।। दिल के कियक कठोर भेलौ ।।
स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ, अबितहि घर इजोर केलो ।
प्रस्फुटित कलिए कोमलाङ्गी, मन मधुमासक भोर केलौ ।।
सुभग सिंह कटि,कंठ सुराही
पाँडरि अधर अही के अई
मृग नयनी,पिक वयनी सुमधुर
सुगना नाक अही के अई
अतेक रास गुण देलनि विधाता,दिल के कीयक कठोर भेलौ।
स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ, अबितहि घर इजोर केलौ।।
वक्षस्थल के भार लता पर
लचक लैत,नयि तनिक सहय
रचि सोलह -श्रृंगार बत्तीसों-
अभरन, नयि अनुरूप रहय
ताकू पलटि चारु चंचल चित, हम चितवन के चोर भेलौ।
स्वच्छ धवल मुख चारु चन्द्र सँ,अबितहि घर इजोर केलौ।।
प्रीतक - प्राङ्गण में अभिनंदन
प्रणय - पत्र स्वीकार करू
"रमण"अपन एक दया दृष्टी सँ
आई स्वप्न साकार करू
घोरघटा बनि वरसू सुंदरी, हम जंगल के मोर भेलौ।
स्वच्छ धरल मुख चारु चंद्र सँ,अबितहि घर इजोर केलौ।।
रचनाकार
रेवती रमण झा "रमण"
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