MAITHILI HANUMAN CHALISA by madan-thakur
Aarti hanuman ji ke , maithili hanuman chalisa se by madan-thakur
  ||  मैथिली  - हनुमान चालीसा  ||
     लेखक - रेवती रमण  झा " रमण "
     ||  दोहा ||
गौरी   नन्द   गणेश  जी , वक्र  तुण्ड  महाकाय  ।
विघ्न  हरण  मंगल करन , सदिखन रहू  सहाय ॥
बंदउ शत - शत  गुरु चरन , सरसिज सुयश पराग ।
राम लखन  श्री  जानकी , दीय भक्ति  अनुराग । ।
 ||    चौपाइ  ||
जय    हनुमंत    दीन    हितकारी ।
यश   वर  देथि   नाथ  धनु  धारी ॥
श्री  करुणा  निधान  मन   बसिया ।
बजरंगी    रामहि    धुन    रसिया ॥
जय   कपिराज  सकल गुण सागर ।
रंग   सिन्दुरिया   सब गुन   आगर  ॥
गरिमा   गुणक  विभीषण  जानल ।
बहुत   रास  गुण  ज्ञान   बखानल  ॥
लीला   कियो   जानि   नयि पौलक ।
की कवि कोविद जत  गुण गौलक ॥
नारद - शारद   मुनि   सनकादिक  ।
चहुँ   दिगपाल    जमहूँ  ब्रह्मादिक ॥
लाल    ध्वजा     तन   लाल  लंगोटा  ।
लाल   देह     भुज    लालहि    सोंटा ॥
कांधे     जनेऊ        रूप     विशाल  ।
कुण्डल      कान     केस    धुँधराल  ॥
एकानन     कपि      स्वर्ण     सुमेरु  ।
यौ      पञ्चानन     दुरमति    फेरु  ।।
सप्तानन      गुण   शीलहि   निधान ।
विद्या     वारिध    वर  ज्ञान  सुजान ॥
अंजनि     सूत    सुनू   पवन कुमार  ।
केशरी      कंत      रूद्र      अवतार   ॥
अतुल    भुजा  बल  ज्ञान अतुल अइ ।
आलसक  जीवन नञि एक पल अइ ॥
दुइ    हजार     योजन   पर  दिनकर ।
दुर्गम   दुसह    बाट  अछि जिनकर ॥
निगलि  गेलहुँ रवि  मधु फल जानि  ।
बाल    चरित  के  लीखत   बखानि  ॥
चहुँ    दिस    त्रिभुवन  भेल  अन्हार ।
जल ,  थल ,  नभचर  सबहि बेकार ॥
दैवे    निहोरा   सँ    रवि   त्यागल  । 
पल  में  पलटि  अन्हरिया भागल  ॥ 
अक्षय   कुमार  के  मारि   गिरेलहुं  ।
लंका     में    हरकंप     मचयलहूँ  ॥
बालिए   अनुज   अनुग्रह   केलहु  ।
ब्राहमण    रुपे    राम मिलयलहुँ  ॥
युग    चारि    परताप    उजागर  ।
शंकर    स्वयंम   दया  के  सागर ॥
सुक्षम  बिकट  आ भीम  रूप धरि ।
नैहि  अगुतेलोहुँ   राम काज करि  ॥
मूर्छित   लखन  बूटी जा  लयलहुँ  ।
उर्मिला     पति     प्राण  बचेलहुँ  ॥
कहलनि   राम   उरिंग  नञि तोर ।
तू  तउ    भाई   भरत  सन  मोर   ॥
अतबे   कहि   दृग   बिन्दू  बहाय  ।
करुणा निधि , करुणा चित लाय ॥
जय   जय   जय बजरंग  अड़ंगी  ।
अडिंग ,अभेद , अजीत , अखंडी ॥
कपि के सिर पर धनुधर  हाथहि ।
राम  रसायन  सदिखन  साथहि ॥
आठो  सिद्धि  नो  निधि वर दान ।
सीय  मुदित  चित  देल हनुमान ॥
संकट    कोन  ने   टरै   अहाँ   सँ ।
के   बलवीर   ने   डरै   अहाँ  सँ  ॥
अधम   उदोहरन , सजनक संग ।
निर्मल -  सुरसरि  जीवन तरंग ॥
दारुण - दुख  दारिद्र् भय मोचन ।
बाटे  जोहि  थकित दुहू  लोचन ॥
यंत्र  - मंत्र   सब  तन्त्र  अहीं छी ।
परमा   नंद  स्वतन्त्र  अहीं  छी  ॥
रामक   काजे   सदिखन  आतुर ।
सीता   जोहि   गेलहुँ   लंकापुर  ॥
विटप   अशोक  शोक  बिच जाय ।
सिय    दुख  सुनल कान लगाय ॥
वो  छथि   जतय ,  अतय  बैदेही ।
जानू   कपीस    प्राण  बिन देही  ॥
सीता  ब्यथा   कथा   सुनि  कान ।
मूर्छित     अहूँ    भेलहुँ  हनुमान ॥
अरे      दशानन     एलो     काल  ।
कहि   बजरंगी    ठोकलहुँ  ताल ॥
छल   दशानन  मति  के आन्हर ।
बुझलक    तुच्छ अहाँ  के  वानर ॥
उछलि   कूदी  कपि  लंका जारल ।
रावणक   सब  मनोबल  मारल  ॥
हा - हा    कार  मचल  लंका   में  ।
एकहि    टा  घर  बचल लंका में  ॥
कतेक    कहू  कपि की -  की कैल ।
रामजीक     काज  सब   सलटैल  ॥
कुमति के काल सुमति सुख सागर ।
रमण ' भक्ति चित करू  उजागर ॥
|| दोहा ||
|| दोहा ||
चंचल कपि कृपा करू , मिलि सिया  अवध नरेश  ।
अनुदिन   अपनों    अनुग्रह , देबइ  तिरहुत देश ॥
सप्त    कोटि   महामन्त्रे ,  अभि मंत्रित  वरदान ।
बिपतिक   परल   पहाड़  इ , सिघ्र  हरु  हनुमान ॥
|| 2  ||
          ॥  दुख - मोचन  हनुमान   ॥ 
  जगत     जनैया  ,  यो बजरंगी  ।
  अहाँ      छी  दुख  बिपति  के संगी 
  मान  चित  अपमान त्यागि  कउ ,
     सदिखन  कयलहुँ   रामक काज   । 
   संत   सुग्रीव   विभीषण   जी के,   
    अहाँ , बुद्धिक बल सँ  देलों  राज  ॥ 
   नीति  निपुन   कपि कैल  मंत्रना  
    यौ      सुग्रीव   अहाँ    कउ  संगी  
              जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख --
  वन  अशोक,  शोकहि   बिच सीता  
  बुझि   ब्यथा ,  मूर्छित  मन भेल  ।
  विह्बल   चित  विश्वास  जगा  कउ
  जानकी     राम     मुद्रिका    देल  ॥
  लागल  भूख  मधु र फल खयलो  हूँ
  लंका     जरलों    यौ   बजरंगी   ॥
               जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख--
   वर  अहिरावण  राम लखन  कउ
   बलि   प्रदान लउ   गेल  पताल  ।
   बंदि   प्रभू    अविलम्ब  छुरा कउ
   बजरंगी     कउ   देलौ  कमाल  ॥
   बज्र   गदा   भुज  बज्र जाहि  तन 
     कत   योद्धा  मरि   गेल   फिरंगी  , 
             जगत  जनैया ---अहाँ  छी दुख -
 वर शक्ति वाण  उर जखन लखन , 
 लगि  मूर्छित  धरा  परल निष्प्राण । 
 वैध     सुषेन   बूटी   जा   आनल  ,
 पल में  पलटि  बचयलहऊ प्राण  ॥ 
 संकट      मोचन   दयाक  सागर , 
 नाम      अनेक ,   रूप बहुरंगी  ॥ 
       जगत      जनैया --- अहाँ  छी दुख --
नाग  फास   में   बाँधी  दशानन  , 
राम     सहित   योद्धा   दालकउ । 
 गरुड़  राज कउ  आनी  पवन सुत  ,
कइल     चूर     रावण    बल  कउ 
जपय     प्रभाते    नाम अहाँ   के ,
तकरा  जीवन  में  नञि  तंगी   ॥ 
         जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख --
ज्ञानक सागर ,  गुण  के  आगर  ,
  शंकर    स्वयम  काल  के  काल  । 
जे जे अहाँ   सँ  बल  बति यौलक ,
ताही     पठैलहूँ   कालक   गाल   
अहाँक  नाम सँ  थर - थर  कॉपय ,
भूत - पिशाच   प्रेत    सरभंगी   ॥ 
     जगत   जनैया --- अहाँ  छी दुख -- 
लातक   भूत   बात  नञि  मानल ,
  पर तिरिया लउ  कउ  गेलै  परान । 
  कानै  लय  कुल  नञि  रहि  गेलै  , 
अहाँक   कृपा सँ , यौ  हनुमान  ॥ 
अहाँक   भोजन  आसन - वासन ,
राम  नाम  चित बजय  सरंगी  ॥ 
   जगत     जनैया --- अहाँ  छी दुख -
सील    अगार   अमर   अविकारी  ,
हे   जितेन्द्र   कपि   दया  निधान  । 
"रमण " ह्र्दय  विश्वास  आश वर ,
अहिंक एकहि  बल अछि हनुमान  ॥ 
एहि   संकट    में  आबि   एकादस ,
यौ   हमरो    रक्षा    करू   अड़ंगी  ॥ 
      जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख ----
|| 3 ||
|| 3 ||
हनुमान चौपाई - द्वादस नाम  
 ॥ छंद  ॥ 
जय  कपि काल  कष्ट  गरुड़हि   ब्याल- जाल 
केसरीक  नन्दन  दुःख भंजन  त्रिकाल के  । 
पवन  पूत  दूत    राम , सूत शम्भू  हनुमान  
बज्र देह दुष्ट   दलन ,खल  वन  कृषानु के  ॥ 
कृपा  सिन्धु   गुणागार , कपि एही करू  पार 
दीन हीन  हम  मलीन,सुधि लीय आविकय । 
"रमण "दास चरण आश ,एकहि चित बिश्वास 
अक्षय  के काल थाकि  गेलौ  दुःख गाबि कय ॥ 
चौपाई 
जाऊ जाहि बिधि जानकी लाउ ।  रघुवर   भक्त  कार्य   सलटाउ  ॥ 
यतनहि  धरु  रघुवंशक  लाज  । नञि एही सनक कोनो भल काज ॥ 
श्री   रघुनाथहि   जानकी  जान ।   मूर्छित  लखन  आई हनुमान  ॥ 
बज्र  देह   दानव  दुख   भंजन  ।  महा   काल   केसरिक    नंदन  ॥ 
जनम  सुकारथ  अंजनी  लाल ।  राम  दूत  कय   देलहुँ   कमाल  ॥ 
रंजित  गात  सिंदूर    सुहावन  ।  कुंचित केस कुन्डल मन भावन ॥ 
गगन  विहारी  मारुति  नंदन  । शत -शत कोटि हमर अभिनंदन ॥ 
बाली   दसानन दुहुँ  चलि गेल । जकर   अहाँ  विजयी  वैह   भेल  ॥ 
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी के लाल करु उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमति सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन सखा ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमति सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धरथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
|| 4 ||
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी के लाल करु उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमति सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन सखा ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमति सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धरथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
|| 4 ||
|| हनुमान  द्वादस  दोहा || 
रावण   ह्रदय  ज्ञान    विवेकक , जखनहि  बुतलै  बाती  | 
नाश    निमंत्रण  स्वर्ण  महलके  , लेलक हाथ में पाती  || 
सीता हरण मरन रावण कउ , विधिना तखन  ई  लीखल | 
भेलै   भेंट  ज्ञान गुण  सागर , थोरवो बुधि  नञि सिखल || 
जकरे  धमक सं डोलल धरनी , ओकर कंठ अछि  सुखल  |
 ओहि पुरुषक कल्याण कतय ,जे पर  तिरिया के भूखल   ||   
शेष  छाउर   रहि  गेल   ह्रदय , रावण  के  सब  अरमान  | 
करम  जकर   बौरायले   रहलै  , करथिनं   कते  भगवन  ||
बाप सँ पहिने पूत मरत नञि , घन निज ईच्छ बरसात |
सीढी स्वर्गे हमहिं लगायब , पापी कियो नञि तरसत ||
बिस भुज तीन मनोरथ लउ कउ , वो धरती पर मरिगेल |
जतबे मरल राम कउ हाथे , वो ततबे लउ तरी गेल ||
कतबऊ संकट सिर पर परय , भूलिकय करी नञि पाप |
लाख पुत सवालाख नाती , रहलइ नञि बेटा बाप ||
संकट मोचन भउ संकट में , दुःख सीता जखन बखानल |
अछि वैदेही धिक्कार हमर , भरि नयन नोर सँ कानल ||
स्तन दूधक धारे अंजनि , कयलनि पर्वत के चूर |
ओकरे पूत दूत हम बैसल , छी अहाँ अतेक मजबूर ||
रावण सहित उड़ा कउ लंका , रामे चरण धरि आयब |
हे , माय ई आज्ञा प्रभु कउ , जौ थोरबहूँ हम पायब ||
हे माय करू विश्वास अतेक , ई बिपति रहल दिन थोर |
दश मुख दुखक एतैय अन्हरिया , अहाँक सुमंगल भोर ||
" रमण " कतहुँ नञि अतेक व्यथित , हे कपि भेलहुँ उदाश |
सर्व गुणक संपन्न अहाँ छी , यौ पूरब हमरो आश ||
||5 ||
|| हनुमंत - पचीसी ||
बाप सँ पहिने पूत मरत नञि , घन निज ईच्छ बरसात |
सीढी स्वर्गे हमहिं लगायब , पापी कियो नञि तरसत ||
बिस भुज तीन मनोरथ लउ कउ , वो धरती पर मरिगेल |
जतबे मरल राम कउ हाथे , वो ततबे लउ तरी गेल ||
कतबऊ संकट सिर पर परय , भूलिकय करी नञि पाप |
लाख पुत सवालाख नाती , रहलइ नञि बेटा बाप ||
संकट मोचन भउ संकट में , दुःख सीता जखन बखानल |
अछि वैदेही धिक्कार हमर , भरि नयन नोर सँ कानल ||
स्तन दूधक धारे अंजनि , कयलनि पर्वत के चूर |
ओकरे पूत दूत हम बैसल , छी अहाँ अतेक मजबूर ||
रावण सहित उड़ा कउ लंका , रामे चरण धरि आयब |
हे , माय ई आज्ञा प्रभु कउ , जौ थोरबहूँ हम पायब ||
हे माय करू विश्वास अतेक , ई बिपति रहल दिन थोर |
दश मुख दुखक एतैय अन्हरिया , अहाँक सुमंगल भोर ||
" रमण " कतहुँ नञि अतेक व्यथित , हे कपि भेलहुँ उदाश |
सर्व गुणक संपन्न अहाँ छी , यौ पूरब हमरो आश ||
||5 ||
|| हनुमंत - पचीसी ||
 ॥ हनुमान   वंदना ॥ 
शील  नेह  निधि , विद्या   वारिध
             काल  कुचक्र  कहाँ  छी  ।
मार्तण्ड   तम रिपु  सूचि  सागर
           शत दल  स्वक्ष  अहाँ छी ॥
कुण्डल  कणक , सुशोभित काने
         वर कच  कुंचित अनमोल  ।
अरुण तिलक  भाल  मुख रंजित
            पाँड़डिए   अधर   कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित  गुण  गरिमा
         नीति   विज्ञानक    सागर  ।
कनक   गदा   भुज   बज्र  विराजय 
           आभा   कोटि  प्रभाकर  ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
          उन्नत   उर    अविकारी  ।
  वर   बिस   भुज  रावण- अहिरावण
         सब    पर भयलहुँ  भारी  ॥
दीन    मलीने    पतित  पुकारल
        अपन  जानि  दुख  हेरल  ।
"रमण " कथा ब्यथा  के बुझित हूँ
       यौ  कपि  किया अवडेरल
-:-
-:-
|| दोहा || 
संकट  शोक  निकंदनहि , दुष्ट दलन हनुमान | 
अविलम्बही दुख  दूर करू ,बीच भॅवर में प्राण ||  
|| चौपाइ || 
जन्में   रावणक   चालि    उदंड | 
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
वर        विपदा      केर    टूटल   पहार ||
तीरे     तरकस     वर   धनुषही  हाथ   | 
रने -       वने      व्याकुल     रघुनाथ  || 
मन मदान्ध   मति गति सूचि राख  | 
नत   सीतेहि, अनुचित जूनि   भाष  || 
झामरे -  झुर   नयन  जल - धार  | 
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
|| 6 ||
  ||  हनुमान  बन्दना  ||
जय -जय  बजरंगी , सुमतिक   संगी  -
                       सदा  अमंगल  हारी  । 
मुनि जन  हितकारी, सुत  त्रिपुरारी  -
                         एकानन  गिरधारी  ॥ 
नाथहि   पथ गामी  , त्रिभुवन स्वामी  
                      सुधि  लियौ सचराचर   । 
तिहुँ लोक उजागर , सब गुण  आगर -
                     बहु विद्या बल सागर  ॥ 
मारुती    नंदन ,  सब दुख    भंजन -
                        बिपति काल पधारु  । 
वर  गदा  सम्हारू ,  संकट    टारू -
                  कपि   किछु  नञि   बिचारू   ॥ 
कालहि गति भीषण , संत विभीषण -
                          बेकल जीवन तारल  । 
वर खल  दल मारल ,  वीर पछारल -
                       "रमण" क किय बिगारल  ॥ 
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बजरंग -विनय
सबहक  काज सुगम सँ  कयलों 
हमर   अगम    कीय  भेलै  यौ  | 
रहलौं   अहिंक  शरण में हनुमंत 
जीवन   कीय  भसिअयलै    यौ  || 
          सबहक   ----हमर ---   २ 
क़डीरिक  वीर सनक  जीवन ई 
मंद   बसात    नञि झेलल  यौ  | 
हम दीन , अहाँ   दीनबन्धु  छी 
तखन  कीयक  अवडेरल  यौ   || 
         सबहक   ----हमर ---   २ 
अंजनी लाल , यौ  केशरी  नंदन 
जग  में कियो  अपन  नञि यौ  | 
एक  आश ,  विश्वास   अहाँक  
वयस   हमर   झरि  गेलै  यौ  || 
        सबहक   ----हमर ---   २ 
मारुति  नंदन , काल  निकंदन 
शंकर  स्वयम   अहाँ   छी  यौ  | 
"रमण "क  जीवन करू सुकारथ 
दया  निधान  कहाँ   छी   यौ 
सबहक   ----हमर ---   २ 
    || 9 . || 
                                       ||  हनुमान - आरती  ||
आरती आइ अहाँक  उतारू , यो अंजनि सूत केसरी नंदन  । 
अहाँक  ह्र्दय  में सतत   विराजथि ,  लखन सिया  रघुनंदन   
             कतबो  करब बखान अहाँ के '
            नञि सम्भव  गुनगान  अहाँके  । 
धर्मक ध्वजा  सतत  फहरेलौ , पापक केलों  निकंदन   ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
          गुणग्राम  कपि , हे बल कारी  '
          दुष्ट दलन  शुभ मंगल कारी   । 
लंका में जा आगि लागैलोहूँ , मरि  गेल बीर दसानन  ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
         सिया  जी के  नैहर  , राम जी के सासुर  '
         पावन     परम   ललाम   जनक पुर   । 
उगना - शम्भू  गुलाम जतय  के , शत -शत  अछि  अभिनंदन  ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
           नित     आँचर   सँ   बाट      बुहारी  '
          कखन   आयब   कपि , सगुण  उचारी  । 
"रमण " अहाँ के  चरण कमल सँ , धन्य  मिथिला के आँगन ॥ 
 आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
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