(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

गुरू की पहचान - भाग २

गतांक से आगे ........
अब तक हमने गुरु के स्थूल स्वरुप की आवस्यकता एवं महानता के बारे में जानने का संक्षिप्त रूप में प्रयास किया था क्योंकि गुरु के स्थूल स्वरुप का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना कोई हँसी खेल नहीं और न यह गुड्डे गुडियों का ही खेल है। जब कोई सच्चा जिज्ञासु श्रद्धा एवं विस्वास पूर्वक अपने सदगुरु के मार्ग निर्देशन में अपनी सांसारिक गति विधियों का संचालन एवं निर्वाह अनासक्त रूप से करता हुआ निष्काम आगे बढ़ता रहता है तो उसे अपने सदगुरु के, अपने इष्ट के सभी गुप्त रहस्यों का ज्ञान धीरे - धीरे हो जाता है और वह स्वयं एक दिन बीजरूप से बदल कर एक छायादार एवं फलदायक वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है। उसका बीजरूप, छायादार और फलदायक होना स्वयं उसके अन्दर ही था परन्तु यह सब उसे पता नहीं था; इसका पता उसे माली की कृपा से अर्थात गुरु कृपा से मिला।
गुरु के सूक्ष्म रूप की पहचान प्राप्त करने के लिए तो और भी ज्यादा सावधानी, मेहनत, मसक्कत और बलिदान करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि जब बाहर में ही इतने अधिक छल प्रपंच हैं की बाहरी गुरु के स्थूल स्वरुप का ज्ञान भी जिज्ञासु की समझ में आसानी से नहीं आता तो अन्दर में तो इससे भी अधिक प्रलोभन हैं; इसलिए गुरु के सूक्ष्म स्वरुप का ज्ञान यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसका एक कारण तो यह है की इसका सम्बन्ध मन से है और मन को वश में करना या मन को नियंत्रण में करना हर किसी के वश में नहीं होता। वैसे जो यह कहते हैं कि उन्होंने मन को मर दिया है वे झूंठ कहते हैं क्योंकि मन को मार कर कोई जीवित कैसे रह सकता है। हमें मन से न दुश्मनी करनी है न मित्रता क्योंकि दोनों ही हमें मन के साथ बंधन में बांधने में सक्षम हैं ।
मन कि शक्ति का पता लगाना भी कोई हँसी खेल नहीं है। इस विषय को लंबा न करते हुए सिर्फ़ इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मन अपने आप में वैसे तो जड़ है, निष्क्रिय है परन्तु जब वह हमसे अर्थात हमारी आत्मा से शक्ति प्राप्त करके हमारी इन्द्रियों के भोगों को भोगनें कि ओर प्रवत्त होता है तो इसकी शक्ति हजार गुना बढ़ जाती है। इस मन कि इस प्रवत्ति को संत अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए संत मन के मारने कि बात नहीं करते बल्कि मन कि प्रवत्तियों को परिस्कृत करने का प्रयाश करते हैं।
चूंकि मन पर जो भी प्रभाव संसार कि घटनाओं का या स्थूल पदार्थों का पड़ता है जिससे तथा कथित प्रवत्तियां जन्म लेतीं हैं उनका सम्बन्ध स्थूल पदार्थों से ही होता है अतः इस स्थूल प्रभाव को कम करने के लिए या इसे समाप्त करने के लिए ही स्थूल गुरु कि आवश्यकता पड़ती है। शेष फ़िर कभी ..........
मालिक सबका कल्याण करे

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

मिथिला चालीसा

                     मिथिला चालीसा

                 दोहा

अति आबस्यक जानी के शुनियो मिथिला के वास
बेद पुराण सब बिधि मिलल लिखल भोला लाल दास

पंडित   मुर्ख    अज्ञानी    से मिथिला   के ई   राज 
पाहुनं    बन    आएला    प्रभु   जिनकर    आज 
   चोपाई
जय - जय मैथिल सब गुन से सागर
कर्म बिधान सब गुन छैन आगर


जनक नन्दनी गाम कहाबैन
दूर - दूर से कई जन आबैन


देखीं क सीता राम के स्वम्बर
भेला प्रसन्य लगलैन अतिसब सुन्दर


पुलकित झा पंचांग से सिखलो
बिघन - बाधा से अति शिग्रः निपट्लो


         मंत्र उचार केलो सब दिन भोरे
ग्रह - गोचर से भेलोहूँ छुट्कोरे


विद्यापति जी के मान बढ़ेलन
बनी उगाना महादेव जी ऐलन

                                                                                                                       
जय - जय भैरवी गीत सुनाबी
सब संकट अपन दूर पराबी


लक्ष्मीस्वर सिंह राजा बन ऐला
पुनह मिथिला क स्वर्ग बनेला


भूखे गरीब रहल सब चंगा
सब के लेल ऐला राज दरिभंगा


बन योगी शंकरा चार्य कहोलैथ
अनेको शिव मंठ निर्माण करोलैथ


धर्म चराचर रहल सत धीरा
जय - जय करैत आयल संत फकीरा


जन्म लेलैन लक्ष्मीनाथ सहरसा
जिनकर दया से भेल अति सुख वर्षा


साधू संत के भेष अपनोलैन
फेर गोस्वामी लक्ष्मीनाथ कहोलैन


मंडन मिश्र क शास्त्राथ कहानी
हिनकर घर सुगा बजल अमृत बाणी


पत्त्नी धर्म निभेलैन विदुषी
जिनकर महिमा गेलें तुलशी


आयाची मिसर क गरीबी कहानी
हिनकर महिमा सब केलैनी बखानी


साग खाई पेटक केलनी पालन
हिनकर घर जन्मल सरोस्वती के लालन


काली मुर्ख निज बात जब जानी


भेला प्रसन्य उचैट भवानी


ज्ञान प्राप्त काली दाश कहोलैथ
फेर मिथिला शिक्षा दानी बनलैथ


गन्नू झा के कृत्य जब जानी
हँसैत रहैत छैथ सब नर प्राणी


केहन छलैथ ई नर पुरूषा
कोना देलखिन दुर्गा जी के धोखा


खट्टर काका के ईहा सम्बानी


खाऊ चुरा - दही होऊ अंतर यामी

मिथिला के भोजन जे नाही करता
तिनों लोक में जगह नै पाउता


सोराठ सभा क महिमा न्यारी
गेलैन सब राजा और नर - नारी


जनलैथ सब के गोत्र - मूल बिधान
फेर करैत सब अपन कन्या दान


अमेरिका लंदन सब घर में सिप्टिंग
देखलो सब जगह मिथिला के पेंटिंग


छैट परमेस्वरी के धयान धराबैथ
चोठी चन्द्र के हाथ उठाबैथ


जीतवाहन के कथा सुनाबैथ
फेर मिथिला पाबैन नाम बताबैथ


स्वर संगीत में उदित नारायण
मिथिला के ई बिदिती परायण

होयत जगत में हिनकर चर्चा
मनोरंजन के ई सुख सरिता


शिक्षा के जखन बात चलैया
मिथिला युनिभर्सिटी नाम कहाया


कम्पूटिरिंग या टैपिंग रिपोटर
बजैत लिखैत मिथिला शुद्ध अक्षर


है मैथिल मिथिला के कृप्पा निधान
रखियो सब कियो संस्कृति के मान


जे सब दिन पाठ करत तन- मन सं
भगवती रक्षा करतेन तन धन सं


हे मिथिला के पूर्वज स्वर्ग निवासी
लाज बचायब सब अही के आशी

    दोहा

कमला कोषी पैर परे गंगा करैया जयकार

शत्रु से रखवाला करे सदा हिमालय पाहार

( माँ मैथिल की जय , मिथिला समाज की जय -----------)
      
                                (   समाप्प्त )
लेखक :-

मदन कुमार ठाकुर
पट्टीटोल , कोठिया , (भैरव स्थान)

झंझारपुर , मधुबनी , बिहार -८४७४०४
mo - 9312460150


जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल , कोठिया , (भैरव स्थान)
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार -८४७४०४


रविवार, 20 दिसंबर 2009

चारि टा टेलीग्राम मदन कुमार ठाकुर


चारि टा टेलीग्राम -------
हमरा गाममे एक टा पुजेगरी बाबा छलथि ! ओऽ सभ भगवानक परम भक्त छलथि (खाश कs भैरब बाबाक बेसी पूजा पाठ करैत छलथि) मानू जेना ओऽ सभ देवता गणकेँ अपना बसमे कs लेने छथि ! गाममे बहुत प्रतिष्ठा आऽ मान सम्मान हुनका भेटैत छलनि, सभ कियो पुजेगरी बाबा पुजेगरी बाबा हरदम अनघोल करैत रहैत छल ! सबटा धिया पुता सभ साँझ-भोर-दुपहरिया बाबासँ कहानी आऽ चुटुक्का सुनए के लेल ललाइत रहैत छल ! बाबा सबकेँ केवल भलाई करैत छलखिन ! किएकी बाबा भैरबक परम भक्त छलखिन ! चारी घंटा केवल पूजा पाठ करयमे समय लागैत छलनि ! शीत-लहरी ठंढी रहए वा वर्षा होइत रहए, हुनका केवल पूजा पाठसँ मतलब रहैत रहनि ! खेती बारीसँ कुनू मतलब नञि रहैत रहनि, पूजा केलाक बाद केवल समाजक भलाईमे ध्यान दैत छलखिन ! जे की केला सँ, समाजमे यश आर प्रतिष्ठा रहत आऽ ग्रामीण लोकनिक भलाई होइत रहत!
एतबे नञि दू चारि गाममे यदि किनको झगड़ा होइत छलनि तँ पुजेगरी बाबा पंचैती करैत छलखिन !मुदा पुजेगरी बाबाकेँ एकटा बातक विशेष ध्यान रहैत छलनि, जे हम यदि मरि जायब तँ हमर समाजक की होयत ! हमर मृत शरीरकेँ केना अग्निमे जराओल जायत, ई सब बात हुनका परेशान केने रहैत छलनि !
एक दिन पुजेगरी बाबा यमराजसँ प्रार्थना आऽ विनती केलथि, जे हे यमराजजी, हमर मरए के समय जखन नजदीक आबए तँ हमरा डाक द्वारा टेलीग्राम, वा नञि तँ ककरो दिआ समाद पठा देब ! जाहिसँ हम निश्चिंत भs जायब आऽ अपन सबटा काजकेँ समेट लेब, आर हमर जे अपन सम्पति अछि (पूजा पाठक सब सामान) से हम कुनू निक लोककेँ दऽ देबैन जाहिसँ आगू ओऽ हमर काज धंधाकेँ देखताह !
समय बितल जाइत छल ! पुजेगरी बाबा वृद्ध सेहो हुअ लगलथि ! केश सेहो पाकि गेलनि ! दाँत सेहो आस्ते-आस्ते टूटए लगलनि आऽ डाँर सेहो झुकए लगलनि, ओऽ आब यमराजक टेलीग्रामक इंतजार करए लगलाह !एक दिन पुजेगरी बाबा भगवानक पूजा-पाठ केलथि आऽ भैरब बाबाक सेहो ध्यान केलथि ! भोजन केलाक उपरांत कुर्सी पर बैसल छलथि, अचानक पेटमे दर्द उठलनि, ओहिसँ आधा घंटाक बाद हुनकर शरीरसँ प्राण निकलि गेलनि, सब ग्रामीण लोकनि मिलि कए हुनक अंतिम संस्कार कs देलकनि ! किएकी पुजेगरी बाबाकेँ किओ वंशज नञि छलनि,ताहि लेल ग्रामीणक सहयोगसँ पंचदान-श्राद्ध कर्म बिधि पूर्वक कs देल गेलनि !
पुजेगरी बाबा जखन स्वर्ग लोक गेलाह तँ हुनका लेल चारू द्वार खुजल छल! यमराज हुनका आदर पूर्वक सभा भवनमे लs गेलथि ! हिनकर बही खातामे सबटा नीके कर्म कएल गेल छलनि, ताहि लेल पुजेग्अरी बाबाकें निक स्थान निक व्यबहार आऽ निकसँ स्वागत कएल गेलनि!हुनका स्वर्गमे कुनू तरहक कष्ट नञि होइत छलनि, मुदा ओऽ पूजा पाठ, पूजाक सामिग्री आर समाजक कल्याण लs कए बहुत चिंतित छलाह ! हुनका कनियोटा स्वर्गलोकमे मोन नञि लागए छनि !
एक दिन पुजेगरी बाबा खिसिआ कए यमराजसँ कहलखिन, जे हम अहाँकेँ कहने रही जे हमरा मरएसँ पहिने अहाँ टेलीग्राम भेज देब ताकि हम अपन काज धंधाकेँ सही सलामत कs कए स्वर्ग लोक आबितहुँ से अहाँ नञि केलहुँ ?यमराज कहलखिन :पुजेगरी बाबा हम अहाँकेँ चारि टा टेलीग्राम भेजलहुँ मुदा अहाँ ओकरापर ध्यान नञि देलहुँ से कहू हमर कोन कसूर अछि ? पुजेग्री बाबा सुनि कए चकित भs गेलाह, जे हमरा तँ कोनो टेलीग्राम नञि आयल! नञि यौ यमराज, अहाँ झूठ बजैत छी ! दुनु व्यक्तिकेँ आपसमे बहस चलए लगलनि तँ यमराज कहलखिन, सुनू पुजेगरी बाबा, हम अहाँकेँ कखन-कखन टेलीग्राम पठेलहुँ, अहाँ ओकर ध्यान राखब !
(१): हम पहिल टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँकेँ कारी केश पाकय लागाल
(२): हम दोसर टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँक आस्ते-आस्ते सभ दाँत टूटय लागल
(३): हम तेसर टेलीग्राम जखन पठेलहुँ तखनसँ अहाँकेँ आस्ते-आस्ते डाँर झुकय लागाल
(४): हम चारिम टेलीग्राम जखन केलहुँ, तखन अहाँ एतेक देरी कs कए हमरा ओहिठाम एलहुँ !
आब अहीँ कहू पुजेगरी बाबा, हमर कते गलती अछि ?
पुजेगरी बाबा कहलखिन :
यमराजजी अहाँ ठीके कहैत छी ! हम अपन काज-धंधामे लागल रही, ताहि द्वारे नञि ध्यान दए सकलहुँ आऽ नञि पढ़ि सकलहुँ अहाँक चारि टा टेलीग्राम ........
जय मैथिली, जय मिथिला-:
लेखक :-
मदन कुमार ठाकुर
पट्टी टोल ,कोठिया ,
झंझारपुर , (मधुबनी)बिहार - ८४७४०४
मो - ९३१२४६०१५०
ईमेल - madanjagdamba@yahoo.co

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

आत्मिक संतुष्टि - जगदम्बा ठाकुर

 आत्मिक संतुष्टि

 
हमर समस्त ज्ञान व् प्रयाश , शारीरिक किछ हद तक , मानसिक आ किछ अहि ज्ञान बुधि स्तर तक केवल मात्र सिमित रहैत अछि अंतर में जतय हमार विशुद्ध आत्मा या सुरत ( नेचर ) मात्र रहैत अछि , ओताहि तक हम जीवन भर नही पहुंच पावैत छि क्याकि हमरा ओही सब्द के भेद बतावै बाला गुरू नही मिलला

यदि ककरो पूर्ण रूप से गुरू भेटलें त ओ ओकर उपयोग नही क दुरोपयोग बैब्हर केलैन आ बाहरी गुरू सब के इहा कोशिस रहैत छैन की ओ अपन शिष्य के अंतर आत्मा में जे गुरू विराज मान अछि से ओकर भेद बता दै मुदा गुरू के पास अहि भेद के जनय के लेल सब जयत अछि , सब के सब दिखाब्ती दुनिया में विस्वाश आ इच्छ पूर्ति करेक लेल गुरू के पास जायत अछि और गुरू हुनकर इच्छ पूरा करैत छथिन लेकिन असली भेद जे ओबताव चाहैत छैथ से ओ नही बता पावैत छैथ , क्याकि ओही हिशाब से हुनका निक ग्राहक नही भेटैत छैन संसारिक इच्छा ता पूरा होयत छैन जे हुनका पर श्रधा और विस्वाश क लैत अछि और जे हुनकर बात के अपन बुईध क डिक्सनरी में से नीकाली के संशय करैत अछि या ओही पर बहस करैत अछि

एगो बात हमरा दिमाग में आबैत अछि की , गुरू ओ एगो तत्व थिक जे मनुष्यक शरीर से प्रकट होयत अछि , जकरा ओ स्वं चुनैत छैथ गुरू नहीं पैदा होयत छैथ नहीं ओ मरैत छैथि अहि दुवारे बाहरी गुरू जिनका अन्दर ओ तत्व प्रकट होयत छैन ओ मालिक के रूप में होयत छैथि , लेकिन हम ओही मनुस्यक मायन के बरका टा भूल करैत छि

  कवीर दास कहैत छैथ —-

गुरू को मानुस जानते ते नर कहिए अन्ध ,
दुखी होय संसार में आगे जम का फंद

गुरू किया है देह को सत गुरू चीन्हा नहीं ,
कहें कवीर ता दास को तीन ताप भरमाही

गुरू नाम आदर्श का गुरू हैं मन का इस्ट ,
इस्ट आदर्श को ना लाखे समझो उसे कनिस्ट

चेला तो चित में बसे सतगुरू घट के आकाश ,
अपने में दोनों लाखे वही गुरू का दास

   गुरू जे अपन साधन अभ्यास अपन शिष्य के दैत छथिन ओ हुनकर मंजिल नही छियन , आ ने हुनकर ओहिसे आबाग्मन छुट तैन , वल्कि ओत अहिद्वारे देल जायत अछि की जे अहि से शिष्य क मन काबू में आबिजय आ स्थिर भ जाय , ताकि आगू के जीवन सीढ़ी चढाई में आसानी होय अहिदुवरे गुरू के दुवारा बतायल गेल तरीका से अभ्यास केनाय बहूत जरूरी होयत छैक , लेकिन अहि के मंजिल मय्न लेनाय बहूत पैघ भूल होयत अछि जिनका अभ्यास नही होयत छैन हुनका नीरास होयके जरूरत नही होयत छैन हाँ मगर प्रयास करैत रहैत ई हुनका लेल जरूरत अछि क्याकि ऐना नही केला सं गुरू के आज्ञा के उलंघना होयत छैन , जे मालिक क बरदास्त नही होयत छैन

जिनका अभ्यास नही बनल छैन हुनका लेल जरूरी अछि की ओ ककरो से जरूर प्रेम करैथ , लेकिन प्रेम एहन होय जाही में काम-वासना या स्वार्थ बिलकुल नै होय और ई प्रेम – प्यार गुरू के प्रति भ जाय त सबसे निक बात अछि , अन्य था ककरो से निस्वार्थ रूप से प्रेम क सकैत छि } हां अगर अहा गुरु के परम तत्व मणिके प्रेम करब त सोना पे सुहागा बाली बात कहाबत सावित भ जायत अछी अगर निस्वार्थ प्रेम भाब नहि बैन पबैत अछी त कूनू व्यक्ति के प्राप्ति समर्पण क दियो या ककरो सरण में चली जाऊ अगर इ समर्पण गुरु के प्रति भ जय त अति उतम अन्य -अन्य के प्रति समर्पण भेनाय कूनू बरई नहि , मुदा समर्पण एहन होय जहि में सबटा अंहकार पिघैल क पैन जेका बहि जाय , क्याकि मालिक के और नोकर के सुरत (नेचर ) के विच में अहंकारे टा एगो मोट पर्दा अछि जे एक दोसर से मिलान नही हूव देत अछि

जखन ककरो ई विस्वास भ जायत छैक जे हमर इस्ट हरदम अंग – संग में रहैत अछि त हुनका जिनगी में कहियो गलत काज और नही हुनका से कुन्नु संसारिक या परम्परिक काज कहियो नही रुकी सकैत अछि अभ्यास बनल या बनेला से जीवन के कर्म से और किछ अपने ही पराबंध कर्म से प्रभवित होयत रहैत अछि लेकिन लगातार प्रयास करैत रहला सं मन एक दिन कबू में आवी जायत अछि और अपन ई प्रयास जीवन के मूल खता में लिखल जायत अछि , भले ही ओ चंचल मन से क्याक नही होय

कियो ई नही समझू की गृहस्था जीवन में रहला से अभ्यास नही होयत छैक , गृहस्थ में रहिके मन सदिखन बेकाबू में रहैत छैक और ओही से छुट करा पाबाई के एक मात्र साधन अछि सन्यास , ई धारणा गलत अछि क्याकि एक त संतमत के गुरु गृहस्थी रूप भेल छैथि , क्याकि गृहस्ती में एक दोसर पर उपकार करैय के जतेक अवसर भेटैत छैक ओ एगो सन्यासी के नही मिलैत उल्टे सन्यासी त स्वम् अपन आबस्य्कता के लेल गृहस्थ पर निर्भर रहैत छैथ, तेसर सन्यासी क असली मतलब संत में न्यास केनाय या संत में रहनाय, लेकिन असली सत्य त

एकटा अछि ओ अछि मालिक के कुल में लाय भेनाय जे ब्यक्ति हरदम अपन इस्ट के चिंतन – मग्न ध्यान में लागल रहैत छैथि ओहय सच्चा सन्यासी भेला , भलेही ओ कुनौ नाम के जाप करैत या नही , सत्य धर्म जरूर करैत और ओही धर्म के पालन करैत -

    ईहा आत्मिक संतुस्ट कहल जायत अछि ,



प्रेम से कहु जाय मैथिल जाय मिथिला
जय  अपन गाम  घर ---



  जगदम्बा ठाकुर
पट्टीटोल , भैरव स्थान ,
झांझरपुर, मधुबनी , बिहार- 847404

ई मेल – madanjagdamba@rediffmail.com
mo -9312460150