(एकमात्र संकल्‍प ध्‍यान मे-मिथिला राज्‍य हो संविधान मे) अप्पन गाम घरक ढंग ,अप्पन रहन - सहन के संग,अप्पन गाम घर में अपनेक सब के स्वागत अछि!अपन गाम -अपन घर अप्पन ज्ञान आ अप्पन संस्कारक सँग किछु कहबाक एकटा छोटछिन प्रयास अछि! हरेक मिथिला वाशी ईहा कहैत अछि... छी मैथिल मिथिला करे शंतान, जत्य रही ओ छी मिथिले धाम, याद रखु बस अप्पन गाम ,अप्पन मान " जय मैथिल जय मिथिला धाम" "स्वर्ग सं सुन्दर अपन गाम" E-mail: madankumarthakur@gmail.com mo-9312460150

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

किरीम लगाउ-मुहॅ चमकाउ

किरीम लगाउ-मुहॅ चमकाउ

।एकटा हास्य कथा।

बाबूबरही बज़ार सॅ घूमी क अबैत रही जहॉ सतघारा टपलहूॅ की मुक्तेश्वर स्थान लग बाबा भेंट भए गेलाह। हुनका देखैते मातर हम प्रणाम कहलियैन की बाबा बजलाह आबह बच्चा तोरे बाट ताकि रहल छलहूॅ जे कहिया भेंट हेबअ कतेक दिन बाद एमहर माथे एलह कहअ केमहर सॅ ख़बर नेने आबि रहल छह। हम बजलहूॅ बाबा हम त बरही हाट सॅ तीमन तरकारी किनने आबि रहल छी।
बाबा हरबड़ाईत बजलाह हौ बच्चा हमरो एगो मुहॅ चमकौआ किरीम देए ने ।हम पुछलियैन बाबा ई कहू जे मुहॅ चमकौआ किरीम केहेन होइत छैक। बाबा खिसियाअैत बजलाह कह त तोंही मीडियावला सभ प्राइम टाइम मे हल्ला कए लोक के कहैत छहक जे मरद भए के माउगीवला किरीम यदि हमरा जॅका गोर बनना है त ईमामी हैण्डसम मरदवला किरीम सिरीफ साते दिन मे दोगुना गोरापन। अहि दुआरे भेल जे हमहॅू कनि गोर-नार भए जाइत छी। हम बजलहूॅ बाबा अहॉ कथि लेल एहि किरीम सबहक फेरा मे परैत छी अहॉ त केहेन बढ़ियॉ सौंसे देह बिभूत लेप के अपने मगन मे रहैत छी। हमहूॅ तए अहिं जॅका साधुए छी हमरा लग मुहॅचमकौआ किरीम नहि अछि। ई सुनि बाबा तामसे अघोर भेल बजलाह तहॅू फूसि बजैत छह देखेत छहक मीडियावला लक तए रंग बिरंगक किरीम रहैत छैक तहूॅ मंगनी मे मदैद नहि करबह त हयिए ले 5रूपया आ लाबह मुहॅचमकौआ किरीम।
हम असमंजस मे परि गेलहॅू जे बाबा सन औधरदानी लोक के किरीमक कोन काज से कनेक फरिछा के पूछि लैति छियैन जे की भेल। हम पुछलियैन त बाबा बजलाह हौ बच्चा तोरा सभटा गप की कहियअ। बड्ड सख सॅ चारि बरिख बाद बसहा पर बैसि हम अपन सासुर हरीपुर गेल रही। गौरी दाए त बियाहे दिन सॅ हमर ठोर मुहॅं देखि रूसल छलीह। हम सोचलहॅू जे आई हुनकर सखी सहेली माने हम अपन सारि सभ सॅ हॅसी मज़ाक कए मोन मे संतोख कए लैति छी। हम अपना सारि सॅ पूछलहू कहू कुशल समाचार कि हमर सारि उपकैरि के बजलीह बुरहबा बर बड्ड अनचिनहार बुरहारी मे लगलैन किरीमक बोखार आ सभ गोटे भभा भभा के खूम हॅसैए लगलीह। हम पूछलियैन जे साफ साफ कहू ने की कहि रहल छी कि हमर दोसर सारि आर जोर सॅ हॉ हॉ के हॅसैत बजलीह अईं यौ पाहुन बुरहारी मे सासुर अएलहॅू त अकील रस्ते मे हेरा गेल की\ हम बजलहू से की त एतबाक मे हमर छोटकी सारि मुहॅ चमकबैत बजलीह देखैत छियैक हाट बज़ार मे रंग बिरंगक किरीम पाउण्डस बोरो प्लस डोभ एसनो पाउडर फेरेन लबली बिकायत छै से सब लगा के मुहॅ उजर धब धब बना लेब से नहि। एहेन कारि झोरी मुहॅ पर त घसबैहनियो ने पूछत आ हम तए एम.बी.ए केने छी। जाउ थुथून चमकौने आउ तब हॅसी मज़ाक करब।
आब तोंही कहअ जे बिना किरीम लगौनेह जान बॉचत। देखैत छहक नएका नएका छौंड़ा सभ सासुर जाइअ सॅ पहिने ब्यूटी पार्लर जा थूथून चमकबैत अछि। हौ बच्चा कि कहियअ एखुनका छौंड़ीयो सभ कम ने अछि देखैत छहक किरीम लगबैत लगबैत मुहॅ मे फाउंसरी भए जाइत छैक मुदा थुथून चमकबै दुआरे इहो मंजूर। पछिला पूर्णिमा मेला देखबाक लेल छहरे-छहरे पिपराघाट मेला गेल रही त ओतए गौरी दाए के दू चारि टा बहिना सभ भेंट भए गेलीह हम पूछलियैन जे कहू मुहॅ मे एतेक फाउंसरी केना? कि ताबैत हमर साउस केमहरो सॅ बजलीह पाहुन हिनका सभटा गप कि कहियैन ई सभ किरीम लगेबाक फल। ई छाउंड़ी सभ फिलमी हिरोईन सॅ एक्को पाई कम नहि अछि बिना ब्यूटि पार्लर जेने एकरा सभ के अनो पानि नहि नीक लगैत छैक। ई सुनि हमरो भेल जे ब्यूटी पार्लर जा कनेक थुथून चमका लैति छी। मुदा हम जे ब्यूटि पार्लर जाएब से जेबी मे एक्कोटा पाइओ नहि अछि। भागेसर पंडा के कतेको दिन कहलियैअ जे हमरो ब्यूटि पार्लर नेने चलअ से ओकरो भरि भरि दिन फूंसियाहिक पूजा-पाठ सॅ छुट्टी ने।
हम बजलहॅू त बाबा दिल्ली चलू ने ओतए त बड्ड नीक एक पर एक ब्यूटि पार्लर छै। बाबा बजलाह हौ बच्चा हम डिल्ली नहिं जाएब हौ कियो नमरो पता नहि बता दैत छैक एक सॅ एक ठग लोक सभ रस्ते पेरे भेटतह हमरा त डर होइए। त बाबा चलू ने फिलिम सिटी नोएडा ओहि ठाम फेसियल करा लेब। बाबा बजलाह नहि हौ बच्चा बुरहारी मे एहेन करम नहि करब जे कोनो न्यूज़ चैनल जाएब। तोरो मीडियावला के सेहो कोनो ठीक नहि छह बेमतलबो गप के ब्रेकींग न्यूज़ बना दैति छहक। हम एमहर ब्यूटि पार्लर आ कोन ठिक तों खटाक दिस चैनल पर चला देबहक ब्रेकींग न्यूज़ किरीम लगाउ-मुहॅ चमकाउ।


लेखक:- किशन कारीग़र


परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

ग़ज़ल यादों में हम खो गए।


ग़ज़ल यादों में हम खो गए।
आप मुझे छोड़कर कहीं चले गए
सच्ची मुहब्बत में नादान कुछ पल रो लिए।
इठलाती.बलखाती आपकी हँसी पैग़ाम.ए.मुहब्बत बन गए
तस्वीर देखकर आपकी यादों में हम खो गए।

आपकी जुदाई में दिन कटता रहा
करता हूँ आपसे मुहब्बत सभी से मैं कहता रहा।
आपकी चाहत में न जाने हम क्या.क्या कर गए
तस्वीर देखकर आपकी यादों मे हम खो गए।।

मिलकर आपसे दिल मे हुई एक छुवन
देखकर आपको खिल गया मेरा मन।
अपने चाँद का हूँ मैं चकोर
चाँदनी रातों में करते हम दोन झिकझोर।।

सच न हुआ सपना कोई नहीं है अपना
सपनों की दुनियाँ मे हम रह गए।
आपकी यादों के सहारे ही खुश हो लिए
तस्वीर देखकर आपकी यादों में हम खो गए।।

लेखकः. किशन नादान

http://kishan-naadan.blogspot.com/

 

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

INVITATION FOR SARASWATI PUJA



My Dear फ्रेन्ड---
We are INVIETING you for SARASWATI PUJA २०११
Organised by:- विद्यापति मैथिल युवा मंच (Regd N. 56961) Delhi- ९२
If you are interested for contribution please contact on number givenin collection recpt.please Find Invitation Card Atteched,With Best Regard :-*BASANT JHA **JHA CONSULTANCY SERVICES* Complete Corporate Solution109,Balaji Complex,Main Road Pandav Nagar,New Delhi-1100९२
Call:- ०९३१०३५०५०३ ,
०११४७३३०३०३ ,
०११२२४८३११०

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

मैथिली मे आइ स्तरीय साहित्यक घोर अभाव...

साभार ई-समाद
http://www.esamaad.com/regular/2011/01/7129/



अनलकांत जी कए भारतीय भाषा परिषद क युवा पुरस्कार भेटल अछि, एहि मौका पर पत्रकार विनीत उत्‍पल इसमाद लेल खास तौर पर हुनका स गप केलथि, प्रस्‍तुत अछि गपशप क किछु अंश’ – समदिया

अहाँ केँ भारतीय भाषा परिषद क युवा पुरस्कार भेटला पर सब सँ पहिने इसमाद परिवारक बधाई आ इसमाद लेल समय निकालबा लेल धन्यवाद!

प्रश्न- अनलकांत आइ गौरीनाथ से आगू आकि पाछु?
गौरीनाथ : पहिने अहूँ केँ धन्‍यवाद!अनकांत आ गौरीनाथ मे हमरा कोनो द्वैध नइँ बुझाइत अछि। गौरीनाथ प्रमाण-पत्र सभ मे अछि, अनलकांत घरक आप्‍त नाम थिक। मैथिली मे सेहो शुरू मे मारतेरास रचना गौरीनाथक नामे छपल अछि। दुनू भाषा मे हम अपना सामर्थ्‍य भरि समाने सोच आ निष्‍ठाक संग लिखैत छी। हँ, हिन्‍दीक कमाइ सँ घर-गृहस्‍थी चलबै छी आ ओकरे कमाइ खाइत मैथिली लेल जे आ जतबे करै छी से हमर अपन हार्दिक इच्‍छा आ रुचिक परिणाम थिक, किनको दबाव नइँ। किनको दबाव, सराहना अथवा निंदाक परवाह हम नइँ करै छी। मैथिली भाषाक तथाकथित प्रेमीकहाबक लौल हमरा नइँ अछि। ई भाषा हमर नितांत व्‍यक्तिगत सुख-दुख मे अभिव्‍यक्तिक माध्‍यम रहल अछि, हमरा घर-परिवारक संगहि नेनपनक संगी आ शुरूआती जीवनक आप्‍त-स्‍वजनक भाषा थिक ई आ एहि मे अपना केँ सब सँ पहिने अभिव्‍यक्‍त करब शुरू कयने रही हम जखन कलमो-पेंसिल नइँ पकड़ने रही। तेँ मैथिली मे एक तरहक अतिरिक्‍त जनपक्षीय लगाव, सहजता आ सुविधा अनुभव करैत छी। बाकी हिंदी सँ सेहो कम प्रेम नइँ। साहित्यिक लेखन हम हिंदीए मे पहिने शुरू कयने रही आ सर्वाधिक अनुभव, अध्‍ययन, यश, नेह-प्रेम, सम्‍मान आ जीविकोपार्जन लेल धन हिंदीए सँ प्राप्‍त होइत रहल अछि।

प्रश्न- अहाँ अपना केँ कवि, कहानीकार आ उपन्यासकार मे सँ की मानैत छी?
गौरीनाथ : हमर कथा दू दर्जन सँ बेसी छपल अछि। हिंदी मे दू टा कथा-संग्रह अछि ! मैथिली मे पोथी तेना बिकाइ नइँ छै तेँ मैथिली मे कथा-संग्रह सभ प्रकाशनक बाटे तकै अछि। कविता हम नइँ लिखने छी, तँ कवि कोना कहब अहाँ? कविता सनक जे किछु हमर छपल अछि, ओ वास्‍तव मे हमर डायरी थिक। बेसी सँ बेसी कवितानुमा डायरी कहि सकैत छी ओकरा आ सेहो बड़ थोड़ अछि। वैचारिक आ समसामयिक लेख दुनू भाषा मे अछि, मैथिली मे किछु आलोचनात्‍मक लेख सेहो। उपन्‍यास कोनो भाषा मे छपल नइँ अछि। हँ, मैथिली मे एक टा उपन्‍यास पूरा कयलहुँ अछि, साल भरिक भीतर जकर छपिकअबैक संभावना अछि। एहना मे आओर जे मानी, कवि तँ नहिए टा छी हम। ओना हमरा नजरि मे साधारण मनुक्‍ख होयब सब सँ पैघ बात होइत छै।
प्रश्न- हंसछोड़ि अपन प्रकाशन शुरू करबाक पाछु कोनो खास वजह?
गौरीनाथ : अपना सोचक अनुरूप एहन किछु नव करबाक योजना छल जे एखन करहल छी। ‘‘बया’’, ‘‘अंतिका’’क संपादन आ पुस्‍तक प्रकाशनक जे काज एखन हम करहल छी, से की अहाँ केँ लगैत अछि जे एहिना ओतरहितो कसकितहुँ?

प्रश्न- ‘‘अंतिका’’क प्रकाशन कोना शुरू भेल?
गौरीनाथ : ‘‘अंतिका’’क प्रकाशन जनवरी, 1999 मे प्रत्‍यक्षत: अरुण प्रकाश, सारंग कुमार, संजीव स्‍नेही आ नंदिनीक संग हमसभ मिलि शुरू जरूर कयने रही, मुदा एकरा पाछाँ एतबे लोक नइँ छलाह। हमरा सभ जकाँ सोचैवला मारतेरास अग्रज आ समकालीन रचनाकार मित्र छलाह जिनका लोकनि केँ ‘’अंतिका’’ सन एक टा पत्रिकाक दरकार छलनि। राज मोहन झा, कुलानंद मिश्र, धूमकेतु, उपेन्‍द्र दोषी, रामलोचन ठाकुर, महाप्रकाश, अग्निपुष्‍प, कुणाल, नरेन्‍द्र, विद्यानन्‍द झा, कृष्‍णमोहन झा, रमेश रंजन, रामदेव सिंह, श्रीधरम, रमण कुमार सिंह, अविनाश आदि सनक एहेन अनेक गोटे छलाह जिनका लोकनिक समस्‍त सहयोगक बिना एकरा ठाढ़े नइँ कसकैत रही। ओना एहि प्रसंग मे अनेक आन-आन ठामक अलावा ‘‘अंतिका’’25म अंकक संपादकीय मे हम विस्‍तार सँ लिखने छी। इच्‍छुक पाठक ओ संपादकीय पढि़ सकैत छथि। (अंतिकाक ओ संपादकीय नींचा साभार देल गेल अछि- समदिया )

प्रश्न- ‘‘अंतिका’’क नियमित प्रकाशन मे की बाधा रहल?
गौरीनाथ : शुरू मे मारते तरहक बाधा रहल छल, मुदा आब एकमात्र बाधा स्‍तरीय रचनाक अभाव अछिएम्‍हर आबिकई संकट बेसी बढ़ल जा रहल अछि। प्रश्न- बाजारवादक युग मे मैथिलीक भविष्य केहन अछि?गौरीनाथ : बाजारवादे मात्र भविष्‍य नइँ निर्माण करत। समग्रत: जेहन भविष्‍य आन-आन अधिकांश भारतीय भाषाक लगैत अछि तेहने मैथिलियोक। हमरा जनैत अष्‍टम अनुसूची मे मैथिलीक प्रवेश सँ मात्र एहि भाषाक दोकानदार आ ठेकेदार लोकनि लाभान्वित भेलाह अछि। सामान्‍य जन लेल धनसन!हमरा बुझाइछ जे स्‍तरीय साहित्‍य-लेखनक दृष्टि सँ मैथिलीक स्थिति ह्रासोन्‍मुख अछि। कहि सकै छी जे ई भाषा म्‍यूजियम दिस, माने अपन कब्र दिस डेग उठा देलक अछि।

प्रश्न- मैथिलीक साहित्यिक दाँव-पेंच मे फँसबाक कोनो घटना?
गौरीनाथ : ई तँ भाषाक दोकानदार लोकनि कहताह। ओहि सभ लेल हमरा लग फुर्सते नइँ अछि।

प्रश्न- खगेंद्र ठाकुर संग अहाँक विवाद चर्चा मे रहल, की मामला छल?
गौरीनाथ : मोहल्‍ला लाइव डॉट कॉम पर हमर जवाब उपलब्‍ध अछि। तकरा बाद ओ लेखन सँ जवाब नइँ दलीगल नोटिस भेजलनि।एहेन-एहेन नोटिस सँ लेखक केँ लिखै सँ थोड़े रोकल जा सकैत अछि?

प्रश्न- अहाँ पर आरोप लगैत रहल अछि जे अहाँ गैर वामपंथी विचारधारावला लेखक केँ छपबा सँ कतराइत छी?
गौरीनाथ : ई अहाँक गढ़ल आरोप अछि आ अहीं सन-सन ओहन व्‍यक्ति ई बात कहि सकैत अछि जे अंतिकापढ़नहि नइँ होअय। अंतिकामे छपल लेखकक सम्‍पूर्ण सूची देखि लिअ’, सत्‍तरि प्रतिशत सँ बेसी लेखक गैरवामपंथी छथि। हँ, हमरा स्‍तरीय रचना जरूर चाही आ से किन्‍नहुँ जनविरोधी आकि समाज केँ पाछाँ लजायवला नइँ होअय। स्‍त्री, दलित अथवा कोनो शोषित-पीड़ित लोकक हक आ सम्‍मानक विरुद्ध सेहो नइँ जाइत होअय। माने हम जे रचना छपैत छी ता‍हि सँ उचित न्‍यायक पक्षधरता जरूर चाहैत छी। अंतिकाक हरिमोहन झा, यात्री, किरण, राजकमल, राज मोहन झा आदि पर केन्द्रित विशेषांक सभ आयल अछि। एहि मे सँ यात्री जी केँ छोड़िकके वामपंथी छथि? सम्‍माननीय भीम भाइक कतेको आलेख आ अनुवाद अंतिकामे छपल अछि। एहिना वरिष्‍ठ कथाकार मायानंद मिश्र, रामदेव झा, सोमदेव, जीवकांत, उषाकिरण खान आदि सँ लअशोक, तारानन्‍द वियोगी, नारायणजी, विभूति आनंद, सुस्मिता पाठक आदि-आदि सन करीब सय सँ बेसी एहेन लेखकक रचना ‘‘अंतिका’’ मे छपल अछि जे कतहुँ सँ वामपंथी नइँ छथि। मैथिली मे कतबो गनब, दस टा सँ बेसी वामपंथी रचनाकार नइँ भेटताह। मुदा सभ केँ खटकैत छनि वामपंथी। जखन यात्रीजी धरि केँ जीवकांत जी सन वरिष्‍ठ लेखक ‘’मार्क्‍सवादक ढोलिया’’ कहैत उपहास उड़बचाहैत छथि, …जखन धूमकेतु कुलानंद मिश्र, रामलोचन ठाकुर, अग्निपुष्‍प, कुणाल केँ स्‍वीकारैत अहाँक साहित्‍यक पैघ-पैघ झंडाबरदार लोकनि धखाइत छथि, तँ हमरासभ सन नव आ प्रशिक्षु वामपंथी केँ अहाँ लोकनि किऐ ने मुँह दूसब? अहाँ जनसंघी छी तँ बड़ नीक, अहाँ कांग्रेसी छी तँ बड़ नीकअहाँ जे-से कोनो पार्टी वा दल मे रहैत मैथिली प्रेमी कहाबैत अकादमी सँ लसभ तरहक संस्‍थान मे लोभ-लाभक पूर्ति करैत रहूहम न्‍यायक पक्ष मे रहैत दलित-स्‍त्री-शोषित-पीड़ित लोकक हक आ सम्‍मानक बात करैत छी तँ हम गलत भजाइत छीमार्क्‍सवाद अहाँ बूझी आकि नइँ बूझी, ओकर विरोध आ ओकरा पर आक्षेप करबा मे अहाँ केँ आनंद अबैत अछिहम तँ बस एतबे बुझैत छी अहाँक एहि प्रश्‍नक आशय।

प्रश्न- आजुक युग मे समीक्षाक की स्थान अछि?
गौरीनाथ : मैथिली मे रमानाथ झा आ कुलानन्‍द मिश्रक बाद कोनो तेहन आलोचक नइँ छथि। आइ जे किछु सार्थक आलोचना आकि समीक्षा आबि रहल अछि से सुकांत सोम, सुभाष चन्‍द्र यादव, तारानन्‍द वियोगी, विद्यानन्‍द झा, श्रीधरम आदि सन-सन रचनाकारे लोकनि द्वारा लिखल जाइत अछि। राज मोहन जी सेहो लिखैत रहलाह मुदा एम्‍हर कतेको वर्ष सँ स्‍वास्‍थ्‍यजन्‍य परेशानीक कारणें हुनक लेखने छूटल छनि।

प्रश्न- नव लेखक लेल कोनो संदेश?
गौरीनाथ : नइँ-नइँ!हम स्‍वयं नव छी आ कोनो टा संदेश देब हमरा उपदेश बघारै जकाँ फालतू लगैत अछि।

प्रश्न- मैथिली भाषा मे स्त्री लेखन क भविष्य केहन लगैत अछि?
गौरीनाथ : जेहने पुरुष लेखनक भविष्‍य, तेहने

प्रश्न- भविष्य क योजना?
गौरीनाथ : योजना बनाकजीबवला विशिष्‍ट लोक होइत छथि। हमरा सन साधारण लोक जीविकोपार्जन लेल भने कोनो रूटीन पालन करैत होअय, बाकी लेखन आ जीवन सामान्‍य ढर्रा पर चलैत छै।

ईसमाद : एक बेर फेर अहाँ कए इसमादक संग साक्षात्कार देबा लेल धन्यवाद।
गौरीनाथ : बातचीत करबा लेल ईसमाद परिवार कें हमरा दिस सं बहुत-बहुत धन्‍यवाद।



गौरीनाथ जी अपन सफर पर अंतिका क 25म अंकक संपादकीय मे सविस्‍तार उल्‍लेख केने छथि, इसमाद साभार ओ संपादकीय अहां लेल एहि ठाम प्रस्‍तुत कए रहल अछि,
पचीस अंकक यात्रा
- अनलकान्त
मोन पड़ै अछि दिसंबर, 1998क ओ दिन जहिया दिल्लीक सीमा कात शालीमार गार्डन (गाजियाबाद)क सटले गणेशपुरीक एक टा छोट-सन किरायाक कोठली मे सपरिवार रहैत छलहुँ। ओही कोठली मे सारंग कुमार आ संजीव स्नेहीक संग हमरासभ एक टा पत्रिका निकालबाक निर्णय लेने छलहुँ। ओ दिसंबरक कोनो रवि दिन छल, मुदा संजीव स्नेही केँ सांध्य महालक्ष्मीसँ छुट्टी नहि छल। सारंगजी पब्लिक एशियामे विज्ञापन-अनुवादक काज करैत कटवारिया सराय मे रहैत छलाह आ पछिला साँझ हमरा घर आयल छलाह। रविक भोर संजीव स्नेही जाबत ऑफिसक लेल विदा होइत हम आ सारंग अनेक नाम पर विचार करैत अंतिकापर आबि करुकल रही। बाकी नाम सभक लगातार मजाक-मजाक मे धज्ïजी उड़बैत आबि रहल संजीव स्नेही आ नंदिनी सेहो एहि पर एक भगेल।
ओहि राति धरि, जाबत संजीव ऑफिस सँ घुरल, हम आ सारंग अंकक प्रारूप, लेखकक सूची, लेखक लोकनि केँ जायबला पत्रक प्रारूप आदि बना लेने छलहुँ। राति मे डेढ़-दू बजे धरि सब गोटे ओहि पर पुन:-पुन: चर्चा-समीक्षा-बहस करैत सब किछु तय कलेने छलहुँ, मुदा अंतिकालेल दिल्लीक एक टा डाक पताक संकट छले। संगे एक टा वरिष्ठ सलाहकारक बेगरता सेहो अनुभव करै छलहुँ। कि तखने अग्रज अरुण प्रकाश जी सँ भेट करबाक विचार आयल।
अगिला भोर हम, सारंग आ संजीवतीनू गोटे अरुण जीक घर पहुँचलहुँ। हमरासभ सब टा बात-विचार सँ हुनका अवगत करबैत अपन प्रस्ताव रखलयनि। ओ मैथिलीक स्थिति सँ अवगत छलाह आ एक टा स्तरीय पत्रिकाक बेगरता स्वयं अनुभव करहल छलाह। ते ओ सहर्ष तैयार होइत संपादकीय कार्यालयक रूप मे अपन घरक पता उपयोग करबाक अनुमति सेहो देलनि आ तत्काल भाइ श्रीकांत जी केँ बजा कपत्रिकाक बजट बनबौलनि। पहिल अंक जनवरी-मार्च, 1999क छपाइक काज श्रीकांते जीक दौड़-भाग आ निर्देशन मे पूरा भेल छल।
एवंप्रकारें अंतिकाक पहिल अंक छपिकआबि गेल। ओहि अंकक संग एक टा नीक बात ईहो भेल छल जे भाइसाहेब राज मोहन जी आ सुकांत जी सेहो ओहि समय दिल्ली मे छलाह। अनेक वरेण्य रचनाकारक संगहि हिनका लोकनिक अपार सहयोग प्रवेशांकेक ओरिआओन सँ रहल। ओही बीच दिवंगत भेल बाबा यात्री पर ओहि अंक लेल सुकांत जी अपन आलेख दिल्लीए मे लिखने छलाह। भाइसाहेबक सक्रिय सहयोग सेहो ओही अंक सँ शुरू भगेल छल। ओ तँ कतेको अंकक कतेको सामग्रीक संपादन, पू्रफ, संयोजन, अनुवाद आदि करैत जाहि रूपें अंतिकाकेँ ठाढ़ कयलनि तकरा बिसरले नइँ जा सकैछ। तहिना एकर न्यौं मे हिंदीक वरिष्ठ कथाकार-उपन्यासकार आ समयांतर संपादक पंकज बिष्टक व्यापक सहयोग अविस्मरणीय अछि। सुखद आ स्मरणीय ईहो जे नई दिल्ली मे कनाट प्लेस स्थित मोहनसिंह पैलेसक इंडियन कॉफी हाउस मे 21 फरवरी 1999 केँ अंतिकाक विमोचन राज मोहन जीक हाथें भेल छल आ एहि अवसर पर जीवकांत, भीमनाथ झा, रामदेव झा, गंगेश गुंजन, रामेश्वर प्रेम, मोहन भारद्वाज, अनिल मिश्र सन मैथिलीक वरिष्ठ लोकनिक संगे हिंदीक पंकज बिष्ट, हरिनारायण समेत अनेक लोकक उपस्थिति हमरासभक लेल उत्साहवद्र्घक छल। अरुण जी सहित समस्त अंतिकापरिवार अपन कठिन संघर्षक काल (मोने अछि जे ओहि दिन हमरा तीनूक जेब खाली छल)मे समस्त ऊर्जा आ भावनाक संग ओहि ठाम जेना उत्साह सँ एकजुट भेल रही सेहो अविस्मरणीय अछि।
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तकरा बाद सोलह टा अंक लगातार चारि वर्ष धरि अनेकानेक विघ्न-बाधा, वाद-विवाद, विरोध-सहयोगक बीच समय सँ आयल आ पत्रिका लगातार विकास-पथ पर अग्रसर रहल। एहि बीच दू-एक टा दु:खद-सन प्रसंग सेहो जुड़ल। दोसर अंक अबैत-अबैत अरुण प्रकाश जी अपन नाम वापस ललेलनि आ डाक लेल दोसर पता ताककहलनि। ओना रजिस्टर्ड कार्यालय एखनो अरुणे जीक घर अछि आ हुनक लगाव सेहोअंतिकासंग अछिए। जे सेतखन हम हंससंपादक राजेन्द्र यादव सँ निवेदन डाक-संपर्क लेल अक्षर प्रकाशन, दरियागंज केर पता तँ ललेलहुँ, मुदा एहि शर्तक संग जे एहि पता पर व्यक्तिगत-संपर्क संभव नहि। ई फराक जे परिचित लोक जे पहिने अबै छलाह, बादो मे अबैते रहलाह। एहि लेल राजेन्द्र जीक आभारी छी।
ओहि समय धरि सारंग कुमार आ संजीव स्नेही मात्र नइँ, कनेके बाद मे जुड़ल साथी श्रीधरम आ रमण कुमार सिंहचारू अविवाहित छलाह आ चाकरीक अलावा अधिकाधिक समय अंतिकाकेँ दैत छलाह। तखन पैकेट बनाव’, डिस्पैच कर’, रचना मँगाव’, संपादन करसँ लसदस्यता अभियान हो आकि किछु लिखब-पढ़बसब किछु सामूहिक आ एक टा मिशनक अंग जेना छल। मुदा कालक्रमें सभक अपन-अपन घर-परिवार, बाल-बच्ïचा आ मारते रास पारिवारिक ओलझोल बढ़ैत गेलनि। जीवन मे ई सब आवश्यक थिक, मुदा महानगरी जीवन आ बाजारक दबाव एकरा पहिने जकाँ सहज-स्वाभाविक कहाँ रहदेलकै! एकरा नियतिवाद सँ जोडि़कदेखयौ वा आन कोनो रूप मे, एहि नगरीक यैह व्यवहार! जे सेसमयक दबाव मे सारंग आ संजीव शुरूक तीन सालक बादअंतिकाकेँ समय देबमे असमर्थ भगेलाह, मुदा भावनात्मक स्तर पर आ एक रचनाकार-मित्रक रूप मे दुनू एखनो अंतिकाक संग छथि आ आगूओ रहताह।अंतिकाक न्यौंक हरेक पजेबा मे हिनका लोकनिक पसेनाक अंश अछि। श्रीधरम, रमण कुमार सिंह आ अविनाश अनेक व्यस्तताक कारणें अंतिकालेल कम समय निकालबाक दु:ख भनहि रखैत होथि, मुदा ई लोकनि जे समय दरहल छथि से हिनका लोकनिक हिस्साक लड़ाइ आ प्रतिबद्घता सँ जुड़ल अछि। ई टीम-भावना आ सहयोगअंतिकाकेँ शक्ति आ ऊर्जा दैत अछि।
एहि यात्रा मे तेसर धक्का लागल छल 2002क अंत मे हमर बीमार पड़लाक बाद। डेंगूक चपेट सँ बचि गेलाक बादो कर्ज आ ओहि सँ जुड़ल अनेक परेशानी तेना असमर्थ बना देलक जे 2003क मध्य सँ 2006क आरंभ धरि मात्र तीन टा संयुक्तांक आबि सकल। अंतत: 2006क अक्टूबरक बाद हंसक चाकरी त्यागि अंतिकालेल पूर्णकालिक होयबाक निर्णय कयल। मुदा संकट ई छल जे मात्र एक त्रैमासिक पत्रिकाक बल पर, सेहो मैथिलीक, बड़ आश्वस्त नइँ भसकै छलहुँ। क्रूर महानगरीक व्यवहार, बाल-बच्ïचा, घर-परिवार आ बाजारक दबाव हमरो पर छल। तेँ हिंदी मे बया’ (छमाही) आ संयुक्त रूपें हिंदी-मैथिली केँ समर्पित अंतिका प्रकाशनसेहो शुरू करपड़ल। आब तँ पंद्रह सँ बेसी किताबो अपने लोकनिक बीच आबि गेल अछि। वास्तव मे अंतिकाक जे पछिला अनुभव छल ताहि मे आर्थिक स्तर पर जे कोनो पैघ मदति छल से हिंदिएक रचनाकार लोकनि सँ भेटैत रहल छल। एतबे नइँ प्राय: एकाध अपवाद छोडि़ जे किछु विज्ञापन भेटल सेहो हिंदिए सँ हमर लेखकीय संबंध आ पहिचानक कारणें। पैंचो-उधारक आधार वैह छल। अनेक बेर पंकज बिष्ट, असगर वजाहत, महेश दर्पण आदि सँ पैंच लपत्रिकाक काज चलाओल। संपूर्ण मिथिला सँ आइ धरि विज्ञापन शून्य रहल। पूरा बिहारेक प्राय: सैह हाल। ओना पेट भरबाक लेल हमर निर्भरता सदति हिंदिए पर रहल आ ताहू मे पछिला पंद्रह बरख सँ प्रवासी होयबाक पीड़ा भोगैते सब लड़ाइ लड़लहुँ अछि। हिंदी मे लेखन आ संपादन दुनूक माध्यमें धन मात्र नइँ, जतबा स्नेह भेटल अछि से हमरा लेल पैघ संबल थिक। एकर उनटा मैथिलीक विभिन्न महंथानक कुत्सित दंद-फंदक कारणें ततेक अनावश्यक परेशानी आ असहयोग झेलैत रहल छी जे चोट सहबाक आदति नइँ रहैत तँ कहिया ने अंतिकाबन्न कदेने रहितहुँ। मुदा एक तँ मातृभाषा प्रेम, दोसर किछु सहृदय रचनाकार आ ढेर रास एहेन पाठक लोकनि जे अंतिकासँ मैथिली पढ़ब शुरूए कयलनिहिनका लोकनिक अगाध प्रेम हमरा अंत काल धरिअंतिकानिकालैत रहबाक लेल पर्याप्ïत ऊर्जा आ शक्ति दैत अछि।
एम्हर पछिला डेढ़-पौने दू बरख सँ नव साज-सज्ïजा आ रंगीन आवरण मे अयलाक बाद अंतिकाजेना फेर नियमित अपने धरि पहुँचैत रहल अछि, आगूओ पहुँचैते रहत से विश्वास राखि सकै छी। आब हमरासभक टीम आर पैघ आ मजगूत भेल अछि तँ अपने लोकनिक विश्वास आ स्नेहेक संबल पर। वरिष्ठ चित्रकार आ कथाकार-उपन्यासकार अशोक भौमिकक कला-संपादक रूप मे सौजन्य-सहयोग हमरासभक लेल गौरवक बात थिक। आब तँ दुनू पत्रिका आ प्रकाशनक संयुक्त उद्यम सँ दीपक, सरिता सन-सन नव लोकक जुड़ाव सेहो बढि़ रहल अछि। ईहो संतोषेक गप्प जे जेना-तेना आब प्रकाशन आ पत्रिका केँ एक टा अप्पन स्थायी-सन (स्थायी किछु होइ छै?)  पता सेहो भगेल छै।
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अंतिकाक पचीस अंकक ई यात्रा मैथिली साहित्यक लेल केहन रहल आ मैथिली पत्रकारिताक इतिहास मे एकर कोनो सार्थकता सिद्घ होइ छै आकि नइँ, से विद्वान लोकनि जानथिई हमरासभक चिंता आ बुद्घिसँ बाहरक बात थिक। हमरासभ केँ कोनो प्रमाण-पत्र आकि तगमा नइँ चाही किनको सँ। पाठके हमर देवता छथि आ सामान्य जनताक नजरि मे ठीक रहबे हमरसभक प्रतिबद्घताक पहिचान। जँ जन-सरोकार सँ जुड़ल उदार दृष्टि नइँ रहल तँ कथी लेल साहित्य आ कथी लेल पत्रकारिता?
पचीस अंकक एहि यात्रा मे हमरासभक ई उपलब्धि रहल जे सय सँ बेसी एहेन नियमित पाठक बनलाह जे पहिने मैथिली मे छपल कोनो पत्रिका आकि किताब नइँ पढऩे छलथि। एक दर्जन सँ बेसी रचनाकार मैथिली मे अपन लेखनक आरंभ अंतिकेसँ शुरू कयलनि। निन्दा-प्रशंसा-पूर्वाग्रह आकि संबंध-आधारित चर्चा सँ हँटि सम्यक आलोचना-समीक्षाक जे परिपाटी अंतिकासँ शुरू भेल, तकरे फल थिक जे मैथिलियो मे लोक आब अपन आलोचना सुनबा-सहबाक साहस करलागल छथि। साहित्येतर वैचारिक लेखन, अनुवाद, स्तंभ-लेखन आदि केँ जगह दैतो कथा-कविता-आलोचनाक संग नाटक केँ पर्याप्ïत जगह पहिल बेर अंतिकेमे भेटल अछि। एहिना उपन्यास आ महत्त्वपूर्ण रचनाकार पर संग्रहणीय विशेषांकक व्यवस्था आ सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति। एकरे परिणाम थिक जे आइ एहि पत्रिकाक जे सर्वाधिक पाठक छथि से स्वत: प्रेरित पाठक छथि। बरजोरी बनायल पाठक नइँ। आजीवन सदस्य हो आकि सामान्य सदस्यबेसी गोटे (प्राय: 95 प्रतिशत) अपरिचित छथि आ हुनका सभ सँ आइ धरि व्यक्तिगत भेंट-घाट धरि नइँहमरा-हुनका बीच संवादक पुल थिक एक मात्रअंतिका
अंतिकामे एखन धरि जे छपल अछि पछिला 24अंक मे तकर विस्तृत अनुक्रमणिका अनेक अध्येता आ शोधार्थीक आग्रह पर एहि अंक मे प्रकाशित कयल जा रहल अछि। एकरा देखि अपने स्वयं अंतिकाक एखन धरिक काजक मूल्यांकन कसकैत छी।
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बीसम शताब्दीक महान काव्य-यात्री आ मैथिलीक शिखर वैद्यनाथ मिश्रयात्रीक यात्रा-विरामक संगे शुरू भेल अंतिकाक एहि यात्रा मे अभिन्न रूपें जुड़ल अनेक रचनाकार हमरासभ सँ बिछुडि़ गेलाह, हुनका लोकनिक कमी आइ बड़ खटकि रहल अछि। खासककुलानंद मिश्र, धूमकेतु, उपेन्द्र दोषी सनअंतिकाक वरिष्ठ शुभचिंतक रचनाकार जिनका लोकनिक बहुत रास स्वप्न आ कामना एहि पत्रिका सँ जुड़ल छल।
एखन धरि सभ पीढ़ीक सर्वाधिक लेखकक अपार सहयोग जेना अंतिकाकेँ भेटल अछि, तकरा प्रति आभार शब्द बड़ छोट बुझाइत अछि। अनेक रचनाकार मित्र आ अनेक व्यक्तिक स्तर पर अनचिन्हार रहितो सोच-विचारक स्तर पर परिचित साथी-सहयोगी जे लगातार अंतिकापढ़ैत, दोसरो केँ पढ़बैत, नि:स्वार्थ विक्रय-सहयोग दैत बिना तगेदाक पूरा पाइ पठबैत रहलाहहुनका लोकनिक सहयोगक प्रति हम कोन शब्द मे आभार व्यक्त करब? ई तँ हुनके लोकनिक पत्रिका थिक।
एतमोन पड़ै छथि छोट-पैघ समस्त एहेन लोक जे कोनो ने कोनो रूप मेअंतिकाकेँ सहयोग देलनि अछि। चाहे तकनीकी सहयोगी होथि आकि एजेन्सीक लोक आकि विज्ञापनदाता लोकनि।

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

dam digar- kishan karigar

दाम-दिगर
(एकटा हास्य कथा)

टूनटून राम टनटनाईत बाजल कहू त एहनो कहूॅं दाम दिगर भेलैयए जे दोसर पक्ष वला के तऽ दामे सुनि केॅं चक्करघूमी लागि जाइत छैक। हे बाबा बैजनाथ अहिं कनि नीक मति दियौअ एहेन दाम-दिगर केनिहार सभ केॅं। एतबाक सुनितैह बमकेसर झा बमकैत बजलाह आईं रौ टूनटूनमा हम अपना बेटाक दाम-दिगर कए रहल छी तऽ एहि मे तोहर अत्मा किएक खहरि रहल छौ। ताबैत फेर सॅं टूनटून राम जोर सॅं बाजल अहिं कहू ने अत्मा केना नहि खहरत हम जे अपना बेटा बच्चा राम के संस्कृत सॅं इंटर मे नाम लिखबैत रही तऽ अहॉ कतेक उछन्नर केने रही। मुदा तइयो ओ नीक नम्बर सॅं पास केलक आब हम ओकरा फूलदेवी कॉलेज अंधराठाढ़ी मे संस्कृत सॅं बी.ए मे नाम लिखा देलियैअ। ई सुनि बमकेसर झा तामसे अघोर भ बमकैत बजलाह रौ टूनटूनमा तू साफ साफ कहि दे ने जे हमरा बेटाक दाम-दिगर मे बिना कोनो भंगठी लगौनेह तों नहि मानबेए।
दूनू गोटे मे एतबाक कहाकही होइते रहै की पिपराघाट सॅं पैरे-पैरे धरफराएल हम अप्पन गाम मंगरौना चलि अबैत रहि। दरभंगा सॅं बड़ी लाइनक टेन पकरि राजनगर उतरल रही। ओतए सॅ बस पकरि कहूना कऽ पिपराघाट अएलहूॅं मुदा ओतए रिक्शावला नहि भेटल तही द्वारे पैरे-पैरे गाम जाइत रही। मुदा जहॉ गनौली गाछी लक अएलहूॅं तऽ टूनटून आ बमकेसर के कहा-कही हैत देखलियैअ उत्सुकता भेल जे दाम-दिगर कोन चिड़ैक नाम छियैक से बूझिए लियैए। मोन भेल जे एखने टूनटून सॅं पूछि लैत छियैक जे कथिक दाम-दिगरक फरिछौट मे अहॉ दूनू गोटे ओझराएल छी मुदा बमकेसर झाक बमकी आ टूनटून के टनटनी देखि तऽ हमर अकिले हेरा गेल आओर हिम्मत जवाब दए देलक। सोचलहूूॅं जे गाम पर जाइत छी तो ओतए ठक्कन सॅं एहि प्रसंग मे सभटा गप-शप भए जायत।
गाम पर आबि केॅं सभ सॅं प्रणाम-पाति भेल तेकरा बाद नहा सोना के हम ठक्कन के भॉज मे भगवति स्थान दिस बिदा भेलहॅू। मुदा कियो कहलक जे ठक्कन त सतबिगही पोखरि दिसि भेटत। हुनकर नामे टा ठक्कन रहैन मुदा ओ बड्ड मातृभाषानुरागी रहैथ कहियो गाम जाइ त हुनके सॅं मैथिली मे भरि मोन गप-नाद करी। भिंसुरका पहर रहै हम बान्हे बान्हे गामक हाई स्कूल दिस बिदा भूलहॅू जे कहीं रस्ते मे भेंट भऽ जाइथ। मुदा ठक्कन महराज कतहू नहि भेटलाह त बाधहे बाधहे सतबिगही पोखरि लक अएलहूॅं दूरे सॅं देखलियै जे ठक्कन आ परमानन दूनू गोटे गप करैत चलि अबैत रहैए अवाज़ हम साफ साफ सुनैत। ठक्कन बाजल आईं हौ भैया इ कह तऽ अमीनो सहेब के जे ने से रहैत छन्हि। कहू तऽ ततेक दाम दिगर कहैत छथहिन जे घटक के घटघटी आ घूमरी धए लैत छैक। बेसी दाम भेटबाक लोभ मे पारामेडिकल वला लड़का के एम.बी.बी.एस कहि रहल छथहिन कहअ ई अन्याय नहि तऽ आर की थीक परमानन खैनी चुना के पट पट बाजल रौ ठक्कना तोरो तऽ गजबे हाल छौ अमीन सहेब अपना बेटाक दाम दिगर कए रहल छथि तई सॅं तोरा। ताबैत ठक्कन बाजल हमरा तऽ किछू नहि तोहिं कहअ ने अपना चैनो उरल पर 2लाख रूपैया गना लेलहक आ हमर मोल जोल करबा काल मे तोरा दिल्ली कमाई सॅं फुरसत नहिं रहअ। हौ भैया तेहेन ठकान ठकेलहूॅं से की कहियअ हम विपैत मे रही आ तूं अमीन सहेबक चमचागीरि मे लागल रहअ।
परमानन बाजल आसते बाज रौ ठक्कन जॅं कही अमीन सहेबक बेटाक दाम दिगर भंगठलै त कोनो ठीक नहि ओ हमरा जमीनक दू चारि ज़रीब हेरा-फेरी कए देताह आ तोरो चारि सटकन द देथहून। ठक्कन बाजल हम कोन हुनकर तील धारने छियैन तू धारने छहक तऽ तोरा डर होइत छह हम त नहि मानबैन सोहाइ लाठी हमहू बजाइरे देबैन की। दूनू गोटे एतबाक गप मे ओझराएल रहैए मुदा परमानन हमरा दूरे सॅं अबैत देखलक तऽ बाजल रौ ठक्कन रस्ता पेरा चूपे चाप बाज ने देखैत नहि छिहि जे मीडियावला सेहो एखने धरफराएल अछि तू तेहेन भंगठी वला गप बाजि देल्हि से डरे झारा सेहो सटैक गेल। ताबैत हम लग मे पहुॅंचि क दूनू गोटे केॅं प्रणाम कहलियैन। हमरा देखि ठक्कन अकचकाईत बाजल किशन जी कहू समाचार की आई भोला रामक रिक्शा नहि भेटल जे पैरे पैरे आबि रहल छी। हम बजलहूॅं सेहेए बुझियौ मुदा ई कहू जे अहॉ सभ कथिक दाम-दिगर के फरिछौट मे लागल छलहॅू एतबाक मे परमानन बजलाह जाउ एखन हम सभ पोखरि दिस सॅ आबि रहल छी जॅं बेसी बुझबाक हुएअ त सॉंझ खिन ठीक पॉच बजे अमीन सहेबक दरबज्जा पर चलि आएब।
ठीक समय पर 5बजे हम अमीन सहेबक दरबज्जा दिस बिदा भेलहूॅं। ओतए लोक सभ घूड़ तपैत गप नाद करैत टूनटून सेहो ओतए बैसल। ओ पूछलक कहू अमीन सहेब मोन माफिक दाम भेटल की अहॉं पछुआएले छी एतबाक मे परमानन फनकैत बाजल हौ टूनटून भैया बमकेसर संगे पटरी खेलकअ तऽ आब एहि ठाम दाम दिगर भंगठबैक फेर मे आएल छह की नहि रौ परमानन तो तऽ दोसरे गप बूझि गेलही। ताबैत चौक दिसि सॅ धनसेठ धरफराइल आइल आ बाजल यौ अमीन बाबा हमरो दाम-दिगर करा दियअ ने। ई सुनि अकचकाइत घूरन अमीन ठोर पट पटबैत खिसिआयैत बजलाह मर बहिं तूं के हरबराएल छैं रौ हमरा त अपने बेटाक दाम दिगर भंगठि रहल अछि आ तू हरबरी बियाह कनपटी सेनुर करैए मे लागल छैं। ओ बाजल बाबा हम छी धनसेठ आईए पूनासॅ गाम आबि रहल छी। मर बहिं मूरूब चपाट तोरा कहने रहिय ैजे संस्कृत सॅं मध्यमा कए ले तऽ से नहि केलही। कह तऽ ठक्कना सी.एम साइंस कॉलेज सॅं इंटर केने अछि ओकरा कियो पूछनाहर नहि भेटलै तोरा के पुछतहू रौA
सेठ महासेठ आ धनसेठ खूम गरीबक धीया पूता तहि द्वारे नान्हिटा मे परदेश कमाई लेल चलि गेल रहैए। तीनू भाई मे सभ सॅं छोट धनसेठ कनी पढलो रहैए ओ कनी साहस कए बाजल यौ बाबा हम पूणे मे ओपन सॅ मैटीक पास कए केॅं आब इंटर मे नाम लिखा लेलहूॅं। ई सुनि अमीन सहेबक दिमाग गरम भए गेलैन ओ बजलाह रौ परमानन ई ओपेन-फोपेन की होइत छैक रौ आई तऽ धनसेठो नहिए मानत। ताबैत ठक्कन बाजल कक्का पत्राचार कोर्स के ओपेन कहल जाइत छैक अहूॅं नाम लिखा लियअ ने ई सुनि सभ गोटे भभा भभा हॅसए लागल मुदा अमीन सहेब तामसे अघोर भेल तमसा के बजलाह रौ उकपाति सभ हम देह जरि रहल अछि आओर तू सभ हॅसी ठीठोला मे लागल छैंह। टूनटून बाजल कक्का हम तऽ कहैत छी जे दाम दिगरक परथे हटा दिअउ ने नहि दाम दिगर हेतै ने एतेक सोचबाक काज। ताबैत केम्हरो सॅं बमकेसर झा घूमैत-घूमैत अमीन सहेब एहि ठाम पहुॅचलाह। ओही ठाम टूनटून के देखि बमकैत बजलाह बुझलहॅू की अमीन सहेब टूनटूनमा द्वारे अकक्ष भेल छी। ई सुनि ठक्कन बाजल अपने करतबे ने अकक्ष छी अहॉ कम्पाउण्डर बेटा के प्रैक्टीसनर डागडर कहि लोक के ठकि रहल छियैक तहि द्वारे त घटक सभ घूमी रहल छथि तए एहि मे टूनटून भैयाक कोन दोख।
अमीन सहेब पानक पीक फेकी बजलाह मर तोरी केॅं रौ ठक्कना आबो सुखचेन सॅं गप सुनअ दे ने की भेल औ बमकेसर बाबू अमीन सहेब ईशारा क बजलाह। बमकेसर टूनटून सॅं भेल कहा-कही कहलखिन अमीनो सहेब अपन दुःखरा सुनौलनि। सभटा गप सुनि टूनटून बाजल दाम दिगरक चलेन मे ग़रीब लोक मारल जा रहल अछि ओ कतए सॅ लड़कवला सभ के एतेक फरमाइसी पुराउअत। बेटीक बियाह त सभ गोटेक छैन्हि हमरो अहॅू के समाजक सभ लोक केॅं अहिं दूनू गोटे निसाफ कहू। बमकेसर बजलाह तू ई त सोलहो आना सच्च गप बजलेह। कि औ अमीन सहेब अहॉक की बिचार। अमीन सहेब बजलाह टूनटून ठीके कहि रहल अछि हमरो इहए बिचार जे लेब देब के प्रथा हटा देल जाए तऽ अति उत्तम। जेकरा जे जुड़तै से देतै मुदा कोनो तरहक फरमाईस केनाइ उचित नहि।
हम ई सभटा गप बान्हे पर सॅ ठाढ़ भेल सुनैत रही लग मे जाके सभ गोटे के प्रणाम कहैत ठक्कन सॅं पूछलहॅू दाम-दिगर की होइत छैक कनि अॅहि बुझहा दियअ ने। एतबाक मे टूनटून मुस्की मारैत बाजल कहू तऽ इहो मीडियावला भ केॅं अनहराएल लोक जेॅका बजैत छैथि अमीन सहेब कनी अहीं बुझहा दियौन हिनका। की सभ गोटे ठहक्का मारि हॅसैए लगलाह। अमीन सहेब हॉ हॉ क खीखीआयैत हॅसैत बजलाह बच्चा एखन अहॉ कॉच कुमार छी तानि ने जहिया अपने बिकायब त अहॅू बुझिए जेबै जे केकरा कहैत छैक दाम-दिगर।

लेखक:- किशन कारीग़र


परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।
मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।