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अनलकांत जी कए भारतीय भाषा परिषद क युवा पुरस्कार भेटल अछि, एहि मौका पर पत्रकार विनीत उत्पल इसमाद लेल खास तौर पर हुनका स गप केलथि, प्रस्तुत अछि गपशप क किछु अंश’ – समदिया
अहाँ केँ भारतीय भाषा परिषद क युवा पुरस्कार भेटला पर सब सँ पहिने इसमाद परिवारक बधाई आ इसमाद लेल समय निकालबा लेल धन्यवाद!
प्रश्न- अनलकांत आइ गौरीनाथ से आगू आकि पाछु?
गौरीनाथ : पहिने अहूँ केँ धन्यवाद!…अनकांत आ गौरीनाथ मे हमरा कोनो द्वैध नइँ बुझाइत अछि। गौरीनाथ प्रमाण-पत्र सभ मे अछि, अनलकांत घरक आप्त नाम थिक। मैथिली मे सेहो शुरू मे मारतेरास रचना गौरीनाथक नामे छपल अछि। दुनू भाषा मे हम अपना सामर्थ्य भरि समाने सोच आ निष्ठाक संग लिखैत छी। हँ, हिन्दीक कमाइ सँ घर-गृहस्थी चलबै छी आ ओकरे कमाइ खाइत मैथिली लेल जे आ जतबे करै छी से हमर अपन हार्दिक इच्छा आ रुचिक परिणाम थिक, किनको दबाव नइँ। किनको दबाव, सराहना अथवा निंदाक परवाह हम नइँ करै छी। मैथिली भाषाक तथाकथित ”प्रेमी” कहाब’क लौल हमरा नइँ अछि। ई भाषा हमर नितांत व्यक्तिगत सुख-दुख मे अभिव्यक्तिक माध्यम रहल अछि, हमरा घर-परिवारक संगहि नेनपनक संगी आ शुरूआती जीवनक आप्त-स्वजनक भाषा थिक ई आ एहि मे अपना केँ सब सँ पहिने अभिव्यक्त करब शुरू कयने रही हम जखन कलमो-पेंसिल नइँ पकड़ने रही। तेँ मैथिली मे एक तरहक अतिरिक्त जनपक्षीय लगाव, सहजता आ सुविधा अनुभव करैत छी। बाकी हिंदी सँ सेहो कम प्रेम नइँ। साहित्यिक लेखन हम हिंदीए मे पहिने शुरू कयने रही आ सर्वाधिक अनुभव, अध्ययन, यश, नेह-प्रेम, सम्मान आ जीविकोपार्जन लेल धन हिंदीए सँ प्राप्त होइत रहल अछि।
प्रश्न- अहाँ अपना केँ कवि, कहानीकार आ उपन्यासकार मे सँ की मानैत छी?
गौरीनाथ : हमर कथा दू दर्जन सँ बेसी छपल अछि। हिंदी मे दू टा कथा-संग्रह अछि ! मैथिली मे पोथी तेना बिकाइ नइँ छै तेँ मैथिली मे कथा-संग्रह सभ प्रकाशनक बाटे तकै अछि। कविता हम नइँ लिखने छी, तँ कवि कोना कहब अहाँ? कविता सनक जे किछु हमर छपल अछि, ओ वास्तव मे हमर डायरी थिक। बेसी सँ बेसी कवितानुमा डायरी कहि सकैत छी ओकरा आ सेहो बड़ थोड़ अछि। वैचारिक आ समसामयिक लेख दुनू भाषा मे अछि, मैथिली मे किछु आलोचनात्मक लेख सेहो। उपन्यास कोनो भाषा मे छपल नइँ अछि। हँ, मैथिली मे एक टा उपन्यास पूरा कयलहुँ अछि, साल भरिक भीतर जकर छपिक’ अबैक संभावना अछि। एहना मे आओर जे मानी, कवि तँ नहिए टा छी हम। ओना हमरा नजरि मे साधारण मनुक्ख होयब सब सँ पैघ बात होइत छै।
प्रश्न- ‘हंस’ छोड़ि अपन प्रकाशन शुरू करबाक पाछु कोनो खास वजह?
गौरीनाथ : अपना सोचक अनुरूप एहन किछु नव करबाक योजना छल जे एखन क’ रहल छी। ‘‘बया’’, ‘‘अंतिका’’क संपादन आ पुस्तक प्रकाशनक जे काज एखन हम क’ रहल छी, से की अहाँ केँ लगैत अछि जे एहिना ओत’ रहितो क’ सकितहुँ?
प्रश्न- ‘‘अंतिका’’क प्रकाशन कोना शुरू भेल?
गौरीनाथ : ‘‘अंतिका’’क प्रकाशन जनवरी, 1999 मे प्रत्यक्षत: अरुण प्रकाश, सारंग कुमार, संजीव स्नेही आ नंदिनीक संग हमसभ मिलि शुरू जरूर कयने रही, मुदा एकरा पाछाँ एतबे लोक नइँ छलाह। हमरा सभ जकाँ सोचैवला मारतेरास अग्रज आ समकालीन रचनाकार मित्र छलाह जिनका लोकनि केँ ‘’अंतिका’’ सन एक टा पत्रिकाक दरकार छलनि। राज मोहन झा, कुलानंद मिश्र, धूमकेतु, उपेन्द्र दोषी, रामलोचन ठाकुर, महाप्रकाश, अग्निपुष्प, कुणाल, नरेन्द्र, विद्यानन्द झा, कृष्णमोहन झा, रमेश रंजन, रामदेव सिंह, श्रीधरम, रमण कुमार सिंह, अविनाश आदि सनक एहेन अनेक गोटे छलाह जिनका लोकनिक समस्त सहयोगक बिना एकरा ठाढ़े नइँ क’ सकैत रही। ओना एहि प्रसंग मे अनेक आन-आन ठामक अलावा ‘‘अंतिका’’क 25म अंकक संपादकीय मे हम विस्तार सँ लिखने छी। इच्छुक पाठक ओ संपादकीय पढि़ सकैत छथि। (अंतिकाक ओ संपादकीय नींचा साभार देल गेल अछि- समदिया )
प्रश्न- ‘‘अंतिका’’क नियमित प्रकाशन मे की बाधा रहल?
गौरीनाथ : शुरू मे मारते तरहक बाधा रहल छल, मुदा आब एकमात्र बाधा स्तरीय रचनाक अभाव अछि…एम्हर आबिक’ ई संकट बेसी बढ़ल जा रहल अछि। प्रश्न- बाजारवादक युग मे मैथिलीक भविष्य केहन अछि?गौरीनाथ : बाजारवादे मात्र भविष्य नइँ निर्माण करत। समग्रत: जेहन भविष्य आन-आन अधिकांश भारतीय भाषाक लगैत अछि तेहने मैथिलियोक। हमरा जनैत अष्टम अनुसूची मे मैथिलीक प्रवेश सँ मात्र एहि भाषाक दोकानदार आ ठेकेदार लोकनि लाभान्वित भेलाह अछि। सामान्य जन लेल धनसन!… हमरा बुझाइछ जे स्तरीय साहित्य-लेखनक दृष्टि सँ मैथिलीक स्थिति ह्रासोन्मुख अछि। कहि सकै छी जे ई भाषा म्यूजियम दिस, माने अपन कब्र दिस डेग उठा देलक अछि।
प्रश्न- मैथिलीक साहित्यिक दाँव-पेंच मे फँसबाक कोनो घटना?
गौरीनाथ : ई तँ भाषाक दोकानदार लोकनि कहताह। ओहि सभ लेल हमरा लग फुर्सते नइँ अछि।
प्रश्न- खगेंद्र ठाकुर संग अहाँक विवाद चर्चा मे रहल, की मामला छल?
गौरीनाथ : मोहल्ला लाइव डॉट कॉम पर हमर जवाब उपलब्ध अछि। तकरा बाद ओ लेखन सँ जवाब नइँ द’क’ लीगल नोटिस भेजलनि।…एहेन-एहेन नोटिस सँ लेखक केँ लिखै सँ थोड़े रोकल जा सकैत अछि?
प्रश्न- अहाँ पर आरोप लगैत रहल अछि जे अहाँ गैर वामपंथी विचारधारावला लेखक केँ छपबा सँ कतराइत छी?
गौरीनाथ : ई अहाँक गढ़ल आरोप अछि आ अहीं सन-सन ओहन व्यक्ति ई बात कहि सकैत अछि जे ‘अंतिका’ पढ़नहि नइँ होअय। ‘अंतिका’ मे छपल लेखकक सम्पूर्ण सूची देखि लिअ’, सत्तरि प्रतिशत सँ बेसी लेखक गैरवामपंथी छथि। हँ, हमरा स्तरीय रचना जरूर चाही आ से किन्नहुँ जनविरोधी आकि समाज केँ पाछाँ ल’ जायवला नइँ होअय। स्त्री, दलित अथवा कोनो शोषित-पीड़ित लोकक हक आ सम्मानक विरुद्ध सेहो नइँ जाइत होअय। माने हम जे रचना छपैत छी ताहि सँ उचित न्यायक पक्षधरता जरूर चाहैत छी। ‘अंतिका’क हरिमोहन झा, यात्री, किरण, राजकमल, राज मोहन झा आदि पर केन्द्रित विशेषांक सभ आयल अछि। एहि मे सँ यात्री जी केँ छोड़िक’ के वामपंथी छथि? सम्माननीय भीम भाइक कतेको आलेख आ अनुवाद ‘अंतिका’ मे छपल अछि। एहिना वरिष्ठ कथाकार मायानंद मिश्र, रामदेव झा, सोमदेव, जीवकांत, उषाकिरण खान आदि सँ ल’क’ अशोक, तारानन्द वियोगी, नारायणजी, विभूति आनंद, सुस्मिता पाठक आदि-आदि सन करीब सय सँ बेसी एहेन लेखकक रचना ‘‘अंतिका’’ मे छपल अछि जे कतहुँ सँ वामपंथी नइँ छथि। मैथिली मे कतबो गनब, दस टा सँ बेसी वामपंथी रचनाकार नइँ भेटताह। मुदा सभ केँ खटकैत छनि वामपंथी। जखन यात्रीजी धरि केँ जीवकांत जी सन वरिष्ठ लेखक ‘’मार्क्सवादक ढोलिया’’ कहैत उपहास उड़ब’ चाहैत छथि, …जखन धूमकेतु कुलानंद मिश्र, रामलोचन ठाकुर, अग्निपुष्प, कुणाल केँ स्वीकारैत अहाँक साहित्यक पैघ-पैघ झंडाबरदार लोकनि धखाइत छथि, तँ हमरासभ सन नव आ प्रशिक्षु वामपंथी केँ अहाँ लोकनि किऐ ने मुँह दूसब? अहाँ जनसंघी छी तँ बड़ नीक, अहाँ कांग्रेसी छी तँ बड़ नीक…अहाँ जे-से कोनो पार्टी वा दल मे रहैत मैथिली प्रेमी कहाबैत अकादमी सँ ल’क’ सभ तरहक संस्थान मे लोभ-लाभक पूर्ति करैत रहू… हम न्यायक पक्ष मे रहैत दलित-स्त्री-शोषित-पीड़ित लोकक हक आ सम्मानक बात करैत छी तँ हम गलत भ’ जाइत छी…मार्क्सवाद अहाँ बूझी आकि नइँ बूझी, ओकर विरोध आ ओकरा पर आक्षेप करबा मे अहाँ केँ आनंद अबैत अछि…हम तँ बस एतबे बुझैत छी अहाँक एहि प्रश्नक आशय।
प्रश्न- आजुक युग मे समीक्षाक की स्थान अछि?
गौरीनाथ : मैथिली मे रमानाथ झा आ कुलानन्द मिश्रक बाद कोनो तेहन आलोचक नइँ छथि। आइ जे किछु सार्थक आलोचना आकि समीक्षा आबि रहल अछि से सुकांत सोम, सुभाष चन्द्र यादव, तारानन्द वियोगी, विद्यानन्द झा, श्रीधरम आदि सन-सन रचनाकारे लोकनि द्वारा लिखल जाइत अछि। राज मोहन जी सेहो लिखैत रहलाह मुदा एम्हर कतेको वर्ष सँ स्वास्थ्यजन्य परेशानीक कारणें हुनक लेखने छूटल छनि।
प्रश्न- नव लेखक लेल कोनो संदेश?
गौरीनाथ : नइँ-नइँ!…हम स्वयं नव छी आ कोनो टा संदेश देब हमरा उपदेश बघारै जकाँ फालतू लगैत अछि।
प्रश्न- मैथिली भाषा मे स्त्री लेखन क भविष्य केहन लगैत अछि?
गौरीनाथ : जेहने पुरुष लेखनक भविष्य, तेहने…
प्रश्न- भविष्य क योजना?
गौरीनाथ : योजना बनाक’ जीब’वला विशिष्ट लोक होइत छथि। हमरा सन साधारण लोक जीविकोपार्जन लेल भने कोनो रूटीन पालन करैत होअय, बाकी लेखन आ जीवन सामान्य ढर्रा पर चलैत छै।
ईसमाद : एक बेर फेर अहाँ कए इसमादक संग साक्षात्कार देबा लेल धन्यवाद।
गौरीनाथ : बातचीत करबा लेल ईसमाद परिवार कें हमरा दिस सं बहुत-बहुत धन्यवाद।
गौरीनाथ जी अपन सफर पर अंतिका क 25म अंकक संपादकीय मे सविस्तार उल्लेख केने छथि, इसमाद साभार ओ संपादकीय अहां लेल एहि ठाम प्रस्तुत कए रहल अछि,
पचीस अंकक यात्रा
- अनलकान्त
मोन पड़ै अछि दिसंबर, 1998क ओ दिन जहिया दिल्लीक सीमा कात शालीमार गार्डन (गाजियाबाद)क सटले गणेशपुरीक एक टा छोट-सन किरायाक कोठली मे सपरिवार रहैत छलहुँ। ओही कोठली मे सारंग कुमार आ संजीव स्नेहीक संग हमरासभ एक टा पत्रिका निकालबाक निर्णय लेने छलहुँ। ओ दिसंबरक कोनो रवि दिन छल, मुदा संजीव स्नेही केँ ‘सांध्य महालक्ष्मी’ सँ छुट्टी नहि छल। सारंगजी ‘पब्लिक एशिया’ मे विज्ञापन-अनुवादक काज करैत कटवारिया सराय मे रहैत छलाह आ पछिला साँझ हमरा घर आयल छलाह। रविक भोर संजीव स्नेही जाबत ऑफिसक लेल विदा होइत हम आ सारंग अनेक नाम पर विचार करैत ‘अंतिका’ पर आबि क’ रुकल रही। बाकी नाम सभक लगातार मजाक-मजाक मे धज्ïजी उड़बैत आबि रहल संजीव स्नेही आ नंदिनी सेहो एहि पर एक भ’ गेल।
ओहि राति धरि, जाबत संजीव ऑफिस सँ घुरल, हम आ सारंग अंकक प्रारूप, लेखकक सूची, लेखक लोकनि केँ जायबला पत्रक प्रारूप आदि बना लेने छलहुँ। राति मे डेढ़-दू बजे धरि सब गोटे ओहि पर पुन:-पुन: चर्चा-समीक्षा-बहस करैत सब किछु तय क’ लेने छलहुँ, मुदा ‘अंतिका’ लेल दिल्लीक एक टा डाक पताक संकट छले। संगे एक टा वरिष्ठ सलाहकारक बेगरता सेहो अनुभव करै छलहुँ। कि तखने अग्रज अरुण प्रकाश जी सँ भेट करबाक विचार आयल।
अगिला भोर हम, सारंग आ संजीव—तीनू गोटे अरुण जीक घर पहुँचलहुँ। हमरासभ सब टा बात-विचार सँ हुनका अवगत करबैत अपन प्रस्ताव रखलयनि। ओ मैथिलीक स्थिति सँ अवगत छलाह आ एक टा स्तरीय पत्रिकाक बेगरता स्वयं अनुभव क’ रहल छलाह। ते ओ सहर्ष तैयार होइत संपादकीय कार्यालयक रूप मे अपन घरक पता उपयोग करबाक अनुमति सेहो देलनि आ तत्काल भाइ श्रीकांत जी केँ बजा क’ पत्रिकाक बजट बनबौलनि। पहिल अंक जनवरी-मार्च, 1999क छपाइक काज श्रीकांते जीक दौड़-भाग आ निर्देशन मे पूरा भेल छल।
एवंप्रकारें ‘अंतिका’ क पहिल अंक छपिक’ आबि गेल। ओहि अंकक संग एक टा नीक बात ईहो भेल छल जे भाइसाहेब राज मोहन जी आ सुकांत जी सेहो ओहि समय दिल्ली मे छलाह। अनेक वरेण्य रचनाकारक संगहि हिनका लोकनिक अपार सहयोग प्रवेशांकेक ओरिआओन सँ रहल। ओही बीच दिवंगत भेल बाबा यात्री पर ओहि अंक लेल सुकांत जी अपन आलेख दिल्लीए मे लिखने छलाह। भाइसाहेबक सक्रिय सहयोग सेहो ओही अंक सँ शुरू भ’ गेल छल। ओ तँ कतेको अंकक कतेको सामग्रीक संपादन, पू्रफ, संयोजन, अनुवाद आदि करैत जाहि रूपें ‘अंतिका’ केँ ठाढ़ कयलनि तकरा बिसरले नइँ जा सकैछ। तहिना एकर न्यौं मे हिंदीक वरिष्ठ कथाकार-उपन्यासकार आ ‘समयांतर’ क संपादक पंकज बिष्टक व्यापक सहयोग अविस्मरणीय अछि। सुखद आ स्मरणीय ईहो जे नई दिल्ली मे कनाट प्लेस स्थित मोहनसिंह पैलेसक इंडियन कॉफी हाउस मे 21 फरवरी 1999 केँ ‘अंतिका’ क विमोचन राज मोहन जीक हाथें भेल छल आ एहि अवसर पर जीवकांत, भीमनाथ झा, रामदेव झा, गंगेश गुंजन, रामेश्वर प्रेम, मोहन भारद्वाज, अनिल मिश्र सन मैथिलीक वरिष्ठ लोकनिक संगे हिंदीक पंकज बिष्ट, हरिनारायण समेत अनेक लोकक उपस्थिति हमरासभक लेल उत्साहवद्र्घक छल। अरुण जी सहित समस्त ‘अंतिका’ परिवार अपन कठिन संघर्षक काल (मोने अछि जे ओहि दिन हमरा तीनूक जेब खाली छल)मे समस्त ऊर्जा आ भावनाक संग ओहि ठाम जेना उत्साह सँ एकजुट भेल रही सेहो अविस्मरणीय अछि।
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तकरा बाद सोलह टा अंक लगातार चारि वर्ष धरि अनेकानेक विघ्न-बाधा, वाद-विवाद, विरोध-सहयोगक बीच समय सँ आयल आ पत्रिका लगातार विकास-पथ पर अग्रसर रहल। एहि बीच दू-एक टा दु:खद-सन प्रसंग सेहो जुड़ल। दोसर अंक अबैत-अबैत अरुण प्रकाश जी अपन नाम वापस ल’ लेलनि आ डाक लेल दोसर पता ताक’ कहलनि। ओना रजिस्टर्ड कार्यालय एखनो अरुणे जीक घर अछि आ हुनक लगाव सेहो ‘अंतिका’ संग अछिए। जे से… तखन हम ‘हंस’ संपादक राजेन्द्र यादव सँ निवेदन क’ डाक-संपर्क लेल अक्षर प्रकाशन, दरियागंज केर पता तँ ल’ लेलहुँ, मुदा एहि शर्तक संग जे ‘एहि पता पर व्यक्तिगत-संपर्क संभव नहि’। ई फराक जे परिचित लोक जे पहिने अबै छलाह, बादो मे अबैते रहलाह। एहि लेल राजेन्द्र जीक आभारी छी।
ओहि समय धरि सारंग कुमार आ संजीव स्नेही मात्र नइँ, कनेके बाद मे जुड़ल साथी श्रीधरम आ रमण कुमार सिंह—चारू अविवाहित छलाह आ चाकरीक अलावा अधिकाधिक समय ‘अंतिका’ केँ दैत छलाह। तखन पैकेट बनाव’, डिस्पैच कर’, रचना मँगाव’, संपादन कर’ सँ ल’ क’ सदस्यता अभियान हो आकि किछु लिखब-पढ़ब—सब किछु सामूहिक आ एक टा मिशनक अंग जेना छल। मुदा कालक्रमें सभक अपन-अपन घर-परिवार, बाल-बच्ïचा आ मारते रास पारिवारिक ओलझोल बढ़ैत गेलनि। जीवन मे ई सब आवश्यक थिक, मुदा महानगरी जीवन आ बाजारक दबाव एकरा पहिने जकाँ सहज-स्वाभाविक कहाँ रह’ देलकै! एकरा नियतिवाद सँ जोडि़क’ देखयौ वा आन कोनो रूप मे, एहि नगरीक यैह व्यवहार! जे से…समयक दबाव मे सारंग आ संजीव शुरूक तीन सालक बाद ‘अंतिका’ केँ समय देब’ मे असमर्थ भ’ गेलाह, मुदा भावनात्मक स्तर पर आ एक रचनाकार-मित्रक रूप मे दुनू एखनो ‘अंतिका’ क संग छथि आ आगूओ रहताह। ‘अंतिका’ क न्यौंक हरेक पजेबा मे हिनका लोकनिक पसेनाक अंश अछि। श्रीधरम, रमण कुमार सिंह आ अविनाश अनेक व्यस्तताक कारणें ‘अंतिका’ लेल कम समय निकालबाक दु:ख भनहि रखैत होथि, मुदा ई लोकनि जे समय द’ रहल छथि से हिनका लोकनिक हिस्साक लड़ाइ आ प्रतिबद्घता सँ जुड़ल अछि। ई टीम-भावना आ सहयोग ‘अंतिका’ केँ शक्ति आ ऊर्जा दैत अछि।
एहि यात्रा मे तेसर धक्का लागल छल 2002क अंत मे हमर बीमार पड़लाक बाद। डेंगूक चपेट सँ बचि गेलाक बादो कर्ज आ ओहि सँ जुड़ल अनेक परेशानी तेना असमर्थ बना देलक जे 2003क मध्य सँ 2006क आरंभ धरि मात्र तीन टा संयुक्तांक आबि सकल। अंतत: 2006क अक्टूबरक बाद ‘हंस’ क चाकरी त्यागि ‘अंतिका’ लेल पूर्णकालिक होयबाक निर्णय कयल। मुदा संकट ई छल जे मात्र एक त्रैमासिक पत्रिकाक बल पर, सेहो मैथिलीक, बड़ आश्वस्त नइँ भ’ सकै छलहुँ। क्रूर महानगरीक व्यवहार, बाल-बच्ïचा, घर-परिवार आ बाजारक दबाव हमरो पर छल। तेँ हिंदी मे ‘बया’ (छमाही) आ संयुक्त रूपें हिंदी-मैथिली केँ समर्पित ‘अंतिका प्रकाशन’ सेहो शुरू कर’ पड़ल। आब तँ पंद्रह सँ बेसी किताबो अपने लोकनिक बीच आबि गेल अछि। वास्तव मे ‘अंतिका’ क जे पछिला अनुभव छल ताहि मे आर्थिक स्तर पर जे कोनो पैघ मदति छल से हिंदिएक रचनाकार लोकनि सँ भेटैत रहल छल। एतबे नइँ प्राय: एकाध अपवाद छोडि़ जे किछु विज्ञापन भेटल सेहो हिंदिए सँ हमर लेखकीय संबंध आ पहिचानक कारणें। पैंचो-उधारक आधार वैह छल। अनेक बेर पंकज बिष्ट, असगर वजाहत, महेश दर्पण आदि सँ पैंच ल’ क’ पत्रिकाक काज चलाओल। संपूर्ण मिथिला सँ आइ धरि विज्ञापन शून्य रहल। पूरा बिहारेक प्राय: सैह हाल। ओना पेट भरबाक लेल हमर निर्भरता सदति हिंदिए पर रहल आ ताहू मे पछिला पंद्रह बरख सँ प्रवासी होयबाक पीड़ा भोगैते सब लड़ाइ लड़लहुँ अछि। हिंदी मे लेखन आ संपादन दुनूक माध्यमें धन मात्र नइँ, जतबा स्नेह भेटल अछि से हमरा लेल पैघ संबल थिक। एकर उनटा मैथिलीक विभिन्न महंथानक कुत्सित दंद-फंदक कारणें ततेक अनावश्यक परेशानी आ असहयोग झेलैत रहल छी जे चोट सहबाक आदति नइँ रहैत तँ कहिया ने ‘अंतिका’ बन्न क’ देने रहितहुँ। मुदा एक तँ मातृभाषा प्रेम, दोसर किछु सहृदय रचनाकार आ ढेर रास एहेन पाठक लोकनि जे ‘अंतिका’ सँ मैथिली पढ़ब शुरूए कयलनि—हिनका लोकनिक अगाध प्रेम हमरा अंत काल धरि ‘अंतिका’ निकालैत रहबाक लेल पर्याप्ïत ऊर्जा आ शक्ति दैत अछि।
एम्हर पछिला डेढ़-पौने दू बरख सँ नव साज-सज्ïजा आ रंगीन आवरण मे अयलाक बाद ‘अंतिका’ जेना फेर नियमित अपने धरि पहुँचैत रहल अछि, आगूओ पहुँचैते रहत से विश्वास राखि सकै छी। आब हमरासभक टीम आर पैघ आ मजगूत भेल अछि तँ अपने लोकनिक विश्वास आ स्नेहेक संबल पर। वरिष्ठ चित्रकार आ कथाकार-उपन्यासकार अशोक भौमिकक कला-संपादक रूप मे सौजन्य-सहयोग हमरासभक लेल गौरवक बात थिक। आब तँ दुनू पत्रिका आ प्रकाशनक संयुक्त उद्यम सँ दीपक, सरिता सन-सन नव लोकक जुड़ाव सेहो बढि़ रहल अछि। ईहो संतोषेक गप्प जे जेना-तेना आब प्रकाशन आ पत्रिका केँ एक टा अप्पन स्थायी-सन (स्थायी किछु होइ छै?) पता सेहो भ’ गेल छै।
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‘अंतिका’ क पचीस अंकक ई यात्रा मैथिली साहित्यक लेल केहन रहल आ मैथिली पत्रकारिताक इतिहास मे एकर कोनो सार्थकता सिद्घ होइ छै आकि नइँ, से विद्वान लोकनि जानथि—ई हमरासभक चिंता आ ‘बुद्घि’ सँ बाहरक बात थिक। हमरासभ केँ कोनो प्रमाण-पत्र आकि तगमा नइँ चाही किनको सँ। पाठके हमर देवता छथि आ सामान्य जनताक नजरि मे ठीक रहबे हमरसभक प्रतिबद्घताक पहिचान। जँ जन-सरोकार सँ जुड़ल उदार दृष्टि नइँ रहल तँ कथी लेल साहित्य आ कथी लेल पत्रकारिता?
पचीस अंकक एहि यात्रा मे हमरासभक ई उपलब्धि रहल जे सय सँ बेसी एहेन नियमित पाठक बनलाह जे पहिने मैथिली मे छपल कोनो पत्रिका आकि किताब नइँ पढऩे छलथि। एक दर्जन सँ बेसी रचनाकार मैथिली मे अपन लेखनक आरंभ ‘अंतिके’ सँ शुरू कयलनि। निन्दा-प्रशंसा-पूर्वाग्रह आकि संबंध-आधारित चर्चा सँ हँटि सम्यक आलोचना-समीक्षाक जे परिपाटी ‘अंतिका’ सँ शुरू भेल, तकरे फल थिक जे मैथिलियो मे लोक आब अपन आलोचना सुनबा-सहबाक साहस कर’ लागल छथि। साहित्येतर वैचारिक लेखन, अनुवाद, स्तंभ-लेखन आदि केँ जगह दैतो कथा-कविता-आलोचनाक संग नाटक केँ पर्याप्ïत जगह पहिल बेर ‘अंतिके’ मे भेटल अछि। एहिना उपन्यास आ महत्त्वपूर्ण रचनाकार पर संग्रहणीय विशेषांकक व्यवस्था आ सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति। एकरे परिणाम थिक जे आइ एहि पत्रिकाक जे सर्वाधिक पाठक छथि से स्वत: प्रेरित पाठक छथि। बरजोरी बनायल पाठक नइँ। आजीवन सदस्य हो आकि सामान्य सदस्य—बेसी गोटे (प्राय: 95 प्रतिशत) अपरिचित छथि आ हुनका सभ सँ आइ धरि व्यक्तिगत भेंट-घाट धरि नइँ—हमरा-हुनका बीच संवादक पुल थिक एक मात्र ‘अंतिका’।
‘अंतिका’ मे एखन धरि जे छपल अछि पछिला 24अंक मे तकर विस्तृत अनुक्रमणिका अनेक अध्येता आ शोधार्थीक आग्रह पर एहि अंक मे प्रकाशित कयल जा रहल अछि। एकरा देखि अपने स्वयं ‘अंतिका’ क एखन धरिक काजक मूल्यांकन क’ सकैत छी।
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बीसम शताब्दीक महान काव्य-यात्री आ मैथिलीक शिखर वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’क यात्रा-विरामक संगे शुरू भेल ‘अंतिका’ क एहि यात्रा मे अभिन्न रूपें जुड़ल अनेक रचनाकार हमरासभ सँ बिछुडि़ गेलाह, हुनका लोकनिक कमी आइ बड़ खटकि रहल अछि। खासक’ कुलानंद मिश्र, धूमकेतु, उपेन्द्र दोषी सन ‘अंतिका’ क वरिष्ठ शुभचिंतक रचनाकार जिनका लोकनिक बहुत रास स्वप्न आ कामना एहि पत्रिका सँ जुड़ल छल।
एखन धरि सभ पीढ़ीक सर्वाधिक लेखकक अपार सहयोग जेना ‘अंतिका’ केँ भेटल अछि, तकरा प्रति आभार शब्द बड़ छोट बुझाइत अछि। अनेक रचनाकार मित्र आ अनेक व्यक्तिक स्तर पर अनचिन्हार रहितो सोच-विचारक स्तर पर परिचित साथी-सहयोगी जे लगातार ‘अंतिका’ पढ़ैत, दोसरो केँ पढ़बैत, नि:स्वार्थ विक्रय-सहयोग दैत बिना तगेदाक पूरा पाइ पठबैत रहलाह—हुनका लोकनिक सहयोगक प्रति हम कोन शब्द मे आभार व्यक्त करब? ई तँ हुनके लोकनिक पत्रिका थिक।
एत’ मोन पड़ै छथि छोट-पैघ समस्त एहेन लोक जे कोनो ने कोनो रूप मे ‘अंतिका’ केँ सहयोग देलनि अछि। चाहे तकनीकी सहयोगी होथि आकि एजेन्सीक लोक आकि विज्ञापनदाता लोकनि।
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