(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

जय माँ जानकी -

ॐ   द्यौ:   शान्तिरन्तरिक्षँ  शान्ति:     पृथिवी  शान्तिराप:   शान्तिरोषधय:    शान्तिः। 
वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि॥ 

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्तिः॥  

     य माँ जानकी  , 
मिथिला एक बेर भयंकर अकाल परि गेल,प्रजा सब मे हाहाकार मचि गलैक । चारु तरफ यग्ञ्य होम पूजा पाठ होमय लागल मुदा वर्षा नहि भेल तहन मिथिला नरेश राजा जनक अप्पन गुरू शतानन्द महाराज केर आग्या स हल चलायब शुरू कयलनि कहल जाइछ जे पुनैारागढ सीतामढी मे भूमि स हरक ठोकर स एकटा नवजात कन्या भेटलनि जनिकर नाम सीता,जानकी,वैदेही,मैथिली परलनि तकर बाद मिथिला मे खुब पानि भेल, राजा जनक सेहो मिथिला मे सीता के पाबि गदगद भेलाह विदेह रहितो सगुण रुप के अनुभूति मे आनंनदित भेलाह
  मिथिलावासी के लेल आजूक दिन अविस्मरणीय अछि । जानकी नवमी, मैथिली दिवस पर मातृभाषा के    समबर्द्धन करी
       माता सीता लक्ष्मीक अवतार छलीह।लक्ष्मी पद्मासना छथि आ' सीता पद्महस्ता।सीताक आँचर सुलटा छनि।सीतारामक मूर्ति सोझ होइत अछि।सीताक आयुध कहियो धनुष नहि रहलनि। उल्टा आँचर,धनुर्धरी,कैटवाक करैत माता सीताक दोखाह चित्रक प्रचार शास्त्र-बिरुद्ध अछि। कम सं कम दूटा दृष्टांत पर ध्यान दीः---
अथ लोकेश्वरी लक्ष्मीर्जनकस्य पुरे स्वतः।
शुभ क्षेत्रे हलोत्खाते तारे च उत्तर फाल्गुने।।
अयोनिजा पद्मकारा वालार्क शतसन्निभा।
सीतामुखे समुत्पन्ना वालभावेन सुंदरी।
  -पद्म पुराण।  अर्थः---साक्षात् लक्ष्मी महर्षि जनकक नगरी मिथिला मे वैशाख शुक्ल नवमी शुभ मंगल दिन उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र मे शुभ क्षेत्र मे हर'क द्वारा उत्खनन सं अयोनिजा हाथ मे कमल रखने शताधिक बाल सूर्य केर सदृश उत्तरायण काल मे उत्पन्न भेली।(2)जानामि राघवं विष्णुं लक्ष्मी जानामि जानकीम् ।ज्ञात्वैव जानकी सीता मया नीता वनाद् बलात्।।-आध्यात्म रामायण।रावण द्वारा मंदोदरी केँ कहल गेल।अर्थ साफ अछि।कहबाक तात्पर्य जे बिना शास्त्रक मत जनने माता सीताक रूपक संबंध मे कृत्रिम वाद स्थापित करब आध्यात्मिक अपराध अछि।राजा जनक बहुतो भेलाह तहिना सब जनकक पुत्री जानकी कहबैत छथि मुदा, सीता ओ भेलीह जे हरक सिराउर सं प्रकट भेलीह।हमसब सीतानवमी मनबैत छी।चूँकि, सीता सेहो जानकी छलीह तेँ,हिनको लेल जानकी नवमी अनुपयुक्त नहि मुदा, मिथिलावासी सीतानवमी मनबैत छथि। सीतारामक निम्नांकित मूर्तिक पूजा शास्त्र सम्मत अछिः-

सीता माताक आरती.
सीता बिराजथि मिथिला धाम सब मिलिके करियनु आरती
संगहि सुशोभित लछुमन राम सब मिलिके करियनु आरती।।

बिपदा विनाशिनि सुखदा चराचर,सीता धिया बनि अयली सुनयना घर
मिथिलाके महिमा महान।। सब मिलिके करियनु आरती.....
सीता सर्वेश्वरि ममता सरोवर,बामा कमल कर दायाँ अभय वर
सौम्या सकल गुणधाम।। सब मिलिके करियनु आरती.....
रामप्रिया सर्व मंगलदायिनि,सीता सकल जगती दुःखहारिणि
करथिन सभक कल्याण।। सब मिलिके करियनु आरती...
सीतारामक जोड़ी अति मनभावन,नइहर सासुर कयलनि पावन
सेवक छथि हनुमान।। सब मिलिके करियनु आरती.....
ममतामयी माता सीता पुनीता.संतन हेतु सीता सदिखन सुनीता
धरणी सुता सबठाम।। सब मिलिके करियनु आरती..
शुक्ल नवमी तिथि बैशाख मासे, ”चंद्रमणि” सियाजीके उत्स


जय मिथिला जय जय मैथिली
जानकी नौमी के  हार्दिक शुभकामनाए ---

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

चारि-पांति, अमरनाथ मिश्र' भटसिमरि


चारि-पांति

चैत मास नवमी रामजी जनम लेल
बधैया बाजल अवध नगरीया
वैशाखक नवमी सीता के जनम भेल
धन्य भेलइ मिथिला नगरीया

चारि-पांति

मि सँ मिठगर मैथिली भाषा
थि सँ थिकाह मैथिल मोर
सँ लागथि प्रियगर मानव
मिथिला में मौध चुवय ठोर

चारि-पांति

माँगल वरदान रघुवर सँ जानकी
वैकुंठ पावथि मैथिल मृत्युपरांत
राखल मान विहुँसि रघुकुल नायक
तुलसीचौड़ा तेजथि अपन प्राण

चारि-पांति

चिक्कन चकेट्ठा धिम्मर पिच्छर
कोढ़िया मचाने बैसल रहैयै
गोल-गोल गुलछर्रा गलथोथर
गजधिम्मर खिल्ली बस चिबबैयै

चारि-पांति

बात के छाँटथि पौलीस मारथि
खाली टिपगर टिपथि बात
नीक निकुत सभ हिनके चाही
बस बबुआनी छन्हि काज

चारि-पांति

वैदेही सन धीया एहि जगमें
परतर करत के आन
राखल मर्यादा नैहर-सासुर
पुरुषोत्तम बनलाह राम

चारि-पांति

गृहस्थी छोड़ि ठाम गमाओल
जुलूम केलनि बड्ड भारी
शहर पहुँचि पहिचान गमाओल
एहिसँ गामक नीक गोरथारी

चारि-पांति

अजब खेल संग गजब तमाशा
नगर गाम घर पसरल
कर्ज खेबाक लेल इसरी-मिसरी
सप्पत खाई लै रामेश्वर

जूरि-शीतल

चइत मास विक्रम संवत एलइ
पर्यावरण सेहो स्नेह सिक्त भेलइ
आई मैथिलीक नववर्ष मनेलइ
जूरि-शीतल में सभ जुरेलइ

चास वास देव पितर जुरेलइ
बउवा बुच्ची संग माय जुरेलइ
बाबा मैयाँ बाबू कक्का जुरेलइ
गाछ बिरीछ बाट जुरेलइ

काँच बाँसक फुचुक्का बनलइ
थाल कोदो सँ हुरदुंग केलकइ
हुर्रा-हुर्री के कुसधुम मचलइ
आँगन तुलसी चौड़ा डाबा टंगलइ

टटका आओर बसिया पाबैन भेलइ
बड़ी भात दही दैलपुरी सब खेलकइ
सतुवाइन फेर सँ लवान करेलकइ
बगरा कौवा मेना खन्जनि खेलकइ

मिथिला मैथिली केर मान जुरेलइ
बाबाक दलान खरिहान जुरेलइ
मैथिल सभक अरमान जुरेलइ
नगर गाम घर सभठाम जुरेलइ 

जय मिथिला जयति मैथिली
अमरनाथ मिश्र' भटसिमरि




मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

मिथिलाक पाबैन जूड़ शीतल


Manoj Pathak  
  मिथिलाक पाबैन जूड़ शीतलक मंगलकामना
आई बड़का पाबनि अछि। नव वर्ष शुरु भ, रहल अछि। अपन सब वरिष्ठकें सादर प्रणाम आ कनिष्ठ लोकनि जुड़ाउ, शीतल रहू।
जुड़य तनक एक -एक कोशिका आ स्वस्थ राखय मोनक एक -एक तन्तु जाहिसं आइसं शुरु भ, रहल नवका साल बर्ख भरि तन मन के राखय प्रसन्न। 
शीतायल रहय अन्तरमनमे अहरनिश पजरल आगि जे धधकबैत रहैत अछि पल-पल ईर्ष्या, द्वेश, अहंकार, अहमन्यता जाहिसं समेटाइत जाइत अछि प्रियजनक संसार।
बसिया पाबनि अछि आई, आंच नहि पजरैत छलैक आइ भोरे भोर नेनावस्थामे हमर आ बसिया बड़ी भातक जलखई आ भोजनो होइत छल। पटनामे जलक संग सतुआ दान आ सतुआ पानक चलन छलैक।
रहल छलहुं एकाधे बेर अपन गाम गजहरामे जतक छलाह महामहोपाध्याय उमेश मिश्र, आदरणीय जयकान्त बाबू .......आ आरो बहुत रास लोक जनिका नामसं गामक नाम छल प्रसिद्ध ।

समकालमे अही गामक आनुवंशिकता लेने दुनिया भरि घूमैवला फेसबुक मित्र समाजक हेमकान्त बाबू , जनिक विविध बहुरंगी छटा झलकबैत, बिहुंसबैत फोटो खूब चाओ सं देखैत छी हम , हमर जीवन संगिनी आ धीया पूता सेहो...
भाई विधुकान्त जी सेहो अही गामक जे फेसबुक पर अपन सक्रिय भागीदारी सं सब नीक काज के आगां बढ़ेबाक लेल समान भावसं सबके दैत छथि प्रोत्साहन आ स्वास्थ्योपयोगी आ जीवनोपयोगी बहुत सूचना पठबैत रहैत छथि व्यापक मित्र समाजक लाभक लेल सदिखन.....
बीरू भाई सेहो अही गामक जे हेमनि में मित्र वर्गमे जुड़लाह आ बहुत रास पछिला अगिला खाढ़ीक समांग सेहो संगहि छी जुड़ल फेसबुक मित्र समुदाय मे जाहिमे संबंधमे तं कका मुदा संगमे मीता सेहो, नवीन बाबू सेहो गजहरेक थिकाह।
सब केओ जुड़ायल रही से कामना मां भगवती सं ।
आब गामसं निकलिक आशीर्वाद ली गुरुजनसं जाहिमे सम्मिलित छथि फेसबुकक जन्मसं बहुत पहिनेसं सदिखन आशीर्वाद बरिसबैत आदरणीय गुंजनजी जनिक स्नेह प्रतिपल अनुभव करैत छी हम, आदरणीय विभूतिजी जिनक चरिपतिये नहि अपितु अनेको रचना बहुत दूर धरि जेबाक सामर्थ्य रखैत अछि आ बहुत रास
आन अध्यापक , साहित्यकार समाजक वरिष्ठ सृजनशील संभावनावान, सब प्रणम्य आ सबसं अछि आशीर्वादक आकांक्षा जे जुड़यबाक दैथि आशीष। 
अनेको प्रणम्य निज रक्त वंशी परिवारक सदस्य सबसं सेहो फेसबुक माध्संयम सं छी हम सब जुड़ल, सबके प्रणाम आ सब छोटके आशीष , जुड़ल रहू, जुड़बैत रहू आगां बढैत रहू। जे फेसबुकसं नहि छथि जुड़ल मुदा हुनको तक पहुंचैत अछि सबटा समाद सबके चरण कमलमे सादर प्रणाम।
  जीवनमे वस्तुतः ने किछु छूटैत छैक ने किछु भेटैत छैक, बस समयक ई खेल जाहिमे किछु छूटैत किछु भेटैत रहबाक खेल खेलाइत रहैत छथि विधाता हमरा अहांक संग आ लोक सुखी वा दुखी होइत रहैत अछि।
गाम, घर आ परिवारसं बहरा क, आब ताकी फेसबुक आ इंटरनेट समाजक जगजियार मैथिल लोक के जे मिथि जकां ,मथि रहलाह अछि अपन देह आ जाबति तक समांग रहतैन बस ताबति तक हुनक संग रहथिन हुनक मैथिली, कारण विदेह बनिक, अपन ऊर्जा मुक्त क, क, अनकामे पैसि आ अनकर मोनमे बैसल रहबाक सामर्थ्य विद्यापतिक बाद किनकोमे नहि देखा रहल अछि हमरा।
विद्यापतिक पहिनेसं मिथिलाक लेल अपन तन मन अर्पित करैबला सब नायकक बाद, हुनक बादक पीढ़ीक नायक,क ऊर्जामे अभावे अभाव देखाइत अछि हमरा।
बादक सब मिथि अपन देह मथि जे राज्य वा छोट पैघ मठ बना पबैत छथि ओहिमे अपन मूरुत अपन सोचके अलावा अनकर मुरुत अनकर सोच स्वीकार करबाक वा कोनो फराक तर्क, वा सहयोगक कल्पने नहि क, पबैत छथि तंए हुनक मैथिली हुनक जीवनकालेमे हुनकहु सं पहिने धरतीमे सन्हिया जाइत छथि।
मुदा तैयो जतेक मिथि छी , मैथिली आ मिथिलाक उद्धार वा विकासक लेल प्रयासरत छी सबके शुभकामना, जुड़ायल रहू, शीतायल रहू, आ कतबो ताप सह, पड़य, धाहमे धधक, पड़य जूड़ शीतलक आशीष अहांक प्रयासमे सफलता आनय से कामना।
राजा जनकक, राज्य मिथिला लगातार आगुए बढि रहल अछि । मैथिलक संख्या लगातार बढिए रहल अछि। जे पलायन मिथिलासं देखाइयै वा जे विकासक आंकड़ा पाछा मुंहे देखाइयै ओकरा स्वीकार करितो मिथिलामे पछिला पांच दशकमे तुलनात्मक रूपसं समृद्धि साफ साफ देखाइत छैक। तुलना मिथिलाक हेबाक चाही मिथिलेक संग। आन प्रान्त वा आन देशक संग नहि।
भूखसं मृत्यु आब प्रायः नहि होइत छैक। लोकलाज वा अन्नक अभाव मे एको सांझ भूखल रहबाक स्थिति पहिनेक तुलनामे आई कम देखबाक लेल भेटत।
मैथिल समाजक सब वर्णक लोक जे मिथिलासं पलायन क, क, मिथिलासं बाहर गेलाह.... अपना संग मैथिलीके संग ल, गेलाह अपन पाबनि तिहार नहि बिसरलाह हुनक सूर्य भकरार भ, क, पूरा देशमे छठि पर उगैत दुनिया देखैत अछि।
बस एहिना जुड़ायल रहू, शीतायल रहू। मैथिल नव वर्ष पर शुभकामना, नव साल मंगलमय हो , हितकर हो सुखकर हो।
जे जत, कतहु छी अपना स्तरसं मैथिलीक लेल जे क, सकैत छी बस ओतबे करू तैयो मिथिला बढ़ैत रहत, मैथिली चलैत रहती आ मैथिल संतान जगजियार होइत रहताह। 
कहैथि छैथि -
आई प्रकृति जुड़ा रहल अछि
मैथिली नववर्ष मना रहल अछि । 
स्नेह सुधा सँ चुमा रहल अछि
जुइर-शीतल सभ करा रहल अछि॥

जय मैथिल जय मिथिला