(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

शनिवार, 30 नवंबर 2013

चलो जन्तर-मन्तर पर! ५ दिसम्बर, २०१३



चलो जन्तर-मन्तर पर! 

५ दिसम्बर, २०१३   

      (जन्तर-मन्तरपर विशाल धरना प्रदर्शन - मिथिला राज्यके समर्थनमें - संसदमें रखे गये बिलपर सकारात्मक बहसके लिये राजनीतिक शक्तियोंसे सामूहिक अनुरोध के लिये।)

वैसे तो मिथिला राज्यका माँग स्वतंत्रता पूर्वसे ही किया जा रहा है, स्वतंत्रता उपरान्त भी यह माँग देशकी प्रथम संविधान सभाके सत्रोंसे लेकर राज्य पुनर्गठन आयोग तक मंथनका विषय बननेके बावजूद राजनीतिपूर्वक किसी न किसी बहानेमे नकारा गया और मैथिली सहित मिथिलाके भविष्यको पहचानविहीनताकी रोगसे आक्रान्त किया गया जो निसंदेह किसी गणतंत्रात्मक प्रजातांत्रीक मुल्कके सर्वथा-हितमे नहीं हो सकता है। फलस्वरूप अब मिथिलाका वो स्वर्णिम समय दुबारा भारतको शास्त्र-महाशास्त्रके साथ आध्यात्मिक दर्शनकी पराकाष्ठापर पहुँचा सके, हाँ आज इतना तो जरुर है कि मिथिलाके मिट्टी और पानीसे सींचित व्यक्तित्व न केवल राष्ट्रमे बल्कि समूचे ग्लोबपर अपनी उपस्थिति ऊपरसे नीचेतक हर पद व स्थानपर महिमामंडित करते हैं, लेकिन मूलसे बिपरीत आज सामुदायिक कल्याण निमित्त नहीं होता - बस व्यक्तिगत विकास केवल लक्ष्य बनकर पहचानविहीनताके रोगसे मिथिला-संस्कृति विलोपान्मुख बनते जा रहा है। ऐसेमें यदि अब स्वतंत्रताका लगभग ७ दशक बीतने लगनेपर भी मिथिलाको स्वराज्यसे संवैधानिक सम्मान नहीं दिया गया तो मिथिलाका मरणके साथ भारतकी एक विलक्षण संस्कृतिका खात्मा तय है।

           भारतमे विभिन्न नये राज्य बनानेकी परिकल्पना आज भी निरंतर चर्चामें रहता ही है। संसदसे सडकतक इस विषयपर नित्य विरोधसभा और संघर्ष कर रही है यहाँकी जनता, खास करके जिनका पहचान समाप्तिकी दिशामे बढ रहा है और उपनिवेशी पहचानकी बोझसे अधिकारसंपन्नताकी जगह विपन्नता प्रवेश पा रहा है वहाँपर नये राज्योंकी सृजना अनिवार्य प्रतीत होता है। बिहार अन्तर्गत मिथिला हर तरहसे पिछड गया, ना बाढसे मुक्ति मिल सका, ना पूर्वाधारमें किसी तरहका विकास, ना उद्योग, ना शिक्षा, ना कृषिमें क्रान्ति या आत्मनिर्भरता, ना भूसंरक्षण या विकास, ना जल-प्रबंधन और ना ही किसी तरहका लोक-संस्कृतिकी संवर्धन वा प्रवर्धन हुआ। बस नामके लिये सिर्फ मिथिलादेश अब मिथिलाँचल जैसा संकीर्ण भौगोलिक सांकेतिक नामसे बचा हुआ है। राजनीति और राजनेताके लिये मिथिलाका पिछडापण मुद्दा तो बना हुआ है लेकिन वो सारा केवल कमीशनखोरी, दलाली, ठीकेदारी, लूट-खसोट और अपनी राजनैतिक लक्ष्यतक पहुँचने भर के लिये। मिथिला भारतीय गणतंत्रमें मानो दूधकट्टू संतान जैसा एक विचित्र पहचान 'बिहारी' पकडकर मैथिली जैसे सुमधुर भाषासे नितान्त दूर 'बिहारी-हिन्दी'की भँवरमें फँसकर रह गया है।


                जिस बलसे मिथिला कभी मिथिलादेश कहा जाता रहा, जिस तपसे जहाँकी धरासे साक्षात् जगज्जननी स्वयं सिया धियारूपमे अवतार लीं, जहाँ राजनीति, न्याय, सांख्य, तंत्र, मिमांसा, रत्नाकर आदि सदा हवामें ही घुला रहा... उस मिथिलाको पुनर्जीवन प्रदान करने के लिये स्वराज्य देना भारतीय गणतंत्रकी मानवृद्धि जैसा होगा ‍- अत: मिथिला राज्यकी माँगवाली विधेयक काफी अरसेके बाद फिरसे भारतीय संसदमें बहसके लिये आ रही है। किसी एक नेता या किसी खास दलका प्रयास भले इसके लिये ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो, लेकिन जरुरत तो सभी पक्षों और राष्ट्रीय सहमतिका है जो इस माँगकी गंभीरताको समझते हुए वगैर किसी तरहका विद्वेषी और विभेदकारी आपसी फूट-फूटानेवाली राजनीति किये न्यायपूर्ण ढंगसे मिथिला राज्यको संविधान द्वारा मान्यता प्रदान करे। इसमें कहीं दो मत नहीं है कि नेतृत्वकी भूमिकामें जितने भी संस्था, व्यक्ति, समूह, आदि भले हैं, पर मुद्दा तो एकमात्र 'मिथिला राज्य' ही है और इसके लिये एकजुटता प्रदर्शनके समयमें हम सब मात्र मिथिला राज्यका समर्थक भर हैं और मिथिलाकी गूम हो रही अस्मिताकी संरक्षणके लिये, मिथिलाकी चौतरफा विकासके लिये, मिथिलाकी खत्म हो रही लोक-संस्कृति और लोक-पलायनको नियंत्रित रखने के लिये अपनी उपस्थिति जरुर दिल्लीके जन्तर-मन्तरपर और भी अधिक लोगोंको समेटते हुए जरुर दें। तारीख ५ दिसम्बर, समय १० बजेसे, स्थान जन्तर-मन्तर, संसद मार्ग, नयी दिल्ली!


मिथिलावासी एक हो! एक हो!! एक हो!!

एकमात्र संकल्प ध्यानमे!
मिथिला राज्य हो संविधानमे!!

भीख नहि अधिकार चाही!
हमरा मिथिला राज्य चाही!!

जय मिथिला! जय जय मिथिला!!

बुधवार, 27 नवंबर 2013

२६म् अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मे उठल आवाज देवय पडत मिथिला राज्य

२६म् अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन मे उठल आवाज
देवय पडत मिथिला राज्य
               अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद्क २६म् अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलन में अलग मिथिला राज्य कऽ माँग जोरदार रुप में उठल । सम्मेलन में मैथिली भाषा के मजबुत करबा कऽ लेल सम्पूर्ण मैथिली भाषी के एक जुट भऽ आगु बढेबा के लेल आह्वान कएल गेल । अई सम्मेलन में भारत तथा नेपाल कऽ प्रतिनिधि सब के उपस्थिति छल । मुख्य अतिथी कृष्णानन्द झा कहलनि भाषा के आधार पर अलग राज्य भेटनाई मुस्किल अछि, अलग राज्य कऽ बास्ते सम्पूर्ण मापदंड के पुरा करय परत, जेकर आवश्यकता अछि । मिथिला के संस्कृति के जा धरि अन्य प्रान्त कऽ संस्कृति के संग समन्वय स्थापित नहि होइत, ता धरि, अलग राज्य बनेनाई संभव नहि अछि । जखन अपन भाषा के अन्य राज्य कऽ संग जोडल जायत तखने देश के ४० प्रतिशत आबादी स्वतः जुडि जायत ।
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद अध्यक्ष डा. कमलकान्त झा कहलनि जे मिथिला राज्य के माग उठल तऽ सरकार मैथिली भाषा के मान्यता देलनि । मिथिला राज्य कऽ मान्यता के वास्ते देशक सब प्रान्त कऽ लोक के आगु आबय परत । संगे ओ झारखण्ड सरकार सँ मैथिली भाषा के राज्य के द्वितीय राजभाषा के रुप में शामिल करबा कऽ माग जेहो केलनि । झारखण्ड मे मैथिली के द्वितीय राजभाषा में शामिल करबा कऽ लेल काँग्रेस के पूर्व मन्त्री कृष्णानन्द झा सँ सहयोग सेहो मागलनि । कृष्णानन्द झा अपन पुरा सहयोग देबा कऽ प्रतिबद्धता सेहो जाहिर केलनि । सम्मेलन के उद्घाटन पूर्व मंत्री कृष्णानन्द झा, अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद कऽ अध्यष डा. कमलकान्त झा, नेपाल कऽ परिषद क अध्यक्ष करुणा झा, संस्थापक अध्यष डा. घनाकर ठाकुर, भूवनेश्वर प्रसाद गुरमैता, बैद्यनाथ मिथिला संस्कृति मंच के अध्यक्ष ओम प्रकाश मिश्र संयुक्त रुप में दीप प्रज्वलित कऽ उद्घाटन केलनि ।

नेपालक मैथिली परिषद कऽ अध्यक्ष करुणा झा कहलनि मैथिली भाषा तथा मिथिला राज्य कऽ मान्यता के लेल आन्दोलन के दौरान पाँच लोग शहीद हो गये जिनमें एक महिला भी । लेकिन इसके बाद भी नेपाल में जोर शोर से मिथिला राज्य के माग उठी रहल अछि । ओ कहलनि – अपना भाषा आ संस्कृति के पंति सब कियो के गम्भीर होब परत । मिथिला राज्य क लेल समाज के सब वर्ग के लोग के साथ लऽ कऽ चलय परत । संगे ओ अन्तर्राष्ट्रिय मैथिल महिला परिषद के गठन करबा कऽ वास्ते जोर देलनि जाई सँ अई अभियान में महिला सब के जोडय कऽ आगु बढला सँ ई अभियान बेसी प्रभावकारी होयत ।

कार्यक्रम के आयोजना बैद्यनाथ मिथिला संस्कृति मंचद्वारा कएल गेल छल । आई दु दिवसीय समारोहमें दोसर दिन पहिल सत्र में जीवकान्त झा आ मायानन्द मिश्र के श्रद्धाञ्जली सभा तथा दोसर सत्र में रंगारंग सांस्कृतिक सन्ध्या में देश विदेशक कलाकार सब द्वारा कएल गेल । अई मौका पर भूतपूर्व डिआईजी के.डी. सिंह, प्रदेश महासचिव रविन्द्र चौधरी, जमशेदपुर के श्यामल सुमन तथा सैकडो मिथिलाबासी के उपस्थिति रहल । धन्यवाद ज्ञापन बैद्यनाथ मिथिला संस्कृति मंच के अध्यक्ष ई. ओमप्रकाश मिश्र जी केलनि । अस्तु ।।


 – करुणा झा
 नेपाल 

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

आब नै चुप रहव - चल्लू डेल्ही

मिथिला राज्य निर्माण सेना केर द्वारा २४ नवम्बर क दिन के २ बजे कॉफ़ी हाउस दिल्ली स हरीश रावत के घर तक जत्था मार्च करत और हरीश रावत के घर के सामने हरीश रावत के पुतला दहन करत तथा अपन विरोध दर्ज करत | सब मैथिल भाई बहिन और मिथिला संस्था स आग्रह जे बेसी स बेसी संख्या में आबि क अपन घोर विरोध दर्ज करी | दिल्ली में रहै वाला सब मैथिल स आग्रह जल्दी स संपर्क करू और अई आंदोलन में अपन सहयोग करू | राजेश झा-08607817171 संजय कुमार- 09910644894 कमलेश मिश्र - 9560437000 , मदन ठाकुर -9312460150  , 
ई एहन  शब्द बजल कोनो -? 
   


























चमचागिरी आ चाटुकारिता के एकटा सीमा होइत अछि , हद भा गेल सीता मैया के सेहो ई विदेशी मूल के कहि रहल अछि , सर्वविदित अछि अदौकाल सं जकर प्रमाणिक इतिहास अछि जे माँ सीताक जन्म सीतामढ़ी जिला अंतर्गत पुनौरा धाम मे भेल अछि , तिनका विदेशी मूल के कही एकर तुलना सोनिया गाँधी से क रहल छथि ई पाखान्द्शिरोमानी हरीश रावत , रावत जी ज क इतिहास पदु आ अपन वक्तव्य के वापस लिय , सरिपहुं ई हरेक मैथिलक मुहं पर थापर समान थिक जे हमर धरोहर माँ समान सीता मैया के सोनिया सन महिला सं तुलना कायल गेल अछि | एकरा हम व्यक्तिगत रूपेण अपन संस्था मिथिला राज्य निर्माण सेना के तरफ सं घोर निंदा करैत छी , अगर अहाँ सब हमरे जकाँ लागैत अछि त आऊ coffe हाउस रवि दिन २ बजे अपरान्ह आ एही कुकृत्य के लेल हरीश रावत के पुतला दहन कायल जाय आ हिनका ई वक्तव्य के वापस लेबा पर मजबूर करू |

एहन चमचा शिरोमणि के की कायल जाय ,
कालिख पोअति चुगला बनायल जाय ,
आऊ सब मिलि एकर पुतला दहन करी ,
मैथिल होयबाक किछु त स्वाभिमान करी ,
जा तक रहत एहन एहन लोक जेना की रावत ,
मैथिलि अपमानित होइत रहत ....... तावत
आऊ सब मिलि देखाऊ अपन त|गत | 




हरिश रावत तोहर ओकात कि छउ तकर थाह तोरा 24 के पता चलतउ । माता सिताके अपमानित कैला के बाद रावण एहन प्रतापि राजाके नाश भ गेल तु कोन खेत के मूली छे रे रावत...24 november ke din ke 2 bje Coffee house,CP Delhi enay nay bisru.....CP s harish Rawat ke ghar tak march kel jet ekar bad putla Dahan-

हिन्दू धर्म के ठेकेदार और ठीकेदारी लेने वाली संगठने चुप क्यूँ हैं l क्या उन्हें काठ मर गया है, या संज्ञा सुन्यता मे है ?

आखिर राम की राजनीति चमकाने वाले और इलेक्शन के समय ८४ कोशी यात्रा करनेवालों की जड़ता कब टूटेगी ?

माता सीता का यह अपमान, कब तक सहेगा हिंदुस्तान ?
 ऐसे नेता देश को क्या विकास के राह पर ले कर जाएंगे जिनको इतिहास पता ही नहीं है, सीता माता विदेशी कैसे?????
जब सीता माता थी तब इंडिया, भारत, हिंदुस्तान, या नेपाल ही नहीं बना था, उस समय तो मिथिला राज्य हुआ करता था, क्या सही में अज्ञानी नेताओ के संख्या जयादा होगया है इस देश में ?

कांग्रेस के हरीश रावत ने आज मुझे अर्थात बिहार खास कर मिथिला की बेटी को विदेशी कहा है। तिरहुत सरकार लक्ष्‍मेश्‍वर सिंह ने कांग्रेस को पहला दान देकर सही में रावत जैसे लोगों को देशभक्‍त बना दिया।

Gopal Jha हरीश को इतिहास की जानकारी लेनी होगी की जहां माता सीता का जन्म हुआ वह स्थान आज भी भारत में है सत्ता के नशे में झूठ बोलने से सच नहीं हो जाती माता सीता का जन्म सीतामढ़ी में है और मैं सीतामढ़ी वासी होने के नाते इस बयान का घोर निंदा करता हूँ

ई कांग्रेस त मैथिला के खा गेलभाई 1.अंग्रेज मिथिलाक दू भाग मे बटलक ,आजादि के बाद cong. सरकार अङि मुद्दा पर चूप रहल..2.नेपाल स हर साल जे पईन छोरल जोईत अछि जहि स मिथिला मे हर साल भंयकर बाईढ आवैत अछि cong.के देन छि 3.आब राबत कहैत अछि जे सिता माता बिदेसी छलिह..
आब  कहु  कि -२  सुनई लेल  बांकी  अच्छी - ? 
आब नै  चुप रहव - चल्लू डेल्ही 

सोमवार, 18 नवंबर 2013

साम- चकेबा पर्व - नोएडा



साम- चकेबा  पर्व - नोएडा 


के  शुभ  अबसर  पर शिव शक्ति  सोसैटी (सेक्टर ७१ नॉएडा )  दुवारI साम- चकेबा  पर्व के  आयोजन , मुन्ना शर्मा आ विशम्भर ठाकुर जी  के  अध्यक्षता   में  कैल  गेल  छल ,  जाही  में  विशेस  मुख्य  अतिथि  सबके  दोपटा से  सम्मानित  कैल गेलनि ,

श्री महेश शर्मा (विधायक- नॉएडा ) नेपाल सन - प्रवीण नारायण चौधरी (अन्तर रास्ट्रीय दहेज़ मुक्त मिथिला ) मैथिला राजय निर्माण सेना-  के  सह सहयोगी राजेश झा जी  , मिथिला वाशी सोसाइटी के महा सचिव - संजय झा , मदन ठाकुर  दहेज़ मुक्त मिथिला (देल्ही -प्रभारी ) अनिल झा जी , खेला नन्द झा ,  जिनकर  मुख्य  उदेश  छल बिहार  मिथिलांचल के  बिकाश और  मिथिलाक  परम परा और  धरोहर  के  सयम  रखनए अहि साम - चकेबा पर्व के  संचलन  श्री महेश शर्मा (विधायक- नॉएडा )के दुरा दीप प्रजुलित आ पात्रिका बिमोचन संग  साम -चकेबा  मूर्ति  के  अपन  ठेहुन से  तोरैत उपरांत  मिथिलाक  परम-  परा के  निर्वाह   करैत  अपन  मुखार -बिंदी  से  मिथिलाक  अनेको  धरोहर  के  बखान  केलैथि ओही  के  बात   आमोद झा मुजिकल  ग्रुप के  जरिया सांस्कृतिक  कार्य-  करम  के  सुरुवात  के गेल  जाही  में  मुख्य  गायिका कुमकुम मिश्रा , कल्पना जी  के संग  अनेको  गायक - गायिका  सब उपस्थित भेल छला ,

संस्कृत कार्य  करम  के  बाद   बिधि  पुरबका बिंदा बन और  चुगला  के  जरयाल गेल  और समदोन  गबैत आ फेर  अगिला साल  साम- चकेबा के अबेय के गीत  गबैत  सब  माय  -  बोहीन अपन  डाला  लाके  अपन - अपन  घर-  अगन  गेली 

नोट - डेल्ही एन सी आर  में  ई प्रथम स्थल  अच्छी  जतय मिथिला के  संस्कृति  के  गरीमा  बढबैत अपन पहचान आ संस्कारक संग ई  शुभ  अबसर  पर शिव शक्ति  सोसैटी (सेक्टर ७१ नॉएडा )  दुवारI  साम- चकेबा  पर्व के  आयोजन आए  ६ वर्ष सन  मनाबैत छैथि , अहि  द्वारे कहल  जैत  अच्छी , जतय मैथिल ओतय  मिथिला 

जय मैथिल - जय मिथिला )



बुधवार, 6 नवंबर 2013

छठि मैया आ डूबैत-उगैत सूरुजके पूजा




छठि मैया आ डूबैत-उगैत सूरुजके पूजा


छैठ परमेश्वरी के पूजा समस्त मिथिलावासी लेल अति प्राचिन पारंपरिक पूजन समारोह थीक। सामूहिक रूपमें बेसीतर महिला लेकिन गोटेक पुरुष व्रतधारी सभ संग अनेको प्रकारके पकवान व ऋतुफल संग संध्याकालीन सूर्यकेँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पण करैत पुनः उषाकाल भोरहरबेसँ छठि परमेश्वरी (उगैत सूरज) केर दर्शन लेल व्रतधारी करजोड़ि ठरल जलमें ठाड़्ह इन्तजार करैत छथि। सूर्योदय उपरान्त पुनः विभिन्न पकवान व ऋतुफल भरल डालासँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पण करैत छठि मैयाके व्रतकथा सुनैत ओंकरी आ ललका बद्धी - ठोप लगबैत व्रतधारी अपन समस्त परिजनकेँ भगवान्‌केर शुभाशीर्वाद हस्तान्तरित करैत छथि। यैह पूजाके छैठक संज्ञा देल जैछ। क्रमशः मिथिला व आसपासके क्षेत्रसँ शुरु भेल ई पूजा आब समस्त संस्कृतिमें प्रवेश पाबि रहल अछि। आस्थाक बहुत पैघ उदाहरण थीक ई पूजा आ समस्त मनोवाञ्छित फल प्रदान करनिहैर शक्तिशाली छठि मैयाक पूजा लेल के आस्थावान्‌ उद्यत नहि होइछ आइ! 

व्रती (साधक) अत्यन्त कठोर नियम एवं शुद्ध आचार-विचार संग निर्जला व्रत करैत छथि आ शरदकालमें ठरल जलमें ठाड़्ह भऽ व्रती सूर्यकेँ जल-फलसँ हाथ उठबैत विशेषार्घ्यसँ पूजा करैत छथि, पूजा काल सेहो विशेष रहैत छैक। सच पूछू तऽ छठि मैयाके पूजा-अर्चनाके विधान देखि हम सभ नहि सिर्फ प्रभावित रहैत छी, बल्कि एकदम कल जोड़ि शरणापन्न अवस्थामें सेहो रहैत छी जे कहीं एको रत्ती गड़बड़ नहि हो नहि तऽ कखनहु साधनामें विघ्न पड़ि जायत आ तेकर दुष्परिणाम व्रतधारी एवं समस्त परिजन पर पड़त। बहुत गंभीर भावनासँ पूर्णरूपेण शरणागत बनि एहि पूजा में साधना करबाक महत्त्व छैक। लेकिन एतेक गंभीरताके रहस्य कि? कि बात छैक जे व्रत एतेक कठोर करय पड़ैत छैक? डूबैत सूरजके पूजा किऐक? आउ प्रयास करैत छी जे एहि समस्त रहस्य पर सँ पर्दा उठाबी। कम से कम आजुक नवतुरिया (हमरा समेत) लेल ई एक शोधक विषय अछि आ एहिमें सावधानीपूर्वक हम सभ मनन करैत आगू देखी!

सभसँ पहिने छठि मैया के थिकी? वा छठि मैया सूरजरूपमें कोना? 

बहुत रोचक प्रसंग कहल गेल छैक - कहियो नारद ऋषि व्यामोहित (नारी रूपमें आकर्षित) भेल छलाह। भगवान्‌ विष्णुकेँ मायासँ नारदकेँ एहि तरहक अवस्थाक प्राप्ति भेल छलन्हि आ कहल गेल छैक जे ई ताहि समय भेल छलन्हि जखन नारदजी कोनो कुण्ड (सरोवर)में संध्या करबाक लेल प्रवेश केने छलाह आ ताहि समय भगवान्‌के मायास्वरूपा एक नारी ओहि सरोवरमें अपन अंग-प्रत्यंग प्राच्छालन करैत रहलीह आ व्यामोहित नारदजी अपन संध्याके (सूर्य एवं गायत्री उपासना) बिसरि बस ओहि नारीके माया-दर्शनमें लागि गेल छलाह। हिनकर भगवान्‌के मायामें एहि तरहें व्यामोहित देखि सूर्य के सेहो हँसी लागि गेल छलन्हि जाहि कारणे सूर्यास्त सँ किछु समय उपरान्त धरि हुनक अस्त नहि भेलन्हि आ नारदके व्यामोहन छूटिते सूर्यक उपस्थिति देखि सभ बात बूझय में आबि गेलन्हि, तखनहि नारद सूर्यकेँ नारीरूप प्राप्त करबाक शाप देलाह जे बादमें प्रभुजीके मध्यस्थ कयलापर विमोचन करैत केवल एक दिवस लेल कायम राखल गेल, कार्तिक मासक षष्ठी (छठम) तिथिकेँ जेकर समय तेसर संध्या (सूर्यास्तसँ एक पहर पहिले) समय सँ अगिला संध्या याने भोरक सूर्योदय काल के एक पहर उपरान्त धरि नारी स्वरूपमें रहबाक बात तय भेल जिनका भगवान्‌ विष्णु छठि मैयाक शक्तिस्वरूपा नाम व वर प्रदान कयलन्हि। मिथिलामें यैह देवीक उपासना लेल पूर्वकालमें योगी-ऋषि द्वारा प्रजाकेँ उपदेश कैल गेल आ आदिकालसँ हिनक उपासनाक एक निश्चित विधान अनुरूप छठि मैयाक आराधना चलैत आबि रहल अछि। 

छठि मैयाक पूजाक महत्त्व कि?

सूर्यक परिचय सर्वविदित अछि। बिना सूर्य सभ सून्न! विज्ञान - ज्ञान - मान - आन - शान - सभ सूर्यके चारू कात, केन्द्रमें केवल सूर्य! नवग्रह, नक्षत्र, भूमण्डल, पंचतत्त्व, उर्जा, पोषण... हर बात के जैड़में सूर्य! सूर्यक उपासना संसार में आस्तिक-नास्तिक सभ करैछ। मिथिलामें जतय पुरुषवर्ग लेल संध्योपासनामें सूर्यकेँ जलक अर्घ्यसँ नित्य पूजा करैक विधान अछि, तहिना सूर्य नमस्कार समान प्रखर योग-साधना, नारीवर्गलेल सेहो नित्य तुलसी एवं सूर्यकेँ जलार्घ्य देबाक परंपरा रहल अछि। सूर्यकेँ भगवान्‌ मानल जायमें किनको कोनो आपत्ति कहियो नहि रहल अछि। नित्य समयसँ उदय, समयसँ अस्त, दिन व रातिक निर्धारण, अग्नि-वायु-वर्षा-मौसम आ समस्त अवयव जे जीवन लेल आवश्यक अछि तेकर दाता - चक्रवर्ती राजा के संज्ञा देल जाइछ सूर्यकेँ। ओ चाहे मनुष्यलोक हो वा आदित्य-वसु वा कोनो अन्य लोक; सभक राजा सूर्य! प्रत्यक्ष देवता के अधिपति सूर्य! साक्षात्‌ नारायण के - त्रिलोकस्वामीके प्रतिनिधित्व करनिहार सूर्य! हिनकर पूजा तऽ लोक नित्य करैत अछि। तखन यदि एक दिन (कार्तिक षष्ठी) हिनक विशेष रूप छठि मैया साक्षात्‌ शक्तिके भंडारिणी हम मानवलोककेर सोझां रहती तऽ के कृपापात्र बनय लेल नहि चाहत! अत: छठि मैयाके आराधना समस्त सखा-परिजन-राष्ट्र लेल कल्याणकारक होइछ। 

सूर्यकेँ प्रतिदिन प्रातः काल अर्ध्य देलासँ आ प्रणाम कएला सँ आयु, विद्या, यश आ बल के वृद्धि होइत अछि ।

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने-दिने ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्‌ ॥

छठि मैयाके व्रतकेर नियम कि?



एहि व्रतमें तीन दिनक कठोर उपवास कैल जाइत अछि। चतुर्थी दिन पवित्र पोखैर वा नदीक जलसँ स्नान करैत एक बेर खयबाक परंपरा अछि जेकरा नहाय-खायके संज्ञा देल जाइछ। पञ्चमी दिन उपवास करैत सन्ध्याकाल लवणरहित गुड़सहित खीरसँ खरना कैल जैछ। षष्ठी दिन निर्जल व्रत राखि सूर्यास्त सँ पहिले एवं कतेको जगह सूर्यास्तक बाद पोखरि वा नदीके पवित्र घाट पर जलमें ठाड़्ह भऽ पकवान एवं फलादिक डालासँ अस्त होइत सूर्य जे आब शक्ति-स्वरूपा छठि मैयाक रूपमें परिणत भऽ गेल रहैत छथि तिनका प्रणाम कैल जाइछ, समस्त बन्धु-बान्धवके कुशलता एवं कल्याण लेल प्रार्थना कैल जाइछ, मनोवाञ्छित फल व व्रतक निष्ठापूर्वक सफलता एवं चरणमें अटूट भक्ति लेल प्रार्थना कैल जाइछ। पुनः उदयकालिक सूर्य याने छठि मैयाकेँ विभिन्न प्रकारक पकवान एवं ऋतुफलके डाला आदिसँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पित करैथ व्रतक कथा श्रवण कैल जाइछ। 

छठि मैयाक व्रत कथा

एक छलाह राजा प्रियव्रत जिनक पत्नीक नाम मालिनी छलन्हि। राजा रानी नि:संतान होयबाक कारणे बहुत दु:खी छलाह। महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ करौलन्हि, फलस्वरूप मालिनी गर्भवती भेलीह मुदा नौ महीना बाद जखन ओ बालक के जन्म देलीह तऽ ओ मृत अवस्थामें छल। एहिसँ राजा प्रियव्रत बहुत दुःखी भऽ आत्महत्या लेल उद्यत भेलाह। तखनहि एक देवी प्रकट होइत अपन परिचय षष्ठी देवीके रूपमें दैत पुत्र वरदान देनिहैर कहैत हुनका सँ अपन पूजा-अर्चनामें लीन होयबाक लेल उपदेश केलीह। राजा देवीकेर आज्ञा मानि कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि केँ देवी षष्टीकेर पूजा कयलन्हि जाहिसँ हुनका पुत्र-धनके प्राप्ति भेलन्हि। ताहि दिन सँ छठिक व्रतक अनुष्ठान चलि रहल अछि।

एक दोसर मान्यता अनुसार भगवान श्रीरामचन्द्र जी जखन अयोध्या वापसी कयलाह तखन राजतिलक उपरान्त सियाजी संग कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथिकेँ सूर्य देवताकेर व्रतोपासना कयलन्हि आ ओहि दिनसँ जनसामान्य में ई पावैन मान्य बनि गेल और दिनानुदिन एहि पावैनक महत्त्व बढैत चलि गेल जाहिमें पूर्ण आस्था एवं भक्तिक संग ई पावैन मनाओल जाय लागल।






Pravin Narayan Choudhary 

रविवार, 3 नवंबर 2013

महालक्ष्मी पूजाक संछिप्त विधि:


महालक्ष्मी पूजाक संछिप्त विधि: 




आइ कार्तिक कृष्ण अमावस्याक दिन - भगवती श्रीमहालक्ष्मी आ भगवान् गणेशक नवीन प्रतिमाक प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन कैल जाइछ। 

पूजा लेल कोनो चौकी अथवा कपडाक पवित्र आसनपर गणेशजीक दाहिनाभागमे माता महालक्ष्मीकेँ स्थापित कैल जेबाक चाही। पूजाक दिन घरकेँ स्वच्छ करैत पूजन-स्थलकेँ सेहो पवित्र करबाक चाही, स्वयं सेहो पवित्र होइत श्रद्धा-भक्तिपूर्वक संध्याकालमे हिनकर पूजा करबाक चाही। 

पूजाक सामग्री: यथाशक्ति फूल, अक्षत, नैवेद्य, आदि। विशेष: वस्त्र मे प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पियर रंगक रेशमी वस्त्र। पुष्पमे कमल व गुलाब प्रिय। फलमे श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़ प्रिय। सुगंधमे केवड़ा, गुलाब, चंदन केर इत्रक प्रयोग। अनाजमे चावल तथा मिठाईमे घरमे बनल शुद्धतापूर्ण केसरकेर मिठाई या हलवा, खीरक नैवेद्य उपयुक्त। प्रकाश लेल गायक घी, मूंगफली वा तिलक तेल। अन्य सामग्रीमे कुशियार, कमल गोटा, गोटा हरैद, बेलपात, पंचामृत, गंगाजल, ऊनक आसन, रत्न आभूषण, गायक गोबर, सिंदूर, भोजपत्र।

मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजीक नजिके कोनो पवित्र पात्रमे केसरयुक्त चन्दनसँ अष्टदल कमल बनबैत ओहिपर द्रव्य-लक्ष्मी (मुद्रा-रुपया)केँ सेहो स्थापित करैत एक संगे दुनूक पूजा करबाक चाही। 

सबसँ पहिने पूर्वाभिमुख वा उत्तराभिमुख भऽ आचमन, पवित्री-धारण, मार्जन-प्राणायाम कय अपना ऊपर आ पूजा सामग्रीपर निम्न मंत्र पढैत जल छिडकू:

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥

पुन: स्वस्तिपाठ करैत हाथमे जल-अक्षतादि लैत पूजनक संकल्प करी:

ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:। ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे ..... क्षेत्रे .... नगरे .... ग्रामे ...... नाम-संवत्सरे मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावस्यायां तिथौ ... (रवि) वासरे अमुक तोत्रोत्पन्न: अमुक नाम शर्मा (वर्मा, गुप्त:, दास:) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिकपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

मन्त्र पढलाक बाद गणेशजीक सोझाँ हाथक अक्षतादिकेँ छोडी।

प्रतिमा-प्राण-प्रतिष्ठा:
बाम हाथमे अक्षत लैत दाहिना हाथसँ गणेशजीक प्रतिमापर निम्न मंत्र पढैत छोडैत चली:

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँ् (ग्वं) समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ।

ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥

तदोपरान्त भगवान् गणेशक षोडशोपचार पूजन: (१. दुग्धस्नान, २. दधिस्नान, ३. घृतस्नान, ४. मधुस्नान, ५. शर्करास्नान, ६. पञ्चामृतस्नान, ७. गन्धोदकस्नान, ८. शुद्धोदकस्नान, ९. वस्त्र, १०. उपवस्त्र, ११. यज्ञोपवीत, १२. चन्दन, १३. अक्षत, १४. पुष्पमाला, १५. दूर्वा, १६. सिन्दूर, १७. सुगन्धिद्रव्य, १८. धूप, १९. दीप, २०. नैवेद्य, २१. ऋतुफल, २२. करोद्वर्तन, २३. ताम्बूल, २४. दक्षिणा, २५. आरती, २६. पुष्पाञ्जलि, २७. प्रदक्षिणा, २८. विशेषार्घ्य, २९. प्रार्थना आ ३०. नमस्कार।)

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय सर्वेश्वराय शुबदाय सुरेश्वराय।
विद्याधराय विकटाय च वामनाय भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते॥
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:। नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नम:॥
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे। भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक॥
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति। भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति॥
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति। तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव॥
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया॥
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:॥

ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

तदनन्तर नवग्रह

नवग्रह स्थापना ईशानकोणमे चाइर खडी पायासँ आ चाइर पडी पायासँ चौकोर मण्डलरूपमे, नौ कोष्ठक सहित बनाबी। बीच कोष्ठकमे सूर्य, अग्निकोणमे चन्द्र, दक्षिणमे मङ्गल, ईशानकोणमे बुध, उत्तरमे बृहस्पति, पूर्वमे शुक्र, पश्चिममे शनि, नैऋत्यकोणमे