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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

स्वयंसिद्धा

स्वयंसिद्धा
ओ नवजात कन्या जनमैत बुइझ गेल कि ,
ओकर आगमनक गम परिजन में व्याप्त अछि,
हमरा त भेल जिन्दगी आब शुरू भेल या,
मुदा आइबते जिन्दगी समाप्त अछि ,
मिलमिलाइत आइख स देखलक मातम क नजारा ,
जे जन्म लै के अभिशाप क छल इशारा ,
दुनिया के रंग त देख लेलउ ,
अपनों रंग त देखा दियै ,
अई जालिम दुनिया में ,
बेटियों के महत्व बढ़ा दियै .
चाइर साल के उम्र स कर लागल ओ काज,
कहियो नहीं ओ जाई छल खेल धिया -पुता के साथ ,
भै के इस्कूल जैत देख पढ़ के जागल ओकरा चाह,
मुदा पढ़क के नै छल कोनो राह
भोरे -भोरे जखन ओ काट जाई छल घास ,
बगल के स्कूल स अबै छल मास्टर जी क आवाज ,
ओ मास्टर जी स जा क कहलक,
मास्टर जी हमर नाम लिखा दीअ,
चाहे जतेक काज करा लिअ
धरती क स्लेट और करची क कलम बना क,
ओ कर लागल अभ्यास,
धीरे धीरे ओ भ गेल मिडिल पास ,
फेर मै-बाप के भेल एहसास की,
हमर बेटी अछि किछ खास
मै -बाप ओकरा आगा पढौलक,
ओकर सपना में पंख लगेलक ,
जै स लड़की के जागल आत्म विश्वास ,
ओ क सकैया समाज में किछु ख़ास ,
ओकर मेहनत और लगन,
ओकरा मेडिकल में टॉपर बना देलक,
जै ओ समाज के बता देलक कि ,
बेटी के नै मानु अभिशाप
बेटी त क सकैया कतेको घर के आबाद
ताई बेटी के नै तोडू अरमान
किया त बेटियों होई छै माँ- बाप के लेल वरदान
(रूचि )

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