(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

पहले अंडा या पहले मुर्गी?




  
     यह प्रश्न तो आपने पहले भी कई बार सुना होगा और इसका उत्तर देने का प्रयास भी किया होगा परन्तु इसका पूर्णरूप से समाधान शायद ही हो पाया होइसका समाधान इतना आसान नहीं है क्योंकि यह प्रश्न ही अपने आप में बहुत जटिल है.  इसलिए इस प्रश्न के उत्तर को समझ ने से पहले आपको बाह्य एवं सामान्य विचारों से ऊपर उठाना होगाइसका एक कारण तो यह है कि जब तक हम अपने वाह्य विचारों के जाल में उलझे  रहते हैं तब तक हमें  सत्य समझ में नहीं आ सकतासत्य कि समझ तो तभी आयगी जब हमारा मन और बुद्धि शांत होंगे क्योंकि मन और बुद्धि के चंचल रहते हमें वही दिखाई देता है जो ये हमें दिखाना चाहते हैंकमरे से या परदे से पीछे की चीज हमें तभी दिखाई देगी जब हम इन भौतिक चक्षुओं को बंद करके अंदर के चक्षुओं से देखने का प्रयत्न करेंगे.

कई बार किसी बात को समझने के लिए हमें उदाहरणों का या किसी पूर्व घटना का सहारा  लेना पड़ता है. उपरोक्त  प्रश्न  को समझने के लिए भी हमें एक ऐसी घटना का सहारा लेना पड़ रहा है जिसकी सत्यता के बारे में कोई वैज्ञानिक  ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है परन्तु चूंकि  पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है इसलिए इस पर विश्वास करना पड़ता है यदि कोई विश्वास नहीं करे तो उसकी इच्छा.  कहते हैं कि जब यह स्रसठी   नहीं थीसब  जगह  पानी ही  पानी थासब जगह अंधकार ही अंधकार थाकोई जीव-जंतु भी नहीं था तब  एक अद्भुत  शब्द की गुंजार हुई (इस शब्द को अनहद शब्द या आदि शब्द कहते हैं). इस शब्द के होने से उस जल में हलचल पैदा हुई और साथ ही साथ प्रकाश भी पैदा हुआ. इस प्रकाश ने जल की हलचल को विकासक्रम का रूप दिया जिससे चलते उस जल में जैसे  ढूध के मथने  पर मक्खन ऊपर आ जाता है वैसे ही उस जल के ऊपर भी एक बहुत बड़े  आकार का गोला जो सुनहरे रंग का था तैरने लगा. कालांतर में यह गोला जल के सतह  पर टिक गया और उस अदृश्य एवं सर्वशक्तिमान शक्ति द्वारा पोषित होने लगा. विकासक्रम  की प्रकिर्या  के सिद्धांत के अनुसार जब यह अंडा अपनी अवधि पूर्ण होने पर फूटा तो स्रश्ठी का सृजन हुआ.

इस सुनहरे अंडे को हिरण्यगर्भ भी कहते हैं और इसी को इस स्रसठी का उपादान कारण माना गया हैअब आप स्वयं विचार कीजिये कि पहले अंडा आया या मुर्गी आई. 

 सोनू  झा 

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

अपनेक समस्त भाई - बोहिन सदर आमंत्रित छी


अपनेक समस्त  भाई  - बोहिन   सदर  आमंत्रित  छी 






बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

कीर्ति स जीवते


 Pravin Narayan Choudhary


      कीर्ति जे सर्वहितकारी हो वैह प्रतिष्ठा पबैत छैक आ कीर्तिकार सदा-सदाके लेल अमर बनैत छैक। ईर्ष्यालू स्वभावके लोक ओहि कीर्तिकार सँ द्वेषभाव रखैत छैक, लेकिन आजुक फालतु राजनीतिके चलते ओहेन लोक के कीर्ति कम बल्कि जाइत बेसी देखल जाइत छैक। दुष्परिणाम - विपन्नता! उदासीनता! रचनाविहिनता! विनाशोन्मुख समाज! कहू कि फायदा? 

तदापि जन्मैत रहैत छैक गुदडी सँ लाल आ उपजैत रहैत छैक हीरा-मोती-जवाहरात! मिथिलाके भेटैत रहल छैक सुन्दर-सुन्दर रचनाक साहित्यिक सुधा सौगात। आउ देखी जे कतेक लोक कि-कि कयलन्हि।

१. रामेश्वर चरित मिथिला रामायण (१९१४/१९५४): लालदास (१८५६-१९२१)

२. अम्बचरित (१९५६): सिताराम झा (१८९१-१९७५)

३. रावण वद्ध (१९५५): जिवनाथ झा (१९१०-१९७७)

४. सितायणा (१९७४): वैद्यनाथ मल्लिक 'विधु' (१९१२-१९८७)

५. राम सुयश सागर: विश्वनाथ झा 'विषपयी' (प्रकाशन वर्ष आ कविक परिचय उल्लेख नहि भेटल)

६. श्री हनुमानचरित (१९९७): कालिकान्त झा

७. सुभद्राहरण (१९५९): मुन्शी रघुनन्दन दास (१८६०-१९४५)

८. राधाविरह (१९६९): काशीकान्त मिश्र 'मधुप' (१९०६-१९८७)

९. किचक वद्ध (१९६१): तंत्रनाथ झा (१९०९-१९९४)

१०. कृष्णचरित (१९७६): तंत्रनाथ झा

११. रुक्मिणिहरण (१९८०): बबुआजी झा 'अजन्ता' (१९०४-१९९६)

१२. प्रतिग्यापाण्डव (१९९५): बबुआजी झा 'अजन्ता'

१३. पराशर (१९८८): काञ्चीनाथ झा 'किरण' (१९०६-१९८९)

१४. चाणक्य (१९६५): दिनानाथ पाठक 'बन्धु' (१९२८-१९६२)

१५. गंगा (१९६६): लक्छ्मण झा

१६. अगस्त्यायनी (१९८०): मार्कण्डेय प्रवासी

१७. दत्तावती (१९८७): सुरेन्द्र झा 'सुमन' (१९१०-२००२)

१८. श्री चैतन्य चन्द्रायण (१९७२): रामचन्द्र मिश्र 'मधुकर'

१९. स्मृतिसहस्री (१९७८): बुद्धिधारी सिंह 'रामाकर'

२०. जय राजा सलहेश (१९७८): मतिनाथ मिश्र

२१. त्रिपुण्ड (१९८४): धिरेश्वर झा 'धिरेन्द्र' (१९३४-२००४)

२२. मुक्तिपथ (१९९२): महिनाथ झा

२३. परमशिव (१९९५): महिनाथ झा

२४. अनङ्गकुसुम (१९९९): ब्रजकिशोर वर्मा 'मणिपद्म' (१९१८-१९८६)

(उपरोक्त रचना सभ ग्रंथ रूपमें प्रकाशित अछि।)

२५. कृषक (१९४७): माथुर (१९२९-१९९९)

२६. द्रोहाग्नि (१९६९): लोकपति सिंह

२७. संन्यासी (१९४८): उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास' (१९१७-२००२)

२८. पतन (१९६९): उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास' 

२९. लखिमा रानी: केदारनाथ लाभ (१९३२)

३०. भारती (१९६४): केदारनाथ लाभ (१९३२)

३१. शरशय्या (१९६२): बुद्धिधारी सिंह 'रामाकर'

३२. समाधि (१९८३): बुद्धिधारी सिंह 'रामाकर'

३३. साबरमती (१९९०): बुद्धिधारी सिंह 'रामाकर'

३४. सावित्री: कुशेश्वर कुमार (१८८१-१९४३)

३५. नमस्य (१९६८): तंत्रनाथ झा (१९०६-१९८४)

३६. मंगलपंचासिका (१९७३): तंत्रनाथ झा

३७. सीता (१९६७): रविन्द्रनाथ ठाकुर

३८. नरगंगा (१९६८): रविन्द्रनाथ ठाकुर

३९. पंचकन्या (१९७७): रविन्द्रनाथ ठाकुर

४०. शान्तिदूत (१९६९): लक्छ्मण झा

४१. उत्सर्ग (१९७५): लक्छ्मण झा

४२. धृतराष्ट्र विलाप (१९७६): रमापति चौधरी

४३. सप्त वर्णमाला (१९८१): रमापति चौधरी

४४. परदेशी (१९७८): काली कुमार दास

४५. सकुन्तला (१९७५): शारदा दत्त झा

४६. सकुन्तला (१९८१): दामोदर लाल दास (१९०४-१९८१)

४७. नोर (१९७९): यगेश्वर झा

४८. कर्ण (१९७९): अच्युतानन्द दत्त

४९. कंस-वद्ध (१९७९): अच्युतानन्द दत्त

५०. जानकी रामायण (१९८०): लाल दास

५१. उत्तरा (१९८०): सुरेन्द्र झा 'सुमन' (१९१०-२००२)

५२. कृष्णावतरण (१९९५): सुरेन्दर झा 'सुमन'

५३. सिताचरितामृत (१९८१): हिरालाल झा 'हेम'

५४. एकलव्य (१९८०): अमरेन्द्र मिश्र

५५. सत्यकेतु (१९७७): अमरेन्द्र मिश्र

हमर नोट: उपरोक्त पुस्तकमें समस्त संकलन के ऊपर संछिप्त परिचयक संग मिथिलाक साहित्यिक इतिहास देल गेल छैक। कुल ३५७ पृष्ठमें वर्णन! मिथिलाक जयकारा लेल एतेक कीर्तिरूपी संपत्ति पहिले जमा कय देल गेल छैक। ई २००२ ई. धरिक मोट संकलनक परिचय बुझा रहल अछि। एक सुन्दर शोध संग प्रस्तुत एहि पुस्तक द्वारा मैथिलकेँ अपन सम्पन्न इतिहास सँ परिचय भेटैत छन्हि आ आगू सेहो एहि सुन्दर सम्पन्नताकेँ बरकरार रखबाक जिम्मेवारी सेहो! :)

Source: A History of Modern Maithili Literature (Post Independence Period) - by Devkant Jha पेज: ६-५५

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

राज्य निर्माणमे सेहो पछुआ गेल - अप्पन मिथिला



Mithila Mahan Slideshow: PRAKASH’s trip to Darbhanga (near Janakpur) was created with TripAdvisor TripWow!



Krishnanand Choudhary _


॥राज्य निर्माणमे पछुआ गेल : अप्पन मिथिला॥

         भारतमे आब राज्य निर्माण दोसर चरणमे प्रवेश कए रहल अछि । पहिल चरणमे भाषा केँ आधार बनाए राज्यक निर्माण कएल गेल , जे पूर्णता केँ प्राप्ति नहि केलक , कारण जे मिथिला सन भाषा ओ संस्कृतिमे समृद्ध नहि बनि सकल अछि । मिथिला राज्य बनैयक सभ कसौटी पर खरा उतरैत अछि ।

तेलंगाना सन राज्य बनला सँ राज्य निर्माणक दोसर चरण कहल जाएत , कियाक तँ तेलंगाना आन्ध्रप्रदेश सँ अलग कए बनाएल जाएत आ दुनू कए भाषा तेलगू छी , अर्थात राज्य निर्माणमे भाषा आधार नहि भए क्षेत्रीय मुद्दा आधार बनि रहल अछि ।

जेना मिथिला विकासमे पिछरि गेल , तहिना राज्य निर्माणमे सेहो पछुआ गेल । पूर्वक लोक सभ एहि दिशामे सद्‌प्रयास केलनि , मुदा कतौ ने कतौ खोट रहल , जाहि कारणेँ भारतक मिथिला सन अतुल्य क्षेत्र केँ अपन पहचान बचेबा खातिर संघर्ष करए पड़ि रहल अछि । मिथिलाक युवा सभ आगू बढि रहल छथि.... युवामे जागृति भए रहल छथि.... अप्पन मिथिला लेल....अप्पन माटि ओ पानि लेल....अप्पन मिथिला राज्य निर्माण लेल ।

मैथिल युवक सभ सँ निवेदन :- जे जतए छी ओतैए अप्पन मिथिला राज्य निर्माण लेल आन्दोलन करैय जाउ ।

वन्दे...मिथिला
जय हिन्द


विषय: कवि एकान्त द्वारा चार-दिवसीय अनशन पर लोकक चुप्पी।

चारू कात मिथिला-मिथिला हल्ला मचल अछि लेकिन संगठित रूपमें कतहु किछु नहि! बड दु:खक बात जे दिल्लीमें एक युवा ४ दिनक अनशन करत मिथिला राज्य निर्माण वास्ते लेकिन एहनो घडी समर्थन देनिहार अनशनकारी लग तरह-तरहके सौदाबाजी कय रहल छथि। कियो ई कहैत जे अनशनकारी हमर संगठन - हमरहि छत्रछाया - हमरहि आदेश मानैथ तऽ कियो अन्य तरहक शर्त मुदा 'हम्मे-हम्मा गीत' गाबैत अनशनकारी के मानसिकता पर अत्याचार कय रहल छथि, ओतहि बिना कोनो पूर्व शर्त आ मिथिला राज्य लेल कैल जा रहल विरोधक कार्यक्रममें युवा द्वारा पहिले बेर एतेक पैघ जोशीला स्वरमें आगाज के स्वागत हेतु आगू आबयमें हिचकिचा रहल छथि। आखिर कियैक? 

एतेक रास मैथिली साहित्य के सेवार्थ दिन-राति एक केने सुरेबगर रचनाकार सभ छथि मुदा कवि एकान्त के आह्वान प्रति नजैर ईमानदार नहि छन्हि - कियैक?

मिथिला आवाज लग सेहो कवि एकान्तके आवाज नहि पहुँचल अछि, कियैक?

कतेको तरहक मिडियाके डिबिया जरौनिहार खाली 'हम्मा-हम्मा गीत' कखन तक गाबैत रहता?

किऐक नहि कवि एकान्त के अनशन के मिथिला राज्य लेल एक टर्निंग प्वाइन्ट मानैत समस्त मिथिला-मैथिलीसेवीकेँ गूटनिरपेक्छ मंच सँ जुडबाक चाही आ बिना कोनो शर्त आगू आबि आन्दोलन के समर्थन करबाक चाही?

मिथिला राज्य के जे घरहिमें विरोधी छथि तिनको सोचब जरुरी जे आखिर युवा पीढीमें एहेन तरहक सोच आबि गेल, परिस्थिति कतहु ने कतहु ई दरशा रहल अछि जे अवस्था ठीक नहि अछि.... तखन बहानामें मिथिला राज्य लेल संग नहि देब आ कूतर्की बहस सँ निज‍--- होशियारी मात्रके प्रदर्शन करैत बेकार समय के बितायब, आखिर कतेक दिन?

ई आवाज थीक - एहि मंच सँ एक सर्वमान्य नेतृत्व चुनाव के! अपन-अपन विचार जरुर राखी!