गलती बारम्बार करू
गलती बारम्बार करू
अधलाहा सँ प्यार करू
दुर्गुण सँ के दूर जगत मे
निज-दुर्गुण स्वीकार करू
दाम समय के सब सँ बेसी
सदिखन किछु व्यापार करू
अपने नीचा, मोन पालकी
एहि पर कने विचार करू
बल भेटत स्थायी, पढ़िकय
ज्ञानो पर अधिकार करू
भाग्य बनत कर्मे टा फल सँ
आलस केँ धिक्कार करू
प्रेमक बाहर किछु नहि भेटत
प्रीति सुमन-श्रृंगार करू
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