बुधवार, 21 दिसंबर 2011
काका मारल गेला पाहिले कन्यादान में
Navin ठाकुर
काका मारल गेला पाहिले कन्यादान में
सौराठ्क मैदान में ना………!! २
एला पहिल बरद ओ बेच
तैयो कम परलैन दहेज़ ! २
बेच परलैन …बेच परलैन, खेतो अप्पन सम्मान में
पाहिले कन्यादान में ना !
काका …………………….
दोसर बेटी केलइन विवाह
सुनीते मांग ओ भेला बताह !२
अबिते ..अबिते मूर्छित भ खसला नवका दालान में
दोसर कन्या दान में ना
काका ……………………
कहा मैथिल बेटी के बाप
किया अछि बेटी अभिशाप ! २
सब दिन …सब दिन जिबैछी घुट -घुट क अपमान में
बेटी कन्यादान में ना
काका ………………….
उठू मैथिल बेटी के बाप
बैस्ल्हून किया ऐना उदास ! २
एल्हूँ ….एल्हूँ हम नवतुरिया एही विरोध अभियान में
बिन दहेज़ सम्मान में ना
काका ब्याहु धिया आब
मोछ पकैर क शान में
सौराठक मैदान में ना ……………काका ब्याहु धिया …..!! ४
(नविन ठाकुर )
शनिवार, 3 दिसंबर 2011
----------------गीत------------------
आँखिमे चित्र हो मैथिलि केर,हृदयमे हो माटिक ममता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकता सिहन्ता!
अछि करेजाक टुकड़ी हमर ई तिरंगा
धमनीमें हिमालय आ शोणितमें गंगा
अछि हमर ऐस्वर्यक कोनो चाह नै
बाट चलिते विपत्तिक परवाह नै
हम टूटी जा सकैछी, हम झुकी ने सकब
तुफनोक भय सँ हम रुकी ने सकब
हमर संग-संग बहय उनचासो पवन
बंधी देने छि तें माथमे हम कफ़न
हम रही ने रही ई तिरंगा रहय
फेर वनबास ने होइन्ह रामक, फेर जंगलमे कानथी ने सीता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता !
.कल्पनामे करोडों नदी आ नहरि
भावनामे हो लाखो समुन्द्रक लहरी
चिंतनमें उठैत अछि तेहने लहास
जेना हाथ होथि ओरने भगत आ सुभाष
माटी चमकैए माथपर जन्मभूमि केर
हमर कर्मभूमि केर, हमर धर्मभूमि केर
जतs खल -खल जनकिक आँगन हंसय
आ चकमक सावित्रिक कंगन करय
विण अपनही बजैब हम भारतीक मित्र
मरितो दम तक सजाएब हम मैथिलिक चित्र
गीतमे राखी क्रांतिक ज्वाला, सरगममें विजय केर भनिता
माएक सेवो जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता!
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकता सिहन्ता!
अछि करेजाक टुकड़ी हमर ई तिरंगा
धमनीमें हिमालय आ शोणितमें गंगा
अछि हमर ऐस्वर्यक कोनो चाह नै
बाट चलिते विपत्तिक परवाह नै
हम टूटी जा सकैछी, हम झुकी ने सकब
तुफनोक भय सँ हम रुकी ने सकब
हमर संग-संग बहय उनचासो पवन
बंधी देने छि तें माथमे हम कफ़न
हम रही ने रही ई तिरंगा रहय
फेर वनबास ने होइन्ह रामक, फेर जंगलमे कानथी ने सीता
माएक सेवामे जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता !
.कल्पनामे करोडों नदी आ नहरि
भावनामे हो लाखो समुन्द्रक लहरी
चिंतनमें उठैत अछि तेहने लहास
जेना हाथ होथि ओरने भगत आ सुभाष
माटी चमकैए माथपर जन्मभूमि केर
हमर कर्मभूमि केर, हमर धर्मभूमि केर
जतs खल -खल जनकिक आँगन हंसय
आ चकमक सावित्रिक कंगन करय
विण अपनही बजैब हम भारतीक मित्र
मरितो दम तक सजाएब हम मैथिलिक चित्र
गीतमे राखी क्रांतिक ज्वाला, सरगममें विजय केर भनिता
माएक सेवो जीवन बितादी, अछि बस इएह एकटा सिहन्ता!
सदस्यता लें
संदेश (Atom)