनीत उत्पल, ज्योति सुनीत चौधरी, कालीकान्त झा बूच, आशीष अनचिन्हार आदि), नाटक (विभा रानी/ नचिकेता/ बेचन ठाकुर/ गजेन्द्र ठाकुर/ जगदीश प्रसाद मण्डल आदि), कॉमिक्स (देवांशु वत्स), सचित्र बाल कथा संग्रह (प्रीति ठाकुर/ गजेन्द्र ठाकुर/ जगदीश प्रसाद मण्डल/ अनमोल झा), विदेह सदेह( १०० सँ ऊपर लेखक), अंग्रेजी-मैथिली शब्दकोश (गजेन्द्र ठाकुर, पञ्जीकार विद्यानन्द झा, नागेन्द्र कुमार झा), मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध (गजेन्द्र ठाकुर, पञ्जीकार विद्यानन्द झा, नागेन्द्र कुमार झा), मैथिलीक पहिल ब्रेल पोथी (सहस्रबाढ़नि, उपन्यास, गजेन्द्र ठाकुर), आ मिथिला/ मैथिलीक इतिहास (राधाकृष्ण चौधरी)..आदि पोथी कीनि सकै छी।

http://www.antikaprakashan.com/ (अंतिका प्रकाशनक साइट- मैथिली प्रकाशक)
http://www.shruti-publication.com (श्रुति प्रकाशनक साइट- मैथिली प्रकाशक)
http://esamaad.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html (समदिया, पहिल मैथिली न्यूज पोर्टल २००४ ई.सँ)


२१म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी (अवसर बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२, सौजन्य अंतिका प्रकाशन) २५ फरबरी २०१२ सँ ०४ मार्च २०१२,प्रतिदिन भोर ११ बजेसँ ८ बजे राति धरि, स्थान- अंतिका प्रकाशन , स्टाल 80-81, हॉल 11, प्रगति मैदान,२०म विश्व पुस्तक मेला 2012 नव दिल्ली


वि‍देह द्वारा मैथि‍ली पोथी प्रदर्शनी-
1. ‘वि‍देह’क पहि‍ल मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 27/09/2009 स्‍थान- नई दि‍ल्‍ली स्‍थि‍त श्रीराम सेन्‍टरक प्रेक्षागृहमे। अवसर- ‘जल डमरू बाजे’ नाटक-मंचन।
2. ‘वि‍देह’क दोसर मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 03/04/2011 स्‍थान- रामानन्‍द युवा कलव, जनकपुरधाम, नेपाल। अवसर- ‘सगर राति‍ दीप जरय’क 69म कथा गोष्‍ठी।
3. ‘वि‍देह’क तेसर मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 12/06/2010 स्‍थान- कवि‍लपुर लहेरि‍यासराय, दरभंगा। अवसर- ‘सगर राति‍ दीप जरय’ 70म कथा गोष्‍ठी।
4. ‘वि‍देह’क 4म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 02/10/2010 स्‍थान- बेरमा (तमुि‍रया) जि‍ला- मधुबनी। अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 71म कथा गोष्‍ठी।
5. ‘वि‍देह’क 5म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2010 स्‍थान- बेरमा (तमुि‍रया) जि‍ला- मधुबनी। 4 दि‍वसीय प्रदर्शनी।
6. ‘वि‍देह’क 6म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2010 स्‍थान- घोघरडीहा (मधुबनी) दुर्गापूजाक मेला परि‍सर। अवसर- दुर्गापूजा-2010
7. ‘वि‍देह’क 7म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2010 स्‍थान- हटनी (मधुबनी) दुर्गापूजाक मेला परि‍सर।
8. ‘वि‍देह’क 8म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 04/12/2010 स्‍थान- व्‍यपार संघ भवन, सुपौल। अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 72म कथा गोष्‍ठी।
9. ‘वि‍देह’क 9म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 05/12/2010 स्‍थान- महि‍षी (सहरसा) अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 73म कथा गोष्‍ठी।
10. ‘वि‍देह’क 10म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 09/07/2011 स्‍थान- अशर्फीदास साहु समाज महि‍ला इंटर महावि‍द्यालय परि‍सर- नि‍र्मली (सुपौल), अवसर- सामानांतर साहि‍त्‍य अकादमी मैथि‍ली कवि‍ सम्‍मेलन-2011
11. ‘वि‍देह’क 11म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 02 नभम्‍बर 2010 स्‍थान- एस.एम. पब्‍ि‍लक स्‍कूल परि‍सर झि‍टकी-वनगामा (मधुबनी), अवसर- स्‍कूल वार्षिकोत्‍सव।
12. ‘वि‍देह’क 12म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- सरस्‍वतीपूजा- 2011 स्‍थान- चनौरागंज (मधुबनी) अवसर- सरस्‍वतीपूजा नाट्य उत्‍सव- 2011
13. ‘वि‍देह’क 13म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 10/09/2011 स्‍थान- हजारीबाग (झारखण्‍ड), अवसर- सगर राति‍ दीप जरय’क 74म कथा गोष्‍ठी।
14. ‘वि‍देह’क 14म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- दुर्गापूजा-2011 स्‍थान- बेरमा (मधुबनी) 4 दि‍वसीय प्रदर्शनी।
15. ‘वि‍देह’क 15म मैथि‍ली पोथी-प्रदर्शनी, दि‍नांक- 02/11/2010 स्‍थान- उच्‍च वि‍द्यालय परि‍सर- खरौआ जि‍ला- मधुबनी। अवसर- महाकवि ‍लालदासक 155म जयन्‍ती समारोह।

16.विदेहक १६म मैथिली पोथी प्रदर्शनी १०-११ दिसम्बर २०११ केँ ७५म सगर राति दीप जरएक अवसरपर ,१० दिसम्बर २०११ केँ साँझ ६ बजेसँ शुरू भेल, स्थान-कॉपरेटिव फेडेरेशन हॉल, निकट म्यूजियम, पटनामे शुरू भेल आ ११ दिसम्बर २०११क भोर ८ बजे धरि चलल।
17.१७म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी:- २२-२४ दिसम्बर २०११ केँ गुवाहाटीमे। २२-२३ दिसम्बर २०११ केँ प्राग्ज्योतिष आइ.टी.ए. सेन्टर, माछखोवा, गुवाहाटी- ७८१००९ (२२ दिसम्बर २०११ केँ ४ बजे अप्राह्णसँ ९ बजे राति धरि आ २३ दिसम्बर २०११ केँ ११ बजे पूर्वाह्णसँ ३ बजे अपराह्ण धरि आ २३ दिसम्बर २०११ केँ फेर ५ बजे अपराह्णसँ देर राति धरि) आ  २४ दिसम्बर २०११ केँ भोरसँ राति धरि स्थान- रूम संख्या २१७,  होटल ऋतुराज, माछखोवा, गुवाहाटीमे। अवसर मि‍थि‍ला सांस्‍कृति‍क समन्‍वय समि‍ति‍क आयोजि‍त "अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन" आ "आठम मिथिला रत्न सम्मान समारोह" ( २२ दि‍सम्‍बर २०११) आ "वि‍द्यापति स्‍मृति‍ पर्व समारोह" (२३ दि‍सम्‍बर २०११) । १७म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी ग्राहकक आग्रहपर एक दिन लेल (२४ दिसम्बर २०११ केँ )  बढ़ाओल गेल।

18..१८म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी-तिथि १४ जनवरी २०१२ स्‍थान- अशर्फीदास साहु समाज महि‍ला इंटर महावि‍द्यालय परि‍सर- नि‍र्मली (सुपौल), अवसर- समानांतर साहि‍त्‍य अकादमी मैथि‍ली साहित्य उत्सव- सह विदेह सम्मान समारोह (समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार)

19.१९म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी- 27 जनवरी 2012 (शुक्र दि‍न), अवसर स्‍थानीय कवि‍ परि‍षद (सलहेसबाबा परि‍सर- औरहा, प्रखण्‍ड- लौकही)क चारि‍म वार्षिकोत्‍सव- 2012

20.२०म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी- जे.एम.एस. कोचिंग सेन्टर , चनौरागंज,झंझारपुर, जिला-मधुबनी, अवसर विदेह नाट्य उत्सव २०१२ दू दिन दिनांक २८.०१.२०१२ आ २९.०१.२०१२


21. २१म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी (अवसर बीसम नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला २०१२ जखन भारतीय सिनेमाक सए बर्ख, दिल्लीक राजधानी रूपमे सए बर्ख आ रवीन्द्रनाथ टैगोरक १५०म जयन्ती संगे पड़ि रहल अछि, एकर आयोजक रहैत अछि नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत, सौजन्य अंतिका प्रकाशन) २५ फरबरी २०१२ सँ ०४ मार्च २०१२,प्रतिदिन भोर ११ बजेसँ ८ बजे राति धरि, स्थान- अंतिका प्रकाशन , स्टाल 80-81, हॉल 11, प्रगति मैदान,२०म नव दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2012 नव दिल्ली। ई विश्व पुस्तक मेला दू सालमे एक बेर होइत अछि आ ४० साल पहिने १९७२ ई. मे एकर पहिल आयोजन भेल छल।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

मैथिली मातृभाषा लेल विचार गोष्ठी -



pravin Narayan Choudhary
मैथिली मातृभाषा लेल विचार गोष्ठी - अवसर ‘अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ याने २१ फरबरी - २०१२

"युनेस्को द्वारा एहि दिवसके मनाबय पाछू सुन्दर माहात्म्य यैह जे बांग्लादेश के निर्माण मातृभाषा लेल खूनी आन्दोलन आ संघर्ष उपरान्त भेल - प्राकृतिक स्वरूप पर बनावटी बोझ केकरहु नहि पसिन्न पड़ैत छैक, जेना पूर्वी पाकिस्तानमें बंगला मातृभाषा ऊपर उर्दु के बोझ - अरबी के बोझ केवल इस्लाम धर्म के अनुसरणके क्रममें मान्य नहि भेल आ फलस्वरूप लोक संघर्ष कयलक आ १९७१ में युद्ध तक भेल आ तदोपरान्त बांग्लादेश के सृजन भेल।"

मैथिल संग सेहो किछु एहने दमन भऽ रहल छन्हि। क्रमशः चिन्ता बढय लागल छैक। समृद्ध इतिहास आ साहित्यके रहैत मैथिली भाषा हासिया पर जा रहल छैक। दोषी के - दोषी के - लोक चीख-पुकार आ हो-हल्ला मचा रहल छथि। केओ फल्लाँ जाइत चौपट केलक तऽ फल्लाँ एकरा पौतीमें मुनलक आदि कहैत एक-दोसर पर भाला-बरछी तानय लागल छथि; केओ राज्य-पक्षके जिम्मेदार मानैत छथि, केओ किछु तऽ केओ किछु। अफरातफरी मचल जा रहल अछि। मनुष्य अपन गलती जल्दी नहि देखैत छैक - कहबी छैक जे अपन टेटर नहि सुझैत छैक। आत्मालोचना केवल ऋषि-संत तक रहि गेलैक अछि। जनकल्याण कयनिहार लोक अक्सर आत्मालोचना करैत नवनिर्माण लेल गलतीके सुधार करैत आगू बढैत छथि। केवल गुँहाकिच्ची कयला सँ बात सम्हरैत कम छैक, बिगड़ैत अवश्य छैक। राजनीति आइ गन्दगीके पर्यायवाची केवल एहि लेल बनल छैक जे लोक दोसरके विश्वास जीतय लेल कम बल्कि तोड़य लेल आ मानमर्दन लेल मात्र प्रयोग करैत छैक। बोली-भाषणमें बड़ पैघ-पैघ बात करैत छैक, मुदा सभटा लेल दोसरेके दोषी मानैत छैक आ अपन दोष - अपन प्रतिबद्धता - अपन श्रेष्ठ प्रदर्शन आदि लेल मुँहपर माछी भिनैक उठैत छैक। ततबा अन्तर्विरोध आ दोषारोपण होइत छैक जे योगदान देनिहार के सेहो हृदयाघातकारी होइत छैक। अरे भाइ! दम छौ तऽ कऽ के देखा। दम छौ तऽ जोड़ि के देखा। खाली दोषारोपण? एहि तरहक वार्तालाप - आलाप-प्रलाप के त्याग करब बहुत जरुरी छैक। हम सीधा कहय चाहब जे कोनो दोष यदि विशेष जातिके छैक तऽ अपन योगदान कि सेहो बाजब जरुरी। यदि केकरो में कोनो कमजोरी देखलियैक तऽ स्वयं सम्हारय लेल कि कदम उठेलहुँ से जाहिर करब जरुरी। यदि जातीयता के बात करैत भाषा के पछरैत देखैत छी तऽ जातिय सौहार्द्र लेल आइ धैर कि कयलहुँ से जगजाहिर होयब बेसी जरुरी। दोष नहि छैक वा नहि हेतैक हम ताहिपर किनकहु नहि रोकि रहल छी चर्चा करय सँ, लेकिन दोष मात्र आंगूरपर गानब आ सकारात्मकता हेतु जे करनी कयलहुँ से नहि बतायब तखन अहाँ स्वयं दोषी छी। अहाँ अपन टेटर नहि देखैत खाली योगदान कयला उपरान्त नून-चीनी कय रहल छी। सावधान मैथिल! बहुत खंडी बनलहुँ। घरके तहस-नहस कयलहुँ। दोसरके योगदान के मूल्य बुझू। करनी शून्ना आ बाजब दून्ना - छोड़ू एहि प्रवृत्तिकेँ। धन्यवाद दियौक ओहि योगदानकर्ताकेँ जे अहाँक मातृभाषा के समुद्र सऽ बेसी गहिंर बनौलक। हर बातमें खाली छिद्रान्वेषी बनब एहि प्रवृत्तिके त्याग अहाँलेल एकदम जरुरी अछि। वरना अहाँ के तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता रहैत धोबीके कुकूर जेकाँ बिना घर ओ घाटके बीच मझधार अहाँ फँसल त्राहि-त्राहि करब आ ईश्वरके सेहो अहाँपर दया नहि औतैन। फेर सीताजी नहि अवतार लेती अहाँके धरासँ। स्मरण करू - जनकजी ओहिना नहि प्रण कयने छलाह जे हिनक विवाह एहेन पुरुष संग करायब जे ताहि शिवधनुष जेकरा सियाजी सहजरूपें बायाँ हाथ सँ उठाके पिता जनकलेल पूजा करै सऽ पहिने गाय-गोबर सऽ नीप देने छलीह। जगाउ अपन आत्मसम्मान के। सिखाउ अपन संतानके - मैथिली संग प्रेम करू - राजनीतिके शिकार जुनि बनू। ई जातीयताके बात कय के अहाँके मौलिक अधिकार हनन करय लेल केकरहु सहज अधिकार प्रदान नहि करू। भाषा आ भाषिका एक-दोसरक सम्पूरक होइछ। केओ बहुत सुसंस्कृत भाषण करैछ, केओ ततेक वैयाकरणीय नहि रहैछ। लेकिन सत्य तऽ यैह छैक ने जे कोनो भाषाके सम्पन्नता साहित्य सँ होइछ, साहित्य के दू प्रमुख स्तम्भ व्याकरण आ शब्दकोष होइत छैक। जे जतेक प्रखर से ततेक सम्पन्न! एहिमें जाति के कोनो बाधा कदापि नहि। बेशक जे अगड़ा छैक ओ अगड़ा स्वभावके कारण आगू भागैत छैक। एहि में ईर्ष्या नहि, बल्कि अनुकरण आ अपन कमजोरी संग संघर्ष करब एहि लेल प्रेरणा के संचरण करू। झगरलगौन काज कम करैछ आ झगरा लगा के अपन बन्दरबाँट करयमें लागैछ।

मैथिली भाषा के प्रवर्धन में व्यवसायीकरण के आवश्यकता देखि रहल छी। भारतमें संघ लोकसेवा आयोगमें मैथिली विषय के चुनाव करैत अमैथिल सहजरूपेण प्रशासक बनैत छथि। मैथिलीके पोषण एना भऽ रहल छैक। विभिन्न प्रकाशन सँ मैथिली लेखनके प्रकाशन भऽ रहल छैक, लेखकके मात्रामें वृद्धि एना भऽ रहल छैक। धिया-पुताकेँ भारी सऽ भारी शास्त्रोपदेश-पठन-पाठन अपन मातृभाषामें अत्यन्त सहज आ दीर्घकाल लेल हितकारी होइछ - एना मैथिली प्रति आकर्षण मैथिल में होयब स्वाभाविक छैक। मैथिलीभाषामें यदि मिडिया कार्यरत हेतैक - ५००-१००० लोककेँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार प्राप्त हेतैक, मैथिलीके पोषण आ मिडिया-विकास एना संभव हेतैक। अपन संस्कृति प्रति लोकमें जागरुकता आ संवरण हेतु प्रयास आ प्रदर्शन हेतैक, मैथिली एना आगू बढतैक। मैथिली फिल्म, मैथिली गीत, मैथिली पारंपरिक गायन-संगीत आदिके व्यवसायीकरणमें अपन हिस्साके योगदान देबैक तखन मैथिली के बढय सऽ केओ नहि रोकि सकैत छैक। आन संग देक्सीमें आन्दोलन करयलेल पाछू रहैय सऽ बहुत नीक छैक जे अपन मातृभाषा प्रति एक सटीक नीति बनबैत राज्य द्वारा उपेक्षा विरुद्ध संघर्ष करब - हिंसा व अहिंसा के तर्कबुद्धि सँ दूर केवल जायज लेल लड़बाक प्रवृत्ति आनब तखन मैथिलीके संवर्धन हेतैक, सम्मान भेटतैक। अतः मातृभाषा के सम्मान सभके लेल छैक, एहिमें केकरो ऊपर दोषारोपण करब आ अपन कर्म करयमें पाछू पड़ब साक्षात्‌ बेईमानी थिकैक, एहि बात केँ मनन करब।

राजविराजमें जल्दिये राष्ट्रीय सम्मेलन हेतैक आ एहिठामसँ मैथिली के समुचित सम्मान लेल आ आपसी एकताक लेल बिगुल बजतैक। एकर अपूर्व सफलता लेल शुभकामना देल जाउ|

सेनुरिया आम



गीत -मुकेश मिश्रा

गायक - हरी राज
9999109483 9990379449


मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

नलका में टोटी


गीत - मुकेश मिश्रा
गायक - हरी राज
गोलकी सेनुरिया आम

golki Senuriya aam

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ!

Pravin Narayan Choudhary
चर्चाके लाभ दूरगामी असर छोड़ैछ! हरेक १० गोटा के बात पढला-सुनला सऽ ई सुनय लेल भेटैत छैक जे दहेज के विरोध तऽ कइयेको वर्ष सऽ भऽ रहल छैक, कतेको सुपर हिट चलचित्र बनलैक, कतेको नाटक बनलैक, कतेको कथा-उपन्यास लिखेलैक, कतेको समाज-परिवारमें संकल्प लियेलैक... मुदा फेर जखन बियाहके बेर अबैत छैक तऽ सभटा नियम-आदर्श-संकल्प ताखपर राखि के लोभ आ लालचमें लोक फंसैत छथि आ दहेजरूपी दानव अपन अट्टहास एहि करबटे वा ओहि करबटे लैते रहैत अछि। लोक निर्लज्ज बनि जाइत छथि। आदि-आदि। सीधा देखब तऽ अवश्य उपरोक्त बात सत्य प्रतीत होयत। दहेज के व्यवस्था अप्राकृतिक नहि छैक। प्राकृतिक अधिकार के संवरण थिकैक आ ताहि घड़ी दहेज के प्रतिकार नहि बल्कि सत्कार मात्र होइत छैक। लेकिन दहेज के विरोध तखन उठैत छैक जखन माँगरूपी दहेज लादल जाइत छैक। आ माँग के न्याय कि? बेटावाला के ई दावी जे हमर बेटा बड़ होशियार, बहुत पैघ हाकिम बहुत पैघ ओहदेदार, एकर हिस्सामें जमीन के रसदार, गाममें इज्जत के मारामार, कर-कुटुम्ब के सेहो भरमार, तखन कोना ने दहेजक व्यवहार? एतेक बात सोचैत समय बेटावालाके बिसरा जाइत छैन जे बेटीवाला के संगमें सेहो छैक लाचारी आ बेटीके सेहो अस्तित्व छैक। हुनकहु में कला-कौशल-बुद्धिमानी-होशियारी आदि छैक। हुनकहु खानदान आ विवेकशीलता आबयवाला समय में बेटावाला के खानदान-कुल-शील के निर्वाह करयमें सहायक बनतैक। लेकिन नहि... एतेक सोचब सभके वश के बात नहि छैक। बस मोट में अपन समस्यापर नजैर रहैत छैक आ अहाँ मरैत छी तऽ मरू। तखन कि चर्चा-परिचर्चा सऽ कोनो सुधार नहि भेलैक? एतेक जागृतिमूलक प्रयास सऽ‍ कतहु जागृति नहि एलैक??? एलैक आ खूब एलैक। आइ गाम-गाम बेटी सभ पढाई के प्रथम अधिकार बुझैत छैक। अभिभावक सेहो लाजे पाछू बेटीके पढाबय लेल आतुर रहैत छथि। दहेज के बात दोसर श्रेणीमें चलि गेलैक अछि। हलाँकि इ बात शायद ५०% में मात्र अयलैक अछि, बाकी ५०% आइयो बेटीके अधिकारके दमन करैत दहेज के चिन्तामें डूबल रहैत छथि। ई नहि सोचैत छथि जे जौँ बेटी पैढ-लिख लेत तऽ संसार ओकर अनुसारे चलतैक। ओ केकरहु सऽ पाछाँ नहि रहत। अपन रोजगार करैत एहेन संसार बनाओत जे मिथिलाके दंभी दृश्य नहि बल्कि असल मजबूत नींब आ ताहिपर बनल सुन्दर महल के प्रदर्शन करत। आइ मिथिला यदि विपन्न अछि तऽ बस एहि लेल जे एतुका बेटीपर अत्याचार कैल गेल, शिक्षा सऽ वंचित राखल गेल, गार्गी, मैत्रेयी, भारती आदि के संख्या में भारी कमी आयल... बस केवल एक चिन्ता जे विवाह कोना हेतैक... एतबी में डूबल अभिभावक सदिखन अपना के जुवा खेलैत वर तकैयामें मस्त रखलैथ आ बेटीके विवाह याने गंगा-स्नान - आफियत! एहि मानसिकता के संग आगू बढैत रहलैथ जे मिथिलाके घोर विपन्न बनौलक। लेकिन आब परिवर्तन के वयार चैल चुकल छैक। आब तऽ इहो सुनयमें आ देखयमें अबैत अछि जे घरवाला घरवाली के स्थान लय रहल छथि। भले धुआँवाला चुल्हा नहि फूकय पड़ैन, लेकिन गैस चुल्हापर लाइटर खटखटा रहल छथि आ छोलनी-करछुल भाँजि रहल छथि - मेमसाहेब लेल चाय सऽ लऽ के खाना आ धियापुता के हग्गीज तक चेन्ज कय रहल छथि। बेटी केकरहु सऽ कम नहि रहल आब। बेटाके आवारागर्दी के सेहो बेटी नकैर रहल छथि। ई सभ चर्चा-परिचर्चा आ जागृतिके पसारयवाला अभियानके असर थिकैक। एहने असर लेल दहेज मुक्त मिथिला अग्रसर छैक। आउ एहि मुहिममें अहुँ सभ अपन योगदान दियौक। अपन-अपन स्तर सऽ लोक के जागृतिमें असरदार बनू।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा -




भारतीय संस्कृति के प्राचीन जनपदों में से एक राजा जनक की नगरी मिथिला का अतीत जितना स्वर्णिम था वर्तमान उतना ही विवर्ण है। देवभाषा संस्कृत की पीठस्थली मिथिलांचल में एक से बढ़कर एक संस्कृत के विद्वान हुए जिनकी विद्वता भारतीय इतिहास की धरोहर है। उपनिषद के रचयिता मुनि याज्ञवल्क्य
गौतमकनादकपिलकौशिकवाचस्पतिमहामह गोकुल वाचस्पतिविद्यापतिमंडन मिश्रअयाची मिश्रजैसे नाम इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में रवि की प्रखर तेज के समान आलोकित हैं। चंद्रा झा ने मैथिली में रामायण की रचना की। हिन्दू संस्कृति के संस्थापक आदिगुरु शंकराचार्य को भी मिथिला में मंडन मिश्र की विद्वान पत्नी भारती से पराजित होना पड़ा था। कहते हैं उस समय मिथिला में पनिहारिन से संस्कृत में वार्तालाप सुनकर शंकराचार्य आश्चर्यचकित हो गए थे।

कालांतर में हिन्दी व्याकरण के रचयिता पाणिनी जयमंत मिश्रमहामहोपाध्याय मुकुन्द झा “ बक्शी” मदन मोहन उपाध्यायराष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर”, बैद्यनाथ मिश्र यात्री” अर्थात नागार्जुनहरिमोहन झाकाशीकान्त मधुपकालीकांत झाफणीश्वर नाथ रेणुबाबू गंगानाथ झाडॉक्टर अमरनाथ झाबुद्धिधारी सिंह दिनकरपंडित जयकान्त झाडॉक्टर सुभद्र झाजैसे उच्च कोटि के विद्वान और साहित्यिक व्यक्तित्वों के चलते मिथिलांचल की ख्याति रही। आज भी राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कतिपय लेखकपत्रकारकवि मिथिलांचल से संबन्धित हैं। मशहूर नवगीतकार डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्राकवयित्री अनामिका सहित समाचार चैनल तथा अखबारों में चर्चित पत्रकारों का बड़ा समूह इस क्षेत्र से संबंधित है। मगर इसका फायदा इस क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनवरत उपेक्षा और स्थानीय लोगों की विकाशविमुख मानसिकता के चलते कभी देश का गौरव रहा यह क्षेत्र आज सहायता की भीख पर आश्रित है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण प्रतिवर्ष यह क्षेत्र कोशीगंडकगंगा आदि नदियों का प्रकोप झेलता है। ऊपर से कर्मकांड के बोझ से दबा हुआ यह क्षेत्र चाहकर भी विकास की नयी अवधारणा को अपनाने में सफल नहीं हो पा रहा। जो लोग शैक्षणिकआर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हैं भी वे आत्मकेंद्रित अधिक हैं इसीलिए उनका योगदान इस क्षेत्र के विकास में नगण्य है। मिथिलांचल से जो भी प्रबुद्धजन बाहर गए उन्होने कभी घूमकर इस क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। पूरे देश और विश्व में मैथिल मिल जाएँगे मगर अपनी मातृभूमि के विकास की उन्हें अधिक चिंता नहीं है।

ऐसे में सामाजिक आंदोलन की जरूरत को देखते हुए स्थानीय और प्रवासी शिक्षित एवं आधुनिक विचारों के एक युवा समूह ने नए तरीके से मिथिलाञ्चल में अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराई है। दहेज मुक्त मिथला के बैनर तले संगठित हुए इन युवाओं ने अपनी इस मुहिम का नाम दिया है “ दहेज मुक्त मिथिला
दहेज मुक्त मिथिला” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसा आंदोलन है जिसकी बुनियाद दहेज से मुक्ति के लिए रखी गयी है। बिहार के महत्वपूर्ण क्षेत्र मिथिलांचल से जुड़े और देश-विदेश में फैले शिक्षित और प्रगतिशील युवाओं के एक समूह ने मैथिल समाज से दहेज को खत्म करने के संकल्प के साथ इस आंदोलन की शुरुआत की है। सामंती सोच के मैथिल समाज में यूं तो इस आंदोलन को आगे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना है मगर शुरुआती तौर पर इसे मिल रही सफलता से ऐसा लग रहा है कि मिथिलांचल के आम लोगों में दहेज के प्रति वितृष्णा का भाव घर कर गया है और वे इससे निजात पाना चाहते हैं।

दहेज मुक्त मिथिला के अध्यक्ष प्रवीण नारायण चौधरी कहते हैं कि मिथिलांचल में अतीत मे स्वयंवर की प्रथा थी जिसका प्रमाण मिथिला नरेश राजा जनक की कन्या सीता का स्वयंवर है। समय के साथ मिथिलांचल में भी शादी के मामले में विकृति आई और नारीप्रधान यह समाज पुरुषों की धनलिपसा का शिकार होता गया। कभी इस समाज में शादी में दहेज के नाम पर झूटका(ईंट का टुकड़ा) गिनकर दिया जाता था वहीं आज दहेज की रकम लाखों में पहुँच गयी है। दहेज के साथ बाराती की आवाभगत में जो रुपये खर्च होते हैं उसका आंकलन भी बदन को सिहरा देता है। जैसे- जैसे समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा है दहेज की रकम बढ़ती गयी है।“ श्री चौधरी आगे कहते हाँ कि बड़ी बिडम्बना है कि लोग लड़कियों की शिक्षा पर हुई खर्च को स्वीकार करना भूल जाते हैं।

संस्था की उपाध्यक्षा श्रीमती करुणा झा कहती हैं कि मिथिलांचल की बिडम्बना यह रही है कि यहाँ नारी को शक्ति का प्रतीक मानकर सामाजिक तौर पर तो खूब मर्यादित किया गया पर परिवार में उसे अधिकारहीन रखा गया। उसका जीवन परिवार के पुरुषों की मर्ज़ी पर निर्भरशील हो गया। शादी की बात तो दूर संपत्ति में भी उसकी मर्ज़ी नहीं चली। इसीलिए दहेज का दानव यहाँ बढ़ता ही गया। लड़कियां पिता की पसंद के लड़के से ब्याही जाने को अभिशप्त रहीं। इसका असर यह हुआ कि बेमेल ब्याह होने लगे और समाज में लड़कियां घूंट-घूंट कर जीने-मरने को बिवश हो गईं।
इस मुहिम को मिथिलांचल के गाँव-गाँव में प्रचारित-प्रसारित करने हेतु आधुनिक संचार माध्यमों के साथ- साथ पारंपरिक उपायों का भी सहारा लिया जा रहा है। पूरे देश में फैले सदस्य अपने-अपने तरीके से इस मुहिम को प्रचारित कर रहे हैं।
एक समय मिथिलांचल में सौराठ सभा काफी लोकप्रिय था जहां विवाह योग्य युवक अपने परिवार के साथ उपस्थित होते थे और कन्या पक्ष वहाँ जाकर अपनी कन्या के लिए योग्य वर का चुनाव करते थे। यह प्रथा दरभंगा महाराज ने शुरू कारवाई थी। शुरुआती दिनों में संस्कृत के विद्वानों की मंडली शाश्त्रार्थ के लिए वहाँ जाती थी। राजा की उपस्थिति में शाश्त्रार्थ में हार-जीत का निर्णय होता था। यदि कोई युवा अपने से अधिक उम्र के विद्वान को पराजित करता था तो उस युवक के साथ पराजित विद्वान अपनी पुत्री की शादी करवा देता था । बाद में यह सभा बिना शाश्त्रार्थ के ही योग्य वर ढूँढने का जरिया बन गया। आधुनिक काल के लोगों ने इस सभा को नकार कर मिथिलांचल की अभिनव प्रथा को खत्म करने का काम किया।
संस्था के सलाहकार वरिष्ठ आयकर अधिकारी ओमप्रकाश झा कहते हैं की मिथिलांचल को अपनी पुरानी प्रथा के जरिये ही सुधार के रास्ते पर आना होगा। प्रतिवर्ष सौराठ सभा का आयोजन हो और लोग योग्य वर ढूँढने के लिए वहाँ आयें जिसमें पहली शर्त हो की दहेज की कोई बात नहीं होगी तो दहेज पर लगाम लगाना संभव हो सकता है। पहले भी सौराठ में दहेज प्रतिबंधित था। विवाह में बाराती की संख्या पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है। संप्रति देखा जा रहा है कि मिथिललांचल में शादियों में बारातियों की संख्या और उनके खान-पान की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है। गरीब तो दहेज से अधिक बारातियों की संख्या से डरता है।
बात सिर्फ आर्थिक लेन-देन तक सीमित हो तो भी कोई बात है। अब तो कन्या के साथ साज-ओ-सामान की जो फेहरिस्त प्रस्तुत की जाती है वह बड़ों-बड़ों के होश उड़ा देता है। उस पर भी आलम यह है कि अधिकतर लड़कियां विवाह के बाद दुखमय जीवन बिताने को मजबूर है क्योंकि स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग नहीं है और परदेश में खर्च का जो आलम है वह किसी से छुपा नहीं है।



दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा चलाने में जुटे लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मैथिल समाज के उन लोगों से आएगी जो महानगरों में रहकर अच्छी नौकरी या व्यवसाय के जरिये आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं और दहेज को अपनी सामाजिक हैसियत का पैमाना मानते हैं। ऐसे लोग निश्चित रूप से विकल्प की तलाश में इस आंदोलन को कुंद करने का प्रयास करेंगे जिसे सामूहिक सामाजिक प्रतिरोध के जरिये ही रोका और दबाया जा सकता है। कुछ राजनेता जो अपने को मैथिल समाज का मसीहा मानते हैं उनके लिए भी ऐसा आंदोलन रुचिकर नहीं है। पर वक़्त की जरूरत है कि यह क्षेत्र ऐसे आंदोलनों के जरिये अपने में सुधार लाये।

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

मिथिला हाट



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१. की अपनेक पोस्ट ओहि ग्रुपक उद्देश्य के दिशाहीन/शक्तिहीन त' नई बना रहल ?
२. की अपनेक पोस्ट ग्रुप के उद्देश्य में नव शक्ति प्रदान क' रहल ?
३. की अपनेक पोस्ट कोनो दृष्टिकोण सँ मिथिला, मैथिली और मैथिल सँ सम्बंधित अछि ?
४. अपनेक पोस्ट या त' स्वरचित अथवा अन्यान्य द्वारा रचित किन्तु - मिथिला हित के हो यथा - website / blog / group / page / thoughts तखने टा पोस्ट करी I

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सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

हर-हर-खट-खट! फुसियांही के मेल! :-)

हर-हर-खट-खट! फुसियांही के मेल! ;)

बात हर्ख के ओ होयत जे अपन मूल सँ निकलत!
अपन संस्कृतिके ऊपर दुनिया के जे प्रेरित करत!
ओ कि जे बस देखादेखी दोसरक नंगटइ सिखलहुँ!
नारीके मर्यादा के बाजार में आम निलामी कयलहुँ!

एहनो नहि जे आधुनिकता के धार में नहि छै बहब!
कोना आइ इन्टरनेट के माध्यम बात कहलहुँ कहब!
अक्सर बेसीकाल मिथिला राज्य बिहार सँ अलगै छै!
तेलांगाना आ छत्तीसगढक तर्ज पर उतारय नकल छै!

देखियौ छुद्र राजनीति - इतिहासे के नोंचत आ पटकत!
अपना दम पर एको कोनियां काउनो नहि आबै फटकत!
बड़का बोली दम्भ सऽ भरल ब्राह्मण के छै झाड़ैत-मारैत!
ई जनितो जे मिथिला सदिखन ब्राह्मणहि हाथे झबरत!

कतबू करतै राजनीति कि चलतै एहि धरती पर ओकर!
एहि धरतीपर एकहि गप छै धर्म के सार हरदम ऊपर!
ई थीक तांत्रिक मिथिला भूमि एहिठाम उपजय विदेह!
याज्ञवल्क्य आ बाल्मीकि सम्‌ त्यागी-तपी निःसंदेह!

नाम उच्च आ कान बुच्च के तर्ज पर खाली चमचम!
पाउडर फाड़ि बनाबय दही तहि पर भोजक कोन दम!
पोखैर गाछी सभटा बिकेलैय आब कि बचलौ डीह टा!
ताहू पर छौ नजैर गड़ल रे हरासंख कोढिया जैनपिट्टा!

सम्हर-सम्हर कर सत्यक लेखा जुनि जोखे झूठे ढेपा!
तौल-बनियां-तौल-भैर राति तों तौल ले अगिलो खेपा!
जातिवादी नारा के बल सऽ किछु नहि हेतौ रे मूढकूप!
आइयो दुनियाँ सीतारामके प्रतापे भजि ले वैह सुरभूप!

हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

माछ आ मिथिला




माछ, माछ, माछ! मिथिलाके माछो महान्‌!
मिथिला महान्‌ - मिथिला महिमा महान्‌,
माछो महान्‌ - मखान आ पानो महान्‌,
माछ..माछ..माछ! मिथिलाके माछो महान्‌!

इचना के झोरमें ललका मेर्चाइ,
मारा के झोरमें सुरसुर मेर्चाइ,
चाहे जलखैय या हो खाना... होऽऽऽ!
छूटबैय सर्दी जहान! :)
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्‌!

गैंचाके काँटो बीचहि टा में,
नेनी के काँटो सगरो पसरल,
सदिखन काँटो कऽ के निकालय... होऽऽऽ!
स्वादमें सभटा महान!
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्‌!

आउ चलू देखी पोखैर में मच्छड़...
आइ निकलतै भून्नो के पच्चड़...
रौह, भाकुर, नेनी कऽ के पूछतैय... होऽऽऽ...
महाजाल फंसतय सभ माछ...
माछ..माछ.. माछ..
मिथिलाके माछो महान्‌!

बंसीमें देखू पोठी बरसय,
गरचुन्नी आ सरबचबा फंसय,
बड़का बंसीमें आँटाके बोर यौ... होऽऽ
से फंसबैय रौह माछ,
माछ..माछ..माछ...
मिथिलाके माछो महान्‌!

जतय माछ होइ लोक ततय हुलकल
माछ हाट के रूप रहय लहकल
एम्हर तौलह ओम्हर तौलह ... होऽऽऽ
सरिसो रैंची संग जान...
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्‌!

मिथिलाके पोखैर कादो भोजन
ताहि माछो के सुधरल जीवन
खायवाला सभ पेटहि पाछू ... होऽऽऽऽ
काजक बेर उड़य प्राण...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्‌!

सुरसुर काका के माछक मुड़ा...
प्रभुजी काका के पेटीके हुड़ा...
सभमिलि बैसल चूसि-चूसि मारैथ होऽऽ
सगरो माछ के मजान...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्‌!

प्रयागमें छैक मैथिल पंडा
सभ के अपन-अपन धंधा
पहिचान वास्ते होइछै जे झंडा... होऽऽ
ताहू में छै मिथिला माछ...
माछ, माछ, माछ,
मिथिलाके माछो महान्‌!

गोलही काँटी छही आ सुहा
सिंघी मांगूर बामी टेंगरा
जानि हेरायल कतय ई मिथिला.. होऽऽ
आन्ध्रा के भेलय तूफान...
माछ, माछ, माछ...
मिथिलाके माछो महान्‌!

हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

तोरा बिन सब सून!


तोरा बिन सब सून!

ऊपर निला अम्बर, आइ कारी तों बनि जो!
घुमि-घुमि पूरा दुनिया तों एतय बरिस जो!!

ऐ जोड़ा बरद नव फार लागल हरो जोति जो!
अंघौश-मंघौश फेंकि खेत में तों चौकियो चलो!

गे अनमोलिया! गामवाली बारी सँ बिहैनो अनो!
संगमें दुइ-चारि बोनिहरनी के रोपनी लेल बजो!

रोपे मोंन सँ मिलि गाबि-गाबि जे शीश बड़ फरो!
हर अन्नमें जीवन धनके ईश आशीष कूटि भरो!

गेल दिन दस तँ आबि फेरो खेतो कमो - कमठो!
अर्जाल-खर्जाल सँ खेत भरत तऽ अन्न कि फरो!

प्रिय मेघा तों बस समय-समय एतबी के बरसो!
जे धान हमर खेतक लहरय हरियाली से चमको!

हे शीतल शीत तों शीशमें शशि-अमृत रसके भरो!
जे चरित मोरा तोरा मीत सन दुनिया के सुधरो!

रवि दिन-दिन बल ज्योति सँ शक्ति शुभ रंग भरो!
निज नयन जुड़य इ हेरि-हेरि हरियर हरि हर करो!

हेमन्त आबि के आश धरी स्वच्छन्द नभमें तरो!
गम-गम गमकय उमंग सँ बस एहने आश बंधो!

जौँ तोँ नहि तऽ हम कि - कि दुनिया वा किछुओ!
बस तोरहि सँ सभ जीव अछि आ जान भी जियो!

बिन कृषि कोनो नहि काज के सुर ताल बने कहियो!
भले आन किछु के बाद में समुचित दरकार बनो!

हरिः हरः!
रचना:-
प्रवीन नारायण चौधरी

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

माथ झुकेने बाप ठाड़्ह छथि बेवश आ लाचार...

माथ झुकेने बाप ठाड़्ह छथि बेवश आ लाचार
माँगि रहल अछि बेटीके ससूर होण्डा सिटी कार
नगद सेहो देब संगहि ओकर देब अहाँ जेवरात
लऽ जायब नहि तऽ वापस अपनेक घरसँ बरियात!

पिता कहै छथि सुनू समधीजी, बुझू हमर हालात
सुन्दर अछि बेटी हमर, सुन्दर ओकर खयालात
घरके स्वर्ग बना के राखत खूब करत ओ सेवा
घरमें लक्ष्मी सदिखन बसती धन के भेटत मेवा!

गृहस्थीके समान में देब छै जै सब चीजक दरकार
नहि दय सकबै अपनेकेँ एखन होण्डा सिटी कार!

ससूर कहै छथि बियाहे तखन करब अछि बेकार
हमरा चाही हर हालतमें बियाह में एकटा कार!

तखनहि अन्दर सँ बेटी अपन बाप सँ कहय लगली
नहि भरियौ पूज्य पिताजी एहि भिखारी के झोली!
कतेक देबैक कहिया देबैक इ छथि भिखारी पक्के
दैत-दैत हाइरियो जायब एक दिन अहुँ थाइक के!
नहि करबैक बियाह एतय बरु करबै पूरा पढाई
कतेको लड़की जे पैढ के किस्मत अपन बनौली!
ठाड़्ह होयब पैरो पर अप्पन तखनहि करबै बियाह!
बिना बनल आत्मनिर्भर बियाह करब माने बर्बाद!

"दहेज़ मुक्त के लेल एक टा छोट कोसीसी
दहेज़ मुक्त मिथिला परिवार"
चन्दन झा "राधे"

मिथिला विभूति

मिथिला विभूति





स्व. ललित नारायण मिश्र'क क 90वीं


जयन्ती(2 फरवरी 2012) पर विशेष:-




मैथिला विभूति ओ राजनीतिज्ञ आओर प्रशासक

स्व ललित नारायण मिश्रक सभसँ पैघ
विशेषता छल- हुनक आत्मीयता । ओ किनको सँ
खुशी पूर्वक भेँट करैय छलाह । भेंट करैय बाला सँ
हुनक व्यवहार अतेक स्नेहपूर्ण ओ निश्छल होइत
छल जे सभ कियो हुनक मधुर स्मृति लएकेँ
विदा होइत छलाह ।


ललित बाबू रेलमंत्रीक रुपमे विकट समस्याक

सामना केने छलाह । कर्मचारी सभ

द्वारा नियमक अनुसार काज करैयक नीति आओर
बहुत पैघ स्तर पर हड़तालक सिलसिला भारतीय
रेलक अंग बनि गेल छल । बिजलीक अभाव , रौदी ,
तेलक संकट आदिकेँ कारणे
विश्वव्यापी मुद्रास्फीतिक शिकार भारतीय
रेल सेहो भेल । एहन घोर सँकटक कालमे ललित
बाबू दृढता संग रेलक संचालन केला । भारतीय
रेलकेँ वित्तीय स्थिति सुधारैय खाति ललित बाबू
किछु कठोर ओ अलोकप्रिय कदम सेहो उठेला ।
तथापि जनताकेँ बीच लोकप्रिय ओ प्रसिद्ध
रेलमँत्री आओर नेताक रूपमे प्रतिष्ठापित भेला ।
एहि सँ हुनक प्रशासनिक बुद्धि आ राजनीतिक
कुशलताक परिचाय भेटैत अछि ।

तत्कालीन
रेलमंत्री कमलापति त्रिपाठी 1975-76क
बजट अनुमान प्रस्तुत करैत ललित बाबूकेँ
श्रद्धांजलि अर्पित करैत कहने छला "मेरे सुयोग्य
पूर्ववर्ती ललित नारायण मिश्र ने रेलों के
इतिहास के घोर संकट काल में जिस कौशल व
सँकल्प का परिचाय दिये , वह अविस्मरणीय है ।
पिछले दो वर्षोँ में रेल को न केवल औद्योगिक
संबंध मेँ , बल्कि वित्तीय समार्थ्य के मामले में
भी बड़ी विषम
परिस्थियों का समाना करना पड़ा है ।"

1965क बाद देशक राजनीति खासकेँ बिहार ओ
मिथिलाकेँ राजनीतिमे ललित बाबूक रचनात्मक
योगदान स्मरणीय अछि । निष्ठावान
राजनीतिक जँका ललित बाबू जीवन पर्यँत देशक
स्थिरता आओर नेतृत्वकेँ सुदृढ करैयमे महत्वपूर्ण
भुमिका निभेलैत ।
ललित बाबू मिथिला लेल प्राण ओ आशा छलैत ।
मुदा ओ असमय मिथिलाकेँ अनाथ
छोड़ि चलि गेला । जेकर पूर्ति अखैन तक
मिथिलामे नहि भेल अछि । शायद अखन किछु समय
लागत । मुदा आब देरि भय रहल अछि ।
मिथिलाकेँ जरुत अछि जे ललित बाबू अवतार लौथ

जय मिथिला