Jun 24, 08:45 pm
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फ्लैग : कभी जूटते थे लाखों सभैती, कन्या को देखे बिना तय हो जाती थी शादी
सुनील कुमार मिश्र, मधुबनी, निज संवाददाता : विश्व में शादी के लिए इच्छुक वर की सभा लगने का एक मात्र उदाहरण सौराठ सभा है। आषाढ़ के अंतिम शुद्ध में लगने वाली इस सभा में प्रतिवर्ष लाखों ब्राह्माण यहां पहुंच कर वर व वधू का वैवाहिक संबंध तय करते थे। मैथिल ब्राह्माणों के विषय में एक कहावत प्रसिद्ध है कि चट मंगनी पट ब्याह। सो, इस समाज में शादी तय होने के साथ वर व बराती कन्या वाले के यहां पहुंच कर शादी की रस्म पूरी कर लेते थे। बिना किसी आडंबर के शादी करने की परंपरा यहां स्पष्ट थी। लेकिन धीरे धीरे दहेज लोभियों के कारण इस अनमोल परंपरा को ठेस पहुंचने लगी और घर कथा को बढ़ावा मिलने लगा। फिलहाल सभा के उस अस्तित्व को पुनस्र्थापित करने का असफल प्रयास मैथिल ब्राह्माणों द्वारा किया जाने लगा है।
गौरवशाली अतीत
प्रारंभ में सभा का रूप अलग था। यहां देश के कोने कोने से मैथिल ब्राह्माण विद्वान जमा होते थे। उनमें शास्त्रार्थ भी चलता था। इन विद्वत मंडली के साथ युवा शिष्य भी आते थे। वहीं दूर दूर के लोग शास्त्रार्थ सुनने व देखने आते थे और कन्या के लिए उपयुक्त वर चुनते थे। इस तरह खास वैवाहिक लग्न पर वहां विद्वानों की टोली व वर को चुनने के लिए कन्या के अभिभावकों के आने की परंपरा बन गई। इससे वर के चुनाव में दर-दर भटकने के श्रम व अन्य व्यय से मैथिल ब्राह्माणों को राहत मिलती थी। वर कन्या विवाह के लिए अधिकार का प्रमाण पत्र तद्विषयक ज्ञाता के रहने से मिल जाता था।
राजा ने दिया 25 बीघा
चौदहवीं सदी के दूसरे दशक तक वर्तमान पंजी प्रथा का प्रचलन नहीं हुआ था, छिटपुट रूप से वंश परिचय लोग रखते थे। उस आधार पर वैवाहिक अधिकार का निर्णय स्मरण के आधार पर करते थे और इस प्रकार यहां वर का चुनाव होता था। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार महाराज माधव सिंह के राज्यारोहण के समय तक सभा अव्यवस्थित थी। पूर्व में परतापुर व समौल सहित अन्य स्थानों पर सभा लगने का प्रमाण है। राजा माधव सिंह के राजत्व काल से प्रारंभ सौराठ सभा को व्यवस्थित किया गया। राजा ने सभा के लिए 25 बीघे का भूखंड दिए।
अनोखी शादी
मैथिल ब्राह्माणों की शादी की परंपरा अनोखी है। सभा के दौरान कन्या की कब शादी हो जाएगी, पता नहीं रहता।
पाग में आते थे वर
सभा में जाकर वहां से शादी रचाकर घर आना काफी रोमांचित करता था। वर घर से लाल धोती, कुर्ता व ललका पाग धारण कर महिलाओं द्वार चुमावन करने के बाद सभा के लिए प्रस्थान करते थे। वहां वे निर्धारित स्थान पर दरी बिछाकर अपने अंिभभावकों के साथ बैठते थे। जहां कन्या पक्ष के लोग समकुल वर का चयन कर शादी तय करते थे।
बदहाली का दौर
अस्सी के दशक में सौराठ सभा में विकृतियां आने लगी। चोरी छिपे पैसे लेने का चलन शुरू हुआ। धीरे-धीरे सभा में खुले आम पैसे का लेन देन करने लगे। वर्तमान स्थिति यह है कि गत दस वर्षो से यहां नाम मात्र के लोग आते हैं व यहां की दुर्दशा देख भारी मन लिए वापस हो जाते हैं। यहां सभैती के लिए बनाए गए विशाल तीन शेड जर्जर हो चुके हैं। सभा स्थित माधवेश्वर शिवालय मूक गवाह के रूप में खड़ा है।
ऐसा था अतीत
- कुलशील को दिया जाता था महत्व, शादी में लेन देन की नहीं थी परंपरा
- लाल धोती में वास करते थे वर, पांच से पंद्रह बरात जाने की थी परंपरा
- मध्यम व गरीब ब्राह्माणों के लिए वरदान थी सभा
- मिथिला के विभिन्न भागों से ही नहीं अन्य राज्यों के प्रवासी मैथिल ब्राह्माण भी आते थे
बदहाली के कारण
- दहेज प्रथा ने किया कुठाराधात, पैसे के लोभ ने कुलशील विचारों को हाशिए पर डाला
- नवधनाढ्य ने घर कथा को दिया बढ़ावा, दहेज विरोध लेकर महिला संगठन का सभा में प्रवेश
इनसेट :
सभा के पहले लग्न में एक वर शादी को गए
-चौथे दिन 11 सिद्धांत लिखे गए
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रहिका (मधुबनी), निज प्रतिनिधि : सौराठ सभा के चौथे दिन जहां कुल 11 सिद्धांत लिखे गए वहीं आज प्रथम लग्न में एक वर यहां से शादी करने के लिए प्रस्थान किए। जानकारी हो कि पंडौल प्रखंड के ब्रह्माोत्तरा गांव निवासी बुद्धिनाथ झा व निर्मला झा के पुत्र मिहिर कुमार झा उर्फ महादेव ने बिना दहेज लिए झंझारपुर के लक्ष्मीपुर निवासी लाल बहादुर मिश्र की पुत्री कल्याणी कुमारी के संग शादी करने को प्रस्थान किया। जानकारी हो कि मिहिर ने बिना दहेज के शादी करने की घोषणा की थी। जिस पर सभावधि में लाल बहादुर मिश्र ने वर को चुना व मिहिर के परिजनों से बातचीत कर शादी तय की। मिहिर को नेपाल के विराट नगर से आए दहेज मुक्त मिथिला के अंतर्राष्ट्रीय सचिव प्रवीण नारायण चौधरी व वहां उपस्थित लोगों ने शादी के लिए विदा किया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद के अध्यक्ष कमला कांत झा, प्रवक्ता धनाकर ठाकुर सहित अन्य सदस्य गण व सौराठ महासभा समिति के सचिव शेखर चंद्र मिश्र भी उपस्थित थे।
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