(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

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गुरुवार, 16 जनवरी 2014

मैथिलीक विकासक बाधा


मैथिलीक  विकासक  बाधा थिक
आजुक युवाशक्ति मिथिलाक
पढ़ि लिख कए बनि  जाइ छथि
डाक्टर आ कलक्टर
मुदा नहि पढ़ि लिख सकैत छथि
मिथिलाक दू आखर ।

घरसँ निकलैत
ओ कहथिन "चलो स्टेशन"
लागैत छनि शंकोच
कहैमे की "चलू स्टेशन"
जेता जखन गामक चौकपर
लागत जेना
बसि रहला मैथिलीक कोखिपर।

सदिखन दूगोट समभाषी
बाजत अपने भाषा
परञ्च दू गोट  मैथिल
जतबैलेल अपन प्रशनेल्टी
मैथिली  तियागि कए
बजए लगता सिस्टमेटी
अपन माएक भाषासँ
प्रेस्टीजपर लागैत छनि बट्टा
लोग की कहतनि
संस्कारीसँ भs गेला मरचट्टा
संस्कारीसँ भs गेला मरचट्टा ।

@ जगदानन्द झा 'मनु'

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

हमारा स्कूल

हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
 
खिलती  है  यहाँ  नित दिन  शिक्षा का नया  फुल
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
सुबह - सुबह  होता यहाँ  माँ शारदा की बिन्ती
जिससे  मिलता  बच्चो को  मन  की शांति
 
न गंदगी ना कोई  शर्मंदिगी ना कही  पर हैं धुल
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
मिलती  है यहाँ  पर  प्रतिदिन  नयी  संस्कार
गरीब  हो या  आमिर  सब को है  पूरा अधिकार
 
स्नेह  और  प्यार  से भरा है  भरपूर
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
दूर - दूर  से शिक्षक  आकर  होंसला बढ़ाते  है
सिलेबस   के साथ - साथ कंप्यूटर  भी  सिखलाते है
 
जो न समझे  इनका  प्यार है  उनका ये सब भूल 
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
 
दूर - दूर से बच्चे  आकर  होंसला  बढ़ाते  है
अपने  माता - पिता  को  आज्ञा  का आश्रय करते हैं
 
छोटा सा  गाव में  मेरा  यह स्कूल 
सबसे  अच्छा  है  हमारा  रेड रोज  स्कूल 
  
लिखिका -
 
मनीषा कुमारी
ग्राम /पोस्ट  मेहथ
झांझरपुर , मधुबनी ,
बिहार
 

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

प्रिये पाठक

प्रिये पाठक


आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
हम निर्भर करैत छी ओही पर ,
जे संतुष्टि लक्ष्य अछि हमर
         आदर करैत छी जन - जन सं ,
         प्रिये पाठक छी अतिथि हमर

मधुर वचन जीवनक श्रेय अछी ,
प्रेम स्नेह जग - संसार में
बोली - वचन सुख सँ सम्रिध्ह ,
आत्मरक्षा के अधिकार में
       आदर करैत छी जन - जन सं ,
       प्रिये पाठक छी अतिथि हमर

फुरसैतक कमी सब के संग अछी ,
बेश्त आई ई संसार अछी
मिथिय्या जिनगी छोरी चलल ,
आस्तित्व रहस्य ई अधिकार में
       आदर करैत छी जन - जन सं ,
       प्रिये पाठक छी अतिथि हमर

होर परस्पर आई लागल ,
आगू बढाइये के प्यास जागल
अप्पन पद सेवा के खातिर ,
जग में आई अधिकार भेटल
        आदर करैत छी जन - जन सं ,
        प्रिये पाठक छी अतिथि हमर

 प्रेम - भाव भाई चारा के संग ,
मानव अहि सँ प्यासल आई
एक - दोसर के पार लगाऊ ,
जन - जन से ई नारा हमर
        आदर करैत छी जन - जन सं ,
        प्रिये पाठक छी अतिथि हमर













(मदन कुमार ठाकुर )

बुधवार, 3 नवंबर 2010

गलचोटका बर


( एकटा हास्य कविता)

देखू-देखू हे दाए-माए
केहेन सुनर छथि गलचोटका बर।
तिलकक रूपैया छनि जे बॉंकि
सासुर मे खाए नहि रहल छथि एक्को कर।

अनेरे अपसियॉंत रहैत छथि
अल्लूक तरूआ छनि हुनका गारा में अटकल।
खाइत छथि एक सेर तीन पसेरी
मुदा देह सुखाएल छनि सनठी जॅंका छथि सटकल।

केने छथि पत्रकारिताक लिखाई-पढ़ाई
दहेजक मोह मे छथि भटकल।
ऑंखि पर लागल छनि बड़का-बड़का चश्मा
मुहॅं कान निक तऽ चैन छनि आधा उरल।

ओ पढ़हल छथि तऽ खूम बड़ाई करू ने
मुदा हमरा पढ़नाईक कोनो मोजर ने।
बाबू जी के कतेक कहलियैन जे हमरो पसीन देखू
मुदा डॉक्टर इंजीनियर जमाए करबाक मोह हुनका छूटल ने।

जेना डॉक्टर इंजीनियरे टा मनुख होइत छथि
लेखक समाजसेवीक एको पाई मोजर ने।
सोच-सोच के फर्क अछि मुदा केकरा समझाउ
दूल्हाक बज़ार अछि सजल खूम रूपैया लूटाउ ने।

एहि बज़ार में अपसियंॉत छथि लड़की के बाप
इंजीनियर जमाए कए छोड़ैत छथि अपन सामाजिक छाप।
एहि लेल तऽ अपसियॉंत छथि एतबाक तऽ ओ करताह
बेटीक निक जिनगी लेल ओ किछू नहि सोचताह।

अहॉं बेटी केॅ निक जॅंका राखब दहेज लैत काल
हमरा बाबू के ओ तऽ बड़का सपना देखौलनि।
ई तऽ बाद मे बूझना गेल जे किछूएक दिनक बाद
दहेजक रूपैया सॅं ओ पानक दोकान खोललैनि।

नहि यौ बाबू हम नहि पसिन करब एहेन सुनर बर
एतबाक सोचिए के हमरा लगैत अछि डर।
भले रहि जाएब हम कुमारी मुदा
कहियो ने पसिन करब, एहेन दहेज लोभी गलचोटका बर।

लेखक:- किशन कारीग़र
(परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं। )

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

सम्बन्ध

साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

कहू माताक आँचर मे की सुख भेटल।
चढ़ते कोरा जेना सब हमर दुःख मेटल।
आय ममता उपेक्षित कियै रति-दिन,
सोचि कोठी मे मुंह कय नुकाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

खूब बचपन मे खेललहुं बहिन-भाय संग।
प्रेम साँ भीज जाय छल हरएक अंग-अंग।
कोना सम्बन्ध शोणित कय टूटल एखन,
एक दोसर के शोणित बहाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

दूर अप्पन कियै अछि पड़ोसी लगीच।
कटत जिनगी सुमन के बगीचे के बीच।
बात घर घर के छी इ सोचब ध्यान सँ,
स्वयं दर्पण स्वयं के देखाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

निरीक्षण

अपने सँ देखब दोष कहिया अपन।
ध्यान सँ साफ दर्पण मे देखू नयन।।

बात बडका केला सँ नञि बडका बनब।
करू कोशिश कि सुन्दर बनय आचरण।।

माटि मिथिला के छूटल प्रवासी भेलहुँ।
मातृभाषा विकासक करू नित जतन।।

नौकरीक आस मे नञि बैसल रहू।
राखू नूतन सृजन के हृदय मे लगन।।

खूब कुहरै छी पुत्री विवाहक बेर।
अपन बेटाक बेर मे दहेजक भजन।।

व्यर्थ जिनगी अगर मस्त अपने रही।
करू सम्भव मदद लोक भेटय अपन।।

सत्य-साक्षी बनू नित अपन कर्म के।
आँखि चमकत फुलायत हृदय मे सुमन।।

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

लिखैत रही - किशन कारीग़र



मोन होइए जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
मुदा कहियो कऽ किछू-किछू लिखैत रही
कनेक हमरो गप पर धियान देबैए
मोन होइए जे पाठक सभ सॅं भेंट करैत रही।

ग़ालिब सेहो एक मिसिया कऽ पिबैत छलाह
मुदा किछू-किछू तऽ लिखैत छलाह
अपना लेल नहि पाठक लोकनिक लेल
मुदा बड्ड निक लिखैत छलाह।

पद्य लिखनाई तऽ आब हम सीख रहल छी
हमरा तऽ नहि लिखबाक ढंग अछि
मुदा किछू निक पद्य लिखि नेनापन सॅं
एतबाक तऽ हमर सख अछि।

िक िलखू िकछू ने फुरा रहल अिछ
बढलैऍ मँहगाई तऽ अधपेटे भूखले रहैत छी
िकऍक ने रही जाऍ भूखल पेट मुदा
िकछू िलखबाक लेल मोन सुगबुगा रहल अछी।

पोथि लिखलनि महाकवि विद्यापति
लिखलनि पोथि बाबा नागार्जुन
किछू नव रचना जे नहि लिखब
तऽ कोना भेटत मैथिली साहित्यक सद्गुण।

लेखक समाजक सजग प्रहरी होइत छथि
अपना लेल तऽ नहि अनका लेल लिखैत छथि
कतेक लोक हुनका आर्थिक अवस्था पर हॅसैत अछि
मुदा तइयो ओ चुपेचाप लिखैत रहैत छथि।

कहू एहेन उराउल हॅसी पर कोनो लेखक
एक मिसिया कऽ पिबत कि नहि
अपन दुःखित भेल मोन के
कखनो के अपनेमने हॅंसाउत कि नहि

कतेक लोक गरियअबैत अछि
एक मिसिया पीब कऽ लिखब ई किएक सीखू
मुदा आई किशन’ मोनक गप कहि रहल अछि
पिबू आ कि नहि पीबू मुदा किछूएक तऽ लिखब सीखू।

आई हमरो मोन भए रहल अछि
जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
अपना लेल नहि तऽ पाठक लोकनिक लेल
मुदा किछू नव रचना लिखैत रही।
(समप्प्त )
लेखक:- छैथि - संचार मिडिया से
किशन कारीग़र

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

भोरे सूती उठी देखलो
आँखी सं अपन नोर पोछैत ,
माए पुछलक कियाक कनैत छीक ?
की देखलो स्वप्न में कुनू दोस ?
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

जतय सीता जन्मली मैट सं
ओहो एकटा नारी भेली ,
जिनका रचायल वियाह स्वम्बर
हमहूँ ओहिना एगो नारी छीक
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

आय देखैत छीक घर - घर में
दहेजक कारन कतेक घरसे बहार ,
उमर वियाहक बितैत अछि हमरो --
की करू हमहूँ अपन उपचार ?
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

धिया - पुत्ता में कनियाँ - पुतरा संग
अपन जिनगी के केलो बेकार ,
बाबु - काका लगनक आश में
सालक - साल लागोलैन जोगार ,
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?

वियाह देखलो संगी - सहेली क
नयन जुरयल मन में आस भेटल ,
बट सावित्री आ मधुश्रवणी पूजितो
सेहो आई सपनोहूँ से छुटल
बेटी आँखिक नोर पोछैत --की माए
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?
(समाप्त )

लेखिका ---सोनी कुमारी ( नॉएडा )
पट्टीटोल , भैरव स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार



शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

करब नै हम नेतागिरी रोजगार


यो बाबु करब नै,
हम नेतागिरी रोजगार --
लोग कहैत अछि--
ई छी मतलबी दुनियां ,
कम काज पर नै कोनो विचार
लुट - माइर में सब से आगू ,
अपना के कहैत अछि होशियार
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

अपन जिनगी के शर्थक बुझायथ
गरीब जिनगी के नै कोनो उपचार ,
भोट मंगैय लेल दउर - दउर आबैथी
आ काज परलैन त नै कोनो सरोकार ,
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

खन दरिभंगा खन मधुबनी
सब दिन भागैथी बिधान सभा के द्वार ,
खेती - बारी के देखैत अछि ,
जोन- हरवाह के कतेक उपकार
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

रेडियो टी वी सब दिन कहिया
नेता लोकिन नै केलेन परोपकार ,
अपन पेटक रोजी - रोटी लै
हरदम उठेलैन अपन ललकार ,
यो बाबु करब नै ,
हम नेतागिरी रोजगार --

लेखक -
मदन  कुमार  ठाकुर  
पट्टीटोल , भैरब स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार
Mo -9312460150

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

ई सबटा मैथिल कहैया ---

ई सबटा मैथिल कहैया

दुनिया कहैया बिहार बर पाछू ,
नेता कहैया आब कतेक जागू,
केंद्र कहैया की- की सब देखू ,
बिहारी कहैया कतय के भागु ,
हम नै ,  ------
ई सबटा मैथिल कहैया----
साइंस कहैया आब कतेक खोजू ,
शिक्षा कहैया आब कतेक जागू ,
विद्दायर्थी कहैया आब कते पढू ,
शोभाग्य मिथिला कहैया कते देखाबू ,
बिहारी कहैया कतेक आब सुतू ,
हम नै ,  ----------
 ई सबटा मैथिल कहैया------

दिल्ली कहैया कतेक क राखू ,
बम्बई कहैया कतेक क भगाबू ,
अमेरिका कहैया कतेक विजा बनाबू ,
लन्दन कहैया कते और अप्नाबू ,
बिहारी कहैया कतय घर बसाबू
हम नै , ----------
 ई सबटा मैथिल कहैया----

कमला कहैया आब कतेक रूकु ,
कोशी कहैया आब कतेक देखू ,
गंडक कहैया किम्हर के बहु ,
नहर कहैया कते आब पटाबू ,
बिहारी कहैया की सबहक़ जल पिबू ,
हम नै ,--------
 ई सबटा मैथिल कहैया----

कर्म कहैया कतेक बचाबू ,
धर्म कहैया कतेक निभाबू ,
सरम कहैया कतेक छिपा बू ,
मृत्यु कहैया कते बेर जिबू ,
बिहारी कहैया कते दुःख सहू
हम नै ,---------
 ई सबटा मैथिल कहैया----

शरावी कहैया कते आब पिबू ,
किसान कहैया कते बेशाहा लगाबू ,
पंडित कहैया कते दान कराबू ,
मोन कहैया कते आब कानू ?
बिहारी कहैया कते दुःख सहू ,
हम नै ,--------
 ई सबटा मैथिल कहैया----

रेलगाड़ी कहैया कते आब चलू ,
रिजर्व वेशन कहैया कतेक आब करू
प्लेन कहैया कतेक आब ऊरू ,
संसाधन कहैया कते नियम लगाबू
बिहारी कहैया कथि से चलू
हम नै ,-----------
 ई सबटा मैथिल कहैया----


मदन कुमार ठाकुर
पट्टीटोल , भैरव स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी ,
बिहार -८४७४०४
मो -०९३१२४६०१५०

 


बुधवार, 7 जुलाई 2010

कहिया होयत हमर बिबाह .....



लेखक - मुकेश मिश्रा
9990379449



कहिया होयत हमर बिबाह .....




बाप बताहे, कका किकयाते,चचा चिचया ते,
सब य अपना मोने बताह ......
हम लागल छि जोगार में जे कहिया
होयत हमर बिबाह ......

उमरक सीमा पर केलक, देहो आब देय य जबाब
आधा केस सेहो पाकल,दात खेलक तम्बाकू आ चाय
बाप पाये,कका कनिये,चचा बजिते,
चाही हमरा पाय अथाह ........
हम लागल छि जोगारमें जे कहिया
होयत हमर बिबाह .....

इसकुल कोलेज सब केलौ,तौयो नही कीछ पलौ
परीते लिखते सब कीछ बुझु हम गमेलौ
बाप पिटते,कका कुथिते,चचा चीकरैते,
जो ने परहै ले नबाब ..........
हम लागल छि ज़ोगार में जे कहिया
होयत हमर बिबाह ......

मेला ठेला सौसे गेलाउ,कतौ नै हम इस्क लरेलउ
कतेक तकै छल हमरा दिश,ककरो दिश नै नजेरघुमेलउ
बाप पिबते,कका लरीते,चचा चीखते ,
करैत छात सौसे हहाकार ...... हम लागल छि ज़ोगार में जे कहिया
होयत हमर बिबाह .....



मदन मामा के हमहू कहलव,अहि लगाबू आब ज़ोगार
गोरकि करिकी केहनो से , अहि करबू हमरा उधार
मामा ड़रीते ,धू धू करीते,हमरा दिश सटीते,
की बजैय छ बताह .......... हम लागल छि ज़ोगार में जे कहिया
होयत हमर बिबाह .....
email-mukesh.mishra@rediffmail.com

सोमवार, 28 जून 2010

परदेश में



लेखक - मुकेश मिश्रा

परदेश में

बर - सनम बेमन स छि हम परदेश में ,
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में

कनिया- एतय आहाक बौआ पलैत अछी हमर पेट में
आगि लागल बज्र खसल धान बला खेत में

बर - की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
सनम बेमन स छि हम परदेश में ,

कनिया - बीघा के बीघा में आयल दहार यौ
खेत रहितो भेल छै जीवन पहार यौ

बर - अबै छि फागुन में चेन लेने भेट में
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में

कनिया- गहुम के हालत खराबे खराब छै
गामक किसान त करैत बाप बाप छै
खेती ग्रहस्थी में साधनक अभाब छै
बिजली के नाम पर बस पोल ठार छै
बोडिंग गराउ आऊ पाइन दियौ खेत में
नाही त चली जायत इ रौदिक चपेट में

बर - की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
कनिया -एतय आहाक बौआ पलैत अछी हमर पेट में

बर - पत्र पढैत बात मोन केर छुबी गेल
करू की आखी स नोर बस चुबी गेल
सोचैत छि सुख दुःख गमायब हम साथ में
होली में मिली जायब गाम केर रंग में
जोरीक रहब हम आब साथ साथ में
की करु नोकरी धेने एकटा सेठ में
सनम बेमन स छि हम परदेश में ,


गीत -- मुकेश मिश्रा
9990379449
e mail - mukesh.mishra@rediffmail.com

गुरुवार, 24 जून 2010

भारत भूमि महान



लेखक - मुकेश मिश्रा


मार्ग कठिन अछी आत्मबल सबल अछि
पाठकक स्नेहे स मनोबल बढल आछी !
हम तऽनिमित छि मिथिलाक पुत्र केर ,
दीन राति बाटैत छि मैथिलिक सूत्र केर !!
मिथिला राज्य चाही बस एक अछि अभिलाषा ,
अपन गामक सहयोग स जरुर पुरत इ आशा !!!

भारत भूमि महान

हमर हे भारत भूमि महान , आहा केर लाखक लाख प्रणाम
भाल मुकुट हिमगिरी बीराजय , बन उपवन तन -मन के साजय,
जलनिधि पायर पखारथी सदिखन ,कय कल -कल स्वर गान !
हमर हे भारत भूमि महान , आहा केर लाखक लाख प्रणाम !!

दिनकर प्रथम किरन दय उर पर ,गाबय कोकिल सातहु सुर पर ,
शीतल बिंदु इंदु झहराबथी , तारागन मुस्कान
हमर हे भारत भूमि महान , आहा केर लाखक लाख प्रणाम

ब्रम्हापुत्र ,गंडक आ गंगा , सरयुग ,कोशी ,यमुना ,तमसा ,
वक्षस्थल पर खेलथी सदिखन कमला और बलान !
हमर हे भारत भूमि महान , आहा केर लाखक लाख प्रणाम

शंकर ,व्यास ,मंडन आ दधिची,बिद्या बारीधी पुण्र बिभूति
देलनि रंग बीरंगक पोथी गीता ,वेद ,पुरान !
हमर हे भारत भूमि महान , आहा केर लाखक लाख प्रणाम

गाँधी ,बुद्ध ,सुभाष ,भगत केर ,जंथी के नही एही जगत केर
सीता ,साबित्री सन कर्मठ ,मनु सनक सन्तान !
हमर हे भारत भूमि महान , आहा केर लाखक लाख प्रणाम
गीतकार - मुकेश मिश्रा
9990379449

बुधवार, 23 जून 2010

झरोखा



लेखक - मुकेश मिश्रा




झरोखा

पलक झुका कर सलाम करते है,
अपने दिल की दुवा आपके नाम करते है
कबूल हो तो मुस्कुरा देना,हम मुकेश मिश्रा,
ये झरोखा आप के नाम करते है


दुनियाँ में रह के सपनों में खो जाव
किसी को अपना बना लो या किसी का हो जाव
अगर कुछ भी नही होता तो तकिया लो अऔर
सो जाव ,

बुझी हुयी समा फिर से जल सकती है
तूफान में गिरी कस्ती किनारे लग सकती है
मायूस ना होना कभी जिन्दगी में ..
ये किस्मत है कभी भी बदल सकती है

दिल ने कहा दोस्त को sms करो ,
फिर ख्याल आया की दिल तो पागल है ,
फिर सोचा दिल दिल अगर पागल है तो क्या हुवा ..
मेरा दोस्त कैन सा नौरमल है

वादियों से सूरज निकल आया है,
फ़िजावो ने नया रंग चाह है
खामोश हो अब तो मुस्कराव,आपकी
मुश्कान देखने हमारा sms आया है

गम वी जो आशु ला दे,ख़ुशी वो जो गम भुला दे
हमे तो चाहिए आपकी इतनी सी दोस्ती, जो
हमारे याद करने पर एक फोन कर दे

लिखे जो खत मैंने उसकी याद में,
पूरा पढ़ लिया पापा ने रात में
सुबह जब हुवा तो जुते इतने परे की
तेरे नाम वाला बाल गजनी में बदल गया

जब भी हम मैसेज करते है,लोग कहता है
इनको तो आदत है पैसा उराने की,मगर वो
नदान किया जाने, ये भी एक आदत है
रिश्ते निभाने की

बरे अरमानो से बनबाया है,
इसे रौशनी से सजाया है
जरा खिरकी खोल के देख लेना,आपको
good night कहने चाँद को भेजबाया है

गीतकार - मुकेश मिश्रा
9990379449

सोमवार, 21 जून 2010

बेबफा प्यार


बेबफा प्यार
लेखक - मुकेश मिश्रा

मैंने प्यार किया तुझसे , दिल की गहरायी से
वो हरजाई ऐसी निकली, मार डाला तनहायी से
माय भूल से कर बैठा प्यार
समझ नही आया उस नागिन का प्यार
जिन्दगी रह गयी मझदार में
दिल के टुकरे हुये हजार
जब आखे खुला उनकी इंतजार में देखा ...
वह मग्न है दुसरो के प्यार में
भूल गया था मै की वह दौलतमंद की बेटी है
मै मरता रहा और वो महलो में लेटी रही
इसीलिए कहता हु यारो ........
मत करना प्यार दौलतमंद की बेटी से
मार डालेगी अँखीयो की गोली से
गीतकार - मुकेश मिश्रा
9990379449

कोजगरा


लेखक - मुकेश मिश्रा
अहि रायतो क लाख -लाख अभिन्दन
अहि दिनों क लाख -लाख अभिन्दन
अपन गाम घर और अपन गाम घर स जुरल सब भाय क
गीत कार व एक्टर मुकेश मिश्रा के तरफ स
सेहो लाख -लाख अभिन्दन

कोजगरा

गणु घर आंगन चमकाबौथ, सजबौथ अपन दलान
नहु - नहु बात फटैय छैन चिबा रहल छैथ पान
आयल मुकेश जी पुछलक काका .......

मदन जी के छि काइल कोजगरा, कुन नाच मंगबैय छि
मुह मोरी क कहला मुकेशबा,सेहो नय बुझल खुलासा
तहन पहिले से करारी केने छाथ एक पछहतर टाका ,
आ एगो मोटर गारी से ज नै लेता देता त हेबे कर्तान झगरा
हेबे कर्तान झगरा रौऊ मुकेशबा हेबे कर्तान झगरा
कतबो करता खोयचातानी, देबअ परतान टिभी जपानी
सोन सनक मदनजी हमर, नोकरी छैय सरकारी
तैय जमाय के नैय कोना देथिन एगो गारी
संगे संग टोकना लोटा अरिया थारी,
देब कुन भेलै इ भारी ....
नै कोना देथिन समैध बोरा भरल मखान
तहन ने रात भैर ओगेर क परसब अपन दलान
आंगन में बूङी अरिपन द सुभे गीत गाबी रहल छैथ
कोंटा दिश ताकि रहल छैथ, जे किया नै भार आयल ह
एतेक राइत बीत गेलै ह, किया नै भार आयल ह
धरफर धरफर लोक करै य परसू गणु मखान .....
गीतकार- मुकेश मिश्रा
9990379449

रविवार, 20 जून 2010

दफन


लेखक - मुकेश मिश्रा
दफन
ऐक बार मेरे मुल्क में एसा हुवा चलन
वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन
पहली थी बारी गाँधी की
गाँधी जी आ गये
जब सुट बूट देखे तो वो तिलमिला गये
जब कहि मिलती नही मुल्क में खादी
तो कहने लगे .....
चलता हु भूल आया हु लाठी
वो सो गये समाधि में फिर तानकर कफन
वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन

दूजी थी बारी चाचा नेहरू की .......
नेहरु जी आ गये

जब देखे बिगरे बच्चो तो वो भी तिलमिला गये
वो कह न सके सर्म के मारे पहले होश ढूंड लू
कहने लगे आता हु पहले रोज ढूंड लू
अब तक ना ढूंड पाए ,ऐसी लगी चुभन
वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन

तीजी थी बारी लाल की......
गये लाल जी भी आ
जब मुछ कटे देखे तो वो भी तिलमिला गये
कहने लगे ऐसा सितम सह नही सकता
संग मुछ कटो के माय रह नही सकता
ना लौटने की उन्होंने भी ली कसमे
और कहने लगे तीनो मिलकर ......

अरे मुल्क बालो कहो, सुधर जाते क्यों नही
जिस तरह गुजरा वो दिन उधर जाते क्यों नही
तुम्हे साफ साफ शब्दों में समझा चूका हु
सब भुला कर ना कहना की वो आते क्यों नही
जब देखा उन्होंने ये उजरा हुवा चमन
वो फिर से लगे मरने और हो गये दफन वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन
SONG WRITER-MUKESH MISHRA
CON..9990379449

शनिवार, 12 जून 2010

कोई दोस्त ऐसा बनाया जाये,

कोई दोस्त ऐसा बनाया जाये,
जिसके आसुओं को पलकों में छुपाया जाए,
रहे उसका मेरा रिश्ता कुछ ऐसा,
की अगर वो रहे उदास
तो हमसे भी न
मुस्कुराया जाए ,
आपाने अपनी आँखों में नूर छुपा रखा है,
होश वालो को दीवाना बना रखा है,
नाज़ कैसे न करू आपकी दोस्ती पर,
मुज जैसे नाचीज को खास बना रखा है...
फूल सुख जाते है एक वक्त के बाद,
लोग बदल जाते है एक वक़्त के बाद,
अपनी दोस्ती भी टूटेगी एक वक़्त के बाद,
लेकिन वोह वक़्त आयेगा मेरी मौत के बाद...
हम दोस्ती में हद ए गुज़र जायेंगे ,
यह जिंदगी आपके नाम कर जायेंगे,
आप रोया करेंगे हमे याद करके,
आपके दामन में इतना प्यार छोड़ जायेंगे


SHAILESH NAILWAL
9990113919

सोमवार, 10 मई 2010

उठो भाई जागो

ओ भारत के वीर जवानों ,
माँ का क़र्ज़ चुका देना ,
कटे फटे इस मानचित्र को
अबकी ठीक बना देना !!
पटना साहीब से मीलने को
ननकाना बैचेन खड़ा ,
अबकी तिरंगा रावलपिंडी में
घुस कर तुम फहरा देना !!
अटक कटक से सिन्धु नदी तक
सब कुछ हमको प्यारा है ,
कश्मीर मत मांगो कह दो
पाकिस्तान हमारा है !!
जो उपवन से घात करे
वो शाख तोड़ दी जायेगी ,
जो पीछे से वार करे
वो बांह मोड़ दी जायेगी ,
जो कुटुंब का नाश करे
वो गर्दन तोड़ दी जायेगी,
मेरे देश पे उठती
हर एक आँख फोड़ दी जायेगी ,
जो देश द्रोह की बात करे
वो मनुष्य हत्यारा है ,
कश्मीर मत मांगों
कह दो पाकिस्तान हमारा है !!
बन्दे- मातरं
जय हिन्द - जय भारत
(आनंद कुमार )

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

की हमहूँ रहबै कुमार ?

यौ पाठक गण की कहू अपन मिथिला राज्य चौपट भ' गेल ( से कोना यौ ) एक त कमला कोशीक दहार आ दोसर दहेज़ प्रथाक व्यवहार ! कमला कोशी लेलक पेटक आहार त दहेज़ प्रथा केलक आर्थिक लाचार ! कन्यादान से कतेक पिता लोकनि सेहो भेला बीमार आ कतेको बर छथि ओही बाधा सँ सेहो कुमार आ बीमार ! ओही सभ बात के लs क' हम नब युबक संघक बाधा कs ल'क' पाठक गणक समक्ष अपन गाम घर पर हाजिर छी.......

की हमहूँ रहबै कुमार ?

जय गणेश मंगल गणेश, सदिखन रटलो मंत्र उचार !
सभ बाधाक हरय बाला, कते गेलो अहाँ छोड़ि संसार !!
अपना लेल अगल - बगल मे, हमरा लेल किए दूर व्यवहार !
आब कहू यो गणपति महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार...? !!

बरख बीत गेल देखते देखते, जन्म कुंडली मे थर्टी ! (३०)
दहेजक आस मे हम नै बैसब, हमरो उम्र भो जेत सिक्सटी !! (६०)
गाम - गाम मे जे के बाजब, बाबू हमर छथि दुराचार !
आब कहू यो बाबू - काका, की हमहूँ रहबै कुमार... ?!!

ब्रह्म बाबा के सभ दिन गछ्लो, लगाबू अहि लगन मे बेरापार !
ओही खुशी मे अहाँ के देब, हम अपन गाय के दूधक धार !!
हे कुसेश्वर हे सिंघेश्वर, अहाँक महिमा अछि अपरम पार !
अहि लगन मे पार लगाबू, हम आनब दूध दही आ केराक भार !!
आब कहू यो भोले दानी, की हमहूँ रहबै कुमार ....?...

सौराठ सभा मे जे के बैसलों, सातों दिन आ सातो राति !
कियो नै पुछलक नाम आ गाम, की भेल अपनेक गोत्र मूल बिधान !!
घर मे आबी के खाट पकरलो, नै भेल आब हमर कुनू जोगार !
आब कहू यो बाबा - नाना, की हमहूँ रहबै कुमार --?!!

दौर - दौर जे पंडित पुर्हित, सभ दिन पूछी राय बिचार !
पंडित जी के मुहँ से फुटलैन ई बकार ..........
जेठ अषाढ़ त बितैते अछि, अघन से परैत अछि अतिचार !!
आब कहू यो पंडित पुर्हित, की हमहूँ रहबै कुमार ....?.

नै पढ़लो हम आइये - बीए, छी हमहूँ यो मिडिल पास !
डॉक्टर भइया - मास्टर भइया, ओहो काटलैथ एक दिन घास !!
ओही खान्दानक छी यो हमहूँ, जून करू आब हमर धिकार !
आब कहू यो बाबू - भैया, की हमहूँ रहबै कुमार ?!!

गोर - कारी सभ के सब दिन रखबै, लुल्ही - लंगरी से घर के सजेबई !
बौकी पगली के दरभंगा में देखेबाई, कन्ही कोतरी से करब जिन्दगी साकार !!
आब कहू यो संगी - साथी, की हमहूँ रहबै कुमार ..?........

अघन के लगन देख हम झूमी उठलो, जेना करैत अछि नाग फुफकार !
लगन बीत गेल माघ फागुन के, गुजैर रहल अछि जेठ अषाढ़ !!
अंतिम लगन ओहिना बितत, नैया डूबत हमरो बिच धार !
आब कहू यो मैथिल आर मिथिलाक पाठक गन,
की हमहू रहबै कुमार --?-!!

नब युवक के बातक रखलो मान, शादी.कॉम में लिखेलो अपन नाम !
नै कुनू भेटल कतो से मेल, लागैत अछि जे ईहो भेल फैल !!
कतेक दिन करब मेलक इंतजार........
आब कहू यो कम्पूटर महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार --?!!

भोरे उठी गेलो खेत खलिहान, उम्हरे से केना एलो कमला स्नान
देखलो दुई चैर आदमी के, बात करैत छल कन्यादान !
पीड़ी छुई हम भगवती के, पहुँच गेलो हम अपन दालान !!
हाथ जोरी हम सबके, विनती केलो बारम् बार !
आब कहूँ यो घटक महाराज, की हमहूँ रहबै कुमार --?

मदन कुमार ठाकुर,
पट्टीटोला, कोठिया (भैरव स्थान )
झंझारपुर (मधुबनी)बिहार - ८४७४०४।
मो-९३१२४६०१५०