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गुरुवार, 26 अगस्त 2010

हम किस ओर जा रहे हैं

समाज और सामाजिकता क्या है ये आज तक समझना मुस्किल सा हो रहा है.
जब मै कक्षा नवम में गया तब वह अचानक एक नए बिषय से पला परा और वो था नागरिक शःत्र . यहाँ हमने पाया की मनुष्य एक समाजिक प्राणी है और अब जब की मै मिडिया में कार्यरत हूँ तब यह एह्शाश होता है की पुरे मानव से सामाजिकता का लोप हो गया है.
यहाँ आय दिन होने वाली घटनाओ को देखे तो पता चलेगा की हमारी सामजिकता किस और जा रही है.
सरे पवित्र रिश्ते किस तरह तर तर हो रहे हैं .कही शिक्षक छात्र का अवैध सम्बन्ध दीगर होता है तो कही बाप बेटी को एक हवाश पूर्ति का साधन मात्र समझता है.
संबंधो को अगर छोड़ भी दे तो हैवानियत इस कदर बढती जा रही है की दाहिने हाथ को अपने ही बाये हाथ का भरोषा नहीं रहा.
आज हमारे निर्वाचित उम्मीदवारों के लिए अपनी वेतन की ज्यादा फिकर है अपने निर्वाचन छेत्र की जनता से .
वो जिसके वोट से निर्वाचित होते हैं उन्ही से मिलने के लिए उनको अतिरिक्त राशी चाहिए .
बात अगर यही ख़त्म हो जाती तो मै समझता की चलो सायद उनको अपने जनता की परवाह है लेकिन इसके बाद भी जनता के ये रहनुमा इनके लिए आये बाढ़ और अन्यान्य रहत राशियों का बन्दर बाँट करने से गुरेज नहीं करते है.
मुझे तो लगता हिया की सर्कार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न योजना इनके व्यक्तिगत विकास के लिए ही आता है.
आज के युवा तो एक तरफ राजनीती को गाली देते है लेकिन इसकी गंदगी को दूर करने कोई सामने नहीं आना चाह रहा है .
किन्तु वो भी क्या करे हमारे यहाँ से राजशाही तो समाप्त हो गया लेकिन इसकी जड़े जमींन
में काफी अंदर तक गाड़ी है जिसका समूल नस्ट होता नहीं दिख रहा है.
राजनीती भी वंशवादी परम्परा जैसी दिख रही है.............................................
इन सब बातो को सोचने के बाद मन बेचैन हो उठता है और कोई रास्ता भी नजर नहीं आता.
आखिर ये समझ में नहीं आता की हम किस ओर जा रहे हैं
या तो हम आपनी वजूद को ही भूलते जा रहे हैं नहीं तो सभ्यता की दुहाई देकर पतन के राश्ते में दिनों दी आगे बढ़ते जा रहे हैं.

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