(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

सोमवार, 18 मार्च 2013

चलू जंतर - मंतर देल्ही 22-25 मार्च २०१ ३



  Pankaj Jha 
चलू जंतर - मंतर  देल्ही  --
 चलू जंतर - मंतर  देल्ही  22-25 मार्च २०१ ३ 

  अधिकार रेली मे माननीय मुख्य मंत्री जी के भाषण पर गौर करू। नितीश जी अपन पूरा भाषण मे बिहारक जते समस्या गिनेला ओ सब उत्तर बिहारक (मिथिला) समस्या छल। मतलब अशपष्ट आइछ जे नितीश जी सेहो बुझइत छईथ जे मिथिला पिछरल अइछ। मुदा अखन तक आम मैथिल जिनका राहत कोश के आदत सं सरकार निकम्मा बनेवाक प्रयश करैत अइछ, ओ अखानों अपन पिछरापन स अनिभिज्ञ छईथ।
गाम मे रहनीहार राहत मे मस्त छईथ। परदेश वला के कोनो लेने देन नई छैन। एकर विरोध के करत? अपन हक के मांग के करत? पिछरल लोक के डर होई छैन, आम आदमी के बात के सुनत?, संम्पन लोक के गरज नई छैन। तखन त मिथिलाक विकाश नई होबाक मुख्य कारण येह जे हम सब समुचित ढंग स अपन बात के सरकार तक नई पाहुचा सकलौअखन कवि एकांत एक टा अनशन के घोषणा केलखिन, आब लिया आहु मे मारा मारी, बहुत युवा हिनकर समर्थन मे आयला, बहुत हिनका प्रोत्शहित सेहो केलखिन, बहुत संग मे ठार भेला, मुदा आहु मे किछू लोक अपन बुद्धिक प्रकासठा के परिचय द ई तक कहे लागला जे ले आब त कवि एकांत फइश गेला। हिनका आब पिपली लाईव बाला हाल भ गेल। काहू जे कवि एकांत की आहा के पिपली लाईव वला किरदार जांका बुरबक बुझाइत छईथ? कवि एकांत माँ मैथिली के ओ समर्पित बेट्टा छईथ जिनका स मैथिल युवा के प्रेरणा लेवक चाही। हुनक अई समर्पण,त्याग के अपन दूषित मानशिकता स गंदा करय बाला लोक के मात्र आते अनुरोध जे जदी आहा किछू कई नई सकाइत छि त आहा के कोनो हक नई जे सार्थक पहल करे बाला लोक के टाग खिची।आरे कवि एकांत एक हार के लोक छाईथ, हुनका बाली के बकरा बना देल गेल, ई सब विकृत मानसिकता स ओई सपूतक त्याग के गंदा नई करू। आहा के अते चिंता कवि एकांत के अइछ त रोकी लिय हुनक, कहियौन जे मैथिल सब आहा के ठगइत छईथ, देख लिय की जबाब भेटत।
मिथिलाक विकाश मे सब स पइघ वाधक मैथिल खुद छईथ। आपसी घिनमा-घिनौज, कही हमारा स आगा ओ नई चल जाइथ, कही हम पाछा नई रही जाई , ई मानशिकता के जा धईर त्याग हम सब नई करब, ता धईर समाज के लेल हम सब खुद श्राप बनल रहब। आ ई श्राप के फायदा नेता आ राजनीतिक दल मिथिला स उठाबैत राहत।

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