प्रिये पाठक
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
हम निर्भर करैत छी ओही पर ,
जे संतुष्टि लक्ष्य अछि हमर
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
मधुर वचन जीवनक श्रेय अछी ,
प्रेम स्नेह जग - संसार में
बोली - वचन सुख सँ सम्रिध्ह ,
आत्मरक्षा के अधिकार में
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
फुरसैतक कमी सब के संग अछी ,
बेश्त आई ई संसार अछी
मिथिय्या जिनगी छोरी चलल ,
आस्तित्व रहस्य ई अधिकार में
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
होर परस्पर आई लागल ,
आगू बढाइये के प्यास जागल
अप्पन पद सेवा के खातिर ,
जग में आई अधिकार भेटल
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
प्रेम - भाव भाई चारा के संग ,
मानव अहि सँ प्यासल आई
एक - दोसर के पार लगाऊ ,
जन - जन से ई नारा हमर
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
(मदन कुमार ठाकुर )
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