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सोमवार, 2 मई 2011

गजल - किशन कारीगर

ग़ज़ल

हमरा दिल के तोड़ि देलहुँ
हमरा सँ मुह मोड़ि लेलहुँ
छोड़ि क एसगर हमरा अहाँ
हमरा सँ दूर कतहु चलि गेलहुँ ।।

मोनक बात मोने मे रखलहुँ
कहियो अहाँ स नहि कहलहुँ
दूइए दिनक भेंट घांट मे
प्रेम अहाँ स कए लेलहु।।

बाट अहाक तकैत रहलहुँ
मुदा अहाँ नहि अएलहुँ
दूर जाकए हमरा स अहाँ
हमरा मोन के तड़पबैत रहलहुँ।।

याद सताबैए अहाँक त
मोन पड़ैए ओ सभ दिन
जहिया रहैत छलहुँ अहाँ
हमरा स बड्ड खिन्न।।

सपना मे अहिं के देखैत रहलहुँ
अहिंक वियोग मे तड़पैत रहलहुँ
मुदा किशन सन प्रेमी केँ अहाँ
अनपढ़ गंवार बुझैत रहलहुँ ।।

जहिए देखलहुँ एक नज़र अहाँ के
तहिए मोन मे बसि गेलहुँ अहाँ
मुदा हमरा पवित्र प्रेम के
अहाँ नहि बुझि सकलहुँ ।।

आब बुझहब मे आबि रहल अछि हमरा
अहाँक प्रेम मे हम की नहि केलहुँ
मुदा तइयो हमरा मधुबनी मे छोड़ि अहाँ
हमरा स दूर कतहु चलि गेलहुँ ।।

दिल सँ हम साँचो प्रेम केने रही
अहू त ई गप हमरा एक बेर कहने रही
मुदा किएक से अहिं कहू
हमरा सँ दूर अहा कतए चलि गेलहुँ ।।

ज अहू साँचो के प्रेम केने होएब
त मोन पड़ैत होएब हम
मोन सँ निकलैत होयत एकटा गप
कारीगर अहाँ संगे ई की केलहुँ हम।।

हृद्य सँ प्रेम केनिहार बुझहत
प्रियतम सँ दूर हेबाक वियोग
कोना क हम सहलहुँ कनेक अहू बुझहू
निश्छल प्रेम केन रही सभ दिन त कहलहुँ ।।

लेखक:- किशन कारीगर।

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