गुरू की वंदना
गुरू चरण कमल में शीश झुका दीन रात करूँ पूजा सेवा।
गुरू स्तुती नित्त करूँ मन से गुरू सम कोई और नही देवा॥
गुरू अर्थ देत गुरू धर्म देत गुरू काम मोक्ष देने हारे ।
गुरू महीमा जाने न ऋषी मुनी शीव शारद शेष की पार नहीं।
संसार असार की परीत छुटी गुरू भक्ती सम कोई सार नहीं॥
बहुत बरत कीये बहु दान दीये बहु तीरथ में जाकर अटके।
गुरू चरण कमल की परीत नहीं यम जाल में जो जाकर लटके ॥
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