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सोमवार, 7 दिसंबर 2009

आत्मिक संतुष्टि - जगदम्बा ठाकुर

 आत्मिक संतुष्टि

 
हमर समस्त ज्ञान व् प्रयाश , शारीरिक किछ हद तक , मानसिक आ किछ अहि ज्ञान बुधि स्तर तक केवल मात्र सिमित रहैत अछि अंतर में जतय हमार विशुद्ध आत्मा या सुरत ( नेचर ) मात्र रहैत अछि , ओताहि तक हम जीवन भर नही पहुंच पावैत छि क्याकि हमरा ओही सब्द के भेद बतावै बाला गुरू नही मिलला

यदि ककरो पूर्ण रूप से गुरू भेटलें त ओ ओकर उपयोग नही क दुरोपयोग बैब्हर केलैन आ बाहरी गुरू सब के इहा कोशिस रहैत छैन की ओ अपन शिष्य के अंतर आत्मा में जे गुरू विराज मान अछि से ओकर भेद बता दै मुदा गुरू के पास अहि भेद के जनय के लेल सब जयत अछि , सब के सब दिखाब्ती दुनिया में विस्वाश आ इच्छ पूर्ति करेक लेल गुरू के पास जायत अछि और गुरू हुनकर इच्छ पूरा करैत छथिन लेकिन असली भेद जे ओबताव चाहैत छैथ से ओ नही बता पावैत छैथ , क्याकि ओही हिशाब से हुनका निक ग्राहक नही भेटैत छैन संसारिक इच्छा ता पूरा होयत छैन जे हुनका पर श्रधा और विस्वाश क लैत अछि और जे हुनकर बात के अपन बुईध क डिक्सनरी में से नीकाली के संशय करैत अछि या ओही पर बहस करैत अछि

एगो बात हमरा दिमाग में आबैत अछि की , गुरू ओ एगो तत्व थिक जे मनुष्यक शरीर से प्रकट होयत अछि , जकरा ओ स्वं चुनैत छैथ गुरू नहीं पैदा होयत छैथ नहीं ओ मरैत छैथि अहि दुवारे बाहरी गुरू जिनका अन्दर ओ तत्व प्रकट होयत छैन ओ मालिक के रूप में होयत छैथि , लेकिन हम ओही मनुस्यक मायन के बरका टा भूल करैत छि

  कवीर दास कहैत छैथ —-

गुरू को मानुस जानते ते नर कहिए अन्ध ,
दुखी होय संसार में आगे जम का फंद

गुरू किया है देह को सत गुरू चीन्हा नहीं ,
कहें कवीर ता दास को तीन ताप भरमाही

गुरू नाम आदर्श का गुरू हैं मन का इस्ट ,
इस्ट आदर्श को ना लाखे समझो उसे कनिस्ट

चेला तो चित में बसे सतगुरू घट के आकाश ,
अपने में दोनों लाखे वही गुरू का दास

   गुरू जे अपन साधन अभ्यास अपन शिष्य के दैत छथिन ओ हुनकर मंजिल नही छियन , आ ने हुनकर ओहिसे आबाग्मन छुट तैन , वल्कि ओत अहिद्वारे देल जायत अछि की जे अहि से शिष्य क मन काबू में आबिजय आ स्थिर भ जाय , ताकि आगू के जीवन सीढ़ी चढाई में आसानी होय अहिदुवरे गुरू के दुवारा बतायल गेल तरीका से अभ्यास केनाय बहूत जरूरी होयत छैक , लेकिन अहि के मंजिल मय्न लेनाय बहूत पैघ भूल होयत अछि जिनका अभ्यास नही होयत छैन हुनका नीरास होयके जरूरत नही होयत छैन हाँ मगर प्रयास करैत रहैत ई हुनका लेल जरूरत अछि क्याकि ऐना नही केला सं गुरू के आज्ञा के उलंघना होयत छैन , जे मालिक क बरदास्त नही होयत छैन

जिनका अभ्यास नही बनल छैन हुनका लेल जरूरी अछि की ओ ककरो से जरूर प्रेम करैथ , लेकिन प्रेम एहन होय जाही में काम-वासना या स्वार्थ बिलकुल नै होय और ई प्रेम – प्यार गुरू के प्रति भ जाय त सबसे निक बात अछि , अन्य था ककरो से निस्वार्थ रूप से प्रेम क सकैत छि } हां अगर अहा गुरु के परम तत्व मणिके प्रेम करब त सोना पे सुहागा बाली बात कहाबत सावित भ जायत अछी अगर निस्वार्थ प्रेम भाब नहि बैन पबैत अछी त कूनू व्यक्ति के प्राप्ति समर्पण क दियो या ककरो सरण में चली जाऊ अगर इ समर्पण गुरु के प्रति भ जय त अति उतम अन्य -अन्य के प्रति समर्पण भेनाय कूनू बरई नहि , मुदा समर्पण एहन होय जहि में सबटा अंहकार पिघैल क पैन जेका बहि जाय , क्याकि मालिक के और नोकर के सुरत (नेचर ) के विच में अहंकारे टा एगो मोट पर्दा अछि जे एक दोसर से मिलान नही हूव देत अछि

जखन ककरो ई विस्वास भ जायत छैक जे हमर इस्ट हरदम अंग – संग में रहैत अछि त हुनका जिनगी में कहियो गलत काज और नही हुनका से कुन्नु संसारिक या परम्परिक काज कहियो नही रुकी सकैत अछि अभ्यास बनल या बनेला से जीवन के कर्म से और किछ अपने ही पराबंध कर्म से प्रभवित होयत रहैत अछि लेकिन लगातार प्रयास करैत रहला सं मन एक दिन कबू में आवी जायत अछि और अपन ई प्रयास जीवन के मूल खता में लिखल जायत अछि , भले ही ओ चंचल मन से क्याक नही होय

कियो ई नही समझू की गृहस्था जीवन में रहला से अभ्यास नही होयत छैक , गृहस्थ में रहिके मन सदिखन बेकाबू में रहैत छैक और ओही से छुट करा पाबाई के एक मात्र साधन अछि सन्यास , ई धारणा गलत अछि क्याकि एक त संतमत के गुरु गृहस्थी रूप भेल छैथि , क्याकि गृहस्ती में एक दोसर पर उपकार करैय के जतेक अवसर भेटैत छैक ओ एगो सन्यासी के नही मिलैत उल्टे सन्यासी त स्वम् अपन आबस्य्कता के लेल गृहस्थ पर निर्भर रहैत छैथ, तेसर सन्यासी क असली मतलब संत में न्यास केनाय या संत में रहनाय, लेकिन असली सत्य त

एकटा अछि ओ अछि मालिक के कुल में लाय भेनाय जे ब्यक्ति हरदम अपन इस्ट के चिंतन – मग्न ध्यान में लागल रहैत छैथि ओहय सच्चा सन्यासी भेला , भलेही ओ कुनौ नाम के जाप करैत या नही , सत्य धर्म जरूर करैत और ओही धर्म के पालन करैत -

    ईहा आत्मिक संतुस्ट कहल जायत अछि ,



प्रेम से कहु जाय मैथिल जाय मिथिला
जय  अपन गाम  घर ---



  जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल , भैरव स्थान ,
झांझरपुर, मधुबनी , बिहार- 847404

ई मेल – madanjagdamba@rediffmail.com
mo -9312460150

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