राजनीति और सत्ता दोनों की ही परिभाषा बदलती दिख रही है इस लोकतंत्र के महापर्व में!
दुखद तो है इस सारे को सुचारु रूप से चलाये जाने वाले विभाग की कहानी
EC जो पुरे महापर्व को आयोजित करता है वही संवेदनहीनता और संवादहीनता के साथ खुद को भी कही न कही पर्यवेक्षक से इतर एक पार्टी के रूप में स्थापित करने को आतुर है, ये जानते हुए की बाद में उसे सफलता में वही मिलेगा जितना की आज तक से पहले वाले को मिलता आया है.
आज के इस महापर्व में वो सारे मुद्दे गायब हैं जिनकी जरुरत हमारे नौजवान हिंदुस्तानी को है, उन्ही मुद्दों पर बात चल रही है जो की विभाजनकारी हो सकती हो।
सबसे बड़ी बात की हम युवा भी खुद की बात और भविष्य के सारे सम्भावनाओ को दरकिनार कर उसी के पीछे भाग रहे हैं जिसका कोई अंत नहीं और है तो अतयंत ही भयावह और विद्रूप।
मेरा मानना है की कम से कम हम उस मुद्दे पर तो बात कर ही सकते हैं जिसपर हमारा भविष्य और कही न कही वर्तमान टिका हुआ है.
आइये के स्वस्थ और सफल लोकतंत्र की कल्पना करते हैं जिसे हमने बड़ी कुर्बानियो के बाद पाया है.
जय हिन्द
दुखद तो है इस सारे को सुचारु रूप से चलाये जाने वाले विभाग की कहानी
EC जो पुरे महापर्व को आयोजित करता है वही संवेदनहीनता और संवादहीनता के साथ खुद को भी कही न कही पर्यवेक्षक से इतर एक पार्टी के रूप में स्थापित करने को आतुर है, ये जानते हुए की बाद में उसे सफलता में वही मिलेगा जितना की आज तक से पहले वाले को मिलता आया है.
आज के इस महापर्व में वो सारे मुद्दे गायब हैं जिनकी जरुरत हमारे नौजवान हिंदुस्तानी को है, उन्ही मुद्दों पर बात चल रही है जो की विभाजनकारी हो सकती हो।
सबसे बड़ी बात की हम युवा भी खुद की बात और भविष्य के सारे सम्भावनाओ को दरकिनार कर उसी के पीछे भाग रहे हैं जिसका कोई अंत नहीं और है तो अतयंत ही भयावह और विद्रूप।
मेरा मानना है की कम से कम हम उस मुद्दे पर तो बात कर ही सकते हैं जिसपर हमारा भविष्य और कही न कही वर्तमान टिका हुआ है.
आइये के स्वस्थ और सफल लोकतंत्र की कल्पना करते हैं जिसे हमने बड़ी कुर्बानियो के बाद पाया है.
जय हिन्द