|| हनुमंत - पचीसी ||
ग्रह गोचर सं परेसान त अहि हनुमंत - पचीसी के ११ बार पाठ जरूर करि ---
ग्रह गोचर सं परेसान त अहि हनुमंत - पचीसी के ११ बार पाठ जरूर करि ---
शील नेह निधि , विद्या वारिध
काल कुचक्र कहाँ छी ।
मार्तण्ड तम रिपु सूचि सागर
शत दल स्वक्ष अहाँ छी ॥
कुण्डल कणक , सुशोभित काने
वर कच कुंचित अनमोल ।
अरुण तिलक भाल मुख रंजित
पाँड़डिए अधर कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित गुण गरिमा
नीति विज्ञानक सागर ।
कनक गदा भुज बज्र विराजय
आभा कोटि प्रभाकर ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
उन्नत उर अविकारी ।
वर बिस भुज रावण- अहिरावण
सब पर भयलहुँ भारी ॥
दीन मलीने पतित पुकारल
अपन जानि दुख हेरल ।
"रमण " कथा ब्यथा के बुझित हूँ
यौ कपि किया अवडेरल
-:-
-:-
|| दोहा ||
संकट शोक निकंदनहि , दुष्ट दलन हनुमान |
अविलम्बही दुख दूर करू ,बीच भॅवर में प्राण ||
|| चौपाइ ||
जन्में रावणक चालि उदंड |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
वर विपदा केर टूटल पहार ||
तीरे तरकस वर धनुषही हाथ |
रने - वने व्याकुल रघुनाथ ||
मन मदान्ध मति गति सूचि राख |
नत सीतेहि, अनुचित जूनि भाष ||
झामरे - झुर नयन जल - धार |
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
-;-
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
-;-
रचित -
रेवती रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा ,मिथिला
मो 09997313751
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें