(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 22 नवंबर 2010

बच्चों की पढाई को लेकर माँ कितना तनाव ले, कितना नहीं

बच्चे की शिक्षा किसी भी परिवार का महत्वपूर्ण कर्तव्य होता है. बच्चे पूरे साल पढाई में नियमित रहें, साथ ही तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें, इसकी जिम्मेदारी माँ पर होती है, लेकिन क्या अधिकतर परिवारों में ऐसा हो पाता है? क्या माताएं सामान्य रह पाती हैं? और क्या बच्चा बिना किसी तनाव में आये परीक्षा दे पाता है? अधिकतर का उत्तर शायद ना में होगा. दरअसल कई बार परीक्षाओं का हौव्वा हमारा स्वयं द्वारा बनाया हुआ होता है, जिसका बच्चे और परिवार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

अपराजिता और उसकी बहन टापर रह चुकी हैं. उनकी माँ से जब बच्चों की कामयाबी का राज पूछा, तो वे हंस कर बोलीं, 'ऐसा कुछ खास तो नहीं किया, हाँ जब भी लगता था कि वे पढाई से दिल चुराने की कोशिश कर रही हैं, तो मैं कहती, चलो मेरे साथ घर का कम करवाओ. बस वे कम से बचने के लिए पढने बैठ जाती थीं. एक तरह से मैं भी यही चाहती थी कि वे घर का कम न करके अपनी पढाई पूरी कर लें. हो सकता है उनके जरिये मैं अपने सपने पूरे करना चाहती थी. हाँ, उनका जब खुद का मन होता था, तो वे घर के कामों में मेरा हाथ बटा देती थीं. उनके पिता चूँकि स्वयं विज्ञानी हैं, तो वे बच्चों की पढाई में जरूर मदद करते थे. यूँ मानिये कि उनकी पढाई में हम सभी का यह साझा प्रयास था - हमारी कभी तू-तू मैं-मैं नहीं हुई.

ऐश का मामला तो इससे एकदम उल्टा था. उसकी मम्मी करुणा तो रात-दिन ऐश के पीछे पड़ी रहती थी - चलो पढने का समय हो गया है. क्या बात है कल पेपर है और आज तुम अपनी सहेली से गप्पे लड़ा रही हो; ऐसे खाली कैसी बैठी हो. मैंने तुम्हारे चक्कर में खाना तक नहीं बनाया है, मैगी खा लेंगें और सब एक गिलास ढूध पीकर सो जायगें . खबरदार जो तुम बारह बजे से पहले सोई. अब आप स्वयं ही सोच सकते हैं कि ऐसे में ऐश की क्या हालत होती होगी.

बच्चों का यदि साल भर ध्यान रखा जय, तो जाहिर है कि परीक्षा के समय उन पर किसी किस्म का तनाव नहीं रहेगा. माँ को चाहिए कि वह आरम्भ से ही बच्चे में अनुशाशन, अध्धयन, शारीरिक व्यायाम, नियमित और संतुलित आहार की आदत डाले. अभिभावकों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि परीक्षा देना बच्चों का काम है, उन्हें सिर्फ उनके (बच्चों के) काम में मदद करनी है. इसके विपरीत माता-पिता परीक्षाओं को इस तरह अपने सर पर ओढ़ लेते हैं जैसे की परीक्षा उन्हें देनी हो. माता-पिता की घबराहट बच्चा या तो घबरा जाता है या फिर लापरवाह हो जाता है. बेहतर हो कि माता-पिता बच्चे के तनाव को कम करने का प्रयास करें और उस पर जबरन अच्छे अंक या अच्चा नतीजा लाने का दबाव न डालें. यह दबाव तो स्कूल और साथियों के कारण उस पर पहले से ही है. अभिभावक को तो इस दबाव को कम करने की जरूरत है.



अभिभावकों का कर्तव्य
अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य बच्चे से कतई न करें. इससे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
बच्चा चाहे कितने भी अंक लाये, उसे आगे बढ़ने को हमेशा प्रोत्साहित करें
अपनी इच्छाएं और अपनी चाहतें बच्चे के सामने कम से कम दर्शायें
अपने बच्चे को मूल्यवान समझें, वह जैसा भी है किसी चमत्कार से कम नहीं hai
अपने बच्चों कि क्षमताओं को समझें
अंको के आधार पर उसकी काबिलियत आंकने का प्रयास न करें
बच्चे अच्छी नींद लें. रात को देर तक पढने के बजाय सुबह जल्दी उठें. अच्छी नींद बहुत जरूरी है. शारीर को आराम चाहिए. बच्चा आठ घंटे कि नींद अवश्य ले.
बच्चों को संतुलित आहार दें और फास्ट फ़ूड से दूर रखें.
घर का माहौल सहज रखें. बच्चे से मित्रवत व्यवहार रखें.
लगातार पढने के लिए बच्चे पर दबाव न डालें.
बच्चा जिस समय पढने में सहूलियत महसूस करे, उसी समय उसे पढने दें. हर समय पढो-पढो की रट न लगाये रखें.
बच्चा जो भी परीक्षा देकर आये, उसके बजे में अधिक सवाल-जवाब करने से बेहतर है कि उसे अगले विषय के बारे में सोचने दें. जो कर दिया सो कर दिया, उसे आगे की सोचने दें.
जरूरी नहीं की उसके साथ पढाई के समय सर पर सवार होकर बैठा जय. उसे इत्मिनान से पढने दीजिये. उसे इस बात का एहसास ही काफी है कि आप उसके इर्द-गिर्द ही हैं और जरूरत के समय उपलब्ध हैं.
प्रयास करें कि इन दिनों आप बच्चे कि पसंद का खाना बनाएं. उसके साथ सैर को जाएँ, उसके मनपसंद खेल और शौक के बारे में उससे बातचीत करें.
परीक्षाओं से भी दो तरह के तनाव होते हैं - तनाव अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी. अच्छा तनाव वह है जिसके द्वारा बच्चा अनुशासन में रहना और आगे बढ़ना सीखता है, लेकिन बुरे तनाव के कारण बच्चे के मन- मस्तिस्क की शांति भंग हो जाती है, जिससे सर-दर्द और बदन दर्द हो जाता है और वह अवसादग्रस्त हो जाता है.
टाइम-टेबल बनाने में बच्चे कि मदद करें. देखें कि कोई विषय छूट न जाय. प्रत्येक घंटे के बाद ब्रेक हो, साथ ही उसे एहसास दें कि परीक्षा कोई जिन्दगी और मौत का सवाल नहीं है. परीक्षा, एक परीक्षा भर है, जिसके लिए उसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार बस मेहनत करनी है.
अभिभावक रोज सुबह जल्दी उठें, आँख बंद करके थोडा चिंतन-मनन करें और मन को शांत रखें.
अभिभावक अपना खान-पान सुधारें. दरअसल होता यह है कि अधिकतर हमारा रहन-सहन कुछ ठीक नहीं होता. कई बार हमारे खाने-पीने में, सोने-जागने में और आचार-व्यवहार की आदतें भी सही नहीं होतीं. कई बार हम काफी-चाय अधिक लेने लगते हैं, फास्ट-फ़ूड और कोल्ड-ड्रिंक भी ले लेते हैं जिससे बच्चों पर भी असर पड़ता है और वे भी इन चीजों कई मांग करते हैं और इनके आदी हो जाते हैं.
बच्चों को चाहिए
पढाई के लिए अपना समय स्वयं तय करें, अपना टाइम-टेबल बनाएं और उसके अनुसार पढाई करें. कुछ बच्चे रात को पढना पसंद करते हैं और कुछ दिन में. सुबह का वक्त पढाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि उस समय वातावरण में शांति होती है और सोने के बाद शारीरिक थकावट भी नहीं होती और बुद्धि भी तरोताजा होती है. शास्त्र तो यहाँ तक कहते हैं कि सुबह के समय (ब्रह्ममूर्त में) ऋषि-मुनि और देवता गण अपनी- अपनी रश्मियाँ/ किरने बिखेरते हैं और उस समय जो प्राणी जिस भाव से अपनी इच्छा शक्ति को बढ़ाता है उसे वह वस्तु मिल जाती है.
पढाई के बीच में आराम करना भी जरूरी है, क्योंकि एक साथ बैठे-बैठे दिमाग थकने लगता है, जिससे पढ़ाई का लाभ नहीं मिल पाता. अपना खान-पान सही रखें, विशेषतौर पर परीक्षाओं के दिनों में. फल सब्जियों का सेवन अधिक करें. परीक्षा से पहले घबराहट होनी तो स्वाभाविक है, लेकिन इससे भी आप पार पा सकते हैं. पढाई के बीच में थोडा समय निकल कर आप मनन - चिंतन करें और हल्का व्यायाम करें इससे आपका मन-मस्तिस्क शांत रहेगा और दिमाग भी चुस्त रहेगा.
आपको दिन में कम-से-कम आधा घंटा शारीरिक व्यायाम तो अवश्य करना चाहिए. अक्सर होता यह है कि सब कुछ आते हुए भी परीक्षा भवन में आप अक्सर उत्तर भूल जाते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए आप परीक्षा से एक रात पहले तनाव मुक्त हों, आराम से महत्वपूर्ण प्रश्नों को दोहराएँ, यह ध्यान रखें कि आप पूरा कोर्स एक रात में नहीं दोहरा सकते. इसलिए पहले से इस प्रकिर्या को प्रारंभ कर दें और हो सके तो महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर किसी नाम या तिथि या अपने जीवन की विभिन्न घटनाओं के साथ लिंक करके 'सेव' करलें जैसे कंप्यूटर में हम विभिन्न फाइलों को अलग-अलग नाम से 'सेव' कर लेते हैं और आवश्यकता के समय उस फाइल को आसानी से ढूंढ लेते हैं.
एग्जामिनेशन पेपर हाथ में आने के बाद एक दम उत्तर लिखना प्रारम्भ न करें. पेपर को ध्यान से पढ़ें. याद रखें, जो तुमने पढ़ा है, वह तुम्हारे दिमाग में कहीं है. बस थोडा जोर डालना है. अगर प्रश्न पत्र में सभी प्रश्न हल करना आवश्यक हैं तो भी और यदि उनमें से कुछ छूट है तो भी पहले वे प्रश्न हल करें जो तुम्हे सबसे अच्छी तरह आते हैं. उसके बाद भी यही क्रम जारी रखें. ऐसा करने से आपकी इच्छा शक्ति को बल मिलेगा और मन को शांति और हो सकता है जब तक आप कम याद वाले प्रश्नों तक पहुचें तब तक उनके बारे में भी आपके मस्तिस्क में आवश्यक जानकारी इकठ्ठी हो जाय. इससे एक लाभ यह होगा कि हो सकता है की एग्जामिनर आपके पहले प्रश्नों के उत्तर से प्रभावित होकर बाद वाले प्रश्नों की मामूली भूलों को नजरंजाज भी कर दे. इसका एक पहलू और भी है कि आप ऐसा करके अपने तनाव को एक सीमा तक दूर कर सकते हैं क्योंकि तनाव के समय जो एड्रेनैनिल नामक हार्मोन उत्पन्न होता है, जिससे दिमाग एकदम खाली-खाली सा महसूस करने लगता है उससे आप बहुत हद तक अपने आपको बचा सकते हैं. इस हार्मोन का असर व्यायाम से भी कम होता है क्योंकि व्यायाम से उर्जा बढती है जो इस हार्मोन के असर को कम कर देती है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें