(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

बुधवार, 24 नवंबर 2010

अपने लिए खींचें 'लक्ष्मण रेखा'
घर के चारों तरफ की चारदीवारी हमारी चीजों को सुरक्षित रखती है और हमें अपने पसंदीदा वातावरण में काम करने का उपयुक्त माहौल प्रदान करती है। उसी प्रकार अच्छी व्यक्तिगत सीमाएं हमें दूसरों के सामने अपमानित होने से बचाती हैं। यह इस बात की जानकारी भी देती है कि आप उनके साथ संबंधों में कहां खड़े हैं।
यह इस बात की ओर भी इशारा करती है कि आप किन बातों का समर्थन करते हैं और किन बातों का नहीं। यह हमें दूसरों के कृत्यों एवं शब्दों से भी दुखी होने से बचाती है। यह दूसरों को उस बात से भी अवगत कराना है कि आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते। ये सीमाएं हमें एक-दूसरे से अलग करती हैं।
सीमाएं सदा अच्छे और ऊंचे दीवारों के रूप में ही नहीं होती हैं। भौतिक के अलावा ये भावनात्मक भी होती हैं, जैसे कि हम सभी के अंदर किसी खास स्थिति में खास भावनाएं एवं प्रतिक्रियाएं होती हैं।
किसी भी स्थिति में जो व्यक्ति हमारे संपर्क में आते हैं, उनके प्रति हमारा रवैया हमारी सोच, पृष्ठभूमि, पूर्व की घटनाओं एवं समाधानों तथा हमारी चित्रों एवं मान्यताओं पर आधारित होता है। ऐसा संभव है कि अन्य भी जो कि आप की तरह की ही सोच रखते हैं, मोटे तौर पर आप जैसा भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें, लेकिन कोई भी बिल्कुल वैसी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे, जैसा कि आप दूसरे से कर सकते हैं। इसका स्पष्ट आधार है कि हर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न है।
अधिकतर स्थितियों में प्रतिक्रियाएं भावनात्मक होती हैं। किसी सहकर्मी मित्र या बिल्कुल अपरिचित का कोई वक्तव्य आपको निराशकर सकता है। बच्चों की तरह हम ज्यादा भावुक होते हैं और भावनात्मक रूप से ब्लैक मेल हो जाते हैं। कोई किसी बच्चों पर जो कि चश्मा पहनता है, तीखी टिप्पणी कर सकता है। वह बच्चा शायद इस पर प्रतिक्रिया न दे पाए, परंतु एक आत्मविश्वासी वयस्क यह जरूर कह सकता है कि आपका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि वह क्या पहनता है या फिर उसे व्यक्ति की संगति से ही अलग कर दे। वह यह भी जवाब दे सकता है कि किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह किसी की कार्यशीलता या उसकी सुंदरता पर टीका-टिप्पणी करे।
अन्य प्रकार के भावनात्मक अवरोधों में आपकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करना पार्टी व कार्यक्रमों में शामिल होना, जिसमें आपकी कोई रुचि नहीं है, आपको दु:खी करती है। एक अन्य प्रकार की स्थिति भी शैक्षणिक परिसरों में अक्सर देखा जाता है कि कोई पैसा ले लिया है और न तो लौटाता है, न ही कर्ज देने वाले से बात करता है।
जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह आपका परिवार हो या फिर कार्यस्थल, आपको अपनी सीमाएं तय करनी चाहिए। ऐसे लोग हो सकते हैं जो गुस्सैल और आक्रामक हों। आपको यह तय करना होगा कि आपके लिए क्या अमान्य है। आपको न केवल आचार विचार एवं व्यवहार संबंधी सीमाएं तय करनी चाहिए, बल्कि इसके उल्लंघन पर शांत नहीं रहना चाहिए।
आपकी अपनी खुशियों के लिए जरूरी है कि आप दूसरों की इच्छाओं के लिए अपनी भावनाओं का गला न घोटें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप एक गलत संदेश देंगे कि गलत आचरण भी आपको स्वीकार्य है। यह आपके लिए ज्यादा कष्टदायक होगा, बजाय इसके कि यदि आप दूसरों को इस बात की छूट देते हैं कि वे आपके समय ऐसा-वैसा व्यवहार कर सके तो वह न तो इस बात को समझेगा न ही सीखेगा कि ऐसा बर्ताव आपको नापसंद है और वह बेइज्जती करके यूं ही चला जाएगा। ऐसे में सीमांकन दोनों ही पक्षों के लिए उचित है।
आपको सदैव इस बात के प्रति सजग रहना होगा कि किस प्रकार का व्यवहार या आचरण आपके लिए हानिकर है। आप महसूस करेंगे कि लोग आसानी से अपकी आवश्यकताओं को समझ जाएंगे और उसका ध्यान रखेंगे। यदि फिर भी कोई आपसे अभद्र व्यवहार करता है तो बिना किसी झिझक आपको उसे स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा व्यवहार वह बंद करे।
ऐसी सीमाओं के निर्धारण से पूर्व उस बात को स्पष्ट रूप से बंद करें। ऐसी सीमाओं के निर्धारण से पूर्व उस बात को स्पष्ट तौर पर समझ लें कि किस प्रकार का व्यवहार आपको पसंद है और किस प्रकार का नापसंद है। रिश्तों में आप क्या चाहते हैं और आपके इर्द-गिर्द के लोग आपसे कैसा व्यवहार करें। यह आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसे लोगों से संबंध न रखें या फिर उसे न्यूनतम स्तर तक ले जाएं, यदि यह संपर्क आवश्यक हो क्योंकि आप एक ही संस्था में काम करते हैं। आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि ज्यादातर लोग आपके अनुसार आपसे व्यवहार करेंगे।
(लेखक सीबीआई के पूर्व निदेशक हैं। डायमंड बुक्स प्रा.लि. से प्रकाशित उनकी पुस्तक 'सफलता का जादू' से साभार)

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

उत्तर : रिलीजन एक इटालियन शब्द है, जिसका अर्थ है वह चीज जो हमें प्रभु के साथ जोड़े। धर्म के दो पहलू हैं -एक बाहरी और एक अंदरूनी। अंदरूनी पहलू, रूहानी पहलू है। यह अध्यात्म है। अंदरूनी लक्ष्य सबका एक ही है -कि कैसे हम परमेश्वर से मिलें। और जो बाहरी पहलू है जिसमें हम कर्मकांड करते हैं -वो सबका अलग-अलग है। लोग इसे ही धर्म या संप्रदाय कहते हैं। मूल रूप से धर्म और अध्यात्म दोनों जुड़े हुए हैं। लेकिन हम लोग अक्सर सिर्फ बाहर की चीजों में उलझ कर रह जाते हैं, अंदर क्या है उसको भूल जाते हैं। और इससे कई कर्म कांड शुरू हो जाते हैं। एक कहानी सुनाता हूं। एक स्वामी जी थे, जो एक धर्म स्थान के पास सत्संग किया करते थे। जब सत्संग किया करते थे तो एक बिल्ली वहां आकर शोर मचाती थी। स्वामी जी ने सब सेवादारों से कहा कि बिल्ली को दूर बांधकर आया करो, तो उन्होंने बिल्ली को दूर बांधना शुरू कर दिया, ताकि सत्संग के वक्त शोर न हो। जैसे समय गुजरा उन स्वामी जी मृत्यु हो गई। एक नए स्वामी जी आ गए, वे भी पहले वाले स्वामी जी की ही तरह पूजा-पाठ और सत्संग करने लगे। कुछ समय बाद पुराने वाले सेवादारों की भी मृत्यु हो गई। तो अब नए सेवादार आ गए। इसके कुछ समय बाद बिल्ली की भी मौत हो गई। तब उन्होंने नई बिल्ली लाकर बांधनी शुरू कर दी। क्योंकि उन्हें लगा कि इतने समय से बिल्ली बांधी जाती थी। जरूर इसका कोई धार्मिक महात्म्य होगा। जब तक बिल्ली नहीं बंधेगी, तब तक भला सत्संग कैसे शुरू होगा। तो कर्म कांड ऐसे ही बनते हैं। हम भूल जाते हैं कि कारण क्या था, आंख पर पट्टी बांधकर हम उन्हें करते रहते हैं। हमें जानना चाहिए कि उसके पीछे उद्देश्य क्या है। अध्यात्म अनुकरण नहीं है, वो धर्म या विश्वास को अनुभव करना है। यह नहीं कि आंखें बंद करके किए जाओ। लेकिन हम सोचते हैं कि हमने अगरबत्ती जला दी, घंटी बजा दी, और काम हो गया। जब सभी धर्म एक ही बात कहते हैं, तो विभिन्न धर्मों के बीच इतनी लड़ाई क्यों होती है? हम विभिन्नता से इतने भयभीत क्यों रहते हैं? क्योंकि हम सिर्फ अपनी समझ और अपने विचारों को ही ठीक मानते हैं। हम सोचते हैं कि जो कुछ हमने सोच लिया , जो हमने कह दिया या कर दिया वही ठीक है , बाकी सब गलत हैं। अलग - अलग संस्कृतियां हैं , अलग - अलग तरीके हैं , अलग - अलग सोच है। हम ये समझ नहीं पाते कि अपने आराध्य की पूजा कई तरीकों से की जा सकती है। इसीलिए जब शांत अवस्था में बैठेंगे , अंतर में प्रभु के साथ जुड़ेंगें तो हमें यह विश्वास हो जाएगा कि सब एक हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारी चमड़ी का रंग क्या है , कि हम पढे़ - लिखे कितने हैं , या हमारे पास कितना पैसा है। या हम इधर मुंह कर के प्रार्थना करते हैं या उधर मुंह कर के। दूसरों के बारे अज्ञानता अथवा उन्हें पूरी तरह न समझ पाने के कारण कई मुश्किलें पैदा होती हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि हम कुछ समय दूसरों को जानने - समझने के लिए दें। अगर हम समय निकालेंगे , समझने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि सभी धर्मों की बुनियाद तो एक ही है। और जब एक बार इंसान को अनुभव हो जाए तो फिर उसकी तरफ से सबकी ओर सिर्फ प्यार ही जाता है , खिंचाव नहीं। संत राजेंदर सिंह जी महाराज

सोमवार, 22 नवंबर 2010

बच्चों की पढाई को लेकर माँ कितना तनाव ले, कितना नहीं

बच्चे की शिक्षा किसी भी परिवार का महत्वपूर्ण कर्तव्य होता है. बच्चे पूरे साल पढाई में नियमित रहें, साथ ही तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें, इसकी जिम्मेदारी माँ पर होती है, लेकिन क्या अधिकतर परिवारों में ऐसा हो पाता है? क्या माताएं सामान्य रह पाती हैं? और क्या बच्चा बिना किसी तनाव में आये परीक्षा दे पाता है? अधिकतर का उत्तर शायद ना में होगा. दरअसल कई बार परीक्षाओं का हौव्वा हमारा स्वयं द्वारा बनाया हुआ होता है, जिसका बच्चे और परिवार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

अपराजिता और उसकी बहन टापर रह चुकी हैं. उनकी माँ से जब बच्चों की कामयाबी का राज पूछा, तो वे हंस कर बोलीं, 'ऐसा कुछ खास तो नहीं किया, हाँ जब भी लगता था कि वे पढाई से दिल चुराने की कोशिश कर रही हैं, तो मैं कहती, चलो मेरे साथ घर का कम करवाओ. बस वे कम से बचने के लिए पढने बैठ जाती थीं. एक तरह से मैं भी यही चाहती थी कि वे घर का कम न करके अपनी पढाई पूरी कर लें. हो सकता है उनके जरिये मैं अपने सपने पूरे करना चाहती थी. हाँ, उनका जब खुद का मन होता था, तो वे घर के कामों में मेरा हाथ बटा देती थीं. उनके पिता चूँकि स्वयं विज्ञानी हैं, तो वे बच्चों की पढाई में जरूर मदद करते थे. यूँ मानिये कि उनकी पढाई में हम सभी का यह साझा प्रयास था - हमारी कभी तू-तू मैं-मैं नहीं हुई.

ऐश का मामला तो इससे एकदम उल्टा था. उसकी मम्मी करुणा तो रात-दिन ऐश के पीछे पड़ी रहती थी - चलो पढने का समय हो गया है. क्या बात है कल पेपर है और आज तुम अपनी सहेली से गप्पे लड़ा रही हो; ऐसे खाली कैसी बैठी हो. मैंने तुम्हारे चक्कर में खाना तक नहीं बनाया है, मैगी खा लेंगें और सब एक गिलास ढूध पीकर सो जायगें . खबरदार जो तुम बारह बजे से पहले सोई. अब आप स्वयं ही सोच सकते हैं कि ऐसे में ऐश की क्या हालत होती होगी.

बच्चों का यदि साल भर ध्यान रखा जय, तो जाहिर है कि परीक्षा के समय उन पर किसी किस्म का तनाव नहीं रहेगा. माँ को चाहिए कि वह आरम्भ से ही बच्चे में अनुशाशन, अध्धयन, शारीरिक व्यायाम, नियमित और संतुलित आहार की आदत डाले. अभिभावकों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि परीक्षा देना बच्चों का काम है, उन्हें सिर्फ उनके (बच्चों के) काम में मदद करनी है. इसके विपरीत माता-पिता परीक्षाओं को इस तरह अपने सर पर ओढ़ लेते हैं जैसे की परीक्षा उन्हें देनी हो. माता-पिता की घबराहट बच्चा या तो घबरा जाता है या फिर लापरवाह हो जाता है. बेहतर हो कि माता-पिता बच्चे के तनाव को कम करने का प्रयास करें और उस पर जबरन अच्छे अंक या अच्चा नतीजा लाने का दबाव न डालें. यह दबाव तो स्कूल और साथियों के कारण उस पर पहले से ही है. अभिभावक को तो इस दबाव को कम करने की जरूरत है.



अभिभावकों का कर्तव्य
अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य बच्चे से कतई न करें. इससे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
बच्चा चाहे कितने भी अंक लाये, उसे आगे बढ़ने को हमेशा प्रोत्साहित करें
अपनी इच्छाएं और अपनी चाहतें बच्चे के सामने कम से कम दर्शायें
अपने बच्चे को मूल्यवान समझें, वह जैसा भी है किसी चमत्कार से कम नहीं hai
अपने बच्चों कि क्षमताओं को समझें
अंको के आधार पर उसकी काबिलियत आंकने का प्रयास न करें
बच्चे अच्छी नींद लें. रात को देर तक पढने के बजाय सुबह जल्दी उठें. अच्छी नींद बहुत जरूरी है. शारीर को आराम चाहिए. बच्चा आठ घंटे कि नींद अवश्य ले.
बच्चों को संतुलित आहार दें और फास्ट फ़ूड से दूर रखें.
घर का माहौल सहज रखें. बच्चे से मित्रवत व्यवहार रखें.
लगातार पढने के लिए बच्चे पर दबाव न डालें.
बच्चा जिस समय पढने में सहूलियत महसूस करे, उसी समय उसे पढने दें. हर समय पढो-पढो की रट न लगाये रखें.
बच्चा जो भी परीक्षा देकर आये, उसके बजे में अधिक सवाल-जवाब करने से बेहतर है कि उसे अगले विषय के बारे में सोचने दें. जो कर दिया सो कर दिया, उसे आगे की सोचने दें.
जरूरी नहीं की उसके साथ पढाई के समय सर पर सवार होकर बैठा जय. उसे इत्मिनान से पढने दीजिये. उसे इस बात का एहसास ही काफी है कि आप उसके इर्द-गिर्द ही हैं और जरूरत के समय उपलब्ध हैं.
प्रयास करें कि इन दिनों आप बच्चे कि पसंद का खाना बनाएं. उसके साथ सैर को जाएँ, उसके मनपसंद खेल और शौक के बारे में उससे बातचीत करें.
परीक्षाओं से भी दो तरह के तनाव होते हैं - तनाव अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी. अच्छा तनाव वह है जिसके द्वारा बच्चा अनुशासन में रहना और आगे बढ़ना सीखता है, लेकिन बुरे तनाव के कारण बच्चे के मन- मस्तिस्क की शांति भंग हो जाती है, जिससे सर-दर्द और बदन दर्द हो जाता है और वह अवसादग्रस्त हो जाता है.
टाइम-टेबल बनाने में बच्चे कि मदद करें. देखें कि कोई विषय छूट न जाय. प्रत्येक घंटे के बाद ब्रेक हो, साथ ही उसे एहसास दें कि परीक्षा कोई जिन्दगी और मौत का सवाल नहीं है. परीक्षा, एक परीक्षा भर है, जिसके लिए उसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार बस मेहनत करनी है.
अभिभावक रोज सुबह जल्दी उठें, आँख बंद करके थोडा चिंतन-मनन करें और मन को शांत रखें.
अभिभावक अपना खान-पान सुधारें. दरअसल होता यह है कि अधिकतर हमारा रहन-सहन कुछ ठीक नहीं होता. कई बार हमारे खाने-पीने में, सोने-जागने में और आचार-व्यवहार की आदतें भी सही नहीं होतीं. कई बार हम काफी-चाय अधिक लेने लगते हैं, फास्ट-फ़ूड और कोल्ड-ड्रिंक भी ले लेते हैं जिससे बच्चों पर भी असर पड़ता है और वे भी इन चीजों कई मांग करते हैं और इनके आदी हो जाते हैं.
बच्चों को चाहिए
पढाई के लिए अपना समय स्वयं तय करें, अपना टाइम-टेबल बनाएं और उसके अनुसार पढाई करें. कुछ बच्चे रात को पढना पसंद करते हैं और कुछ दिन में. सुबह का वक्त पढाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि उस समय वातावरण में शांति होती है और सोने के बाद शारीरिक थकावट भी नहीं होती और बुद्धि भी तरोताजा होती है. शास्त्र तो यहाँ तक कहते हैं कि सुबह के समय (ब्रह्ममूर्त में) ऋषि-मुनि और देवता गण अपनी- अपनी रश्मियाँ/ किरने बिखेरते हैं और उस समय जो प्राणी जिस भाव से अपनी इच्छा शक्ति को बढ़ाता है उसे वह वस्तु मिल जाती है.
पढाई के बीच में आराम करना भी जरूरी है, क्योंकि एक साथ बैठे-बैठे दिमाग थकने लगता है, जिससे पढ़ाई का लाभ नहीं मिल पाता. अपना खान-पान सही रखें, विशेषतौर पर परीक्षाओं के दिनों में. फल सब्जियों का सेवन अधिक करें. परीक्षा से पहले घबराहट होनी तो स्वाभाविक है, लेकिन इससे भी आप पार पा सकते हैं. पढाई के बीच में थोडा समय निकल कर आप मनन - चिंतन करें और हल्का व्यायाम करें इससे आपका मन-मस्तिस्क शांत रहेगा और दिमाग भी चुस्त रहेगा.
आपको दिन में कम-से-कम आधा घंटा शारीरिक व्यायाम तो अवश्य करना चाहिए. अक्सर होता यह है कि सब कुछ आते हुए भी परीक्षा भवन में आप अक्सर उत्तर भूल जाते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए आप परीक्षा से एक रात पहले तनाव मुक्त हों, आराम से महत्वपूर्ण प्रश्नों को दोहराएँ, यह ध्यान रखें कि आप पूरा कोर्स एक रात में नहीं दोहरा सकते. इसलिए पहले से इस प्रकिर्या को प्रारंभ कर दें और हो सके तो महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर किसी नाम या तिथि या अपने जीवन की विभिन्न घटनाओं के साथ लिंक करके 'सेव' करलें जैसे कंप्यूटर में हम विभिन्न फाइलों को अलग-अलग नाम से 'सेव' कर लेते हैं और आवश्यकता के समय उस फाइल को आसानी से ढूंढ लेते हैं.
एग्जामिनेशन पेपर हाथ में आने के बाद एक दम उत्तर लिखना प्रारम्भ न करें. पेपर को ध्यान से पढ़ें. याद रखें, जो तुमने पढ़ा है, वह तुम्हारे दिमाग में कहीं है. बस थोडा जोर डालना है. अगर प्रश्न पत्र में सभी प्रश्न हल करना आवश्यक हैं तो भी और यदि उनमें से कुछ छूट है तो भी पहले वे प्रश्न हल करें जो तुम्हे सबसे अच्छी तरह आते हैं. उसके बाद भी यही क्रम जारी रखें. ऐसा करने से आपकी इच्छा शक्ति को बल मिलेगा और मन को शांति और हो सकता है जब तक आप कम याद वाले प्रश्नों तक पहुचें तब तक उनके बारे में भी आपके मस्तिस्क में आवश्यक जानकारी इकठ्ठी हो जाय. इससे एक लाभ यह होगा कि हो सकता है की एग्जामिनर आपके पहले प्रश्नों के उत्तर से प्रभावित होकर बाद वाले प्रश्नों की मामूली भूलों को नजरंजाज भी कर दे. इसका एक पहलू और भी है कि आप ऐसा करके अपने तनाव को एक सीमा तक दूर कर सकते हैं क्योंकि तनाव के समय जो एड्रेनैनिल नामक हार्मोन उत्पन्न होता है, जिससे दिमाग एकदम खाली-खाली सा महसूस करने लगता है उससे आप बहुत हद तक अपने आपको बचा सकते हैं. इस हार्मोन का असर व्यायाम से भी कम होता है क्योंकि व्यायाम से उर्जा बढती है जो इस हार्मोन के असर को कम कर देती है.

रविवार, 14 नवंबर 2010

एकटा तऽ ओ छलीह।

कनैत छलहूॅं माए गे माए-बाप रौ बाप
हे रौ नंगट छौंड़ा रह ने चुपचाप
नूनू बाबू कऽ ओ हमरा चुप करा दैत छलीह
एकटा तऽ ओ छलीह।

बापे-पूते के कनैत छलहूॅं कखनो तऽ
ओ हमरा दूध-भात खुआ दैत छलीह
बौआक मूहॅं मे घुटूर-घुटूर कहि ओ
अपन ऑंखिक नोर पोछि हमरा हॅसबैत छलीह।

खूम कनैत-कनैत केखनो हम बजैत छलहूॅं
माए गे हम कोइली बनि जेबउ
नहि रे बौआ निक मनुक्ख बनि जो ने
आओर कोइली सन बोल सभ के सुनो ने।

केखनो किछू फुरायत छल केखनो किछू
नाटक मे जोकर बनि बजैत छलहूॅं बुरहिया फूसि
मुदा तइयो ओ हॅंसि कऽ बजैत छलीह
किछू नव सीखबाक प्रयास आओर बेसी करी।

रूसि कऽ मुहॅं फुला लैत छलहूॅं
तऽ ओ हमरा नेहोरा कऽ मनबैत छलीह
कतो रही रे बाबू मुदा मातृभाषा मे बजैत रही
अपना कोरा मे बैसा ओ एतबाक तऽ सीखबैथि छलीह।





मातृभाषाक प्रति अपार स्नेह गाम आबि
नान्हि टा मे हुनके सॅं हम सिखलहूॅं
गाम छोड़ि परदेश मे बसि गेलहूॅं
मुदा मैथिलीक मिठगर गप नहि बिसरलहूॅं।

अवस्था भेलाक बाद ओ तऽ चलि गेलीह ओतए
जतए सॅं कहियो ओ घूमि कऽ नहि औतीह
मुदा माएक फोटो देखि बाप-बाप कनैत छी
मोन मे एकटा आस लगेने जे कहियो तऽ बुरहिया औतीह।

समाजक लोक बुझौलनि नहि नोर बहाउ औ बौआ
बुरहिया छेबे नहि करैथि एहि दुनियॉं मे
तऽ कि आब ओ अपना नैहर सॅं घूरि कऽ औतीह
मरैयो बेर मे बुरहिया अहॉं कें मनुक्ख बना दए गेलीह।

बुरहियाक मूइलाक बाद आब मइटूगर भए गेल किशन’
ओई बुरहिया के हम करैत छी नमन
अपन विपैत केकरा सॅं कहू औ बौआ
कियो आन नहि ओ बुरहिया तऽ हमर माए छलीह।


लेखक:- किशन कारीग़र


परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

छैठ परमेस्वरिक गीत

                                           छैठ परमेस्वरिक  ,गीत -५.
  सूप लेने ठाड़ -

 छैठ परमेस्वरिक  गीत - ६.
मैया हे छैठ मैया ---

 छैठ परमेस्वरिक गीत , पवन सिंह के संग

छैठ परमेस्वरिक  गीत  , शारदा शिन्हा  के संग ----






घरेलू नुस्खे: चुटकी में हल

घरेलू नुस्खों का प्रयोग करके कई समस्याओं को चुटकी में हल किया जा सकता है।
आज आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में :
नाभि में रोजाना सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते।
प्रतिदिन दिन में एक गिलास गाजर का जूस पीने से शरीर में खून बढता है। साथ ही आंखों की रोशनी बढती है।
तुलसी की चार पांच पत्तियों को सुबह-शाम चबाकर खाने से मुंह की दुर्गध दूर होती है।
शरीर के किसी हिस्से में कांटा चुभने पर उसमें हींग का घोल लगाएं। थोडी देर में कांटा निकल आएगा। पेटदर्द होने पर भूनी हुई सौंफ को चबाएं। दर्द से राहत मिलेगी।
बादाम के तेल के इस्तेमाल से रूसी दूर होती है।
खांसी होने पर तुलसी के रस, शहद और अजवाइन के रस को बराबर मात्रा में लेने पर आराम मिलता है।
रात में नींद न आने पर पैरों में तिल का तेल मलें।
नारियल के तेल में लौंग के तेल की कुछ बूंदे डालकर सिर की मालिश करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है।
खाना न पचता हो, तो प्याज के रस में थोडा सा नमक मिलाकर खाएं।
अमरूद के पत्तों का काढा बनाकर कुल्ला करने पर मुंह के छालों और मसूडों के दर्द से आराम मिलता है।

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन काठमाण्डौ

सूचना: अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन काठमाण्डौ मे २२ आ २३ दिसम्बर २०१० केँ श्री रामभरोस कापड़ि "भ्रमर"क संयोजकत्वमे आयोजित भऽ रहल अछि। श्री कापड़ि नेपाल प्रज्ञा संस्थानमे मैथिलीक प्रतिनिधित्व कऽ रहल छथि आ ई साहित्य क्षेत्रमे नेपालक सभसँ पैघ प्रतिष्ठाबल पद अछि ओहिना जेना भारतमे "साहित्य अकादमीक फेलो" होइत अछि।
२२ दिसम्बर २०१० केँ ई आयोजन नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, कमलादी, काठमाण्डौ आ २३ दिसम्बर २०१० केँ अग्रवाल सेवा केन्द्र, कमल पोखरी, काठमाण्डौमे आयोजित होएत। दुनू दिन आवस आ भोजनक व्यवस्था ग्रवाल सेवा केन्द्र, कमल पोखरी, काठमाण्डौमे रहत।

सोमवार, 8 नवंबर 2010

!!!मैथिली क भेटल एकटा नया आधार!!!


मैथिली भाषा आ मनोरंजन क्षेत्र क विकाशक लेल कएल जा रहल प्रयासक अंतर्गतएकटा महत्वपूर्ण कड़ी क रूप मं मिथिलांचलक निर्माण मोशन पिक्चर्सप्राईवेट लिमिटेड क बैनर तले मैथिली फ़ीचर फ़िल्म “मुखिया जी” क मुहूर्तविगत मंगलवार क भारतक मधुबनी जिल्ला अंतर्गत झंझारपुर अनुमंडल में संपन्नभेल। ई फ़िल्मक निर्माणक शुरूआत स संपूर्ण मिथिलांचलक समाज में अभूतपूर्वखुशी ऐछ। फ़िल्मक मुहूर्त में उपस्थित फ़िल्मक निर्माता रूपेश कुमारमिश्रा एवं प्रोड्क्शन हेड राजेश मिश्रा बतेलखिन जे मुखिया जी फ़िल्ममिथिलांचलक सामाजिक समस्या आ कुरीति पर हास्य आ व्यंग्यात्मक रूप सकटाक्ष करैत ऐछ। ई फ़िल्म पूर्व मं मैथिली मं बनल फ़िल्म स हैट क हौलीवुडआ बौलीवुड फ़िल्मक समकक्ष बनाईल जा रहल ऐछ। ई फ़िल्मक पोस्ट प्रोड्क्शनमुंबई मं हेतै आ रिलीजिंग क प्रबंध भवेश नंदन झा द्वारा हेतै अत्याधुनिकतकनीक और स्पेशल ईफ़ेक्ट से भरपूर मुखिया जी समाजक हर वर्गक मनोरंजन करत।ई बात क विशेष ख्याल राखल गेल ऐछ. फ़िल्म क मुख्य अभिनेता सुभाष चंद्रमिश्रा छैथ जिनका १७ टा लघु फ़िल्मक अनुभव छैन. निर्देशक विकास झा एवं सहनिर्देशक सजन सार्जन छैथ. फ़िल्म में नेपालक मिनाप क पूर्ण सहयोग ऐछ.मिनापक अध्य्क्ष सुनिल मल्लिक क कथनानुसार मिनाप हमेशा स मैथिली क पूर्णविकास क लेल तत्पर छै, चाहे ओ नेपाल हो या भारत. ई फ़िल्म में कुल मिलाकर३१६ टा कलाकार छैथ. ई फ़िल्म मं मिनापक मुख्य कलाकार प्रमेश झा, बी. एन.पटेल, रामनारायण जी, विष्णुकांत ठाकुर, रौशनी झा, अनिता रानी, संदीप,घनश्याम जी छैथ. फ़िल्म क संगीत श्री प्रवेश मल्लिक आ गीतकार डौक्टरराजेन्द्र विमल जी छैथ.हरेक भाषा क बढबै क लेल चलचित्र एक्टा महत्वपूर्ण भूमिका निभबै छै. जकरअभाव क प्रत्यक्ष उदाहरण अपना सबहक मैथिली भाषा क संगे भो रहल ऐछ. ईहेकमी क निवारण हेतू "निर्माण" संकल्पित भ अपन प्रथम मैथिली फ़िल्म "मुखियाजी" क ल क अपन मैथिल समाज भले ही ओ अपन बिहार मं रहैथ या बंबई या बंगलोरया दिल्लि; क समक्ष वसंत पंचमी मं ऎत।

अपन मैथिल समाज स सहयोगक अपेक्षित--
राजेश मिश्र
प्रोदुक्टिओं मेनेजर
निर्माण मोसन पिक्चर

बुधवार, 3 नवंबर 2010

गलचोटका बर


( एकटा हास्य कविता)

देखू-देखू हे दाए-माए
केहेन सुनर छथि गलचोटका बर।
तिलकक रूपैया छनि जे बॉंकि
सासुर मे खाए नहि रहल छथि एक्को कर।

अनेरे अपसियॉंत रहैत छथि
अल्लूक तरूआ छनि हुनका गारा में अटकल।
खाइत छथि एक सेर तीन पसेरी
मुदा देह सुखाएल छनि सनठी जॅंका छथि सटकल।

केने छथि पत्रकारिताक लिखाई-पढ़ाई
दहेजक मोह मे छथि भटकल।
ऑंखि पर लागल छनि बड़का-बड़का चश्मा
मुहॅं कान निक तऽ चैन छनि आधा उरल।

ओ पढ़हल छथि तऽ खूम बड़ाई करू ने
मुदा हमरा पढ़नाईक कोनो मोजर ने।
बाबू जी के कतेक कहलियैन जे हमरो पसीन देखू
मुदा डॉक्टर इंजीनियर जमाए करबाक मोह हुनका छूटल ने।

जेना डॉक्टर इंजीनियरे टा मनुख होइत छथि
लेखक समाजसेवीक एको पाई मोजर ने।
सोच-सोच के फर्क अछि मुदा केकरा समझाउ
दूल्हाक बज़ार अछि सजल खूम रूपैया लूटाउ ने।

एहि बज़ार में अपसियंॉत छथि लड़की के बाप
इंजीनियर जमाए कए छोड़ैत छथि अपन सामाजिक छाप।
एहि लेल तऽ अपसियॉंत छथि एतबाक तऽ ओ करताह
बेटीक निक जिनगी लेल ओ किछू नहि सोचताह।

अहॉं बेटी केॅ निक जॅंका राखब दहेज लैत काल
हमरा बाबू के ओ तऽ बड़का सपना देखौलनि।
ई तऽ बाद मे बूझना गेल जे किछूएक दिनक बाद
दहेजक रूपैया सॅं ओ पानक दोकान खोललैनि।

नहि यौ बाबू हम नहि पसिन करब एहेन सुनर बर
एतबाक सोचिए के हमरा लगैत अछि डर।
भले रहि जाएब हम कुमारी मुदा
कहियो ने पसिन करब, एहेन दहेज लोभी गलचोटका बर।

लेखक:- किशन कारीग़र
(परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं। )

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

लोक और परलोक

संसार में सारे पदों के लिए मारामारी है , पर भगवान के समीप पहुँचाने वाले पदों के लिए कोई भीड़ नहीं है क्योंकि उसमें खुद को मिटाना होता है।

गृहस्थ जीवन ही वैराग्य की पहली पाठशाला है

देव दत्त ईश्वर भक्ति करते थे, पर बात- बात पर पत्नी को धमकी देते थे कि देख ! तू अपने काम में सतर्क नहीं रही या तुमने यह काम नहीं किया तो मैं संत पुनीत के आश्रम में चला जाऊंगा, वैराग्य ले लूँगा। उसकी पत्नी यह सोच - सोच कर दुबली होती चली गई कि कहीं पतिदेव सचमुच ही न चले जाएँ। एक दिन संत पुनीत भ्रमण करते हुए उसके घर आ गए और बोले- "विद्यावती ! तेरा स्वस्थ्य कैसा हो गया, तू कुछ खाती नहीं क्या?" यह सुनकर वह रो पड़ी। संत के कहने पर उसने पति कि बार-बार धमकी कि बात बता दी। संत ने कहा कि जब वह अबकी बार धमकी दे तो उसे मेरे पास भेज देना। मैं उसे ठीक कर दूंगा। अगले दिन भोजन बनाने में कुछ देर हो गई तो देवदत्त ने पुनः धमकी दी। विद्यावती बोली - "कल कि छोडिये, आज ही चले जाइये। मन नहीं लगे तो वापस आ जाइयेगा।

अब तो देवदत्त के अहंकार को दुगनी चोट लग गई। वह तुरंत आश्रम को चला गया। रात में सोने की व्यवस्था हो गई। अगले दिन सन्यास दीक्षा के लिए पुनीत महाराज के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा- "कपडे उतर दो और नहा कर आओ।" उधर वे नहाने गए, इधर संत के इशारे पर देवदत्त के सारे कपडे फाड़ दिए। कुछ कडवे फल स्वल्पाहार के लिए रखे। फटे कपडे देख कर देवदत्त बहुत नाराज हुआ और जैसे ही खाना खाने बैठा तो गुस्से के मरे आश्रम के ब्रहम्चारियों को अपशब्द कहने लगा। यह कैसी व्यवस्था है? महर्षि बोले- "वैरागी को पहले संतोषी, धैर्यवान, सहनशील बनना पड़ता है।" देवदत्त बोला -"यह तो मैं घर पर भी कर सकता था। आपके पास तो विशिष्ट साधनाओं के लिए आया था। " महर्षि बोले - "तात! घर लौट कर सदगुणों का अभ्यास करो। विभूतियाँ तो बाद की बातें हैं।" देवदत्त घर लौट आये। पत्नी से क्षमा मांगने लगे। पत्नी ने कहा-"आपका स्वागत है प्रियतम घर में।
यदि हर गृहस्थी यह समझ ले तो सभी ओर शांति की साम्राज्य हो।
अपने अन्दर छुपे हुए सत्य का एक छोटा सा एहसास भी जीवन की साडी अपवित्रता को मिटाने में सक्षम है। आग की एक छोटी सी चिंगारी भी फूस के विशाल भंडार को नष्ट करने की क्षमता रखती है। इसी तरह अपने अन्दर छुपे हुए देवत्व का स्पर्श पाकर पूरे व्यक्तित्व में आग सी लग जाती है। जब उस देवत्व के बारे में सुनकर मन में रस आने लगे तो मानना चाहिए कि हमारे अन्दर रूपांतरण हो रहा है। नर-पशु भी यदि इस ओर ध्यान देने लगे तो वह भी एक दिन देवमानव बन कर रहेगा।

महर्षि शमीक और उनके शिष्यों को कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के महारण में एक खंडित घड़े के नीचे टिटहरी के कुछ अंडे मिले। शिष्य आश्चर्य चकित थे कि इतने भीषण युद्ध में भी वे अंडे न सिर्फ सुरक्षित थे बल्कि उनमे से कुछ पक्षी भी निकल आये थे। ऋषि ने उन्हें आश्रम ले चलने को कहा क्योंकि अगले दिन फिर युद्ध होना था। शिष्यों ने कहा- "महाराज जब ईश्वर ने इन्हें महासंग्राम में बचाया है तो क्या वह इनकी आगे रक्षा नहीं करेगा?" ऋषि - "वत्स ! जहाँ भगवान का काम समाप्त होता है, वहां मनुष्य का काम आरम्भ होता है। ईश्वर के छोड़े काम को पूरा करना ही मनुष्यता है।

ईश्वर ने जो परिवार या सहयोगी हमें दियें हैं उनकी सहायता करना हमारा धर्म है क्योंकि हम भी किसी न किसी कि सहायता प्राप्त करके ही बड़े हुए हैं ।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

छैठ परमेस्वरिक गीत चलचित्र में

छैठ परमेस्वरिक गीत चलचित्र में -
 कांच  ही बांस के ---- 
 गीत १.

पिरे साड़ी पिरे  अंगी अनिदीय यो , 
 गीत - २.  
चलु चलु चलु बहिना ,
 गीत ३.
चारी पहर  हम जल थल सेबलो ,
गीत ४.


       
दिय ने अभय बरदान  है छठी मैया ,
गीत -५.