(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

लिखैत रही - किशन कारीग़र



मोन होइए जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
मुदा कहियो कऽ किछू-किछू लिखैत रही
कनेक हमरो गप पर धियान देबैए
मोन होइए जे पाठक सभ सॅं भेंट करैत रही।

ग़ालिब सेहो एक मिसिया कऽ पिबैत छलाह
मुदा किछू-किछू तऽ लिखैत छलाह
अपना लेल नहि पाठक लोकनिक लेल
मुदा बड्ड निक लिखैत छलाह।

पद्य लिखनाई तऽ आब हम सीख रहल छी
हमरा तऽ नहि लिखबाक ढंग अछि
मुदा किछू निक पद्य लिखि नेनापन सॅं
एतबाक तऽ हमर सख अछि।

िक िलखू िकछू ने फुरा रहल अिछ
बढलैऍ मँहगाई तऽ अधपेटे भूखले रहैत छी
िकऍक ने रही जाऍ भूखल पेट मुदा
िकछू िलखबाक लेल मोन सुगबुगा रहल अछी।

पोथि लिखलनि महाकवि विद्यापति
लिखलनि पोथि बाबा नागार्जुन
किछू नव रचना जे नहि लिखब
तऽ कोना भेटत मैथिली साहित्यक सद्गुण।

लेखक समाजक सजग प्रहरी होइत छथि
अपना लेल तऽ नहि अनका लेल लिखैत छथि
कतेक लोक हुनका आर्थिक अवस्था पर हॅसैत अछि
मुदा तइयो ओ चुपेचाप लिखैत रहैत छथि।

कहू एहेन उराउल हॅसी पर कोनो लेखक
एक मिसिया कऽ पिबत कि नहि
अपन दुःखित भेल मोन के
कखनो के अपनेमने हॅंसाउत कि नहि

कतेक लोक गरियअबैत अछि
एक मिसिया पीब कऽ लिखब ई किएक सीखू
मुदा आई किशन’ मोनक गप कहि रहल अछि
पिबू आ कि नहि पीबू मुदा किछूएक तऽ लिखब सीखू।

आई हमरो मोन भए रहल अछि
जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
अपना लेल नहि तऽ पाठक लोकनिक लेल
मुदा किछू नव रचना लिखैत रही।
(समप्प्त )
लेखक:- छैथि - संचार मिडिया से
किशन कारीग़र

सोमवार, 26 जुलाई 2010

कटत कोना दिन

मुकेश मिश्रा

9990379449
कटत कोना दिन

सोमवार, 28 जून 2010

परदेश में



लेखक - मुकेश मिश्रा

परदेश में

बर - सनम बेमन स छि हम परदेश में ,
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में

कनिया- एतय आहाक बौआ पलैत अछी हमर पेट में
आगि लागल बज्र खसल धान बला खेत में

बर - की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
सनम बेमन स छि हम परदेश में ,

कनिया - बीघा के बीघा में आयल दहार यौ
खेत रहितो भेल छै जीवन पहार यौ

बर - अबै छि फागुन में चेन लेने भेट में
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में

कनिया- गहुम के हालत खराबे खराब छै
गामक किसान त करैत बाप बाप छै
खेती ग्रहस्थी में साधनक अभाब छै
बिजली के नाम पर बस पोल ठार छै
बोडिंग गराउ आऊ पाइन दियौ खेत में
नाही त चली जायत इ रौदिक चपेट में

बर - की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
कनिया -एतय आहाक बौआ पलैत अछी हमर पेट में

बर - पत्र पढैत बात मोन केर छुबी गेल
करू की आखी स नोर बस चुबी गेल
सोचैत छि सुख दुःख गमायब हम साथ में
होली में मिली जायब गाम केर रंग में
जोरीक रहब हम आब साथ साथ में
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
सनम बेमन स छि हम परदेश में ,


गीत -- मुकेश मिश्रा
9990379449
e mail - mukesh.mishra@rediffmail.com

बुधवार, 23 जून 2010

झरोखा



लेखक - मुकेश मिश्रा




झरोखा

पलक झुका कर सलाम करते है,
अपने दिल की दुवा आपके नाम करते है
कबूल हो तो मुस्कुरा देना,हम मुकेश मिश्रा,
ये झरोखा आप के नाम करते है


दुनियाँ में रह के सपनों में खो जाव
किसी को अपना बना लो या किसी का हो जाव
अगर कुछ भी नही होता तो तकिया लो अऔर
सो जाव ,

बुझी हुयी समा फिर से जल सकती है
तूफान में गिरी कस्ती किनारे लग सकती है
मायूस ना होना कभी जिन्दगी में ..
ये किस्मत है कभी भी बदल सकती है

दिल ने कहा दोस्त को sms करो ,
फिर ख्याल आया की दिल तो पागल है ,
फिर सोचा दिल दिल अगर पागल है तो क्या हुवा ..
मेरा दोस्त कैन सा नौरमल है

वादियों से सूरज निकल आया है,
फ़िजावो ने नया रंग चाह है
खामोश हो अब तो मुस्कराव,आपकी
मुश्कान देखने हमारा sms आया है

गम वी जो आशु ला दे,ख़ुशी वो जो गम भुला दे
हमे तो चाहिए आपकी इतनी सी दोस्ती, जो
हमारे याद करने पर एक फोन कर दे

लिखे जो खत मैंने उसकी याद में,
पूरा पढ़ लिया पापा ने रात में
सुबह जब हुवा तो जुते इतने परे की
तेरे नाम वाला बाल गजनी में बदल गया

जब भी हम मैसेज करते है,लोग कहता है
इनको तो आदत है पैसा उराने की,मगर वो
नदान किया जाने, ये भी एक आदत है
रिश्ते निभाने की

बरे अरमानो से बनबाया है,
इसे रौशनी से सजाया है
जरा खिरकी खोल के देख लेना,आपको
good night कहने चाँद को भेजबाया है

गीतकार - मुकेश मिश्रा
9990379449

सोमवार, 21 जून 2010

बेबफा प्यार


बेबफा प्यार
लेखक - मुकेश मिश्रा

मैंने प्यार किया तुझसे , दिल की गहरायी से
वो हरजाई ऐसी निकली, मार डाला तनहायी से
माय भूल से कर बैठा प्यार
समझ नही आया उस नागिन का प्यार
जिन्दगी रह गयी मझदार में
दिल के टुकरे हुये हजार
जब आखे खुला उनकी इंतजार में देखा ...
वह मग्न है दुसरो के प्यार में
भूल गया था मै की वह दौलतमंद की बेटी है
मै मरता रहा और वो महलो में लेटी रही
इसीलिए कहता हु यारो ........
मत करना प्यार दौलतमंद की बेटी से
मार डालेगी अँखीयो की गोली से
गीतकार - मुकेश मिश्रा
9990379449

रविवार, 20 जून 2010

एक नकपिची लरकी ....


लेखक - मुकेश मिश्रा एक नकपिची लरकी .... 9990379449


एक नकपिची लरकी थी ,एक लरके पे मरती थी
चोरी -चोरी छत पे आ कर,रोज मिला करती थी
मिलते -मिलते फस गई ,उसको वो लरका पट गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

किसी न किसी बहाने रोज हमसे लरती थी
छोटी सी नन्ही सी नादान सा वो दिखती थी
लरते- लरते, रोते -रोते बाहोंमे शमा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

मुझे देखने रोज सबेरे ही उठ जाती थी
देख के नको पे अंगुली की इसारा करती थी
हेलो टाटा बाय-बाय कह के सासों में शमा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

मेरे घर में एक दिन टीबी देखने आयी थी
मेरे बहो में बैठ कर मेरे गालो को चूमी थी
सादी करुगी तुझी से हसते-हसते कह गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

एक दिन छत पे खेलने वो आयी थी
मुझे देख वहा कोई जनत ही पायी थी
खेलना छोर पीछे से मेरे कन्धो पे लटक गई
एक नकपिची लरकी थी...............

मेरे मुबायल पे किसी अजनबी लरकी की फोन आयी थी
पीछे से आकर अपने कान को मेरे फोन में सटायी थी
गुसे से फोन छीन कर निचे फेक गई
एक नकपिची लरकी थी...............

एक सहेली शालू थी पर वो बहुत चालू थी
दोनों ने मिलकर एक दिन मुझे बनाया भालू थी
आय लब यु कह दो शालू ने बता गई
एक नकपिची लरकी थी...............

दुसरे ही दिन माय ने आय लब यु कह दिया
शर्म के मरे उनका बुरा हाल हो गया
हस्ते मुस्कुराते आख मर के वो वहा से चली गई
एक नकपिची लरकी थी...............

अचानक स्कूल में आ गई गर्मी की छुटी
वो चली गई दीदी के पास बांध के दो जुटी
जाते जाते फोन करुगी मुझे वो बता गई
एक नकपिची लरकी थी...............
सुबह-सुबह मिसकॉल आया माय समझा मेहमान आया
माय ने इधर से फोन लगाया रूह में मेरे जान आया
रखती हु दीदी आयी ,फोन को वो काट गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

दुसरे दिन फोन पे कहि एक लरका मुझे देखता है
माय ने कहा देखनेदो;कुछ करता तो नही
मार ही दंगी फोन पे गुनगुना गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

किसी बहाने माय ने उसे वहा से बुला लिया
देख कर माय उसे दिल में लगी आग बुझा लिया
बच के रहना हम से गुसे में बता गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

रूठ गयी वो हमसे कैसे उसे मनावू
भाभी से पुछा कैसे उसे पावू
भाभी ने हम दोनों को आपस में मिला गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

स्टेसन तक छोरने हम भी साथ गये थे
उसकी खामोसी देख सरमा हम गये थे
गारी में बैठ के हमे अकेला छोर गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
गाव जाने से पहले अपनी सहेली संगीता को कुछ बता गयी
कह देना तुम उन्हें माय सदी उसी से करूंगी
दिल की अरमा जुवा पे ला गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
गाव जा कर उसकी ममी ने एक चाल चल दी
फोन कर के बिटु माँ को हमे बदनाम कर दी
दिल में लगा चोट नींद भी भाग गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
सबेरे ही फोन पे उसने हम से पुछा किया हुवा
मई ने कहा हम से अच्छा लरका तुम्हे मिलेगा
चार कैमरा तुम्हारे सदी में ले जवुगा
धूम -धाम से तुम्हारी सदी की लडू भी खाऊगा
उसने बोली और किया देखोगे ..
माय ने कहा ..तुम्हारी सादी देखूगा उसने बोली..मेरी मरी हुयी मुह देखोगे
यू कह के फोन को वो काट गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
मुझे लगा मुझसे बहुत प्यार करती है वो
मेरे बगैर जिन्दा ना रह सकती है वो
माय भी बेसुमार प्यार उसे करने लगा
खुवाबो में रोज उसे देखने लगा
दिल में हलचल मचा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

चोरी चोरी मै उसका तस्बीर खीचने लगा
पूरी तस्बीर खीच के तोफा में उसे दे आया
धन्यबाद कह के हस के वो चिली गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
यु ही समाय बीतने लगा हम दोनों प्यार में डूबते गये
एक दुसरे को दखने में ही समाय बीतते गये
हवा की डोर ने हम दोनों को बांध गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

किसी लायला मजनू से कम नही मेरा ये मुहब्त
उसे देखने में ही समय बीत गया मिली नही फुर्सत
आखो में झिलमिल सी रोशनी वो दे गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

उसके प्यार में माय इस कदर डूब गया
उसे छोर कहि जाने का मन नही किया
प्यार की एक जोत दिल में जगा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

उसके माँ पापा दादा दादी सब को माय भा गया
सादी होगा मेरा इससे माय सरमा गया
दिल में इंतजार का ललक छोर गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
गाव से मेरे दादा जी मेरे पास आये थे
अपने प्यार की दस्ता उन्हें सुनाये थे
करलेना उसी से सादी ये बात कह गये
एक नकपिची लरकी थी...............

सब को अच्छा लगा पर उसे अच्छा ना लगा
मेरे सिबा एक और लरका उसे चाहने लगा
मुझे पसंद नही ये लरका मेरे बारे में बता गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

पता लगाया आखिर ये लरका है कौन
पता चला उसी के साथ पढ़ती है टीयुसन
मुझे छोर उस लरका में समा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

घर के गेट लगा कर सामने वो बैठती थी
पढाय के बहाने उससे प्यार की बाते करती थी
मेरा हाथ छोर उसका हाथ पकर गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

मेरा प्यार भुलाकर उससे वो प्यार करने लगी
बचपन की इस डोर को पल में वो तोर गयी
कैसे जीयु उसके बिन कुछ ना बता गयी
एक नकपिची लरकी थी...............
वो तो मुझे भूल गयी पर माय कैसे भूल पौउगा
जब तक जिन्दा रहूँगा उसी को माय चाहुगा
मेरे दिए तोफा भी फेक गयी
एक नकपिची लरकी थी...............


खत्म कर दी सारी जज्बात की कहानी
कैसे कहू माय यारो थी वो मेरी सपना रानी
तीर मार के वो मुझे कब्र पे सुला गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

प्यार तो इस्वर का दिया बरदान होता है
जो ना इसे समझा वो नदान होता है
मेरे यादो को छोर उसकी यादो में समा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

मेरे दिल को छोर उस के दिल में घर बसा गयी
दुवा करुगा उसे वो मिल जय जिसमे वो रमा गयी
एक नकपिची लरकी थी...............

गुल को गुलाब बना देता गुलाब को कमल बना देता
आपकी ऐक मुस्कान पे कितना गजल लिख देता
सपना जी आप मेरा साथ छोरती नही तो आपके
नाम से बिहार में भी ऐक ताजमहल बना देता,
(कुछ बाते)
१.प्यार इस्वर का बरदान होता है
२.तरप प्यार का पहचान होता है
३.पार्थना ,तपसिया,पूजा ,खोना को प्यार कहते है
४.दो दिलो का मीलन प्यार का रूप है
५.प्यार एक से होता है
६.कृष्ण ने राधा से सादी नही की ,पर दुनिया उनके प्यार को पूजता है
७.प्यार में रोवो मत हिमत रखो
८.अपने प्यार पे भरोसा रखो
mukesh.mishra@rediffmail.com
९९९०३७९४४९,