(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

अन्य खोज खबैर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अन्य खोज खबैर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

मातृभाषा दिवश



21 फरवरी के मनाबु अप्पन 'मातृ भाषा दिवस'
मिथिला धरोहर : 21 फरवरी यानी कि मातृ भाषा दिवस .. अंहा मे सँ बहुते कम लोग के पता होयत कि आय कोन दिन अछि। आधहा सँ ज्यादा लोग के तऽ फरवरी खाली वैलेंनटाइन डे कs लेल याद रहैत अछि।
आय के दिन अपन माँ भाषा के सेलिब्रेट करैय के अछि। आय के दिन अंहा अपन मातृ भाषा चाहे मैथिलि, अंगिका, भोजपुरी, मगही, वजिजका, जे भी होय ओकरा सेलिब्रेट कऽ सकय छि। कियाकि विविध भाषा के अय मोति के पिरोये कऽ भारत देशक एकता के माला बनय अछि, जय मे प्रेमक धागा होयत अछि।
हिंदी दिवस : हर हिंदुस्तानी के आवाज हिंदी..
मुदा बदलैत परिवेश मे जतय आय लोग के लेल वक्त नय अछि ओतय आय लोग सव भाषा के खिचड़ी कऽ देलक अछि। अंहा अपन आस-पासक लोगक बात पर गौर करव तऽ अंहा पैव जे आय शायदे ही कुनो एहन पुरूष औऱ महिला हैत जे कि शुद्ध भाषा के प्रयोग करैत होयत..जेना कि हिंदी बाजैत समय अंग्रेजी के प्रयोग, मैथिलि बाजैत हिंदी आ इंग्लिश शब्दक प्रयोग।
आय तऽ लोग महिलाओं सँ बात करैत कहैत अछि. आप खा रहे हो..या फेर बड़े सँ बात करैत समयो तू-तड़ाके क प्रयोग करैत अछि जेना कि तू खा ले, आप निकलो वगैरह..वगैरह।
दोसर अहम बात जे आय-काइल हर जगह अछि ओ अछि अंग्रेजी के बोलबाला। भौतिकतावादी युग मे स्टेटस मेंटेन करय के चक्कर मे हम विदेशी भाषा के तऽ तेजी सँ अपना रहल छि कियाकि इ बेहद जरूरी अछि, मुदा अपन पहचान ऑउर अपन मातृभाषा के बिसरैत जा रहल छि।
आय अगर मिथिलांचल दंपति दिल्ली, पुणे ऑउर बैंगलोर मे रहैत अछि तऽ हुनका बच्चा के मैथिलि नय आवैत अछि कियाकि ओ अपन बच्चा के कखनो मैथिलि बाजनय सिखेवे नय केलक, अगर बच्चा कखनो काल नकल करैतो अछि तऽ डांट-फटकार परैत अछि कियाकि हुनका लागैत यऽ जे कि हमर बच्चा मातृभाषा सीखे कs की करत ओकरा अंग्रेजी एवा चाहि कियाकि इहे सँ ओ स्मार्ट कहलैत जहनकि अपन क्षेत्रीय भाषा बाइज के पिछडल लागत।
इ सवटा लोगक ग्रसित मानसिकता कऽ सबूत अछि जेकर कारणे आय हमार क्षेत्रीय भाषा के ओ बढ़ावा नय मिलैत अछ जे कि अंग्रेजी कs मिल रहल अछ। हम देशक आन-बान ऑउर शानक बरकरार राखय के लेल कसम तऽ खाइत छि मुदा की मातृभाषा के अनदेखा कऽ के हम वाकई मऽ अपन सप्पत निभा रहल छि।
जय  मैथिलि  जय  मिथिला 

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

शामा- चकेवा मोहत्सव शिव शक्ति सोसाएटी के द्वारा नॉएडा -

शामा- चकेवा  मोहत्सव  शिव शक्ति सोसाएटी के  द्वारा   नॉएडा -
   
      लगातार सात वर्ष से कार्य - कर्म   के  पालन  करैयत शिव  शक्ति   सोसाईटी  फेर एक  बेर  अपन ज़ीमेबरी  के  निर्वाह करैयत   नॉएडा सेक्टर 71 मे  समा - चकेवा पर्व  मोह्होत्सव के  आयोजन विश्मभर ठाकुर  के  अध्यक्छता मे सम्पनय भेल  , जाहि में  मुखय अतिथि  संसद श्री महेश शर्मा   विधायक  बिमला नाथन के कर कमाल द्वारा दीप प्रज़ोलित करैत सभा के मनोरंजनक दिस  इसारा करैत   किसलय कृष्ण जी के माइक सुपूर्ति  कइल  गेलन  –

      मंच के  संचालन क्रिसलय कृष्ण जी करैयत सुनील झा पवन , हरीनाथ झा , रिचा ठाकुर , निशा झा , संगीता तिवारी ,कोसल किशोर  अनिल अकेला , जी के सानिध्य में  रंगा रंग कार्य करम - चालू  भेल - निशा  झा  के  समां -चकेव गीत सुनी  दर्शाक  खास क मई - बहिन  बहुत  रास  आनंद  उठेली ,

ओहिना  रिचा  ठाकुर  के  स्वमधुर सं निकलल समां चकेवा के  गीत  होय  या  भगवती  बंदना , श्रोता सुनी मन्त्र - मुग्ध  भगेला , तहिना सुनील जी के अहा - अहा- की  कहु कोना के  तुटलो मोती के हार , आ हैए तुमोल वाली  हे ये सुपौल वाली , एतेक  दर्शक  उत्साहित भेलाह  वर्णन  नै  क सकैत  छी ।  कहावत  कोनो खराप  नै  छैक  जनम  यदि  ली त  मिथिलेटा  में  ली  से हरिनाथ झा सावित केला १०३डिग्री बोखार रहैत  मंच पर ऐला , जेना लागल  जे  गामक हवा  संगे  लेक  ऑयल  छैथ - हेगै  बुधनी माय --- चल गए बच्ची गाम पर ---  जातेय   देखे  छी  ततय  बिहार -- सुनिक  दर्शक लोकनि  लोट  पोट भगेला ,


   संगीत मनोरंजन  समापन के  बाद  - मिथिला मैथिलिक मौलिक अधिकार भारतीय संघ  द्वारा , 
तकर  कलस यात्रा  जे १३ सेप्टेम्बर  २०१४ के साईं करुणा धाम सं सुरुवात  कइल गेल छल , ओहि  कलस  यत्रा  के  सुनील झा पवन जनजागरण  हेतु भर  उठेने छाला ओ भार मदन कुमार ठाकुर (विद्यापति गौरव मंच)  विद्यापति कालोनी जलपुरा ग्रेटर नॉएडा निवसी के सोपल गेलानिं  

सोमवार, 22 सितंबर 2014

दिल्लीमे मिथिला-मैथिलीक उन्नयन


दिल्लीमे मिथिला-मैथिलीक उन्नयन
उन्नयन यानि एहेन काज जाहि सँ उन्नति हो -     
       
   निस्सन्देह पैछला सप्ताहान्त १३ सितम्बर दिल्लीक साईंधाम मे आयोजित 'मैथिली महायात्रा शुभारंभोत्सव - २०१४' सँ लगातार दिल्ली मे 'मैथिली-मिथिला' केर उन्नति हेतु एक सऽ बढिकय एक कार्यक्रमक आयोजन कैल गेल अछि। बस एक सप्ताहक भीतर दुइ अति महत्त्वपूर्ण आयोजन सम्पन्न भेल अछि।
    
१५ सितम्बर लोधी रोड सभागार मे मैथिली फिल्म 'हाफ मर्डर' केर स्क्रीनींग शो केर आयोजन कैल गेल। तहिना मिथिला मिरर - मैथिली केर राष्ट्रीय न्युज पोर्टल द्वारा काल्हि वार्षिकोत्सव केर रूप मे 'विशिष्ट सम्मान समारोह - २०१४' केर सफलतापूर्वक आयोजन कैल गेल जाहि मे दर्जनो मैथिली-मिथिला विशिष्ट योगदानकर्ताकेँ सम्मानित कैल गेलनि।
           मिथिला प्राचिनकाल सँ विद्यागाराक रूप मे प्रसिद्ध रहल अछि। आइ जखन शिक्षा प्राप्ति लेल मिथिला केन्द्रक विकेन्द्रीकरण होइत उनटे मिथिला पिछडल आ उपेक्षित क्षेत्र मे गानल जाइत अछि तैयो एहि ठामक शिक्षित व्यक्तित्व दुनिया भरि मे अपन प्रतिभा सँ शिक्षाक प्रसार मे पूर्ववत् लागल छथि। ई कहब अतिश्योक्ति नहि होयत जे दुनियाक सबसँ प्रसिद्ध होवार्ड विश्वविद्यालय या कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय सँ लैत हर देश केर प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान मे मैथिलक उपस्थिति ओहिना अछि जेना भारतक विभिन्न लब्धप्रतिष्ठित विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थानमे मैथिल शिक्षक केर उपस्थिति विद्यमान अछि। मैथिल कतहु रहैथ, अपन विद्या आ उच्च संस्कार सँ ओहि समाज केँ नहि मात्र पारंपरिक शिक्षा प्रदान करैत छथि, वरन् भाषा-संस्कृति आ संस्काररूपी व्यवहारिक शिक्षा सेहो ओ अपन लोकपावैन व भिन्न-भिन्न आयोजनक मार्फत मानव समुदाय केँ दैत रहैत छथि। विगत किछु सौ वर्ष मे जखन मिथिलादेश टूटैत-टूटैत आब मात्र 'मिथिलाँचल' नामक क्षयशील भूत रूप मे जीबित अछि ताहि विपन्न समय मे फेर टुकधुम-टुकधुम लोकजागृति अपन 'सनातन शक्ति' केँ स्मृति मे आनि पुरखा नैयायिक गौतम, मीमांसक जैमिनी, सांख्य-उद्भेदक कपिल ओ जीवन‍-आचारसंहिता निर्माता याज्ञवल्क्य सहित नव्य-नैयायिक वाचस्पति एवं बच्चा झा केर त्यागपूर्ण कीर्ति मिथिलाकेँ फेर सँ जियेबाक लेल वचनबद्ध बनि रहल छथि। सलहेश, लोरिक आ दीनाभद्रीक जनसेना फेर सँ फाँर्ह बान्हि रहल छथि। विद्यापति, मंडन, अयाची, चन्दा झा आ सब विभूति बेरा-बेरी अपन-अपन शक्ति ओ सामर्थ्यक संग पुन: मिथिला केँ बचेबाक लेल पृथ्वीलोक मे पदार्पण कय चुकल छथि।
        राजकीय शक्ति नहि जानि कोन विद्रोही षड्यन्त्रक कारणे मिथिला-मैथिली केँ एना उपेक्षित केने छथि जेना एकरा जीबित रहला सँ अन्य सबहक नाश भऽ जेतैक या रहस्य अन्जान अछि, शोधक विषय छैक जे आखिर केन्द्र या राज्य केर कोन एहेन मजबूरी छैक जे भारतक अभिन्न हिस्सा मिथिला केँ संविधान द्वारा कोनो सम्मान सही समय पर नहि दैत छैक। मैथिली भाषा सँ पुरान दोसर कोनो साहित्यसंपन्न भाषा नहि, मुदा राजनीति मनसाय केहेन जे स्वतंत्रता प्राप्तिक ५६ वर्षक बाद एकरा संविधानक आठम अनुसूची मे स्थान देल गेलैक।    
मिथिला बज्जि-संघ केर रूप मे पहिल गणतंत्रक अनुपम उदाहरण विश्व केँ देलक आइ ओ भारतीय संघ केर हिस्सा नहि बनि सकल अछि। मैथिली आठम अनुसूची मे स्थान प्राप्त केलक, ओम्हर बिहार राज्य मे मैथिलीक पढाई खत्म करबाक लेल अनिवार्य विषय सँ ऐच्छिक बनायल गेल, फेर शिक्षक केर नियुक्ति नहि करैत मैथिली सँ पूर्णरूपेण विच्छेद कैल गेल आ मैथिली भाषा मे पठन-पाठनकेँ प्रोत्साहन देबाक ठाम पर उनटा हतोत्साहित करबाक विद्वेषपूर्ण वातावरण बनायल गेल। क्षेत्रक आर्थिक उपेक्षाक चर्चा कि करू जतय सँ लोक बिना प्रवास पर गेने अपन पेटो नहि पोसि सकैत अछि। मिथिलाक उर्वरापन बाढि आ सुखार सँ जतेक बर्बाद नहि भेल ताहि सँ बड बेसी बर्बादी एतय राजनीतिक माहौल मे आपसी जातिवादी मनमुटाव सँ लोक खेत मे काज तक केनाय छोडि देलक ताहि सँ बर्बादी बेसी भेल। अछैत उर्वरापन जँ जमीन मे बाँझपन केर प्रवेश देल जाय तऽ लक्ष्मी किऐक नहि रुसती?   
         प्रवास अत्यधिक दिल्ली मे केन्द्रित बुझाइत अछि। मैथिलक बौद्धिक क्षमता आइये नहि, मुगलकाल मे सेहो ओतबे प्रखर छल तैँ ओहि समयक राजधानीक्षेत्र ब्रज-मथुरा-पुरानी दिल्ली मे सेहो रहल छलाह। बाद मे ब्रिटिशकाल मे कलकत्ता आ आब स्वतंत्र गणतांत्रिक भारत मे राजधानी दिल्ली मे हिनका लोकनिक वर्चस्व केँ नकारल नहि जा सकैत अछि। विधानसभा, लोकसभा, विधान-परिषद्, राज्यसभा, राज्यभवन - सबठाम मैथिल केर पहुँच बनि गेल अछि। तैँ कहब जे एतेक महत्त्वपूर्ण जगह पर पहुँचल लोक मैथिली वा मिथिलाक कल्याण निमित्त तत्पर छथि तऽ सरासर गलत होयत। ओ सब एहि प्रति पूर्ण बेईमान छथि। लेकिन वर्तमान प्रक्रिया यानि 'आम मैथिल जागरण' सँ आब कुम्भकरणी निन्न टूटि रहल छन्हि। निस्सन्देह आब इहो सब दिल्ली मे सेमिनार, गोष्ठी आ विद्वत् सभा कय रहल छथि। बहुत जल्दी ई सब 'जनसभा' मे परिणति पाओत से विश्वास राखू। साहित्यिक संस्कार जखनहि समाज मे अपन ओजरूपी बीज केँ छीटैत छैक, तऽ अंकुरा सीधे क्रान्तिरूपी गाछ केर जन्म दैत छैक। प्रजातंत्र मे प्रजाक महत्त्व सर्वोपरि रहलैक अछि। एहि मादे मैथिल अभियानी लोकनि धन्यवादक पात्र छथि जे भाषा-संस्कृति, सिनेमा, पत्रकारिता सहित समाजक उन्नयन संग मैथिली-मिथिलाक उन्नयन लेल डेग निरन्तर बढा रहल छथि। धन्यवाद दिल्ली!
        
   काल्हिये सम्पन्न मिथिला मिरर केर वार्षिकोत्सव मे एक सऽ बढिकय एक व्यक्तित्व केर पहिचान कैल गेल, हुनकर विशिष्ट योगदान हेतु विशिष्ट सम्मान विभिन्न विशिष्ट नेतृत्वकर्ताक हाथें सौंपल गेल, विवरण निम्न अछि।
१. श्री महेंद्र मलंगिया, मैथिलीक विराट नाट्य लेखन कें मैथिली नाट्य लेख क्षेत्र में
२. श्री विजय चंद्र झा दिल्ली मे मिथिला-मैथिलीक लेल समाज सेवा मे
३. श्री ए. एन. झा चिकित्साक क्षेत्र में वर्तमान मे देशक सब सँ पैघ न्युरोसर्जन आ मेदांता मेडिसिटी अस्पतालक विभागाध्यक्ष
४. डा. शेफालिका वर्मा मैथिली साहित्य लेखन
५. श्री संजय कुमार झा भारतीय प्रशासनिक सेवाक क्षेत्र में वर्तमान में चीफ विजिलेंश कमिश्नर वित्त मंत्रालय भारत सरकार
६. श्री आर. डी. वर्मा व्यवसायक क्षेत्र मे चेरयमैन वीएचआर ग्रुप
७. श्री प्रकाश झा मैथिली रंगमंचक निर्देशन मे
८. श्री कौशल कुमार मैथिली फोन्ट्स (मिथिलाक्षर युनिकोड) निर्माणक क्षेत्र मे
९. श्री संजय सिंह फिल्म आ थियेटर, फिल्म गैंग आॅफ वासेपुर में फज़लू भैया आओर फिल्म राॅकस्टार मे रणबीर कपुरक संग आ देशक श्रेष्ठतम रंगमंच सँ जुडल, राष्ट्रीय नाट्य अकादमी सँ पासआउट,
१०. श्री बिमल कांत झा, सहरसा मे मिथिला-मैथिलीक लेल सतत सेवा प्रदान करनिहार एक प्रतिबद्ध व्यक्तित्व वर्तमान दिल्ली सरकार मे रजिस्ट्रारक पद पर कार्यरत,
११. श्री विष्णु पाठक मूल रूप सँ बेगुसराय निवासी आ समाजसेवाक क्षेत्र मे आगु रहनिहार,
१२. श्रीमती अनिता झा मूल सं बलाइन मधुबनीक रहनिहाइर आ खानदानी मिथिला पेंटिंग सँ जुड़ल आ करीब 200 सं बेसी लोक केँ प्रशिक्षण देनिहाइर, हिनकर कीर्ति फ्रांसक तत्कालिन राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी द्वारा प्रशंसित-स्वीकृत, शीला दीक्षित, नीतीश कुमार, दिल्ली मेट्रो द्वारा सेहो प्रशंसित-स्वीकृत, मूल रूप सँ तांत्रिक-पद्धति पर आधारित पेंटिंग मे महारात हासिल,
१३. श्री मेराज सिद्दिकी मैथिली भाषाक लेल अग्रसर मुस्लिम युवा आ अंतरराष्ट्रीय दरिभंगा फिल्म महोत्सवक जनक
१४. श्री किसलय कृष्ण मैथिली फिल्म आ पत्रकारिता
१५. श्रीमती आशा झा टीवी एंकर वर्तमान में प्रतिष्ठित समाचार चैनल न्यूज़ नेशन में कार्यरत
१६. श्री विश्व मोहन झा मीडिया आओर विज्ञापनक क्षेत्र मे
जय मिथिला - जय जय मिथिला!!
हरि: हर:!!

शनिवार, 19 जुलाई 2014

मिथिला राज्य किऐक?

मिथिला राज्य किऐक?

   
 भारत स्वतंत्र भेलाक बाद संघीय गणतांत्रिक राष्ट्र बनल, केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा संविधान केर शासन सँ देश संचालित हेबाक निर्णय भेलैक। मिथिला भारतक अभिन्न हिस्सा आदिकालीन इतिहास, पूर्ण संस्कृति, संपन्न आ विकसित भाषा, लोकसंस्कृति, विशिष्ट पहिचान सहित केर क्षेत्र रहल अछि। इतिहास मे 'मिथिलादेश, बज्जिप्रदेश, तिरहुत, विदेहराज्य, आदि' नाम सँ सुविख्यात मिथिला केँ राज्य (प्रान्त) रूप मे मान्यता पेबाक माँग लगभग १९०५ ई. सँ कैल जाइत रहल अछि। अन्ततोगत्वा १९१२ ई. बिहार नाम सँ एक प्रान्त विभिन्न संस्कृति केँ एकत्रित रूप मे ब्रिटीश भारत मे बनल जाहि मे मिथिला क्षेत्र केँ सेहो गाँथि देल गेल।

एक तरफ बर्बर अंग्रेजी हुकुमत सँ परतंत्र भारत स्वाधीनताक संग्राम लडि रहल छल तऽ दोसर दिशि भारतीय दर्शन, मूल्य, मान्यता आ पहिचानक विशिष्टताकेँ नष्ट करबाक लेल भिन्न‍-भिन्न तरहक शासनादेश पारित होइत छल। एहि बीच मिथिलाक आदिकालीन इतिहास पर मध्यकालीन भारतक मगध सम्राज्य केर वर्चस्व केँ थोपैत बंग प्रान्त सँ इतर बिहार प्रान्त जाहि मे मिथिला, मगध, कोसल (उडीसा), झारखंड, भोजपुर केँ इकट्ठा राखल गेल। राजनैतिक रूप सँ चेतनशील जनमानस बिहार सँ अलग उडीसा आर झारखंड पाबि चुकल अछि, मुदा निरंतर संघर्षरत मिथिला विद्वान् समाज द्वारा उठायल गेल पृथक मिथिला राज्य केर माँग आइ धरि अधर मे लटकल अछि।

बिहार निर्माणक सौ वर्ष पूरा भऽ चुकल अछि। मिथिला लिपि विलुप्त, मैथिली भाषा मृत्युक कगार पर, मिथिला क्षेत्रीय पौराणिक धरोहर मटियामेट, लोकसंस्कृति पर पलायनक खतरनाक जहरीला दंश सँ लहुलुहान मिथिलावासी अपनहि सँ अपन पहिचान बदलबाक घृणित अवस्था मे प्रवेश पाबि चुकल अछि। जाहि मैथिली भाषाक ओज विश्व केर अन्य भाषा केँ सेहो समुचित मार्गदर्शन केलक, आइ वैह मैथिली विपन्न सृजनशीलता सँ रुग्ण अछि। बहुत देरी सँ भारतीय संविधान द्वारा एहि भाषा केँ सम्मान देल गेल, मुदा एहि नाममात्र सम्मान सँ क्रियात्मक योगदान हाल धरि नगण्य राखि केवल मिथिलाक पहिचान केँ नष्ट करबाक खतरनाक षड्यन्त्र बुझाइत अछि, हर तरहें मानू 'बिहारी उपनिवेशवाद' केँ जबरदस्ती मिथिला पर लादल गेल हो। समय-समय पर राजनीतिक विचार-विमर्शमे मिथिला राज्य केर निर्माण सन्दर्भ उपरोक्त चिन्ता केँ मनन कैल गेल अछि, मुदा हर बेर मिथिलाक विरुद्ध निर्णय सँ अवस्था जस केँ तस बनल अछि, बरु दिन-ब-दिन आरो बेसी चिन्तनीय बनल जा रहल अछि।

१९४७ ई. मे भारतक स्वतंत्रता प्राप्ति भेला पर स्वशासन मे प्रवेश राष्ट्र केर नीति-निर्माता राज्य गठन हेतु विचार-विमर्श शुरु केलनि। भाषा तथा भौगोलिक पहिचान केर आधार पर राज्य बनेबाक निर्णय बहुत पहिनहि सँ रहल, एहि आधार मे आरो नव नीति जेना राज्यक निर्माण जँ लोकहित मे होइ, राष्ट्रक अखण्डता पर असर नहि पडैक, जनभावना अनुरूप नव राज्य बनय; मोटामोटी एहि नीति संग नया राज्य केर निर्माणक निर्णय कैल गेल छल। भारतक विभिन्न भाग मे राज्य बनेबाक लेल आन्दोलन सबहक परिणाम जे सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन आयोग केर गठन कैल गेल। नव अधिनियम पास कैल गेल। किछु नव राज्य सेहो बनायल गेल। मुदा मिथिलाक माँग केँ 'जनभावना अनुरूप' नहि कहि १९५६ मे नकारल गेल। नकारबाक लेल एक महत्त्वपूर्ण कारण इहो छल जे 'मैथिली भाषा' केँ भारतीय भाषाक मान्यता प्राप्त सूची मे ताहि दिन स्थान नहि छल, माँग मात्र उच्च शिक्षित वर्ग द्वारा उठाओल गेल छल, नहि कि आम जनमानसक एहेन कोनो इच्छा अछि, बिहार मे रहितो एहि क्षेत्रक विशेष ध्यान राखल जा सकैत छैक, आदि आधार पर मिथिला राज्य अस्वीकारल गेल छल।

परिणाम सोझाँ अछि जे मिथिलावासी मैथिलीभाषी मैथिल आइ बिहारी बनि अपनहि भूमि सँ पलायन करय लेल मजबूर छथि आर मिथिलाक समस्त लोकसंस्कृति विलोपान्मुख बनि गेल अछि। लोकपलायनक विस्फोट एहि क्षेत्र लेल अभिशाप प्रमाणित भऽ चुकल अछि। एहि जहरक प्रभाव लगभग मिथिलाक मृत्यु तय कय देने अछि।

जँ मिथिला राज्य केर गठन नहि होयत तऽ एकरा बचेनाय असंभव अछि, कारण बिहार मे आर्थिक उपेक्षा सँ लैत आधारभूत संरचनाक विकास सेहो पूर्णरूपेण ठप्प पडि गेल अछि, बिहारक समस्त बजट विनियोजन मात्र पटना आ दक्षिणी बिहारक क्षेत्र मे केन्द्रित अछि। मिथिला क्षेत्र मे जेहो मिल, उद्योग, व्यवसाय आर आर्थिक आधार सब छल तेकरा क्रमश: क्षय कैल जा चुकल अछि, जे जातीय सौहार्द्रता सँ सामाजिक विकास केर स्वस्फूर्त संरचना सब छल ओ सब बिहारी जातिवादी राजनीति केर भुमरी मे चौपट भऽ चुकल अछि। आइ मिथिला लोकविहीन आ आपसी ईर्ष्या-द्वेष सँ भरल समाज संग अपन भविष्य लेल कुहैर-कुहैर कानि रहल अछि।

मिथिला राज्य एकमात्र समाधान, कारण स्वशासनक अधिकार भारतीय गणतंत्र केर संविधान द्वारा न्यायसंगत मानल गेल छैक। मिथिला क्षेत्रक भरपूर विकास लेल मिथिलाक अपन सरकार, अपन कोष, अपन योजना आ मिथिलाक अपनहि लोकनेता बनैत कल्याण कय सकैत अछि। आउ, सिलसिलेवार नजरि दी किछु महत्त्वपूर्ण विन्दु पर:

१. राज्य पुनर्गठन आयग जे भारत सरकार द्वारा गठित छलए करीब ६० साल पूर्व अपन रिपोर्ट मे कहलकैक जे मैथिली भाषा संविधानक अष्टम् अनुसूची मे दर्ज नहि अछि ताहि हेतु मिथिला राज्यक निर्माण संभव नहि अछि।

२. २२ दिसम्बर, २००३ केँ मैथिली संविधानक अष्टम् अनुसूची मे स्थान प्राप्त कएलक, तकर बाद मिथिला राज्य केर निर्माणक मार्ग संवैधानिक रूप मे प्रशस्त भऽ चुकल अछि।

३. मैथिली भाषा-भाषी जनसंख्या जकर संख्या भाषाई आधार पर बनल राज्य यथा कश्मीरी, मणिपुरी, पंजाबी, आसामी, मलयाली, कन्नड सँ बहुत बेसी अछि।

४. हमरा सबसँ बेसी भाषा बजनिहार केवल हिन्दी, उर्दू, तेलगु, मराठी, तमिल तथा बंगला भाषाभाषी अछि। एहि हिसाब सऽ संपूर्ण देश मे सातम बहुसंख्यक भाषाभाषी समूह हम सब छी। भारतीय संविधान केर अन्तर्गत प्रदत्त अधिकारक तहत त्वरित कार्रबाई कय हमरा सब अलग राज्य केर अधिकारी छी, परन्तु हमरा सबकेँ एहि अधिकार सँ वंचित राखल गेल अछि।

५. मिथिला राज्य केर पक्ष मे एकटा और महत्त्वपूर्ण विन्दु मैथिली भाषाकेँ विशिष्ट वर्णमाला अछि जे तिलकेश्वरस्थान महादेव मन्दिर २०३ AD मे वर्णित अछि। ई देश केर कुनु भाषा सँ पुरान भाषा अछि, परन्तु हिन्दी (देवनागरी) आ बंगला मिथिलाक्षर सँ बादक वर्णमाला अछि।

६. आधुनिक प्रजातांत्रिक देश केर पहिल शर्त कल्याणकारी राज्यक रूप छैक, तकर आधार प्राथमिक शिक्षा जे मातृभाषा मे हेबाक चाही। आधुनिक भारतक ओ राज्य जकर प्राथमिक शिक्षा अपन मातृभाषाक माध्यम मे छैक से सब रूपे विकसित राज्यक श्रेणीमे आबि गेल अछि। परन्तु मिथिलाक अन्दर जतय प्राथमिक शिक्षाक माध्यम हिन्दी अछि ओतय स्कूलक ड्राप-आउट देशे नहि अपितु संसार मे सबसँ बेसी अछि। ओहि ड्राप-आउट (बीच मे पढाई छोडनिहार) केँ रोकबा लेल राज्य सरकार आ केन्द्र सरकार आर्थिक प्रोत्साहन दऽ रहल छैक। लेकिन कोनो सरकार लग एकर स्थायी इलाज जे प्राथमिक शिक्षा अपन मातृभाषा मे हेबाक चाही तकर योजना नहि अछि। एकर उदाहरण बिहार सरकार द्वारा एक लाख शिक्षक केर नियुक्तिक सन्दर्भ विधान परिषद् मे शिक्षा मंत्री द्वारा निर्लज्जतापूर्वक देल स्वीकारोक्ति अछि जे मैथिली शिक्षक केर नियुक्तिक प्रावधान सरकार लग नहि अछि।

७. किछु भ्रान्ति जे भाषाई आधारपर मिथिला राज्यक गठन सँ जे हिन्दीभाषी छथि से कमजोर हेतैक, से सम्पूर्ण रूपेण भ्रामित करयवला सोच अछि। किऐक तऽ देशक आबादीक एकटा पैघ हिस्सा अगर निरक्षर आ अविकसित रहत तऽ वैश्विक शक्ति बनेक भारतक अवधारणा हास्यास्पद भऽ जायत। ठीक एकर उनटा मिथिला राज्यक गठन सँ ओकर प्राथमिक शिक्षा केर माध्यम मातृभाषा बनत, जाहि सँ मिथिलाक विकासक संग देशक विकास हेतैक।

८. आजादी केर लगभग ७० वर्ष भऽ गेल मुदा मिथिला मे एकोटा बडका औद्योगिक युनिट नहि लागल, उनटे ब्रिटिश कालक सम्पूर्ण उद्योग-धंधा बन्द कय देल गेल जकर दुष्प्रभाव ई भेल जे मिथिला सस्ता आ अकुशल श्रमिक आपूर्तिक क्षेत्र मे परिणति पाबि गेल। एहि तरहें एतुका जोन-बोनिहारकेँ देशक विभिन्न भागमे प्रवासक दौरान सब तरहक अपमान, गारि आ गंभीर शोषण केर सामना करय पडैत छैक।

९. कृषि क्षेत्र केँ एकटा व्यापक षड्यंत्रक तहत बर्बाद कएल गेल। मिथिलाक कृषिक सन्दर्भ मे राज्य सरकार आ केन्द्र सरकार केर योजना बनौनिहार एतुका प्राकृतिक-भौगोलिक अवस्था केँ नजरअन्दाज कएलन्हि। सडक तथा रेल मार्गक निर्माण एवं बाढि नियंत्रण केर नाम पर मिथिलाक मूल पूँजी जलस्रोत जे विभिन्न हिमाली नदी सँ प्राप्त होएत रहल तेकर सबहक प्राकृतिक बहाव केँ तोडि-मोडि स्वस्फूर्त जल-सिंचन, जल-भंडारण आदि केँ ध्वस्त कय देल गेल।

१०. जलस्रोतक समुचित दोहन नहि कय अदूरदर्शी योजना सँ जनहित केँ बड पैघ अप्रत्यक्ष नोकसानी देल गेल। आइ मिथिला मे भूमिगत जलस्तर तक घटि गेल अछि, मिथिला सँ मत्स्य-कृषि गायब भऽ चुकल अछि, पनबिजली, सिंचाई, सेहो सुव्यवस्थापित नहि अछि। एहि सँ जनजीवन दूरगामी प्रभाव सँ प्रभावित भेल अछि। यदाकदा प्रकृति विरुद्ध कार्य भेलाक दुष्परिणाम बाँध टूटनाय सँ जल-प्रलय केर रूप मे महाविनाशकारी बाढि तथा बाढिजनित विभिन्न प्रकोप सँ जनसमुदाय क्षति केँ भोगैत छथि।

११. १९म शताब्दी धरि मिथिला चाउरक सबसँ पैघ उत्पादक आ निर्यातक केन्द्र छल। मात्र मयानमार (वर्मा) मिथिला सँ बेसी धान उपजबैवला देश छल। तकरा एकटा सुनियोजित षड्यंत्रक तहत बर्बाद कएल गेल।

१२. आइ एतेक वृहद जनसंख्याक पालन-पोषणक आधार नहिये कृषि अछि आ नहिये उद्योग अछि। एतेक पैघ जनसंख्या पलायन लेल मजबूर अछि। अकुशल श्रमिक द्वारा भेजल गेल पैसा पर जीवन-यापन करैक लेल मजबूर अछि।

१३. एकर एकमात्र कारण राजनेता तथा अफसरशाहीक औपनिवेशिक सोच आ क्रियाकलाप अछि जकर एकटा उदाहरण मिथिलाक बैंकिंग प्रणाली अछि। क्रेडिट डिपोजिट रेशियो मे मिथिलांचलक बैंक मे जमा कएल पैसा मिथिलाक विकास मे नहि लागि कऽ मुम्बई आ दिल्लीक स्टाक एक्सचेन्ज मे जाइत अछि। एकर अर्थ अविकसित गरीब मिथिलाक लोकक पाइ विकसित राज्यक आगाँक विकास लेल खर्च कएल जाइत अछि। ई एहन निर्धन क्षेत्रक निवासीक घोर शोषणक उदाहरण अछि।

१४. मिथिलाँचलक अवाम एखन तक कोनो उग्रवाद, अतिवाद आ माओवाद सँ प्रभावित नहि भेल अछि। कि भारत सरकार एहि शांतिवादी-सहिष्णुवादी समुदायकेँ निरन्तर आर्थक शोषण सँ उग्र आन्दोलनक रास्ता पर जेबाक लेल मजबूर कय रहल अछि?

१५. सुगौली संधि (१८१६) मे मिथिलाँचलक हृदयकेँ दू फाड कऽ देलक, हलाँकि हालहि नेपाल गणतंत्र मे परिणति पाबि नव संविधान बनेबाक प्रक्रिया अन्तर्गत संघीयताक स्थापना लेल प्रयासरत अछि आ ओतहु मिथिला राज्य केर स्थापनाक माँग वर्तमान संविधान सभा द्वारा विचाराधीन अछि।

१६. पछिला संसदक विभिन्न सेशन मे ०६.१२.२०१० सँ १३.१२.२०१० तक १९२ घंटाक धरना कार्यक्रम संपन्न भेल अछि आ हाल धरि हरेक सेशनक प्रथम दिन रूटीन धरना द्वारा मिथिला राज्य केर माँग निरन्तरता मे राखल जा रहल अछि।

१७. पन्द्रहम लोकसभा अन्तर्गत दरभंगा सँ सांसद कीर्ति झा आजाद द्वारा मिथिला राज्यक माँग लेल प्राइवेट मेम्बर बिल "बिहार झारखंड रिआर्गेनाइजेशन बिल" सेहो संसदक पटल पर राखल जा चुकल अछि।

१८. सोलहम लोकसभा जे देश भरि द्वारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केर विशाल समर्थन प्राप्त केलक अछि ताहि मे ५ लोकसभा सदस्य द्वारा मैथिली भाषा मे शपथ-ग्रहण करैत मिथिला राज्यक माँग केँ अग्रसर कैल गेल अछि आ दर्जनों सांसद एहि लेल अपन समर्थन स्वीकारोक्ति देने छथि।

सूचनार्थ:अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति विभिन्न मैथिली भाषा-भाषीक संगठनक समुच्चय अछि। ई तमाम राजनैतिक दल तथा समाजिक संगठन कय मिथिला राज्यक एजेन्डा पर कार्य करैक लेल आग्रह करैत अछि।

Pravin Narayan Choudhary


शनिवार, 17 अगस्त 2013

भारतमें मिथिला राज्यक आन्दोलन तेज


भारतमें मिथिला राज्यक आन्दोलन तेज



स्पष्ट अछि जे भारतीय गणराज्यमें मिथिलाकेँ राज्यक दर्जा देबाक माँग स्वतंत्रता वर्ष यानि १९४७ ई. सँ पूर्वहिसँ कैल जा रहल अछि। पूर्वमें बौद्धिक आन्दोलन शान्तिपूर्ण प्रकृतिक आ दस्तावेजीरूप में बेसी भेल अछि। आन्दोलनमें उग्रताक नाम पर मिथिलाकेँ दू भागमें बँटल रहबाक नैतिक विरोध करैत कोनो समय नेपाल-भारत सीमा पाया तोडूबाक आन्दोलन कैल गेल, तहिना प्रधानमंत्री नेहरुकेँ घेरावके उद्देश्यसँ दर्जनों कार्यकर्ता कलकत्ता मार्च करबाक क्रममें आसनसोलमें गिरफ्तार सेहो कैल गेल। तथापि अलग राज्य के मुद्दापर उग्र आ आमजन समर्थित आन्दोलनक कोनो पूर्व प्रकरण नहि भेटैत अछि।

भारतमें राज्य निर्माणक अवधारणा:
अंग्रेजी उपनिवेशी भारतमें सक्रिय एकमात्र राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस १९२० में निर्णय केने छल जे राज्यक संरचना भाषायी आधारपर होयत। तर्क छलैक - सहज प्रशासन आ जाति तथा धर्मके आधार पर बढि रहल पहिचानक विवादमें न्युनता लेल भाषिक पहिचान उचित होयत। यैह राजनीतिक लक्ष्यके संग राजनीतिक दल आगू बढल छल। एहि दलक प्रान्तीय समितिक गठन सेहो १९२० सँ यैह आधार पर कैल गेल। १९२७ में काँग्रेस पुन: अपन प्रतिबद्धताकेँ घोषणा भाषायी आधारपर राज्यक गठन करबाक बात कतेको बेर दोहरेलक। यैह पुनरावृत्ति १९४५-४६ के चुनावी घोषणा-पत्रमें सेहो देल गेल। लेकिन स्वतंत्रताक तुरन्त बाद काँग्रेस दुविधामें पडि गेल जे मात्र भाषाक आधारपर राज्यक गठन देशमें राष्ट्रीय एकताक हितमें नहि होयत। १७ जुन, १९४८ केँ संविधान सभाध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा गठित भाषायी प्रान्तीय आयोग अर्थात् डार आयोग (Linguistic Provinces Commission - aka - Dar Commission) द्वारा देल रिपोर्ट अनुरूप "the formation of provinces on exclusively or even mainly linguistic considerations is not in the larger interests of the Indian nation". कहि भाषायी आधार पर राज्यक गठनकेँ भारत राष्ट्रकेँ हितमें नहि कहि नकारल गेल। भौगोलिक अखण्डता, आर्थिक आत्म-निर्भरता आ प्रशासन संचालनक सहजताके आधार पर राज्यक गठन लेल मद्रास, बम्बइ, केन्द्रीय प्रान्त आ बरार केँ मुख्यरूपमें बनाओल जयबाक सिफारिश कैल गेल। एहि सिफारिश पर अध्ययन लेल 'जेवीपी समिति' (जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल व तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पट्टाभी सितारमय्या के संयुक्त समिति) जयपुरक काँग्रेस अधिवेशन द्वारा बनल। १ अप्रील, १९४९ केँ एहि समिति द्वारा ओहि परिस्थितिमें नव प्रान्तक गठन लेल अनुकूलता नहि रहबाक निर्णय देल गेल, लकिन संगहि जनभावना यदि एहि तरहक माँग राखत तऽ प्रजातंत्र के रक्षा हेतु किछु निश्चित सीमामें रहैत भारत लेल समग्र हितकेँ ध्यान में रखैत नव राज्य गठन करबाक बात मानय जायत सेहो कहल गेल।

भीम राव अम्बेदकर एक ज्ञापनपत्र १४ अक्टुबर, १९४८ केँ डार आयोगकेँ देलाह जाहिमें भाषाक आधारपर राज्यक गठन करबाक आ विशेषरूपसँ मराठी-बहुल महराष्ट्र राज्य बम्बइ राजधानी सहित बनेबाक माँग रखलनि। राष्ट्रीय एकता लेल हुनकर सुझाव छलन्हि जे केन्द्र व राज्य दुनू के राजकाजक भाषा एकहि हेबाक चाही। तहिना के इम मुन्शी, गुजराती नेता अम्बेदकरक प्रस्तावकेँ विरोध केलैन - जे एकहि राज्यमें विभिन्न भाषा संग कोनो एकहि भाषाभाषीक राजनीतिक लक्ष्यके पोषणसँ विभेदकारी होयत जेकर समाधान संभव नहि होयत। पुन: १९५२ में तेलगु बाहुल्य क्षेत्रकेँ मद्राससँ पृथक राज्य बनेबाक माँग संग आमरण अनशन केनिहार पोट्टि श्रीरामुलु जिनक मृत्यु १६ दिसम्बर, १९५२ केँ भऽ गेल, परिणामस्वरूप १९५३ में आँध्रा राज्यक स्थापना १९५३ में भेल। आ, एकर प्रभाव-प्रतिक्रिया समस्त राष्ट्रपर भाषायी आधारपर राज्य बनेबाक माँग तेज भऽ गेल। अन्तत: सर्वोच्च अदालतकेर पूर्व जज फजल अली केर अध्यक्षतामें राज्य पुनर्गठन आयोग बनायल गेल। ई आयोग ३० सेप्टेम्बर १९५५ में अपन रिपोर्ट देलक जाहि अनुरूपे “Factors Bearing on Reorganization” अन्तर्गत स्पष्ट कहल गेल जे “it is neither possible nor desirable to reorganise States on the basis of the single test of either language or culture, but that a balanced approach to the whole problem is necessary in the interest of our national unity.“ राष्ट्रीय एकता लेल कोनो एकल भाषा या संस्कृतिक आधारपर राज्यक गठन नहि तऽ संभव अछि नहिये वाँछणीय। यैह आयोगक रिपोर्टके आधार मानि The States Reorganisation Act of 1956 बनाओल गेल, हलाँकि एहिमें आयोगक किछुए सुझाव समेटल जा सकल।

आयोगक अन्य सुझावमें किछु महत्त्वपूर्ण पाँति जे एहि ठाम उल्लेख योग्य बुझैछ:

“We do not regard the linguistic principle as the sole criterion for territorial readjustments, particularly in the areas where the majority commanded by a language group is only marginal”. यैह ओ पाँति मानल जा सकैत अछि जेकर बीज अमैथिल विद्वान् राजनीतिपूर्वक मैथिली विरुद्ध पहिने रोपि चुकल छलाह जेकर खुलाशा डा. अमरनाथ झा द्वारा कैल गेल अछि। मैथिलीकेँ षड्यन्त्रपूर्वक विद्वान् केर भाषा मनबाक, खने हिन्दीक उपभाषा मनबाक, खने मैथिल विद्वान् विद्यापति आ मिथिलाक्षरकेँ बंगालीक रूप मनबाक आदि कतेको षड्यन्त्र कैल गेल।

“We are generally in agreement with this view, but in our opinion, the mere fact that a certain language group has a substantial majority in a certain area should not be the sole deciding factor”. एहि पाँति सँ फेर भारतीयताक विरुद्ध मानू पूर्वाग्रही सोच झलैक रहल अछि, हर क्षेत्रमें एक विशिष्ट भाषा आ संस्कृति रहितो शुरुए सऽ एक परिकल्पना जे मेजरिटी आ माइनारिटी के अलग-अलग भाषारूपी राजनीतिक विभेद जानि-बुझि थोपल गेल बुझैछ।

“It should be mentioned that, owing to my long connection with Bihar, I refrained from taking any part in investigating and deciding the territorial disputes between Bihar and West Bengal, and Bihar and Orissa – S.R.C Chairman, Hon. S. Fazl Ali. एहि पाँति सँ बिहार-बंगाल, बिहार-उडीसा सीमापर टिप्पणी अछि जे आयोग अध्यक्ष अपन अनुभवक आधारकेँ सर्वोपरि मानि अनुसंधानसँ बचबाक बात केने छथि।

मिथिला कतहु सँ एहि चर्चामें नहि पडल अछि। एकर मूल कारण आर जे किछु हो, लेकिन प्रोफेसर अलख निरंजन सिंह आ प्रोफेसर प्रभाकर सिंह द्वारा प्रस्तुत शोध पत्र: Finding Mithila Between India's Centre And Periphery में उद्धृत एक निष्कर्स जे निम्न अछि एहि सँ पूर्ण सहमति आम राय बनैछ:

Sadly Dr. Lakshamn Jha and other leaders of this movement failed to connect the cause of a separate Mithila State with its entire population. Clearly, the language based call for a separate Mithila state did not stand the test of the caste-based pluralism that the region enjoys. Very clearly the Dalit and other communities that have been victim of the age old Hindu orthodoxy and ossified Brahminism distanced themselves from such Maithil identification. But, as discussed in what follows, the failure of the movement did harm the region in some ways. The article connects
Bihar’s present day flood-led destruction and the subsequent migration of people to the industrialised States of the country to the failure of Maithil movement. Thus, instead of seeking to ignite the movement on the urges of Sanskritic-Brahminical elitism, the Maithil leaders should have generated a socialist-linguist movement as the grass-root
level in favour of legitimacy.

उपरोक्त निष्कर्समें स्पष्ट कैल गेल अछि आन्दोलनकेँ आमजनतक पहुँचयसँ रोकल गेल, आन्तरिक वा बाह्य जाहि कारणसँ किऐक नहि हो... मार्गदर्शन सेहो समुचित अछि जे यथार्थक धरातलसँ जोडि जाहि जातीय विविधताक संस्कृति वास्तवमें मिथिला रहल तेकर असलियतकेँ आत्मसात् करैत राज्यक माँग सँ सर्वसाधारणकेँ जोडब आवश्यक अछि। मिथिलामें एखन धरि सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी संगठन या कोनो संघर्ष समिति यथार्थक धरातल सँ एहि मुद्दाकेँ मिथिला क्षेत्रक तथाकथित सीमा धरि नहि जोडि सकल अछि। नहिये एहि दिशामें कोनो राजनीतिक दल द्वारा कहियो कोनो प्रयास भेल - नहिये कोनो एहेन सांस्कृतिक क्षेत्रीय एकता लोक-जुडावकेर द्योतक लोक संस्कृति, पर्व वा परंपरा द्वारा मिथिलाक सांस्कृतिक अखण्डताकेँ कायम राखल जा सकल। सकारात्मक पहल सेहो कोनो तेहेन नहि भऽ सकल जाहि के कारण गंगा उत्तर वा दक्खिन कोनो तरहक आपसी जुडाव के विशालता बनैत।

वर्तमान सुगबुगाहट आ मिथिला राज्यक माँग लेकिन फेर तीव्र भेल जा रहल अछि। एक बेर पूर्वहिके भाँति आँध्र समान तेलंगानाक गठनके बात मिथिला सहित अनेको छोट राज्यक माँगकेँ तीव्रता प्रदान केलक अछि आ फेर दोसर बेर राज्य पुनर्गठन आयोग के स्थापनाक माँग करैत संबोधन करबाक माँग राजनीतिक परिवेशमें उठय लागल अछि। एम्हर पुरान आ नव संस्था सभ आपसी एकता करैतो राज्यक संघर्षकेँ जन-सरोकारक विषय बनाबय लेल व्यग्र देखाइत अछि। सभ सऽ मुख्य दू बात जे परिवर्तन देखय में आयल अछि - मिथिला क्षेत्र के विशालता पर कैल जा रहल अभियानकेँ आम लोक सकारात्मक रूपमें ग्रहण करय लागल अछि आ राज्य केर आवश्यकता उपेक्षा विरुद्ध स्वराज्यक स्थापना थीक सेहो बुझय लागल अछि। संगहि आब संघर्षक क्षेत्रमें नहि केवल विद्वत् बुढ-पुरान लोक टा छथि, वरन् युवा-शक्तिमें अपन संवैधानिक अधिकार प्रति जागृति सेहो प्रसार होवय लागल अछि। लिपि, भाषा, साहित्य, संस्कृति सभ किछु विलोपान्मुख होइत देखि आब राज्यक चिन्ता आम बनब स्वाभाविके छैक। तहिना जाति-पातिमें तोडब आ वोट-बैंक राजनीति टा करब नहि कि असलियतके विकास आनब, एहि सभ सँ पीडा आमजनकेँ होयब सेहो स्पष्ट अछि। स्वराज्य लेल जनयुद्ध तखनहि होइछ जखन ई देखार भऽ जाइछ जे वर्तमान प्रशासन-व्यवस्थापन कथमपि उपेक्षा दूर नहि करत, उलटा विभिन्न तरहक राजनीतिक खेलसँ क्षेत्रीय विशिष्टताके नाश करत। मिथिला राज्यक औचित्य आब जन-सरोकारके रूपमें परिणत भेल जा रहल अछि।
Pravin Narayan Choudhary

गुरुवार, 13 जून 2013

मिथिला-परिक्रमा

मिथिला-परिक्रमा


पहिने अनशन ,तेक्कर बाद मिथिला राज्य निर्माण यात्रा आ आब "मिथिला-परिक्रमा" ; लागैइत ऐछ जे वर्ष-2013 मिथिला राज्य आन्दोलनक कार्यक्रमक क्षेत्रम सम्पूर्ण मैथिल-संस्था आ मिथिलवासी एकत्रित भक अप्पन अधिकार लेल आब आगू आय्ब रहल छैथ |
   मैथिलगण सबक उत्साह आ अप्पन मैथिल-उमंग देखक मिथिलाक राज्य निर्माण आ विकास स जुरल संस्था सब आब प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप सौं जुईर रहल छैठ, जे नीक गॅप अछि |
एहा द्वारे राज्यक् निर्माण आ विकास लेल आब "अखिल भारतीय मिथिला पार्टी" , "मिथिला-परिक्रमा" क नाम सौं मिथिला भ्रमण कयर मिथिलाम आन्दोलनक नवका अलख़ जगैताय्त्त| 
ई परिक्रमा देवोत्थान एकादशीस विवाह-पंचमी धरि (13 सितंबर स 10 नवंबर तक) चलत जॅयिमा संस्था आ सहयोगी मैथिल सब राज्यक कोन कोन म जाक मैथिल सबक़ जागरूक बनेताय्त्त |

** "मिथिला-परिक्रमाक" यात्रक-नक्शा अय प्रकार सौं आईछः :-

((बेगुसराय)) -->खगरिया-->नवगच्छिया-->कटिहार-->किशनगंज-->पूर्णिया-->अररिया-->मधेपुरा-->सहरसा-->सुपौल-->झंझारपुर ->दरभंगा-->बेनिपुर-->रोसरा-->समस्तीपुर-->महनार-->हाजीपुर-->मुजफ्फ़रपुर-->मोतिहारी-->बेतिया-->रक्सौल-->सेओहर-->सीतामढी-->पुपरी-->((मधुबनी))

** अय "मिथिला-परिक्रमा" क मुख्य विकसी-बिंदु निम्न आईछः :-

1) सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्र मे मातृभाषक माध्यम सा 12वी कक्षा तक पढ़ौनिक व्यवस्था आ तहि म हॉस्टिल के निर्माण आ आधुनिक स्तरकशिक्षक सुविधा |
2) मैथिली सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्रक राजकाज के भाषा आ राजकीय कार्यविधिक भाषा |
3) कृषि प्रधान क्षेत्र मिथिलक उर्वर भूमिक समुचित दोहन आ उत्पादन |
4) जलशक्तिक समुचित उपयोग आ उचित वितरनक व्यवस्था एवं जल संचय |
5) मिथिलक कृषि उत्पादपर फुड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीयक विशाल ढांचाक निर्माण |
6) कृषि आधारित, पत, कगत, चीनी, तम्बाकू इंडस्ट्रीयक व्यवस्थापन |
7) मिथिलक तरकारी, फल आ फुलक लेल बजारक निर्माण आ कोल्ड स्टोरेजक व्यवस्था |
8) समस्त पोखरी ,चौर आ नदी सब पर बाँध बना मत्स्यपालनक व्यवस्था |
9) बरौनी मे पेट्रोकेमिकल के परियोजनाक स्थापना आ विस्तार |
10) लौकाहा, रीगा, सुपौल, फारबिसगंज आ लौरिया मे बिजली उत्पादन केन्द्रक निर्माण |
11) कटिहार, बेगुसराय ,सहरसा आ बेतियाः म मेडिकल कॉलेज के स्थापना |
12) सब ज़िला मे ईन्जीनियिरिंग कॉलेज केस्थापना केन्द्र एवं राज्यकद्वारा |
13) भाषाई चेतना आ संस्कृतिक सुरक्षक लेल सब गम मे पुस्तकालय |
14) दर्शनयी आ पौराणिक स्थान के पर्यटन स्थलक रूप देवक व्यवस्था |
15) मिथिलाक हस्तकला, हस्‍त-करघा आ चित्रकला क बीच सामंजस्य आ रोजगार सृजन |
16) यातायताक उन्नतिक लेल मिथिला स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के गठन |
17) क़ृषि उत्‍पादकता बढवा लेल विभिन्न उत्पादक कृषि सोध संस्थान |
18) राज्यक शहरीकरण हेतु समस्त प्रखंड के टाउनशिपक दर्जा |
19) खेल-कुदक बढ़ावा लेल बच्चाक चयन खेल-कूद विकास प्राधिकारकगठन |
20) समस्त पंचायत मे सर्व सुविधा संपन्न हॉस्पिटलक स्थापना आ विस्तार |
21) उड्डयनक विकास लेल हवा अडडक नगरीय उपयोग आ हवा सेवक विस्तार |

ई आन्दोलनक सफलता आ समस्त मिथिलवासी आ मैथिल सब सौं सहयोगक आशा हम करै छि |
Jha Chandan

बुधवार, 25 जुलाई 2012

मिथिलाक जिला आ ओकर आबादी ।



Krishnanand Choudharyposted to मिथिलाक जिला आ ओकर आबादी ।



बिहार आ झारखण्डक निम्नोक्त जिला संभावित मिथिला राज्यक अंतर्गत अबैत अछि । जिला सभक संग ओकर जनसंख्या सेहो देल गेल अछि , जे जनगणना 2011क अंतरिम आँकड़ा पर आधारित अछि ।
* w. champaaran-3922780
* e.champaaran-5082868
* sitamadhi-3419622
* shivhar-656916
* madhubani-4476044
* muzaffarpur-4778610
* darbhanga-3921971
* vaishali-3495249
* samastipur-4254782
* supaul-2228397
* araria-2806200
* kishanganj-1690948
* madhepura-1994618
* saharsa-1897102
* purania-3273127
* khagaria-1657599
* katihaar-3068149
* begusarai-2954367
* munger-1359054
* bhagalpur-3032226
* lakhisharaai-1000717
* jamui-1756078
* baka-2029339
* godda-1311382
* saahebganj-1150038
* deoghar-1491879
* dumka-1321096
* paakur-899200
* jamtaara-790207

उपरोक्त जिला सभक जनसंख्या जोड़लाक उपरान्त मिथिलाक कुल
जनसंख्या 7,17,20,565 होइत अछि ।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा -




भारतीय संस्कृति के प्राचीन जनपदों में से एक राजा जनक की नगरी मिथिला का अतीत जितना स्वर्णिम था वर्तमान उतना ही विवर्ण है। देवभाषा संस्कृत की पीठस्थली मिथिलांचल में एक से बढ़कर एक संस्कृत के विद्वान हुए जिनकी विद्वता भारतीय इतिहास की धरोहर है। उपनिषद के रचयिता मुनि याज्ञवल्क्य
गौतमकनादकपिलकौशिकवाचस्पतिमहामह गोकुल वाचस्पतिविद्यापतिमंडन मिश्रअयाची मिश्रजैसे नाम इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में रवि की प्रखर तेज के समान आलोकित हैं। चंद्रा झा ने मैथिली में रामायण की रचना की। हिन्दू संस्कृति के संस्थापक आदिगुरु शंकराचार्य को भी मिथिला में मंडन मिश्र की विद्वान पत्नी भारती से पराजित होना पड़ा था। कहते हैं उस समय मिथिला में पनिहारिन से संस्कृत में वार्तालाप सुनकर शंकराचार्य आश्चर्यचकित हो गए थे।

कालांतर में हिन्दी व्याकरण के रचयिता पाणिनी जयमंत मिश्रमहामहोपाध्याय मुकुन्द झा “ बक्शी” मदन मोहन उपाध्यायराष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर”, बैद्यनाथ मिश्र यात्री” अर्थात नागार्जुनहरिमोहन झाकाशीकान्त मधुपकालीकांत झाफणीश्वर नाथ रेणुबाबू गंगानाथ झाडॉक्टर अमरनाथ झाबुद्धिधारी सिंह दिनकरपंडित जयकान्त झाडॉक्टर सुभद्र झाजैसे उच्च कोटि के विद्वान और साहित्यिक व्यक्तित्वों के चलते मिथिलांचल की ख्याति रही। आज भी राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कतिपय लेखकपत्रकारकवि मिथिलांचल से संबन्धित हैं। मशहूर नवगीतकार डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्राकवयित्री अनामिका सहित समाचार चैनल तथा अखबारों में चर्चित पत्रकारों का बड़ा समूह इस क्षेत्र से संबंधित है। मगर इसका फायदा इस क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनवरत उपेक्षा और स्थानीय लोगों की विकाशविमुख मानसिकता के चलते कभी देश का गौरव रहा यह क्षेत्र आज सहायता की भीख पर आश्रित है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण प्रतिवर्ष यह क्षेत्र कोशीगंडकगंगा आदि नदियों का प्रकोप झेलता है। ऊपर से कर्मकांड के बोझ से दबा हुआ यह क्षेत्र चाहकर भी विकास की नयी अवधारणा को अपनाने में सफल नहीं हो पा रहा। जो लोग शैक्षणिकआर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हैं भी वे आत्मकेंद्रित अधिक हैं इसीलिए उनका योगदान इस क्षेत्र के विकास में नगण्य है। मिथिलांचल से जो भी प्रबुद्धजन बाहर गए उन्होने कभी घूमकर इस क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। पूरे देश और विश्व में मैथिल मिल जाएँगे मगर अपनी मातृभूमि के विकास की उन्हें अधिक चिंता नहीं है।

ऐसे में सामाजिक आंदोलन की जरूरत को देखते हुए स्थानीय और प्रवासी शिक्षित एवं आधुनिक विचारों के एक युवा समूह ने नए तरीके से मिथिलाञ्चल में अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराई है। दहेज मुक्त मिथला के बैनर तले संगठित हुए इन युवाओं ने अपनी इस मुहिम का नाम दिया है “ दहेज मुक्त मिथिला
दहेज मुक्त मिथिला” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसा आंदोलन है जिसकी बुनियाद दहेज से मुक्ति के लिए रखी गयी है। बिहार के महत्वपूर्ण क्षेत्र मिथिलांचल से जुड़े और देश-विदेश में फैले शिक्षित और प्रगतिशील युवाओं के एक समूह ने मैथिल समाज से दहेज को खत्म करने के संकल्प के साथ इस आंदोलन की शुरुआत की है। सामंती सोच के मैथिल समाज में यूं तो इस आंदोलन को आगे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना है मगर शुरुआती तौर पर इसे मिल रही सफलता से ऐसा लग रहा है कि मिथिलांचल के आम लोगों में दहेज के प्रति वितृष्णा का भाव घर कर गया है और वे इससे निजात पाना चाहते हैं।

दहेज मुक्त मिथिला के अध्यक्ष प्रवीण नारायण चौधरी कहते हैं कि मिथिलांचल में अतीत मे स्वयंवर की प्रथा थी जिसका प्रमाण मिथिला नरेश राजा जनक की कन्या सीता का स्वयंवर है। समय के साथ मिथिलांचल में भी शादी के मामले में विकृति आई और नारीप्रधान यह समाज पुरुषों की धनलिपसा का शिकार होता गया। कभी इस समाज में शादी में दहेज के नाम पर झूटका(ईंट का टुकड़ा) गिनकर दिया जाता था वहीं आज दहेज की रकम लाखों में पहुँच गयी है। दहेज के साथ बाराती की आवाभगत में जो रुपये खर्च होते हैं उसका आंकलन भी बदन को सिहरा देता है। जैसे- जैसे समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा है दहेज की रकम बढ़ती गयी है।“ श्री चौधरी आगे कहते हाँ कि बड़ी बिडम्बना है कि लोग लड़कियों की शिक्षा पर हुई खर्च को स्वीकार करना भूल जाते हैं।

संस्था की उपाध्यक्षा श्रीमती करुणा झा कहती हैं कि मिथिलांचल की बिडम्बना यह रही है कि यहाँ नारी को शक्ति का प्रतीक मानकर सामाजिक तौर पर तो खूब मर्यादित किया गया पर परिवार में उसे अधिकारहीन रखा गया। उसका जीवन परिवार के पुरुषों की मर्ज़ी पर निर्भरशील हो गया। शादी की बात तो दूर संपत्ति में भी उसकी मर्ज़ी नहीं चली। इसीलिए दहेज का दानव यहाँ बढ़ता ही गया। लड़कियां पिता की पसंद के लड़के से ब्याही जाने को अभिशप्त रहीं। इसका असर यह हुआ कि बेमेल ब्याह होने लगे और समाज में लड़कियां घूंट-घूंट कर जीने-मरने को बिवश हो गईं।
इस मुहिम को मिथिलांचल के गाँव-गाँव में प्रचारित-प्रसारित करने हेतु आधुनिक संचार माध्यमों के साथ- साथ पारंपरिक उपायों का भी सहारा लिया जा रहा है। पूरे देश में फैले सदस्य अपने-अपने तरीके से इस मुहिम को प्रचारित कर रहे हैं।
एक समय मिथिलांचल में सौराठ सभा काफी लोकप्रिय था जहां विवाह योग्य युवक अपने परिवार के साथ उपस्थित होते थे और कन्या पक्ष वहाँ जाकर अपनी कन्या के लिए योग्य वर का चुनाव करते थे। यह प्रथा दरभंगा महाराज ने शुरू कारवाई थी। शुरुआती दिनों में संस्कृत के विद्वानों की मंडली शाश्त्रार्थ के लिए वहाँ जाती थी। राजा की उपस्थिति में शाश्त्रार्थ में हार-जीत का निर्णय होता था। यदि कोई युवा अपने से अधिक उम्र के विद्वान को पराजित करता था तो उस युवक के साथ पराजित विद्वान अपनी पुत्री की शादी करवा देता था । बाद में यह सभा बिना शाश्त्रार्थ के ही योग्य वर ढूँढने का जरिया बन गया। आधुनिक काल के लोगों ने इस सभा को नकार कर मिथिलांचल की अभिनव प्रथा को खत्म करने का काम किया।
संस्था के सलाहकार वरिष्ठ आयकर अधिकारी ओमप्रकाश झा कहते हैं की मिथिलांचल को अपनी पुरानी प्रथा के जरिये ही सुधार के रास्ते पर आना होगा। प्रतिवर्ष सौराठ सभा का आयोजन हो और लोग योग्य वर ढूँढने के लिए वहाँ आयें जिसमें पहली शर्त हो की दहेज की कोई बात नहीं होगी तो दहेज पर लगाम लगाना संभव हो सकता है। पहले भी सौराठ में दहेज प्रतिबंधित था। विवाह में बाराती की संख्या पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है। संप्रति देखा जा रहा है कि मिथिललांचल में शादियों में बारातियों की संख्या और उनके खान-पान की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है। गरीब तो दहेज से अधिक बारातियों की संख्या से डरता है।
बात सिर्फ आर्थिक लेन-देन तक सीमित हो तो भी कोई बात है। अब तो कन्या के साथ साज-ओ-सामान की जो फेहरिस्त प्रस्तुत की जाती है वह बड़ों-बड़ों के होश उड़ा देता है। उस पर भी आलम यह है कि अधिकतर लड़कियां विवाह के बाद दुखमय जीवन बिताने को मजबूर है क्योंकि स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग नहीं है और परदेश में खर्च का जो आलम है वह किसी से छुपा नहीं है।



दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा चलाने में जुटे लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मैथिल समाज के उन लोगों से आएगी जो महानगरों में रहकर अच्छी नौकरी या व्यवसाय के जरिये आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं और दहेज को अपनी सामाजिक हैसियत का पैमाना मानते हैं। ऐसे लोग निश्चित रूप से विकल्प की तलाश में इस आंदोलन को कुंद करने का प्रयास करेंगे जिसे सामूहिक सामाजिक प्रतिरोध के जरिये ही रोका और दबाया जा सकता है। कुछ राजनेता जो अपने को मैथिल समाज का मसीहा मानते हैं उनके लिए भी ऐसा आंदोलन रुचिकर नहीं है। पर वक़्त की जरूरत है कि यह क्षेत्र ऐसे आंदोलनों के जरिये अपने में सुधार लाये।