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बुधवार, 24 नवंबर 2010

अपने लिए खींचें 'लक्ष्मण रेखा'
घर के चारों तरफ की चारदीवारी हमारी चीजों को सुरक्षित रखती है और हमें अपने पसंदीदा वातावरण में काम करने का उपयुक्त माहौल प्रदान करती है। उसी प्रकार अच्छी व्यक्तिगत सीमाएं हमें दूसरों के सामने अपमानित होने से बचाती हैं। यह इस बात की जानकारी भी देती है कि आप उनके साथ संबंधों में कहां खड़े हैं।
यह इस बात की ओर भी इशारा करती है कि आप किन बातों का समर्थन करते हैं और किन बातों का नहीं। यह हमें दूसरों के कृत्यों एवं शब्दों से भी दुखी होने से बचाती है। यह दूसरों को उस बात से भी अवगत कराना है कि आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते। ये सीमाएं हमें एक-दूसरे से अलग करती हैं।
सीमाएं सदा अच्छे और ऊंचे दीवारों के रूप में ही नहीं होती हैं। भौतिक के अलावा ये भावनात्मक भी होती हैं, जैसे कि हम सभी के अंदर किसी खास स्थिति में खास भावनाएं एवं प्रतिक्रियाएं होती हैं।
किसी भी स्थिति में जो व्यक्ति हमारे संपर्क में आते हैं, उनके प्रति हमारा रवैया हमारी सोच, पृष्ठभूमि, पूर्व की घटनाओं एवं समाधानों तथा हमारी चित्रों एवं मान्यताओं पर आधारित होता है। ऐसा संभव है कि अन्य भी जो कि आप की तरह की ही सोच रखते हैं, मोटे तौर पर आप जैसा भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें, लेकिन कोई भी बिल्कुल वैसी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे, जैसा कि आप दूसरे से कर सकते हैं। इसका स्पष्ट आधार है कि हर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न है।
अधिकतर स्थितियों में प्रतिक्रियाएं भावनात्मक होती हैं। किसी सहकर्मी मित्र या बिल्कुल अपरिचित का कोई वक्तव्य आपको निराशकर सकता है। बच्चों की तरह हम ज्यादा भावुक होते हैं और भावनात्मक रूप से ब्लैक मेल हो जाते हैं। कोई किसी बच्चों पर जो कि चश्मा पहनता है, तीखी टिप्पणी कर सकता है। वह बच्चा शायद इस पर प्रतिक्रिया न दे पाए, परंतु एक आत्मविश्वासी वयस्क यह जरूर कह सकता है कि आपका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि वह क्या पहनता है या फिर उसे व्यक्ति की संगति से ही अलग कर दे। वह यह भी जवाब दे सकता है कि किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह किसी की कार्यशीलता या उसकी सुंदरता पर टीका-टिप्पणी करे।
अन्य प्रकार के भावनात्मक अवरोधों में आपकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करना पार्टी व कार्यक्रमों में शामिल होना, जिसमें आपकी कोई रुचि नहीं है, आपको दु:खी करती है। एक अन्य प्रकार की स्थिति भी शैक्षणिक परिसरों में अक्सर देखा जाता है कि कोई पैसा ले लिया है और न तो लौटाता है, न ही कर्ज देने वाले से बात करता है।
जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह आपका परिवार हो या फिर कार्यस्थल, आपको अपनी सीमाएं तय करनी चाहिए। ऐसे लोग हो सकते हैं जो गुस्सैल और आक्रामक हों। आपको यह तय करना होगा कि आपके लिए क्या अमान्य है। आपको न केवल आचार विचार एवं व्यवहार संबंधी सीमाएं तय करनी चाहिए, बल्कि इसके उल्लंघन पर शांत नहीं रहना चाहिए।
आपकी अपनी खुशियों के लिए जरूरी है कि आप दूसरों की इच्छाओं के लिए अपनी भावनाओं का गला न घोटें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप एक गलत संदेश देंगे कि गलत आचरण भी आपको स्वीकार्य है। यह आपके लिए ज्यादा कष्टदायक होगा, बजाय इसके कि यदि आप दूसरों को इस बात की छूट देते हैं कि वे आपके समय ऐसा-वैसा व्यवहार कर सके तो वह न तो इस बात को समझेगा न ही सीखेगा कि ऐसा बर्ताव आपको नापसंद है और वह बेइज्जती करके यूं ही चला जाएगा। ऐसे में सीमांकन दोनों ही पक्षों के लिए उचित है।
आपको सदैव इस बात के प्रति सजग रहना होगा कि किस प्रकार का व्यवहार या आचरण आपके लिए हानिकर है। आप महसूस करेंगे कि लोग आसानी से अपकी आवश्यकताओं को समझ जाएंगे और उसका ध्यान रखेंगे। यदि फिर भी कोई आपसे अभद्र व्यवहार करता है तो बिना किसी झिझक आपको उसे स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा व्यवहार वह बंद करे।
ऐसी सीमाओं के निर्धारण से पूर्व उस बात को स्पष्ट रूप से बंद करें। ऐसी सीमाओं के निर्धारण से पूर्व उस बात को स्पष्ट तौर पर समझ लें कि किस प्रकार का व्यवहार आपको पसंद है और किस प्रकार का नापसंद है। रिश्तों में आप क्या चाहते हैं और आपके इर्द-गिर्द के लोग आपसे कैसा व्यवहार करें। यह आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसे लोगों से संबंध न रखें या फिर उसे न्यूनतम स्तर तक ले जाएं, यदि यह संपर्क आवश्यक हो क्योंकि आप एक ही संस्था में काम करते हैं। आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि ज्यादातर लोग आपके अनुसार आपसे व्यवहार करेंगे।
(लेखक सीबीआई के पूर्व निदेशक हैं। डायमंड बुक्स प्रा.लि. से प्रकाशित उनकी पुस्तक 'सफलता का जादू' से साभार)

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