( एकटा हास्य कविता)
देखू-देखू हे दाए-माए
केहेन सुनर छथि गलचोटका बर।
तिलकक रूपैया छनि जे बॉंकि
सासुर मे खाए नहि रहल छथि एक्को कर।
अनेरे अपसियॉंत रहैत छथि
अल्लूक तरूआ छनि हुनका गारा में अटकल।
खाइत छथि एक सेर तीन पसेरी
मुदा देह सुखाएल छनि सनठी जॅंका छथि सटकल।
केने छथि पत्रकारिताक लिखाई-पढ़ाई
दहेजक मोह मे छथि भटकल।
ऑंखि पर लागल छनि बड़का-बड़का चश्मा
मुहॅं कान निक तऽ चैन छनि आधा उरल।
ओ पढ़हल छथि तऽ खूम बड़ाई करू ने
मुदा हमरा पढ़नाईक कोनो मोजर ने।
बाबू जी के कतेक कहलियैन जे हमरो पसीन देखू
मुदा डॉक्टर इंजीनियर जमाए करबाक मोह हुनका छूटल ने।
जेना डॉक्टर इंजीनियरे टा मनुख होइत छथि
लेखक समाजसेवीक एको पाई मोजर ने।
सोच-सोच के फर्क अछि मुदा केकरा समझाउ
दूल्हाक बज़ार अछि सजल खूम रूपैया लूटाउ ने।
एहि बज़ार में अपसियंॉत छथि लड़की के बाप
इंजीनियर जमाए कए छोड़ैत छथि अपन सामाजिक छाप।
एहि लेल तऽ अपसियॉंत छथि एतबाक तऽ ओ करताह
बेटीक निक जिनगी लेल ओ किछू नहि सोचताह।
अहॉं बेटी केॅ निक जॅंका राखब दहेज लैत काल
हमरा बाबू के ओ तऽ बड़का सपना देखौलनि।
ई तऽ बाद मे बूझना गेल जे किछूएक दिनक बाद
दहेजक रूपैया सॅं ओ पानक दोकान खोललैनि।
नहि यौ बाबू हम नहि पसिन करब एहेन सुनर बर
एतबाक सोचिए के हमरा लगैत अछि डर।
भले रहि जाएब हम कुमारी मुदा
कहियो ने पसिन करब, एहेन दहेज लोभी गलचोटका बर।
लेखक:- किशन कारीग़र
(परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं। )
देखू-देखू हे दाए-माए
केहेन सुनर छथि गलचोटका बर।
तिलकक रूपैया छनि जे बॉंकि
सासुर मे खाए नहि रहल छथि एक्को कर।
अनेरे अपसियॉंत रहैत छथि
अल्लूक तरूआ छनि हुनका गारा में अटकल।
खाइत छथि एक सेर तीन पसेरी
मुदा देह सुखाएल छनि सनठी जॅंका छथि सटकल।
केने छथि पत्रकारिताक लिखाई-पढ़ाई
दहेजक मोह मे छथि भटकल।
ऑंखि पर लागल छनि बड़का-बड़का चश्मा
मुहॅं कान निक तऽ चैन छनि आधा उरल।
ओ पढ़हल छथि तऽ खूम बड़ाई करू ने
मुदा हमरा पढ़नाईक कोनो मोजर ने।
बाबू जी के कतेक कहलियैन जे हमरो पसीन देखू
मुदा डॉक्टर इंजीनियर जमाए करबाक मोह हुनका छूटल ने।
जेना डॉक्टर इंजीनियरे टा मनुख होइत छथि
लेखक समाजसेवीक एको पाई मोजर ने।
सोच-सोच के फर्क अछि मुदा केकरा समझाउ
दूल्हाक बज़ार अछि सजल खूम रूपैया लूटाउ ने।
एहि बज़ार में अपसियंॉत छथि लड़की के बाप
इंजीनियर जमाए कए छोड़ैत छथि अपन सामाजिक छाप।
एहि लेल तऽ अपसियॉंत छथि एतबाक तऽ ओ करताह
बेटीक निक जिनगी लेल ओ किछू नहि सोचताह।
अहॉं बेटी केॅ निक जॅंका राखब दहेज लैत काल
हमरा बाबू के ओ तऽ बड़का सपना देखौलनि।
ई तऽ बाद मे बूझना गेल जे किछूएक दिनक बाद
दहेजक रूपैया सॅं ओ पानक दोकान खोललैनि।
नहि यौ बाबू हम नहि पसिन करब एहेन सुनर बर
एतबाक सोचिए के हमरा लगैत अछि डर।
भले रहि जाएब हम कुमारी मुदा
कहियो ने पसिन करब, एहेन दहेज लोभी गलचोटका बर।
लेखक:- किशन कारीग़र
kishan jeek e hasya rasak prastuti bad neek lagal...dhanyabad..........santosh batohi jamia university.
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