नारी समाज की हकीकत
करुणा झा
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो ।
विश्वास रजत नगपग तल में
... पीयुष श्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में”
कविवर जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ शायद तब हीसार्थक सिद्ध हो सकती है, जब औरतों के प्रति इस समाज की सोच विकसित हो । पुरुष मानसिकता बाले इस समाज में महिलाओं की स्थिति अब भी दूसरे दर्जे की बनी हुई है । आज २१वीं सदी में भी मध्य युग की उन सडी–गली रुढियों और मान्यताओं को ढोने और पुरुषों के प्रत्येक अत्याचारों को झेलने के लिए अभिशप्त है, जिन्होंने उनकी जिंदगी नारकीय बना दी थी । महिलाओं पर दिनों दिन लगातार बढती अत्याचार की घटनाओं ने विचारशील लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि या तो कानून ठीक ढंग से अपना काम नहीं कर पा रही है अथवा महिलाओं के प्रति नजरिये में अभी बदलाव नहीं आया है । कहा जाता है – किसी देश की स्थिति को जानने का पैमाना यह है कि वहाँ की महिलाओं की स्थिति पर नजर डालें तो पताल लगता है कि उनकी हालत अब भी सोचनीय और दयनीय बनी हुई है, छेडखानी, दुराचार, दहेज, हत्या, कन्या भ्रुण हत्या, बाल विवाह, तलाक, परिवार की इज्जत के नाम पर हतया, बलात्कार, यौन शोषण आदि अनेकानेक अत्याचारों के कारण उन्हें घर और बाहर आये दिन शारीरिक और मानिसक यातनाों से गुजरना पडता है । ऐसी स्थिति मे हम कैसे कह सकते है कि महिलाएँ आगे बढ रही हैं । ऐसा नहीं है कि महिलाओं की स्थिति में बिल्कुल ही सुधार नहीं हो पाया है । आज की महिलाएं, हर क्षेत्र में पुरुष की बराबरी भी कर रही है मगर उन्हें भी समय समय पर हतोत्साहित किया जाता रहा है । लैंगिक विभेदता अभी भी हमारे समाज में इस तरह है कि महिलाएँ हर क्षेत्र में इसका शिकार बनती आ रही हैं ।
सती प्रथा, देवदासी प्रथा आदि अनेक कुरीतियाँ भी आज तक उनके पैरो की बेडियाँ बनी हुई है । तेजाब डालने, नौकरी दिलाने का झाँसा देकर विदेश भेजने या शोषण करने, धन के लिए गरीब माँ–बाप द्वारा लडकियों और महिलाओं को बेचने आदि घटनाएं भी रोजाना अखबारों की सुर्खियाँ बनी रहती है । इतना ही नही घर में होने बाली हिंसा का भी उन्हे शिकार बनना पडता है । भारत के बिहार, पश्चिम बंगाल, प्रजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के भूस्वामियों को लडकियाँ बेची जाती है जो उनके घरों मे नौकरीयाँ बनकर घुट घुटकर जिन्दगी जीने को मजबूर है । ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत और नेपाल में ही महिलाओं के खिलाफ शोषण के इन रुपों का इस्तेमाल होता है । दुनियाँ भर में किसी न किसी ढंग से उनपर जुल्मों सितम ढाये जाते हैं । किर्गिस्तान में तो दुल्हन का अपहरण आम बात है । फर्क सिफ इतना है कि पहले अपहरण किया जाता था, अब कार से जबरन उसे भावी शौहर के घर ले जाया जाता है । वहाँ दुल्हन को शादी के लिए मनाने की कोशिश की जाती है । उनके नही मानने पर कुछ परिवारों में तो तब तक बंधक बनाकर रखा जाता है जब तक वह शादी के लिए रजामन्द नहीं हो जाती है । खास बात यह है कि इस काम में दुल्हन के घर बाले भी शामिल रहते हैं । इथोपिया और रुवाण्डा में तो यह प्रथा बेहद क्रुर है । परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर दुनियाँ भर के देशों में महिलाओं की हतया का चलन काफी पुराना है । भारत, नेपालके अलावा पाकिस्तान, बंग्लादेश, अलबानियाँ, कनाडा, ब्राजील, डेनमार्क, जर्मनी, इराक, इजरायल, इटली, साउदी अरब, स्वीडेन, यूगांडा, इग्लैण्ड और अमेरिका में इस तरह की हत्याएँ होती रहती है । माता पिता की पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से मना करने, तलाक मांगने पर महिलाओं की हत्याएँ की जाती है । तेजाब डालकर महिलाओं का चेहरा जला देने की घटनाएँ अफगानिस्तान में आम है । धाना में धार्मिक दास्ता के तहत लडकियाँ को उसके परिवारवाले मंदिरो मे भेजते है, जहाँ पुजारी उनका शोषण करता है, ओर उससे मुफ्त मे काम करवाता है ।
सवाल यह उठता है कि हमारे संविधान से स्त्री को पुरुष के बराबर का दर्जा देने और उन पर होने बाले अत्याचारों को रोकने के लिए अनेक कानुनों के रहते हुए भी इनमें कमी होने की बजाय बृद्धि ही होती जा रही है । इस समस्या का समाधान समाज के साथ खुद स्त्री को ढुंढना होगा । एक मुख्य कारण तो यह है कि सदियों की गुलाम मानसिकता के कारण महिला अब भी अपने ऊपर होने बाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस नहीं जुट पाती है । वह यह सोचकर खामोश रह जाती है कि यदि उसने कोई कदम उठाया तो उसके और उसके परिवार की मान मर्यादा और प्रतिष्ठा पर धब्बा लग सकता है । उसे यह डर भी रहता है कि जुर्म करनेबाला व्यक्ति यदि प्रभावशाली हुआ तो वह कानून की गिरफ्त से बच निकलेगा और उसका जीना मुहाल हो जायेगा ।
समय पर अत्याचार का विरोध नहीं करना जुल्म को बढावा देता है । यह सच है कि कानून की अपनी अहमियत है और उन्हे कारगर बनाये जाने की जरुरत है । लेकिन विरोध की आवाज बुलन्द करने की पहल तो नारी को ही करनी होगी । घर में होनेबाले अत्याचारों पर भी यदि वह खामोश बैठ जाती है तो उनकी यातना के सफर का अंत होनेवाला नहीं है । प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी ने अपनी एक कविता में लिखा है –
“औरत ने जन्म दिया मर्दो को
मर्दो ने उन्हें बाजार दिया
जब जी जाहा मसला कुचला
जब चाहा दुत्कार दिया”
कवि के इस कथन के संदर्भ में नारी को अपनी शक्ति का अहसास करना होगा कि यदि मर्र्दो ने उसे बाजार दिया तो संसार तो उन्होंने ही दिया है । फिर वह खामोश रहकर अत्याचार क्यों बर्दाश्त करती है । औरत किसी भी मामले में पुरुषों से कम नही है, आज भारत में ही देखे, महिला शक्ति से भरपूर राष्ट्र है । विपक्ष में सुषमा स्वराज, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, सोनिया गाँधी देशमें, कल्पना चावाल स्पेश में, पी.टी. उषा रेस में, ऐश्वर्या राय फेस में । फिर, क्यों न हममें भी हौसला हो बुलंदियो को छुने का । मै तो कहती हूँ कविता लिखनी चाहिए ।
करुणा झा
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो ।
विश्वास रजत नगपग तल में
... पीयुष श्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुन्दर समतल में”
कविवर जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ शायद तब हीसार्थक सिद्ध हो सकती है, जब औरतों के प्रति इस समाज की सोच विकसित हो । पुरुष मानसिकता बाले इस समाज में महिलाओं की स्थिति अब भी दूसरे दर्जे की बनी हुई है । आज २१वीं सदी में भी मध्य युग की उन सडी–गली रुढियों और मान्यताओं को ढोने और पुरुषों के प्रत्येक अत्याचारों को झेलने के लिए अभिशप्त है, जिन्होंने उनकी जिंदगी नारकीय बना दी थी । महिलाओं पर दिनों दिन लगातार बढती अत्याचार की घटनाओं ने विचारशील लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि या तो कानून ठीक ढंग से अपना काम नहीं कर पा रही है अथवा महिलाओं के प्रति नजरिये में अभी बदलाव नहीं आया है । कहा जाता है – किसी देश की स्थिति को जानने का पैमाना यह है कि वहाँ की महिलाओं की स्थिति पर नजर डालें तो पताल लगता है कि उनकी हालत अब भी सोचनीय और दयनीय बनी हुई है, छेडखानी, दुराचार, दहेज, हत्या, कन्या भ्रुण हत्या, बाल विवाह, तलाक, परिवार की इज्जत के नाम पर हतया, बलात्कार, यौन शोषण आदि अनेकानेक अत्याचारों के कारण उन्हें घर और बाहर आये दिन शारीरिक और मानिसक यातनाों से गुजरना पडता है । ऐसी स्थिति मे हम कैसे कह सकते है कि महिलाएँ आगे बढ रही हैं । ऐसा नहीं है कि महिलाओं की स्थिति में बिल्कुल ही सुधार नहीं हो पाया है । आज की महिलाएं, हर क्षेत्र में पुरुष की बराबरी भी कर रही है मगर उन्हें भी समय समय पर हतोत्साहित किया जाता रहा है । लैंगिक विभेदता अभी भी हमारे समाज में इस तरह है कि महिलाएँ हर क्षेत्र में इसका शिकार बनती आ रही हैं ।
सती प्रथा, देवदासी प्रथा आदि अनेक कुरीतियाँ भी आज तक उनके पैरो की बेडियाँ बनी हुई है । तेजाब डालने, नौकरी दिलाने का झाँसा देकर विदेश भेजने या शोषण करने, धन के लिए गरीब माँ–बाप द्वारा लडकियों और महिलाओं को बेचने आदि घटनाएं भी रोजाना अखबारों की सुर्खियाँ बनी रहती है । इतना ही नही घर में होने बाली हिंसा का भी उन्हे शिकार बनना पडता है । भारत के बिहार, पश्चिम बंगाल, प्रजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के भूस्वामियों को लडकियाँ बेची जाती है जो उनके घरों मे नौकरीयाँ बनकर घुट घुटकर जिन्दगी जीने को मजबूर है । ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत और नेपाल में ही महिलाओं के खिलाफ शोषण के इन रुपों का इस्तेमाल होता है । दुनियाँ भर में किसी न किसी ढंग से उनपर जुल्मों सितम ढाये जाते हैं । किर्गिस्तान में तो दुल्हन का अपहरण आम बात है । फर्क सिफ इतना है कि पहले अपहरण किया जाता था, अब कार से जबरन उसे भावी शौहर के घर ले जाया जाता है । वहाँ दुल्हन को शादी के लिए मनाने की कोशिश की जाती है । उनके नही मानने पर कुछ परिवारों में तो तब तक बंधक बनाकर रखा जाता है जब तक वह शादी के लिए रजामन्द नहीं हो जाती है । खास बात यह है कि इस काम में दुल्हन के घर बाले भी शामिल रहते हैं । इथोपिया और रुवाण्डा में तो यह प्रथा बेहद क्रुर है । परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर दुनियाँ भर के देशों में महिलाओं की हतया का चलन काफी पुराना है । भारत, नेपालके अलावा पाकिस्तान, बंग्लादेश, अलबानियाँ, कनाडा, ब्राजील, डेनमार्क, जर्मनी, इराक, इजरायल, इटली, साउदी अरब, स्वीडेन, यूगांडा, इग्लैण्ड और अमेरिका में इस तरह की हत्याएँ होती रहती है । माता पिता की पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से मना करने, तलाक मांगने पर महिलाओं की हत्याएँ की जाती है । तेजाब डालकर महिलाओं का चेहरा जला देने की घटनाएँ अफगानिस्तान में आम है । धाना में धार्मिक दास्ता के तहत लडकियाँ को उसके परिवारवाले मंदिरो मे भेजते है, जहाँ पुजारी उनका शोषण करता है, ओर उससे मुफ्त मे काम करवाता है ।
सवाल यह उठता है कि हमारे संविधान से स्त्री को पुरुष के बराबर का दर्जा देने और उन पर होने बाले अत्याचारों को रोकने के लिए अनेक कानुनों के रहते हुए भी इनमें कमी होने की बजाय बृद्धि ही होती जा रही है । इस समस्या का समाधान समाज के साथ खुद स्त्री को ढुंढना होगा । एक मुख्य कारण तो यह है कि सदियों की गुलाम मानसिकता के कारण महिला अब भी अपने ऊपर होने बाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साहस नहीं जुट पाती है । वह यह सोचकर खामोश रह जाती है कि यदि उसने कोई कदम उठाया तो उसके और उसके परिवार की मान मर्यादा और प्रतिष्ठा पर धब्बा लग सकता है । उसे यह डर भी रहता है कि जुर्म करनेबाला व्यक्ति यदि प्रभावशाली हुआ तो वह कानून की गिरफ्त से बच निकलेगा और उसका जीना मुहाल हो जायेगा ।
समय पर अत्याचार का विरोध नहीं करना जुल्म को बढावा देता है । यह सच है कि कानून की अपनी अहमियत है और उन्हे कारगर बनाये जाने की जरुरत है । लेकिन विरोध की आवाज बुलन्द करने की पहल तो नारी को ही करनी होगी । घर में होनेबाले अत्याचारों पर भी यदि वह खामोश बैठ जाती है तो उनकी यातना के सफर का अंत होनेवाला नहीं है । प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी ने अपनी एक कविता में लिखा है –
“औरत ने जन्म दिया मर्दो को
मर्दो ने उन्हें बाजार दिया
जब जी जाहा मसला कुचला
जब चाहा दुत्कार दिया”
कवि के इस कथन के संदर्भ में नारी को अपनी शक्ति का अहसास करना होगा कि यदि मर्र्दो ने उसे बाजार दिया तो संसार तो उन्होंने ही दिया है । फिर वह खामोश रहकर अत्याचार क्यों बर्दाश्त करती है । औरत किसी भी मामले में पुरुषों से कम नही है, आज भारत में ही देखे, महिला शक्ति से भरपूर राष्ट्र है । विपक्ष में सुषमा स्वराज, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, सोनिया गाँधी देशमें, कल्पना चावाल स्पेश में, पी.टी. उषा रेस में, ऐश्वर्या राय फेस में । फिर, क्यों न हममें भी हौसला हो बुलंदियो को छुने का । मै तो कहती हूँ कविता लिखनी चाहिए ।
“करो नयाँ संकल्प अभी तुम
गढ लो नई कहानी
या तो जीजाबाई बनो
या झाँसी की रानी”
गढ लो नई कहानी
या तो जीजाबाई बनो
या झाँसी की रानी”
तो फिर वो दिन दूर नहीं जब महिला सशक्तीकरण बर्ष नहीं पूरा देश ही महिला शक्ति से भरपूर होगा । अस्तु ।।