अटेंशन, छाती बाहर, कंधे पीछे... स्कूलों में असेंबली के दौरान ये कमांड सुनते बड़े होते हैं हम सभी, लेकिन स्कूल से निकलते ही इन शब्दों को पीछे छोड़ देते हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह सेना, पुलिस या फिर मॉडलिंग से ताल्लुक रखनेवाले लोगों के काम की चीज है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि अच्छा पॉश्चर (मुद्रा) हमारी पर्सनैलिटी में निखार तो लाता ही है, हमें कई बीमारियों से भी बचाए रखता है। अच्छे पॉश्चर के फायदे और उसे पाने के तरीके एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं प्रियंका सिंह : कीर्ति और श्रुति जुड़वां बहनें हैं। दोनों देखने में बिल्कुल एक जैसी हैं, लेकिन जब कीर्ति चलती हैं तो सबकी निगाहें उन पर टिक जाती हैं, जबकि श्रुति लोगों पर खास असर नहीं छोड़ पाती। फर्क सिर्फ दोनों के पॉश्चर का है, जो उनकी पर्सनैलिटी को भी बदलकर रख देता है। कीर्ति का पॉश्चर एकदम सही और सधा हुआ है, जबकि श्रुति झुककर चलती हैं। दरअसल, पॉश्चर हमारी पर्सनैलिटी को तो निखारता ही है, हमें कई बीमारियों से भी दूर रखता है। दिक्कत यह है कि हममें से ज्यादातर पॉश्चर सुधारने के लिए कोई कोशिश नहीं करते। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बमुश्किल 15-20 फीसदी लोगों का ही पॉश्चर सही होता है। पॉश्चर की अहमियत चलते, उठते, बैठते हुए हमारे शरीर की मुद्रा यानी हाव-भाव पॉश्चर कहलाता है। ऐसा पॉश्चर, जिसमें मसल्स का इस्तेमाल बैलेंस्ड तरीके से हो, सबसे सही माना जाता है। मसलन अगर हम खड़े हैं तो यह जरूरी है कि हमारा सिर, धड़ और टांगे, तीनों एक सीध में एक के ऊपर एक हों। इससे शरीर के किसी भी हिस्से पर ज्यादा दबाव नहीं होगा। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर कुछ ईंटें एक के ऊपर रखी हैं तो उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं होगी, जबकि अगर वे टेढ़े-मेढ़े ढंग से रखी गई हैं तो उन्हें सहारे की जरूरत पड़ती है। कमर या कंधे झुके हों या हिप्स (नितंब) पीछे को निकलें हों या फिर सीना बहुत ज्यादा आगे को निकला हो, यानी जिस पॉश्चर में मसल्स का सही इस्तेमाल नहीं होता, उसे खराब पॉश्चर कहा जाता है। जब हम शरीर को साइड से देखते हैं तो हमें तीन कर्व नजर आते हैं। पहला गर्दन के पीछे, दूसरा कमर के ऊपरी हिस्से में और तीसरा लोअर बैक में। पहला और तीसरा कर्व उलटे सी (c) की तरह नजर आते हैं, जबकि दूसरा कर्व सीधा सी (c) होता है। दूसरे कर्व में ज्यादा मूवमेंट नहीं होता, इसलिए उसमें दिक्कत भी कम ही आती है, जबकि पहला और तीसरा कर्व सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस/ स्पॉन्डिलोसिस और कमर दर्द की वजह बन सकता है। इसी तरह, हम इंसानों में रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) का रोल काफी ज्यादा होता है। मूवमेंट के साथ-साथ वजन उठाने का भी काम करती है हमारी रीढ़। इसी रीढ़ में होते हैं 24 वटिर्ब्रा, जिनके बीच में शॉक ऑब्जर्वर होते हैं, जो डिस्क कहलाते हैं। हमारे शरीर का वजन डिस्क के बीच से जाना चाहिए लेकिन जब यह साइड से जाने लगता है तो दर्द शुरू हो जाता है। लेकिन अगर हम पॉश्चर पर ध्यान दें, तो इस तरह की परेशानियों से काफी हद तक बचा जा सकता है। सही पॉश्चर की खासियत सही पॉश्चर वह है, जिसमें हमारी मसल्स की लंबाई नॉर्मल हो यानी किसी मसल को न तो जबरन खींचा जाए और न ही उसे ढीला छोड़ा जाए। अगर कोई लगातार गर्दन को झुकाकर बैठता है तो गर्दन में दर्द हो सकता है। यहां तक कि कई बार अडेप्टिव शॉर्टनिंग यानी आगे की मसल्स छोटी हो जाती हैं। तब स्ट्रेचिंग कर मसल्स को नॉर्मल किया जाता है। हमारे यहां अक्सर लड़कियां झुककर चलती हैं। वैसे, कई लोग सही पॉश्चर का मतलब मिलिट्री पॉश्चर से लगा लेते हैं, जिसमें कंधों और गर्दन को बहुत ज्यादा पीछे खींचा जाता है। यह सही नहीं है। इसमें रीढ़ की हड्डी के पीछे वाले भागों पर ज्यादा प्रेशर आ जाता है। साइड से देखें तो कान, कंधे, हिप्स और टखने से थोड़ा आगे का हिस्सा अगर एक लाइन में आते हैं तो अच्छा पॉश्चर बनता है। सामने से देखें तो सिर सामने ऊपर की ओर, ठोड़ी फर्श के लेवल में, सीना सामने की ओर, कंधे आराम की मुद्रा में और पेट का निचला हिस्सा सपाट हो तो अच्छा पॉश्चर कहा जाएगा। कैसे-कैसे पॉश्चर स्वे बैक पॉश्चर: पैरों के ऊपर, कमर सीधी होने के बजाय पीछे की ओर झुकी होती है। मिलिट्री पॉश्चर: दोनों कंधे पीछे की तरफ, सीना बाहर निकला हुआ। हाइपर लॉडोर्टिक पॉश्चर: प्रेग्नेंट महिलाओं या बहुत मोटे लोगों का ऐसा पॉश्चर होता है। इसमें तोंद बहुत बड़ी और कमर काफी अंदर की तरफ होती है। काइसोटिक पॉश्चर: इसमें कमर का ऊपरी हिस्सा थोड़ा बाहर (कूबड़) निकल जाता है। टीबी के मरीजों और जवान लड़के व लड़कियों में होता है। स्कोल्योटिक पॉश्चर: वर्टिब्रा सीधी होने के बजाय साइड को मुड़ जाती है। यह पॉश्चर काफी कॉमन होता है। गलत पॉश्चर की वजहें एनकायलोसिस (जोड़ों में जकड़न), स्पॉन्डिलोसिस (गर्दन में दर्द), कमर का टेढ़ापन, रिकेट्स, ऑस्टियोपोरॉसिस या पोलियो जैसी बीमारियां। हड्डियों में पैदाइशी विकार। स्पाइनल कोड में विकार। आनुवांशिक कारण। झुककर चलने की आदत, खासकर लड़कियों में। घंटों एक ही जगह बैठकर कंप्यूटर पर काम करना। डेंटिस्ट, सर्जन आदि का लंबे समय तक झुककर काम करना। उलटे-सीधे तरीके से लेटकर टीवी देखना। कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबी बातें करना। किचन में नीचे स्लैब पर काम करना। प्रेस करते हुए पॉश्चर का ध्यान न रखना। प्रेग्नेंसी में स्पाइन का पीछे जाना, जिसे लॉडोर्स कहते हैं। बढ़ती उम्र के साथ आमतौर पर शरीर कुछ झुक जाता है। आरामतलबी और रिलैक्स के नाम पर गलत पॉश्चर अपनाना। गलत पॉश्चर से नुकसान गर्दन और कमर संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं, मसलन सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस/स्पॉन्डिलोसिस या कमर दर्द आदि। डिस्क प्रोलेप्स या डिस्क से जुड़ी दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। जॉइंट्स में टूट-फूट यानी ऑर्थराइटिस हो सकता है। थकने की वजह से मसल्स अपना पूरा काम नहीं कर पाएंगी। मांसपेशियों में गांठें या सूजन आ जाती है। महिलाओं को किचन में काम करने की वजह से कंधों और कमर में दर्द जल्दी हो सकता है। रिपिटेड स्ट्रेस इंजरी हो सकती है, यानी किसी एक ही अंग के ज्यादा इस्तेमाल से उसमें दिक्कत आ सकती है। सही पॉश्चर के फायदे रीढ़ के जोड़ों को एक साथ जोड़े रखनेवाले लिगामेंट्स पर प्रेशर कम होता है। रीढ़ को किसी असामान्य स्थिति में फिक्स होने से बचाता है। मसल्स का सही इस्तेमाल होने से थकान नहीं होगी। कमर दर्द और जोड़ों के दर्द की आशंका कम होती है। देखने में व्यक्ति ज्यादा आकर्षक लगता है। सही पॉश्चर के लिए क्या जरूरी सही पॉश्चर के लिए मसल्स में अच्छी लचक, जोड़ों में सामान्य मोशन, र्नव्स का सही होना, रीढ़ के दोनों तरफ की मसल्स पावर का बैलेंस्ड होना जरूरी है। साथ ही, हमें अपने पॉश्चर की जानकारी भी होनी चाहिए और सही पॉश्चर क्या है, यह भी मालूम होना चाहिए। थोड़ा ध्यान देने और थोड़ी प्रैक्टिस के बाद गलत पॉश्चर को सुधारा जा सकता है। खड़े होने या चलने का सही तरीका सिर सामने ऊपर की ओर, ठोड़ी फर्श के लेवल में, सीना सामने की ओर, कंधे आराम की मुद्रा में और पेट का निचला हिस्सा सपाट हो। सिर या कंधों को पीछे, आगे या साइड में न झुकाएं। कंधे झुकाकर न चलें, न ही शरीर को जबरन तानें। कानों के लोब्स कंधों के मिडल के साथ एक लाइन में आएं। कंधों को पीछे की तरफ रखें, घुटनों को सीधा रखें और बैक को भी सीधा रखें। जमीन पर अपने पंजों को सपाट रखें। पंजे उचकाकर न चलें। एक पैर पर न खड़े हों। खड़े होते हुए दोनों पैरों के बीच में थोड़ा अंतर रखें। इससे पकड़ सही रहती है। चलते हुए पहले एड़ी रखें और फिर पूरा पंजा। पैरों को पटक कर या घुमाकर न चलें। चलते समय बहुत ज्यादा न हिलें। बैठने का सही तरीका सबसे पहले सही कुर्सी का चुनाव करें। यह पॉश्चर के लिए काफी अहम हैं। ऑफिस में कुसीर् को अपने मुताबिक एडजस्ट कर लें। हो सके तो अपने पॉश्चर के अनुसार कुर्सी तैयार कराएं। ध्यान रखें कि कुसीर् की सीट इतनी बड़ी हो कि बैठने के बाद घुटने और सीट के बीच बस तीन-चार इंच की दूरी हो, यानी सीट चौड़ी हो। बैठते हुए पूरी थाइज को सपोर्ट मिलना चाहिए। हैंड रेस्ट एल्बो लेवल पर होना चाहिए। बैक रेस्ट 10 डिग्री पीछे की तरफ झुका हो। कमर को सीधा रखकर और कंधों को पीछे की ओर खींचकर बैठें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अकड़कर बैठें। कमर को हल्का-सा कर्व देकर बैठें। कुसीर् पर बैठते हुए ध्यान रहे कि कमर सीधी हो, कंधे पीछे को हों और हिप्स कुसीर् की पीठ से सटे हों। बैक के तीनों नॉर्मल कर्व बने रहने चाहिए। एक छोटा तौलिया भी लोअर बैक के पीछे रख सकते हैं या फिर लंबर रोल का इस्तेमाल कर सकते हैं। अपने घुटनों को सही एंगल पर झुकाएं। घुटनों को क्रॉस करके न बैठें। बैठते हुए घुटने या तो हिप्स की सीध में हों या थोड़ा ऊपर हों। पैरों के नीचे छह इंच ऊंचा स्टूल भी रख सकते हैं। बैठकर जब उठें तो कमर को आगे की तरफ झुकाएं, पैरों को पीछे की तरफ लेकर जाएं। ऐसा करने पर पंजे, घुटने और सिर जब एक लाइन में आ जाएं तो उठें। कंप्यूटर पर काम करते हुए कंप्यूटर पर काम करते वक्त कुर्सी की ऊंचाई इतनी रखें कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना न पड़े और न ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। कुहनी और हाथ कुर्सी पर रखें। इससे कंधे रिलैक्स रहेंगे। कुर्सी के पीछे तक बैठें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और अपनी कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो, उभारें। कुछ सेकंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोड़ा रिलैक्स करें। यह एक अच्छा सिटिंग पॉश्चर होगा। अपने शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें। डेस्कटॉप उस पर काम करनेवाले व्यक्ति के मुताबिक तैयार होना चाहिए। कुसीर् ऐसी हो, जो लोअर बैक को सपोर्ट करे। पैरों के नीचे सपोर्ट के लिए छोटा स्टूल या चौकी रखें। किसी भी पॉजिशन में 30 मिनट से ज्यादा लगातार न बैठें। बैठकर काम करते हुए या पढ़ते हुए हर घंटे के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। दो घंटे के बाद तो जरूर ब्रेक लें। रोजाना गर्दन की एक्सरसाइज करें। ब्यौरा नीचे देखें। घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हैं तो कमर को घुमाने की बजाय पूरे शरीर को घुमाएं। ड्राइव करते हुए सही पॉश्चर कमर के नीचे वाले हिस्से में सपोर्ट के लिए एक बैक सपोर्ट (छोटा तौलिया या लंबर रोल) रखें। घुटने हिप्स के बराबर या थोड़े ऊंचे हों। सीट को स्टेयरिंग के पास रखें ताकि बैक के कर्व को सपोर्ट मिल सके। इतना लेग-बूट स्पेस जरूर हो, जिसमें आराम से घुटने मुड़ सकें और पैर पैडल पर आराम से पहुंच सकें। सोने का सही तरीका ऐसी पोजिशन में सोने की कोशिश करें, जिसमें आपकी बैक का नेचरल कर्व बना रहे। पीठ के बल सोएं, तो घुटनों के नीचे पतला तकिया या हल्का तौलिया रख लें। जिनकी कमर में दर्द है, वे जरूर ऐसा करें। घुटनों को हल्का मोड़कर साइड से भी सो सकते हैं लेकिन ध्यान रखें कि घुटने इतने न मोड़ें कि वे सीने से लग जाएं। पेट के बल सोने से बचना चाहिए। इसका असर पाचन पर पड़ता है। साथ ही, कमर में दर्द और अकड़न की आशंका भी बढ़ती है। कमर दर्द है तो पेट के बल बिल्कुल नहीं सोना चाहिए। कभी भी बेड से सीधे न उठें। पहले साइड में करवट लें, फिर बैठें और उसके बाद उठें। गद्दा और तकिया गद्दा सख्त होना चाहिए। कॉयर का गद्दा सबसे अच्छा है। रुई का गद्दा भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि उसमें स्पंज इफेक्ट बचा हो। ऐसा न हो कि वह 10-12 साल पुराना हो और पूरी तरह चपटा हो गया हो। जमीन पर सोने से बचना चाहिए, क्योंकि सपाट और सख्त जमीन पर सोने से रीढ़ के कर्व पर प्रेशर पड़ता है। बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से पॉश्चर में प्रॉब्लम हो सकती है, खासकर उन लोगों को, जिनकी मसल्स कमजोर हैं। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कॉन्टैक्ट स्पेस काफी ज्यादा हो और कंधे व कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। कंधों को तकिया के ऊपर नहीं रखना चाहिए। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। एक्सरसाइज और योग कमर की मांसपेशियां कमजोर हों तो पॉश्चर गड़बड़ हो जाता है। ऐसे में हम कमर को झुकाकर चलने लगते हैं। हमें लगता है कि इससे आराम मिल रहा है लेकिन इससे हमारी जीवनी शक्ति और प्राणऊर्जा बाधित हो जाती है यानी हमारी सेहत जितनी बेहतर होनी चाहिए, उतनी नहीं होती। झुककर चलने या बैठने से निराशा भी आती है। ऐसे में ध्यान देकर अपना पॉश्चर सुधारना जरूरी है। इसके लिए नीचे लिखी एक्सरसाइज और आसन फायदेमंद हैं : जो लोग डेस्क जॉब में हैं, उन्हें रस्सी कूदना, सीढि़यां चढ़ना-उतरना, वॉकिंग, जॉगिंग, दौड़ना, स्विमिंग, साइक्लिंग, आदि करना चाहिए। इससे शरीर में लचक बनी रहेगी। ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सरसाइज करते रहना चाहिए। रोजाना स्ट्रेचिंग करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खिंचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। कमर और पेट को मजबूती देने वाली एक्सरसाइज करें। ताड़ासन, अर्धचक्रासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, अर्धनौकासन, मकरासन, बिलावासन, ऊष्ट्रासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन आदि करें। ये आसन इसी क्रम से किए जाएं तो ज्यादा फायदा होगा। गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार राइट से लेफ्ट और फिर लेफ्ट से राइट को गर्दन घुमाएं। गर्दन को ऊपर-नीचे भी करें। कंधों को गोल-गोल घुमाएं। हफ्ते में कम-से-कम चार-पांच दिन 40 मिनट में 4 किमी वॉक करें। ऐसे अपनाएं सही पॉश्चर अपने पॉश्चर पर ध्यान दें। थोड़े दिन गौर करना पड़ेगा। बाद में आपको खुद-ब-खुद सही पॉश्चर की आदत बन जाएगी। जितना ध्यान देंगे, उतना जल्दी पॉश्चर सुधरेगा। जहां-जहां आप जाते हैं, मसलन अपने कमरे में, किचन में, ऑफिस में, टायलेट आदि वहां 'कमर सीधी' या 'बैक स्ट्रेट' लिखकर दीवार पर चिपका लें। जो लोग आगे झुककर चलते हैं, वे वॉक करते हुए, हर 10 मिनट में तीन-चार मिनट के लिए अपने हाथों को पीछे बांध लें। इससे पॉश्चर सीधा होता है। स्कूली बच्चे एक कंधे पर बैग टांगने के बजाय दोनों कंधों पर बदलते रहें। लैपटॉप बैग या पर्स भी बदलते रहें। कोशिश करें कि पिट्ठू बैग लें। कोई भी चीज उठाने के लिए कमर से न झुकें, बल्कि घुटने के बल बैठें और फिर चीज उठाएं। किचन में स्लैब की ऊंचाई इतनी हो कि झुककर काम न करना पड़े। बेड पर लेटकर पढ़ने के बजाय कुर्सी-मेज पर पढ़ें। बेड पर आधे लेटकर टीवी न देखें। सही तरीके से बैठें या थक गए हैं तो पूरा लेटकर टीवी देखें। वजन न बढ़ने दें। जिनकी तोंद है, वे खासतौर पर सावधानी बरतें। पोंछा लगाते हुए और कपड़े प्रेस करते हुए ध्यान रखें और उलटी-सीधी दिशा में झुके नहीं। अगर लंबे वक्त से खड़े हैं तो कुछ-कुछ देर बाद पोजिशन बदलें। वजन एक पैर से दूसरे पैर पर डालें। इससे पैरों को आराम मिलता है। 50-55 साल के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो जाती है। उन्हें रोजाना आधा घंटा सूरज की रोशनी में बैठना चाहिए। इसके अलावा, बोन डेक्सा स्कैन कराकर हड्डियों की सघनता जांच लें। अगर जरूरत पड़े तो डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम ले सकती हैं। कैसे पहचानें पॉश्चर बैठने पर: चौकड़ी मारकर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। जब हमारी कलाई (जहां घड़ी बांधते हैं) घुटने के लेवल पर आती है तो पॉश्चर ठीक है। ध्यान रखें कि घुटने सीधे हों। खड़े होने पर: रोजाना एक मिनट तक शीशे के सामने सीधे खड़े हों। ध्यान रखें कि ठोड़ी शरीर से आगे न निकली हो और दोनों कंधे एक लेवल पर हों। पेट भी सीधा-सपाट हो। कमर किसी तरह झुकी न हो। ऐसे सुधारें पॉश्चर जो लोग डेस्क जॉब ज्यादा करते हैं, वे रोजाना सुबह 2-3 मिनट के लिए दीवार के सहारे सटकर खड़े हो जाएं। सिर, दोनों कंधे, हिप्स और एड़ी (एक-आध इंच आगे भी हो, तो चलेगा) दीवार के सहारे लगकर खड़े हो जाएं। रोजाना 2-3 मिनट प्रैक्टिस करने से पॉश्चर ठीक हो सकता है। पॉश्चर का कमाल आप कैसे चलते हैं, कैसे बैठते हैं, ये बातें आपकी पर्सनैलिटी पर असर डालती हैं, यह सभी जानते हैं लेकिन हाल में एक रिसर्च में यह बात और पुख्ता हुई है। इलिनोइस (अमेरिका) में नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवसिर्टी में हुई इस रिसर्च में 76 स्टूडेंट्स में से आधों को हाथ बांधकर, कंधे झुकाकर और पैर मिलाकर बैठने को कहा गया, जबकि बाकी को पैर फैलाकर और हाथ बाहर की ओर खोलकर बैठने को कहा गया। बंधे हुए पॉश्चर में बैठे लोगों ने हर टास्क में कम नंबर पाए, जबकि दूसरों ने अच्छा परफॉर्म किया। यानी रिसर्च साबित करती है कि अच्छा पॉश्चर कॉन्फिडेंस बढ़ाता है।
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ. पी. के. दवे, चेयरमैन, रॉकलैंड हॉस्पिटल डॉ. हर्षवर्धन हेगड़े, एचओडी ऑथोर्पेडिक्स, फोर्टिस हॉस्पिटल डॉ. आई. पी. एस. ओबरॉय, ऑथोर्पेडिक सर्जन, आर्मेटीज हेल्थ इंस्टिट्यूट डॉ. राजीव अग्रवाल, इनचार्ज, न्यूरोफिजियोथेरपी यूनिट, एम्स सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु