(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

बुधवार, 21 सितंबर 2011

नारी समाज की हकीकत

नारी समाज की हकीकत
करुणा झा

“नारी तुम केवल श्रद्धा हो ।
विश्वास रजत नगपग तल में
... पीयुष श्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में”

कविवर जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ शायद तब हीसार्थक सिद्ध हो सकती है, जब औरतों के प्रति इस समाज की सोच विकसित हो । पुरुष मानसिकता बाले इस समाज में महिलाओं की स्थिति अब भी दूसरे दर्जे की बनी हुई है । आज २१वीं सदी में भी मध्य युग की उन सडी–गली रुढियों और मान्यताओं को ढोने और पुरुषों के प्रत्येक अत्याचारों को झेलने के लिए अभिशप्त है, जिन्होंने उनकी जिंदगी नारकीय बना दी थी । महिलाओं पर दिनों दिन लगातार बढती अत्याचार की घटनाओं ने विचारशील लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि या तो कानून ठीक ढंग से अपना काम नहीं कर पा रही है अथवा महिलाओं के प्रति नजरिये में अभी बदलाव नहीं आया है । कहा जाता है – किसी देश की स्थिति को जानने का पैमाना यह है कि वहाँ की महिलाओं की स्थिति पर नजर डालें तो पताल लगता है कि उनकी हालत अब भी सोचनीय और दयनीय बनी हुई है, छेडखानी, दुराचार, दहेज, हत्या, कन्या भ्रुण हत्या, बाल विवाह, तलाक, परिवार की इज्जत के नाम पर हतया, बलात्कार, यौन शोषण आदि अनेकानेक अत्याचारों के कारण उन्हें घर और बाहर आये दिन शारीरिक और मानिसक यातनाों से गुजरना पडता है । ऐसी स्थिति मे हम कैसे कह सकते है कि महिलाएँ आगे बढ रही हैं । ऐसा नहीं है कि महिलाओं की स्थिति में बिल्कुल ही सुधार नहीं हो पाया है । आज की महिलाएं, हर क्षेत्र में पुरुष की बराबरी भी कर रही है मगर उन्हें भी समय समय पर हतोत्साहित किया जाता रहा है । लैंगिक विभेदता अभी भी हमारे समाज में इस तरह है कि महिलाएँ हर क्षेत्र में इसका शिकार बनती आ रही हैं ।
सती प्रथा, देवदासी प्रथा आदि अनेक कुरीतियाँ भी आज तक उनके पैरो की बेडियाँ बनी हुई है । तेजाब डालने, नौकरी दिलाने का झाँसा देकर विदेश भेजने या शोषण करने, धन के लिए गरीब माँ–बाप द्वारा लडकियों और महिलाओं को बेचने आदि घटनाएं भी रोजाना अखबारों की सुर्खियाँ बनी रहती है । इतना ही नही घर में होने बाली हिंसा का भी उन्हे शिकार बनना पडता है । भारत के बिहार, पश्चिम बंगाल, प्रजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के भूस्वामियों को लडकियाँ बेची जाती है जो उनके घरों मे नौकरीयाँ बनकर घुट घुटकर जिन्दगी जीने को मजबूर है । ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत और नेपाल में ही महिलाओं के खिलाफ शोषण के इन रुपों का इस्तेमाल होता है । दुनियाँ भर में किसी न किसी ढंग से उनपर जुल्मों सितम ढाये जाते हैं । किर्गिस्तान में तो दुल्हन का अपहरण आम बात है । फर्क सिफ इतना है कि पहले अपहरण किया जाता था, अब कार से जबरन उसे भावी शौहर के घर ले जाया जाता है । वहाँ दुल्हन को शादी के लिए मनाने की कोशिश की जाती है । उनके नही मानने पर कुछ परिवारों में तो तब तक बंधक बनाकर रखा जाता है जब तक वह शादी के लिए रजामन्द नहीं हो जाती है । खास बात यह है कि इस काम में दुल्हन के घर बाले भी शामिल रहते हैं । इथोपिया और रुवाण्डा में तो यह प्रथा बेहद क्रुर है । परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर दुनियाँ भर के देशों में महिलाओं की हतया का चलन काफी पुराना है । भारत, नेपालके अलावा पाकिस्तान, बंग्लादेश, अलबानियाँ, कनाडा, ब्राजील, डेनमार्क, जर्मनी, इराक, इजरायल, इटली, साउदी अरब, स्वीडेन, यूगांडा, इग्लैण्ड और अमेरिका में इस तरह की हत्याएँ होती रहती है । माता पिता की पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से मना करने, तलाक मांगने पर महिलाओं की हत्याएँ की जाती है । तेजाब डालकर महिलाओं का चेहरा जला देने की घटनाएँ अफगानिस्तान में आम है । धाना में धार्मिक दास्ता के तहत लडकियाँ को उसके परिवारवाले मंदिरो मे भेजते है, जहाँ पुजारी उनका शोषण करता है, ओर उससे मुफ्त मे काम करवाता है ।
सवाल यह उठता है कि हमारे संविधान से स्त्री को पुरुष के बराबर का दर्जा देने और उन पर होने बाले अत्याचारों को रोकने के लिए अनेक कानुनों के रहते हुए भी इनमें कमी होने की बजाय बृद्धि ही होती जा रही है । इस समस्या का समाधान समाज के साथ खुद स्त्री को ढुंढना होगा । एक मुख्य कारण तो यह है कि सदियों की गुलाम मानसिकता के कारण महिला अब भी अपने ऊपर होने बाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस नहीं जुट पाती है । वह यह सोचकर खामोश रह जाती है कि यदि उसने कोई कदम उठाया तो उसके और उसके परिवार की मान मर्यादा और प्रतिष्ठा पर धब्बा लग सकता है । उसे यह डर भी रहता है कि जुर्म करनेबाला व्यक्ति यदि प्रभावशाली हुआ तो वह कानून की गिरफ्त से बच निकलेगा और उसका जीना मुहाल हो जायेगा ।
समय पर अत्याचार का विरोध नहीं करना जुल्म को बढावा देता है । यह सच है कि कानून की अपनी अहमियत है और उन्हे कारगर बनाये जाने की जरुरत है । लेकिन विरोध की आवाज बुलन्द करने की पहल तो नारी को ही करनी होगी । घर में होनेबाले अत्याचारों पर भी यदि वह खामोश बैठ जाती है तो उनकी यातना के सफर का अंत होनेवाला नहीं है । प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी ने अपनी एक कविता में लिखा है –

“औरत ने जन्म दिया मर्दो को
मर्दो ने उन्हें बाजार दिया
जब जी जाहा मसला कुचला
जब चाहा दुत्कार दिया”

कवि के इस कथन के संदर्भ में नारी को अपनी शक्ति का अहसास करना होगा कि यदि मर्र्दो ने उसे बाजार दिया तो संसार तो उन्होंने ही दिया है । फिर वह खामोश रहकर अत्याचार क्यों बर्दाश्त करती है । औरत किसी भी मामले में पुरुषों से कम नही है, आज भारत में  ही देखे, महिला शक्ति से भरपूर राष्ट्र है । विपक्ष में सुषमा स्वराज, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, सोनिया गाँधी देशमें, कल्पना चावाल स्पेश में, पी.टी. उषा रेस में, ऐश्वर्या राय फेस में । फिर, क्यों न हममें भी हौसला हो बुलंदियो को छुने का । मै तो कहती हूँ कविता लिखनी चाहिए ।
“करो नयाँ संकल्प अभी तुम
गढ लो नई कहानी
या तो जीजाबाई बनो
या झाँसी की रानी”

तो फिर वो दिन दूर नहीं जब महिला सशक्तीकरण बर्ष नहीं पूरा देश ही महिला शक्ति से भरपूर होगा । अस्तु ।।
 

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

अहन के सिनेमा घर में जल्दिय अबैया --

देखू मैथिलि  सिनेमा - मुखिया जी


देखू मैथिलि सिनाम -
सजाना के अगाना में  सोलहो सिंगर 




सोमवार, 19 सितंबर 2011

दहेज मुक्ति के लिए मिथिलांचल में शुरू हुआ नया प्रयास ( पवन झा )”अग्निवाण”



भारतीय संस्कृति के प्राचीन जनपदों में से एक राजा जनक की नगरी मिथिला का अतीत जितना स्वर्णिम था वर्तमान उतना ही विवर्ण है। देवभाषा संस्कृत की पीठस्थली मिथिलांचल में एक से बढ़कर एक संस्कृत के विद्वान हुए जिनकी विद्वता भारतीय इतिहास की धरोहर है। उपनिषद के रचयिता मुनि याज्ञवल्क्य, गौतम, कनाद, कपिल, कौशिक, वाचस्पति, महामह गोकुल वाचस्पति, विद्यापति, मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, जैसे नाम इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में रवि की प्रखर तेज के समान आलोकित हैं। चंद्रा झा ने मैथिली में रामायण की रचना की। हिन्दू संस्कृति के संस्थापक आदिगुरु शंकराचार्य को भी मिथिला में मंडन मिश्र की विद्वान पत्नी भारती से पराजित होना पड़ा था। कहते हैं उस समय मिथिला में पनिहारिन से संस्कृत में वार्तालाप सुनकर शंकराचार्य आश्चर्यचकित हो गए थे।
कालांतर में हिन्दी व्याकरण के रचयिता पाणिनी , जयमंत मिश्र, महामहोपाध्याय मुकुन्द झा “ बक्शी” मदन मोहन उपाध्याय, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर”, बैद्यनाथ मिश्र “यात्री” अर्थात नागार्जुन, हरिमोहन झा, काशीकान्त मधुप, कालीकांत झा, फणीश्वर नाथ रेणु, बाबू गंगानाथ झा, डॉक्टर अमरनाथ झा, बुद्धिधारी सिंह दिनकर, पंडित जयकान्त झा, डॉक्टर सुभद्र झा, जैसे उच्च कोटि के विद्वान और साहित्यिक व्यक्तित्वों के चलते मिथिलांचल की ख्याति रही। आज भी राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कतिपय लेखक, पत्रकार, कवि मिथिलांचल से संबन्धित हैं। मशहूर नवगीतकार डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्रा, कवयित्री अनामिका सहित समाचार चैनल तथा अखबारों में चर्चित पत्रकारों का बड़ा समूह इस क्षेत्र से संबंधित है। मगर इसका फायदा इस क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनवरत उपेक्षा और स्थानीय लोगों की विकाशविमुख मानसिकता के चलते कभी देश का गौरव रहा यह क्षेत्र आज सहायता की भीख पर आश्रित है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण प्रतिवर्ष यह क्षेत्र कोशी, गंडक, गंगा आदि नदियों का प्रकोप झेलता है। ऊपर से कर्मकांड के बोझ से दबा हुआ यह क्षेत्र चाहकर भी विकास की नयी अवधारणा को अपनाने में सफल नहीं हो पा रहा। जो लोग शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हैं भी वे आत्मकेंद्रित अधिक हैं इसीलिए उनका योगदान इस क्षेत्र के विकास में नगण्य है। मिथिलांचल से जो भी प्रबुद्धजन बाहर गए उन्होने कभी घूमकर इस क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। पूरे देश और विश्व में मैथिल मिल जाएँगे मगर अपनी मातृभूमि के विकास की उन्हें अधिक चिंता नहीं है।
ऐसे में सामाजिक आंदोलन की जरूरत को देखते हुए स्थानीय और प्रवासी शिक्षित एवं आधुनिक विचारों के एक युवा समूह ने नए तरीके से मिथिलाञ्चल में अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराई है। दहेज मुक्त मिथला के बैनर तले संगठित हुए इन युवाओं ने अपनी इस मुहिम का नाम दिया है “ दहेज मुक्त मिथिला”।
“दहेज मुक्त मिथिला” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसा आंदोलन है जिसकी बुनियाद दहेज से मुक्ति के लिए रखी गयी है। बिहार के महत्वपूर्ण क्षेत्र मिथिलांचल से जुड़े और देश-विदेश में फैले शिक्षित और प्रगतिशील युवाओं के एक समूह ने मैथिल समाज से दहेज को खत्म करने के संकल्प के साथ इस आंदोलन की शुरुआत की है। सामंती सोच के मैथिल समाज में यूं तो इस आंदोलन को आगे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना है मगर शुरुआती तौर पर इसे मिल रही सफलता से ऐसा लग रहा है कि मिथिलांचल के आम लोगों में दहेज के प्रति वितृष्णा का भाव घर कर गया है और वे इससे निजात पाना चाहते हैं।
दहेज मुक्त मिथिला के अध्यक्ष प्रवीण नारायण चौधरी कहते हैं कि “मिथिलांचल में अतीत मे स्वयंवर की प्रथा थी जिसका प्रमाण मिथिला नरेश राजा जनक की कन्या सीता का स्वयंवर है। समय के साथ मिथिलांचल में भी शादी के मामले में विकृति आई और नारीप्रधान यह समाज पुरुषों की धनलिपसा का शिकार होता गया। कभी इस समाज में शादी में दहेज के नाम पर झूटका(ईंट का टुकड़ा) गिनकर दिया जाता था वहीं आज दहेज की रकम लाखों में पहुँच गयी है। दहेज के साथ बाराती की आवाभगत में जो रुपये खर्च होते हैं उसका आंकलन भी बदन को सिहरा देता है। जैसे- जैसे समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा है दहेज की रकम बढ़ती गयी है।“ श्री चौधरी आगे कहते हाँ कि बड़ी बिडम्बना है कि लोग लड़कियों की शिक्षा पर हुई खर्च को स्वीकार करना भूल जाते हैं।
संस्था की उपाध्यक्षा श्रीमती करुणा झा कहती हैं कि “मिथिलांचल की बिडम्बना यह रही है कि यहाँ नारी को शक्ति का प्रतीक मानकर सामाजिक तौर पर तो खूब मर्यादित किया गया पर परिवार में उसे अधिकारहीन रखा गया। उसका जीवन परिवार के पुरुषों की मर्ज़ी पर निर्भरशील हो गया। शादी की बात तो दूर संपत्ति में भी उसकी मर्ज़ी नहीं चली। इसीलिए दहेज का दानव यहाँ बढ़ता ही गया। लड़कियां पिता की पसंद के लड़के से ब्याही जाने को अभिशप्त रहीं। इसका असर यह हुआ कि बेमेल ब्याह होने लगे और समाज में लड़कियां घूंट-घूंट कर जीने-मरने को बिवश हो गईं।“
इस मुहिम को मिथिलांचल के गाँव-गाँव में प्रचारित-प्रसारित करने हेतु आधुनिक संचार माध्यमों के साथ- साथ पारंपरिक उपायों का भी सहारा लिया जा रहा है। पूरे देश में फैले सदस्य अपने-अपने तरीके से इस मुहिम को प्रचारित कर रहे हैं।
एक समय मिथिलांचल में सौराठ सभा काफी लोकप्रिय था जहां विवाह योग्य युवक अपने परिवार के साथ उपस्थित होते थे और कन्या पक्ष वहाँ जाकर अपनी कन्या के लिए योग्य वर का चुनाव करते थे। यह प्रथा दरभंगा महाराज ने शुरू कारवाई थी। शुरुआती दिनों में संस्कृत के विद्वानों की मंडली शाश्त्रार्थ के लिए वहाँ जाती थी। राजा की उपस्थिति में शाश्त्रार्थ में हार-जीत का निर्णय होता था। यदि कोई युवा अपने से अधिक उम्र के विद्वान को पराजित करता था तो उस युवक के साथ पराजित विद्वान अपनी पुत्री की शादी करवा देता था । बाद में यह सभा बिना शाश्त्रार्थ के ही योग्य वर ढूँढने का जरिया बन गया। आधुनिक काल के लोगों ने इस सभा को नकार कर मिथिलांचल की अभिनव प्रथा को खत्म करने का काम किया।
संस्था के सलाहकार वरिष्ठ आयकर अधिकारी ओमप्रकाश झा कहते हैं की “मिथिलांचल को अपनी पुरानी प्रथा के जरिये ही सुधार के रास्ते पर आना होगा। प्रतिवर्ष सौराठ सभा का आयोजन हो और लोग योग्य वर ढूँढने के लिए वहाँ आयें जिसमें पहली शर्त हो की दहेज की कोई बात नहीं होगी तो दहेज पर लगाम लगाना संभव हो सकता है। पहले भी सौराठ में दहेज प्रतिबंधित था। विवाह में बाराती की संख्या पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है। संप्रति देखा जा रहा है कि मिथिललांचल में शादियों में बारातियों की संख्या और उनके खान-पान की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है। गरीब तो दहेज से अधिक बारातियों की संख्या से डरता है।”
बात सिर्फ आर्थिक लेन-देन तक सीमित हो तो भी कोई बात है। अब तो कन्या के साथ साज-ओ-सामान की जो फेहरिस्त प्रस्तुत की जाती है वह बड़ों-बड़ों के होश उड़ा देता है। उस पर भी आलम यह है कि अधिकतर लड़कियां विवाह के बाद दुखमय जीवन बिताने को मजबूर है क्योंकि स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग नहीं है और परदेश में खर्च का जो आलम है वह किसी से छुपा नहीं है।
“दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा चलाने में जुटे लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मैथिल समाज के उन लोगों से आएगी जो महानगरों में रहकर अच्छी नौकरी या व्यवसाय के जरिये आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं और दहेज को अपनी सामाजिक हैसियत का पैमाना मानते हैं। ऐसे लोग निश्चित रूप से विकल्प की तलाश में इस आंदोलन को कुंद करने का प्रयास करेंगे जिसे सामूहिक सामाजिक प्रतिरोध के जरिये ही रोका और दबाया जा सकता है। कुछ राजनेता जो अपने को मैथिल समाज का मसीहा मानते हैं उनके लिए भी ऐसा आंदोलन रुचिकर नहीं है। पर वक़्त की जरूरत है कि यह क्षेत्र ऐसे आंदोलनों के जरिये अपने में सुधार लाये।

जितिया व्रत कथा एहि प्रकारे अछि -

            जितिया व्रत कथा एहि प्रकारे अछि -
एक दिन कैलाशक अति रमणीय शिखरपर बैसि पार्वती शंकर जी सँ प्रश्न कयलनि जे कोन व्रत वा तपस्या छैक जकरा कयला सँ सौभाग्यवती स्त्रीक सन्तान जीवित रहतैक तकर उत्तर शंकर जी देलनि- आसीन कृष्ण अष्टमी तिथि कऽ यदि स्त्रीगण लोकनि पुत्रक कामनासँ शालिवाहन राजाक पुत्र जिमूतवाहनक कुशक प्रतिमा बना कलशक जल मे स्थापना तकरा खूब सुसज्जित कऽ नजदीक मे एक खाधि खुनि पोखरि निर्माण कऽ ओकर मोहार पर एक गोट पाकड़िक ठाढ़ि रोपि, ठाढ़िक ऊपर मे गोबर माटिक चिल्होड़िक निर्माण कऽ राखथि नीचा मे गीदरनीक आकृति बनाय राखि देथि दुनूक माथ पर सिन्दूर पिठार लगाय फूल माला सँ युक्त भऽ धूप-दीप नैवेद्य लऽ बाँसक पात पर पूजा कयलासँ पुत्रक जतेक जे ग्रह चक्र रहैब अछि ताहि सँ मुक्ति भेटैत छैक ओकर बंशक वृद्धि होइत छैक संग-संग सब मनोरथ पूरा होइत छैक
एहि पृथ्वी पर समुद्रक किनार पर नर्मदाक किनार पर दक्षिण दिशा मे कनकावती नामक एकटा गाम अछि, जाहिठाम सब तरहक सेना सँ सुसज्जित मलयकेतु नामक राजा राज्य करैत छलाह हुनके राज्य मे बहुलूटा नामक मरूभूमि छैक जकरा बिचे बाटे नर्मदा नदी बहैत छथि ओकरे किनार पर एक गोट अति विशाल पाकड़ि गाछ छल ओहि पाकड़िक धोधरि मे एकटा गिदरनी निवास करैत छलीह ठाढ़ि पर एक गोट चिल्होरनी निवास करैत छलीह बहुत दिन एक संग निवास करबाक कारणे दुनू मे बड़ गाढ़ दोस्ती छल ओहि नगरक निवास कयनिहारि महिला लोकनि ओहिगाछ लग आसीन कृष्ण अष्टमी तिथि कऽ जिमूतवाहनक पूजा कऽ कथावाचक सँ कथा सूनि अपन-अपन घर गेलीह गिदरनी चिल्होरनी सेहो व्रत केने छलीह ओहो लोकनि घर गेलीह
ओहि दिन संध्या समय मे ओहिनगर के जे नामी सेठ तकर एकमात्र पुत्रक मृत्यु भऽ गेलैक। ओकर परिजन नर्मदा कातमे आबि संस्कार दऽ घर जाइत गेलाह ओहि अष्टमी रातिमे टपाटप मेघ लागल छल हाथ-हाथ नै सुझै ओहि भयंकर अन्हार मे कखनो-कखनो बिजलौका लोकैत छलैक तकर इजोत मे ओहि मृतकक मांस देखि दिनभरिक उपासल गिदरनी तिनका धैर्य नहि राखल गेलनि। गाछपर जे निवास कयनिहरि चिल्होरनी तिनका सँ प्रश्न कयलनि कि हे बहिना जागल छह अनेक बेर गिदरनी द्वारा जिज्ञासा कयला पर चिल्हो कोनो जवाब नहि देल तहन गिदरनी सोचलनि बहिना शायद सुति रहली कैक बेर गिदरनी द्वारा जिज्ञासा एलो पर जवाब नहीं भेटला पर अपन धोधरि सँ निकलि नदी किनार पर जा ओहिठाम सँ अपन मुँहमे पानि आनि-आनि चिताके जे अग्नि तकरा मिझाओल
तखन चितामे अवशेष मांसक टुकड़ी तकरा खण्ड-खण्ड कऽ पेट भरि खेबो कयलनि अपन धोधरि मे आनि कय रखबो कयलनि गाछ पर बैसल चिल्हो हिनकर समस्त करतूत देखैत छलीह प्रातः काल गिदरनी चिल्हो सँ कहलनि सखी पारणाक चर्चा कियैक नहि करैत छी रातुक बातके जानय वला चिल्होड़ि उदास होइत उत्तर देलनि हे सखी ! पारणा करू गऽ पारणा के बेर भऽ गेल हम स्त्रीगण लोकनि द्वारा देल गेल अक्षत अंकुरीक नैवेद्य लऽ कऽ पारणा करैत छी अहूँ करु गऽ
तहन कालक्रममे प्रयागमे कुंभ लगलै संयोगसँ चिल्हो गिदरनी दुनू गोटे ओतय गेलीह ओहिठाम एक संग दुनूक मृत्यु भऽ गेल कुंभक मृत्युक कारण दुनू गोटेक जन्म वेदक ज्ञाता जे भास्कर नामक ब्राह्मण तिनका घरमे भेलनि दुनू गोटे जौँआं जन्म लेल दुनू के नामकरण भेल चिल्हो जे छलीह से जेठ भेलीह हुनकर नाम शीलावती राखल गेल गिदरनी छोट भेलीह हुनकर नाम कर्पूरावती राखल गेल दुनू गोटे जखन नमहर भेलीह कन्यादान योग्य तहन दुनू के कन्यादान भेल पैघ जे शीलावती तिनक विवाह महामत्त नामक जे धनी-मानी लोक तकरा संग छोटक विवाह मलयकेतु नामक महाराज तिनका संग
कालक्रमे कर्पूरावती गर्भवती भेलीह बच्चा जन्म लेलकनि लेकिन नहि बचलनि मरि गेलनि एहि तरहें कर्पूरावती के सात गोट पुत्र जन्म लेलकनि सातो मरि गेलनि लोकनि परम दुःखी रहैत छलीह
जेठ जे कन्या शीलावती हुनको सात टा पुत्र जन्म लेलकनि सातो जीवित छलनि शीलावती के सेहो कर्पूरावतीक सातो पुत्रक मृत्यु के देखि बड़ संताप होइत छलनि
एहि दुःख सँ कर्पूरावती जिमूतवाहन व्रतक दिन खाट पर सुतल छलीह राजा जहन गृहवासमे उपस्थित भेलाह तँ जिज्ञासा कयलनिरानी कत? तहन रानी के लगमे रहय वाली खबासीन से रानी के जाकऽ कहलक जे महाराज अहाँके तकैत छथि रानी खबासीन द्वारा सम्वाद देलनि जे कहुन गऽ जे शयनागार मे छथि तहन राजा आबि जिज्ञासा कयलनिप्रिये ! एना किऐक सुतल छीतहन जवाब देलनिसुखे सुतल छी राजा कहलनिप्रिये उठू !” ताहि पर कर्पूरावती कहलखिनअहाँ यदि हमरा संग सत्त करब तँ उठब नहि तँ नहि उठबराजा कहलनिअवश्य करब तहन रानी राजा सँ तीन बेर सत्त कराबौलनि
सत्त कयलापर कर्पूरावती ओछाओन सँ उठलीह कहलनि जे हमर जे बहिन शीलावती तकर सातो पुत्रक गरदनि कटा हमरा मँगा दिय तखन राजा पृथ्वीके ठोकैत कान धरैत कहैत छथिपापिन एहन बात अहाँ कियक बजलहुँएहि तरहें बेर-बेर कहलो पर हुनकर कोनो प्रत्युत्तर नहि सुनि हुनकर आज्ञा के स्वीकारि लेल तहन राजा कहलनि काल्हि अहाँ के सातोटा सिर अनाकऽ देब कर्पूरावती हुनकर वचन के सत्य मानि जिमूतवाहनक पूजा एल
तहन राजा अपन सत्यक रक्षा हेतु चण्डाल के बजाय आदेश देलमहामत्तक जे सातोटा पुत्र तकर गरदनि काटि कर्पूरावती के आनि दहुन प्रातः काल सातोटा मूरी आनि देलक ओकरा देखि कर्पूरावती अति प्रसन्न भेलीह
कर्पूरावती सातो मूड़ी के सात गो डाली मे पीयर कपड़ा मे बान्हि सातो पुतहुक पारणा लेल शीलावतीक ओतय पठा देलनि
शीलावती द्वारा निष्ठापूर्वक जिमूतवाहनक पूजाक सातो डाली मुँहक जे मुण्ड से ताड़क फल भऽ गेल सातो बालक जीवित भऽ गेलाह सातो अपन घोड़ा पर चढ़ि अपन घर एलाह सातो भाय स्नान-ध्यान कऽ अपन -अपन पत्नी लग पहुँचलाह तँ सातो पुतहु अपन-अपन स्वामी के मौसी द्वारा पठाओल ताड़क फल देखय देलक कहलक जे अहाँक मौसी पारणा लेल पठौलनि अछि
ओम्हर कर्पूरावती शीलावतीक सातो पुत्रक वधक शोकाकुल कानब सुनक जे आनन्द तकर प्रतिक्षा मे बैसल छलीह जहन कानब नहि सुनलनि तखन जिज्ञासा लेल पुनः दासी के पठाओल दासी ओहिठाम सँ आबि सब समाचार सुनेलक समाचार बुझि अति दुःखी भेलीह तखन राजासँ जिज्ञासा कयलनिहे महाराज ! काल्हि जे अहाँ शीलावतीक सातो बालकक सिर आनि कऽ देने रहि से ककरो दोसरक छलैक ?”
राजा उत्तर देल-“प्रिय ! अहाँक सोझामे सातो मुण्ड राखल छल तहन एहन प्रश्न किएक करैत छी
रानी ताहि पर कहलनिहमहूँ ओकरा सब के देखलियै तँ आश्चर्य भेल सब कोना जीवित भेल ?”
ताहिपर राजा कहलनिहे प्रिये ! अहाँक बहिन पूर्व जन्म मे सत-व्रतक पालन कयने छथि जकर प्रभावसँ हुनकर सातो पुत्र जीवित भय गेलनि अहाँ ओहन व्रतक पालन नहि एने छलहुँ जाहिसँ अहाँक पुत्र सब मरि-मरि गेल अहाँ दुःखी होईत गेलहुँ
राजाक मुँहसँ बात सुनि कर्पूरावती गुम भऽ ठाढ़ि रहलीह अगिला बर्ष जिमूतवाहन जाहि दिन छलैक ओहिदिन अपना दासी के पठेलखिन महामत्तक जे स्त्री शीलावती तिनका ओहिठाम जाकऽ हुनका कहलनि जे रानी कहलनि अछि जे जे दुनू गोटे एके संग पूजा करब कथा सूनब
तकर उत्तर शीलावती देलनि जे कर्पूरावती महारानी छथि हुनका सँ पूजा करब कथा सूनब संभव नहि छनि
दासी ओहिठाम आबि रानी के कहलनि ताहि पर कर्पूरावती कहलखीन हुनका सातटा बालक छनि तकर गुमान छनि प्रातः काल संग-संग पारणा करक लेल दासीकेँ पठेलनि दासी पुनः आबि कहलकनि कहलनि जे हम दुनू गोटे एक संग पारणा नहि सकैत छी
सुनि जेना रानी के देहमे आगि लागि गेलनि खरखरिया मंगा पारणा के जावन्तो समान लय शीलावतीक ओहिठाम पहुँचलीह ओहिठाम पहुँचलापर पानि पैर धो आसन पर बैसा तखन पुछलखिनअहाँ एहिठाम कोना पहुँचलहुँ ?” तकर उत्तर कर्पूरावती देलनि हम अहाँ संग मिलि कऽ पारणा करब
तकर जवाब शीलावती देलनिहम अहाँ संग एकठाम पारण नहि करब अहाँ राजाक जे राजभोग से करू आबो दुष्टताक त्याग करू
कर्पूरावती तैयो थेथर जकाँ कहलथिन-“ हम अहाँ संग मिलिये कऽ पारण करब
शीलावती सुनि जे आब मानयवाली नहीं अछि, पारणाक ओरिओन मे लागि गेलीह कहलनि जे आब अहाँ हमरा संग मिलि अवश्य पारण करू
तखन शीलावती कर्पूरावती के कहलनि जे पहिने अहाँ हमरा संग नर्मदा तट पर चलू दुनू गोटे ओहिठामसँ जा नर्मदा मे स्नान कयलनि स्नानोपरांत शीलावती कर्पूरावतीसँ प्रश्न कयलनिकि अहाँ के पूर्वजन्मक बात किछु स्मरण अछि कर्पूरावती नहि कहलनि तहन शीलावती कहय लगलखिन- “यैह नर्मदा नदी अछि यैह बाहुलुटा मरुभूमि अछि यैह विशाल पाकड़िक गाछ अछि पूर्व जन्म मे हम चिल्होरि छलहुँ अहाँ गिदरनी एहि पाकरिक धोधरीमे अहाँ निवास करैत छलहुँ डारिपर हम एहिठामक नगर निवासिनी महिला लोकनि जिमूतवाहनक व्रत एने छलीह एतय आबि लोकनि पूजा कयलनि कथा सुनलनि हम अहाँ दुनू गोटे व्रत एने रहि हमहुँ दुनू गोटे हुनके सभ लग मे कथा सुनलहुँ कथा सुनि अपन-अपन निवास स्थान मे चलि गेलहुँ ओहि दिन एहि नगर के जे सेठ तकर एकमात्र पुत्रक देहावसान भय गेलैक बन्धु बान्धव संग आबि चिता रचि संस्कार दय चल जाईत गेल मध्य रात्रिमे अहाँ हमरा जिज्ञासा एलहुँ प्रिय चिल्हो ! जागल छी कि सुतल ? अहाँ थोर-थोर कालपर कैक बेर जिज्ञासा कयल हम जवाब दैत गेलहुँ परन्तु अहाँ हमर बात नहि सुनलहुँ तखन अहाँ जिज्ञासा के देखि देखि हम चुप्पी लगा देलहुँ तहन अहाँ हमरा सुतल बुझि अपन धोधरि सँ निकलि मुँह सँ नदी सँ पानि आनि चिताके आगि मिझा पहिने भरि पेट माँस खयलहुँ तखन किछु आनि प्रातः कालक पारणा लेल सेहो राखि लेल
प्रातः भेने जहन अहाँ हमरा पारणा लेल कहलहुँ तँ रातुक जे वृतांत हम अहाँ के देखने रहीं तँ उदास मन हम कहलहुँअहाँ करु हम कयलहुँ तखन हम ग्रामीण महिला लोकनि द्वारा देल गेल अक्षत अंकुरी पारणा कयलहुँ अहाँ जे रातुक नर माँस रखने रही से पारणा कयलहुँ
सब बात हमरा बुझल अछि आबिकऽ देखि लिय कहि कर्पूरावतीक हाथ शीलावती ओहि पाकरीक धोधरि मे लय जा नर माँस हड्डी शेष मांस देखेलनि
तखन कर्पूरावती के शीलावती कहलखिनव्रत भंगक दोष सँ अहाँक पुत्र सब मरैत गेल अहाँ दुःखी होईत गेलहुँ हम नियमपूर्वक व्रतक पालन कयलहुँ तकर फलस्वरूप हमर सब पुत्र जीवित अछि हम प्रसन्न छी तें हमरा अहाँमे विरोधाभासो अछि
कर्पूरावती पूर्वजन्मक वृतांत शीलावती सँ सुनि ओहिठाम अपन शरीरक त्याग देल शीलावती ओहिठाम सँ धूमि घर एलीह राजा अपन पत्नीक श्राद्ध कर्म निश्चिंत भऽ राज चलावय लगलाह एह जिमूतवाहनक पूजा तक मृत्यु भवनमे लोक अपन सन्तानक दिर्घायुक कामनासँ करैत आबि रहल छथि एहि व्रत के नियमानुसार करय वाली सब तरहें भरल-पूरल रहैत छथि कथा सुनि कर्पूरक दीप जरा आरती कऽ पूजित देवताक विसर्जन करा दियनि ईति
साभारछठ पूजा डाट काम