शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
प्रिये पाठक
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
हम निर्भर करैत छी ओही पर ,
जे संतुष्टि लक्ष्य अछि हमर
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
मधुर वचन जीवनक श्रेय अछी ,
प्रेम स्नेह जग - संसार में
बोली - वचन सुख सँ सम्रिध्ह ,
आत्मरक्षा के अधिकार में
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
फुरसैतक कमी सब के संग अछी ,
बेश्त आई ई संसार अछी
मिथिय्या जिनगी छोरी चलल ,
आस्तित्व रहस्य ई अधिकार में
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
होर परस्पर आई लागल ,
आगू बढाइये के प्यास जागल
अप्पन पद सेवा के खातिर ,
जग में आई अधिकार भेटल
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
प्रेम - भाव भाई चारा के संग ,
मानव अहि सँ प्यासल आई
एक - दोसर के पार लगाऊ ,
जन - जन से ई नारा हमर
आदर करैत छी जन - जन सं ,
प्रिये पाठक छी अतिथि हमर
(मदन कुमार ठाकुर )
रविवार, 12 दिसंबर 2010
सोनी पर "झलक दिखला जा"
पटना पुस्तक मेला (10-21 DECEMBER, 2010)/
पटना पुस्तक मेला (10-21 DECEMBER, 2010)/
ANTIKA PRAKASHAN,पटना पुस्तक मेलामे 10 से 21 दिसंबर, 2010 तक अंतिका प्रकाशनक स्टॉलपर
(E-10) मैथिली पोथीक लेल स्वागत अछि।
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
nalka me toti
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
हाकिम भ गेलाह- किशन कारीगर
किएक चिन्हता आब कका
ओ तऽ हाकिम भऽ गेलाह
अबैत रहैत छथि कहियो कऽ गाम
मुदा अपने लोक सॅं अनचिन्हार भऽ गेलाह।
जूनि पूछू यौ बाबू हाकिम होइते
ओ कि सभ केलाह
बूढ़ माए-बाप के छोड़ि कऽ एसगर
अपने शहरी बाबू भऽ गेलाह।
आस लगेने माए हुनकर,गाम आबि
बौआ करताह कनेक टहल-टिकोरा
नहि परैत छनि माए-बाप कहियो मोन
मुदा खाई मे मगन छथि पनीरक पकौड़ा।
झर-झर बहए माएक ऑंखि सॅं नोर
किएक नहि अबै छथि हमर बौआ गाम
मरि जाएब तऽ आबिए के कि करबहक
हाकिम होइते, किएक भेलह तांे एहेन कठोर
ई सुनतैंह भेल मोन प्रसन्न
जे अबैत छथि कका गाम
भेंट होइते कहलियैनि कका यौ प्रणाम
नहि चिनहलिअ तोरा बाजह अपन नाम।
ऑंखि आनहर भेल कि देखैत छियै कम
एना किएक बजैत छह बाजह कनेक तूंॅ कम
आई कनेक बेसिए बाजब हम
अहूॅं तऽ होएब बूढ़ औरदा अछि कनेक कम।
कि थीक उचित कि थीक अनुचित
मोन मे कनेक अहांॅ विचार करू
‘किशन’ करत एतेबाक नेहोरा
जिबैत जिनगी माए-बापक सतकार करू।
नहि तऽ टुकूर-टुकूर ताकब एसगर
अहिंक धिया पूता अहॉं के देख परेता
बरू जल्दी मरि जाए ई बूढ़बा
मोने-मोन ओ एतबाक कहता।
लेखक:- किशन कारीग़र
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
विद्यापति स्मृति पर्व समारोह
के आयोजन कैय्ल गेल अछि ,
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
बँटवारा -किशन कारीगर
कियो धर्मक नाम पर कियो जातिक नाम पर
कियो पैघक नाम पर कियो छोटक नाम पर
एहि समाजक किछू भलमानुस लोक
अपने मे कऽ लेने छथि बँटवारा।
हे यौ समाजक कर्ता-धर्ता लोकनि
किएक करेलहुॅं अपने मे बटवारा
आई धरि की भेटल एतबाक ने
छोट पैघक नाम पर अपने मे मैथिलक बॅंटवारा।
आई धरि शोक संतापे टा भेटल
आबो तऽ बंद करू एहेन बँटवारा
नहि तऽ फेर अलोपित भ जाएत
मिथिलांचलक एकटा ओ मैथिल धु्रवतारा।
हे यौ मिथिला केर मैथिल
जूनि करू अपने मे बँटवारा
ई मिथिला धाम सबहक थिक
एक दोसर केर सम्मान करू ई बड्ड निक।
हम कहैत छी मैथिलक कोनो जाति नहि
सभ गोटे एक्के छथि मिथिलाक धु्रवतारा
नहि कियो पैघ नहि कियो छोट
आई सभ मिलि लगाउ एकटा नारा।
कहबैत छी बुझनुक मनुक्ख मुदा
बँटवारा कऽ तकैत छी अपने टा सूख
एक बेर सामाजिक एकता लेल तऽ सोचू
गोत्र सगोत्रक फरिछौट मे आबो तऽ ओझराएब छोरू।
हम छी मिथिला केर मैथिल
हमर ने कोनो जाति अछि
सभ मिली मिथिला केर मान बढ़ाएब
आई सभ सॅं "किशन" एतबाक नेहोरा करैत अछि।
एक्कईसम शताब्दी नवका एकटा ई सोच
नहि कोनो भेदभाव नहि कोनो जाति-पाति
सभ मिली हॅसी खुशी सॅं करब एकटा भोज
एक्के छी सभ मैथिल गीत गाउ आई भोरे-भोर।
सबहक देहक खून एक्के रंग लाल अछि
मुदा तइयो जातिक नाम पर बँटवारा भऽ गेल अछि
सपत खाउ आ सभ मिली लगाउ एकटा नारा
आब नहि करब धर्म जातिक नाम पर हिंदुस्तानक बँटवारा।
लेखक:- किशन कारीग़र
परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।
मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।
बुधवार, 24 नवंबर 2010
घर के चारों तरफ की चारदीवारी हमारी चीजों को सुरक्षित रखती है और हमें अपने पसंदीदा वातावरण में काम करने का उपयुक्त माहौल प्रदान करती है। उसी प्रकार अच्छी व्यक्तिगत सीमाएं हमें दूसरों के सामने अपमानित होने से बचाती हैं। यह इस बात की जानकारी भी देती है कि आप उनके साथ संबंधों में कहां खड़े हैं।
यह इस बात की ओर भी इशारा करती है कि आप किन बातों का समर्थन करते हैं और किन बातों का नहीं। यह हमें दूसरों के कृत्यों एवं शब्दों से भी दुखी होने से बचाती है। यह दूसरों को उस बात से भी अवगत कराना है कि आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते। ये सीमाएं हमें एक-दूसरे से अलग करती हैं।
सीमाएं सदा अच्छे और ऊंचे दीवारों के रूप में ही नहीं होती हैं। भौतिक के अलावा ये भावनात्मक भी होती हैं, जैसे कि हम सभी के अंदर किसी खास स्थिति में खास भावनाएं एवं प्रतिक्रियाएं होती हैं।
किसी भी स्थिति में जो व्यक्ति हमारे संपर्क में आते हैं, उनके प्रति हमारा रवैया हमारी सोच, पृष्ठभूमि, पूर्व की घटनाओं एवं समाधानों तथा हमारी चित्रों एवं मान्यताओं पर आधारित होता है। ऐसा संभव है कि अन्य भी जो कि आप की तरह की ही सोच रखते हैं, मोटे तौर पर आप जैसा भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें, लेकिन कोई भी बिल्कुल वैसी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे, जैसा कि आप दूसरे से कर सकते हैं। इसका स्पष्ट आधार है कि हर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न है।
अधिकतर स्थितियों में प्रतिक्रियाएं भावनात्मक होती हैं। किसी सहकर्मी मित्र या बिल्कुल अपरिचित का कोई वक्तव्य आपको निराशकर सकता है। बच्चों की तरह हम ज्यादा भावुक होते हैं और भावनात्मक रूप से ब्लैक मेल हो जाते हैं। कोई किसी बच्चों पर जो कि चश्मा पहनता है, तीखी टिप्पणी कर सकता है। वह बच्चा शायद इस पर प्रतिक्रिया न दे पाए, परंतु एक आत्मविश्वासी वयस्क यह जरूर कह सकता है कि आपका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि वह क्या पहनता है या फिर उसे व्यक्ति की संगति से ही अलग कर दे। वह यह भी जवाब दे सकता है कि किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह किसी की कार्यशीलता या उसकी सुंदरता पर टीका-टिप्पणी करे।
अन्य प्रकार के भावनात्मक अवरोधों में आपकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करना पार्टी व कार्यक्रमों में शामिल होना, जिसमें आपकी कोई रुचि नहीं है, आपको दु:खी करती है। एक अन्य प्रकार की स्थिति भी शैक्षणिक परिसरों में अक्सर देखा जाता है कि कोई पैसा ले लिया है और न तो लौटाता है, न ही कर्ज देने वाले से बात करता है।
जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह आपका परिवार हो या फिर कार्यस्थल, आपको अपनी सीमाएं तय करनी चाहिए। ऐसे लोग हो सकते हैं जो गुस्सैल और आक्रामक हों। आपको यह तय करना होगा कि आपके लिए क्या अमान्य है। आपको न केवल आचार विचार एवं व्यवहार संबंधी सीमाएं तय करनी चाहिए, बल्कि इसके उल्लंघन पर शांत नहीं रहना चाहिए।
आपकी अपनी खुशियों के लिए जरूरी है कि आप दूसरों की इच्छाओं के लिए अपनी भावनाओं का गला न घोटें। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप एक गलत संदेश देंगे कि गलत आचरण भी आपको स्वीकार्य है। यह आपके लिए ज्यादा कष्टदायक होगा, बजाय इसके कि यदि आप दूसरों को इस बात की छूट देते हैं कि वे आपके समय ऐसा-वैसा व्यवहार कर सके तो वह न तो इस बात को समझेगा न ही सीखेगा कि ऐसा बर्ताव आपको नापसंद है और वह बेइज्जती करके यूं ही चला जाएगा। ऐसे में सीमांकन दोनों ही पक्षों के लिए उचित है।
आपको सदैव इस बात के प्रति सजग रहना होगा कि किस प्रकार का व्यवहार या आचरण आपके लिए हानिकर है। आप महसूस करेंगे कि लोग आसानी से अपकी आवश्यकताओं को समझ जाएंगे और उसका ध्यान रखेंगे। यदि फिर भी कोई आपसे अभद्र व्यवहार करता है तो बिना किसी झिझक आपको उसे स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा व्यवहार वह बंद करे।
ऐसी सीमाओं के निर्धारण से पूर्व उस बात को स्पष्ट रूप से बंद करें। ऐसी सीमाओं के निर्धारण से पूर्व उस बात को स्पष्ट तौर पर समझ लें कि किस प्रकार का व्यवहार आपको पसंद है और किस प्रकार का नापसंद है। रिश्तों में आप क्या चाहते हैं और आपके इर्द-गिर्द के लोग आपसे कैसा व्यवहार करें। यह आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसे लोगों से संबंध न रखें या फिर उसे न्यूनतम स्तर तक ले जाएं, यदि यह संपर्क आवश्यक हो क्योंकि आप एक ही संस्था में काम करते हैं। आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि ज्यादातर लोग आपके अनुसार आपसे व्यवहार करेंगे।
(लेखक सीबीआई के पूर्व निदेशक हैं। डायमंड बुक्स प्रा.लि. से प्रकाशित उनकी पुस्तक 'सफलता का जादू' से साभार)
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
सोमवार, 22 नवंबर 2010
बच्चे की शिक्षा किसी भी परिवार का महत्वपूर्ण कर्तव्य होता है. बच्चे पूरे साल पढाई में नियमित रहें, साथ ही तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सकें, इसकी जिम्मेदारी माँ पर होती है, लेकिन क्या अधिकतर परिवारों में ऐसा हो पाता है? क्या माताएं सामान्य रह पाती हैं? और क्या बच्चा बिना किसी तनाव में आये परीक्षा दे पाता है? अधिकतर का उत्तर शायद ना में होगा. दरअसल कई बार परीक्षाओं का हौव्वा हमारा स्वयं द्वारा बनाया हुआ होता है, जिसका बच्चे और परिवार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
अपराजिता और उसकी बहन टापर रह चुकी हैं. उनकी माँ से जब बच्चों की कामयाबी का राज पूछा, तो वे हंस कर बोलीं, 'ऐसा कुछ खास तो नहीं किया, हाँ जब भी लगता था कि वे पढाई से दिल चुराने की कोशिश कर रही हैं, तो मैं कहती, चलो मेरे साथ घर का कम करवाओ. बस वे कम से बचने के लिए पढने बैठ जाती थीं. एक तरह से मैं भी यही चाहती थी कि वे घर का कम न करके अपनी पढाई पूरी कर लें. हो सकता है उनके जरिये मैं अपने सपने पूरे करना चाहती थी. हाँ, उनका जब खुद का मन होता था, तो वे घर के कामों में मेरा हाथ बटा देती थीं. उनके पिता चूँकि स्वयं विज्ञानी हैं, तो वे बच्चों की पढाई में जरूर मदद करते थे. यूँ मानिये कि उनकी पढाई में हम सभी का यह साझा प्रयास था - हमारी कभी तू-तू मैं-मैं नहीं हुई.
ऐश का मामला तो इससे एकदम उल्टा था. उसकी मम्मी करुणा तो रात-दिन ऐश के पीछे पड़ी रहती थी - चलो पढने का समय हो गया है. क्या बात है कल पेपर है और आज तुम अपनी सहेली से गप्पे लड़ा रही हो; ऐसे खाली कैसी बैठी हो. मैंने तुम्हारे चक्कर में खाना तक नहीं बनाया है, मैगी खा लेंगें और सब एक गिलास ढूध पीकर सो जायगें . खबरदार जो तुम बारह बजे से पहले सोई. अब आप स्वयं ही सोच सकते हैं कि ऐसे में ऐश की क्या हालत होती होगी.
बच्चों का यदि साल भर ध्यान रखा जय, तो जाहिर है कि परीक्षा के समय उन पर किसी किस्म का तनाव नहीं रहेगा. माँ को चाहिए कि वह आरम्भ से ही बच्चे में अनुशाशन, अध्धयन, शारीरिक व्यायाम, नियमित और संतुलित आहार की आदत डाले. अभिभावकों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि परीक्षा देना बच्चों का काम है, उन्हें सिर्फ उनके (बच्चों के) काम में मदद करनी है. इसके विपरीत माता-पिता परीक्षाओं को इस तरह अपने सर पर ओढ़ लेते हैं जैसे की परीक्षा उन्हें देनी हो. माता-पिता की घबराहट बच्चा या तो घबरा जाता है या फिर लापरवाह हो जाता है. बेहतर हो कि माता-पिता बच्चे के तनाव को कम करने का प्रयास करें और उस पर जबरन अच्छे अंक या अच्चा नतीजा लाने का दबाव न डालें. यह दबाव तो स्कूल और साथियों के कारण उस पर पहले से ही है. अभिभावक को तो इस दबाव को कम करने की जरूरत है.
अभिभावकों का कर्तव्य
अपने बच्चे की तुलना किसी अन्य बच्चे से कतई न करें. इससे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
बच्चा चाहे कितने भी अंक लाये, उसे आगे बढ़ने को हमेशा प्रोत्साहित करें
अपनी इच्छाएं और अपनी चाहतें बच्चे के सामने कम से कम दर्शायें
अपने बच्चे को मूल्यवान समझें, वह जैसा भी है किसी चमत्कार से कम नहीं hai
अपने बच्चों कि क्षमताओं को समझें
अंको के आधार पर उसकी काबिलियत आंकने का प्रयास न करें
बच्चे अच्छी नींद लें. रात को देर तक पढने के बजाय सुबह जल्दी उठें. अच्छी नींद बहुत जरूरी है. शारीर को आराम चाहिए. बच्चा आठ घंटे कि नींद अवश्य ले.
बच्चों को संतुलित आहार दें और फास्ट फ़ूड से दूर रखें.
घर का माहौल सहज रखें. बच्चे से मित्रवत व्यवहार रखें.
लगातार पढने के लिए बच्चे पर दबाव न डालें.
बच्चा जिस समय पढने में सहूलियत महसूस करे, उसी समय उसे पढने दें. हर समय पढो-पढो की रट न लगाये रखें.
बच्चा जो भी परीक्षा देकर आये, उसके बजे में अधिक सवाल-जवाब करने से बेहतर है कि उसे अगले विषय के बारे में सोचने दें. जो कर दिया सो कर दिया, उसे आगे की सोचने दें.
जरूरी नहीं की उसके साथ पढाई के समय सर पर सवार होकर बैठा जय. उसे इत्मिनान से पढने दीजिये. उसे इस बात का एहसास ही काफी है कि आप उसके इर्द-गिर्द ही हैं और जरूरत के समय उपलब्ध हैं.
प्रयास करें कि इन दिनों आप बच्चे कि पसंद का खाना बनाएं. उसके साथ सैर को जाएँ, उसके मनपसंद खेल और शौक के बारे में उससे बातचीत करें.
परीक्षाओं से भी दो तरह के तनाव होते हैं - तनाव अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी. अच्छा तनाव वह है जिसके द्वारा बच्चा अनुशासन में रहना और आगे बढ़ना सीखता है, लेकिन बुरे तनाव के कारण बच्चे के मन- मस्तिस्क की शांति भंग हो जाती है, जिससे सर-दर्द और बदन दर्द हो जाता है और वह अवसादग्रस्त हो जाता है.
टाइम-टेबल बनाने में बच्चे कि मदद करें. देखें कि कोई विषय छूट न जाय. प्रत्येक घंटे के बाद ब्रेक हो, साथ ही उसे एहसास दें कि परीक्षा कोई जिन्दगी और मौत का सवाल नहीं है. परीक्षा, एक परीक्षा भर है, जिसके लिए उसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार बस मेहनत करनी है.
अभिभावक रोज सुबह जल्दी उठें, आँख बंद करके थोडा चिंतन-मनन करें और मन को शांत रखें.
अभिभावक अपना खान-पान सुधारें. दरअसल होता यह है कि अधिकतर हमारा रहन-सहन कुछ ठीक नहीं होता. कई बार हमारे खाने-पीने में, सोने-जागने में और आचार-व्यवहार की आदतें भी सही नहीं होतीं. कई बार हम काफी-चाय अधिक लेने लगते हैं, फास्ट-फ़ूड और कोल्ड-ड्रिंक भी ले लेते हैं जिससे बच्चों पर भी असर पड़ता है और वे भी इन चीजों कई मांग करते हैं और इनके आदी हो जाते हैं.
बच्चों को चाहिए
पढाई के लिए अपना समय स्वयं तय करें, अपना टाइम-टेबल बनाएं और उसके अनुसार पढाई करें. कुछ बच्चे रात को पढना पसंद करते हैं और कुछ दिन में. सुबह का वक्त पढाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि उस समय वातावरण में शांति होती है और सोने के बाद शारीरिक थकावट भी नहीं होती और बुद्धि भी तरोताजा होती है. शास्त्र तो यहाँ तक कहते हैं कि सुबह के समय (ब्रह्ममूर्त में) ऋषि-मुनि और देवता गण अपनी- अपनी रश्मियाँ/ किरने बिखेरते हैं और उस समय जो प्राणी जिस भाव से अपनी इच्छा शक्ति को बढ़ाता है उसे वह वस्तु मिल जाती है.
पढाई के बीच में आराम करना भी जरूरी है, क्योंकि एक साथ बैठे-बैठे दिमाग थकने लगता है, जिससे पढ़ाई का लाभ नहीं मिल पाता. अपना खान-पान सही रखें, विशेषतौर पर परीक्षाओं के दिनों में. फल सब्जियों का सेवन अधिक करें. परीक्षा से पहले घबराहट होनी तो स्वाभाविक है, लेकिन इससे भी आप पार पा सकते हैं. पढाई के बीच में थोडा समय निकल कर आप मनन - चिंतन करें और हल्का व्यायाम करें इससे आपका मन-मस्तिस्क शांत रहेगा और दिमाग भी चुस्त रहेगा.
आपको दिन में कम-से-कम आधा घंटा शारीरिक व्यायाम तो अवश्य करना चाहिए. अक्सर होता यह है कि सब कुछ आते हुए भी परीक्षा भवन में आप अक्सर उत्तर भूल जाते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए आप परीक्षा से एक रात पहले तनाव मुक्त हों, आराम से महत्वपूर्ण प्रश्नों को दोहराएँ, यह ध्यान रखें कि आप पूरा कोर्स एक रात में नहीं दोहरा सकते. इसलिए पहले से इस प्रकिर्या को प्रारंभ कर दें और हो सके तो महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर किसी नाम या तिथि या अपने जीवन की विभिन्न घटनाओं के साथ लिंक करके 'सेव' करलें जैसे कंप्यूटर में हम विभिन्न फाइलों को अलग-अलग नाम से 'सेव' कर लेते हैं और आवश्यकता के समय उस फाइल को आसानी से ढूंढ लेते हैं.
एग्जामिनेशन पेपर हाथ में आने के बाद एक दम उत्तर लिखना प्रारम्भ न करें. पेपर को ध्यान से पढ़ें. याद रखें, जो तुमने पढ़ा है, वह तुम्हारे दिमाग में कहीं है. बस थोडा जोर डालना है. अगर प्रश्न पत्र में सभी प्रश्न हल करना आवश्यक हैं तो भी और यदि उनमें से कुछ छूट है तो भी पहले वे प्रश्न हल करें जो तुम्हे सबसे अच्छी तरह आते हैं. उसके बाद भी यही क्रम जारी रखें. ऐसा करने से आपकी इच्छा शक्ति को बल मिलेगा और मन को शांति और हो सकता है जब तक आप कम याद वाले प्रश्नों तक पहुचें तब तक उनके बारे में भी आपके मस्तिस्क में आवश्यक जानकारी इकठ्ठी हो जाय. इससे एक लाभ यह होगा कि हो सकता है की एग्जामिनर आपके पहले प्रश्नों के उत्तर से प्रभावित होकर बाद वाले प्रश्नों की मामूली भूलों को नजरंजाज भी कर दे. इसका एक पहलू और भी है कि आप ऐसा करके अपने तनाव को एक सीमा तक दूर कर सकते हैं क्योंकि तनाव के समय जो एड्रेनैनिल नामक हार्मोन उत्पन्न होता है, जिससे दिमाग एकदम खाली-खाली सा महसूस करने लगता है उससे आप बहुत हद तक अपने आपको बचा सकते हैं. इस हार्मोन का असर व्यायाम से भी कम होता है क्योंकि व्यायाम से उर्जा बढती है जो इस हार्मोन के असर को कम कर देती है.
रविवार, 14 नवंबर 2010
कनैत छलहूॅं माए गे माए-बाप रौ बाप
हे रौ नंगट छौंड़ा रह ने चुपचाप
नूनू बाबू कऽ ओ हमरा चुप करा दैत छलीह
एकटा तऽ ओ छलीह।
बापे-पूते के कनैत छलहूॅं कखनो तऽ
ओ हमरा दूध-भात खुआ दैत छलीह
बौआक मूहॅं मे घुटूर-घुटूर कहि ओ
अपन ऑंखिक नोर पोछि हमरा हॅसबैत छलीह।
खूम कनैत-कनैत केखनो हम बजैत छलहूॅं
माए गे हम कोइली बनि जेबउ
नहि रे बौआ निक मनुक्ख बनि जो ने
आओर कोइली सन बोल सभ के सुनो ने।
केखनो किछू फुरायत छल केखनो किछू
नाटक मे जोकर बनि बजैत छलहूॅं बुरहिया फूसि
मुदा तइयो ओ हॅंसि कऽ बजैत छलीह
किछू नव सीखबाक प्रयास आओर बेसी करी।
रूसि कऽ मुहॅं फुला लैत छलहूॅं
तऽ ओ हमरा नेहोरा कऽ मनबैत छलीह
कतो रही रे बाबू मुदा मातृभाषा मे बजैत रही
अपना कोरा मे बैसा ओ एतबाक तऽ सीखबैथि छलीह।
मातृभाषाक प्रति अपार स्नेह गाम आबि
नान्हि टा मे हुनके सॅं हम सिखलहूॅं
गाम छोड़ि परदेश मे बसि गेलहूॅं
मुदा मैथिलीक मिठगर गप नहि बिसरलहूॅं।
अवस्था भेलाक बाद ओ तऽ चलि गेलीह ओतए
जतए सॅं कहियो ओ घूमि कऽ नहि औतीह
मुदा माएक फोटो देखि बाप-बाप कनैत छी
मोन मे एकटा आस लगेने जे कहियो तऽ बुरहिया औतीह।
समाजक लोक बुझौलनि नहि नोर बहाउ औ बौआ
बुरहिया छेबे नहि करैथि एहि दुनियॉं मे
तऽ कि आब ओ अपना नैहर सॅं घूरि कऽ औतीह
मरैयो बेर मे बुरहिया अहॉं कें मनुक्ख बना दए गेलीह।
बुरहियाक मूइलाक बाद आब मइटूगर भए गेल किशन’
ओई बुरहिया के हम करैत छी नमन
अपन विपैत केकरा सॅं कहू औ बौआ
कियो आन नहि ओ बुरहिया तऽ हमर माए छलीह।
लेखक:- किशन कारीग़र
परिचय:- जन्म- 1983ई0(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार राय ‘किशन’। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय ‘नन्दू’ माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
छैठ परमेस्वरिक गीत
सूप लेने ठाड़ -
छैठ परमेस्वरिक गीत - ६.
मैया हे छैठ मैया ---
छैठ परमेस्वरिक गीत , पवन सिंह के संग
घरेलू नुस्खे: चुटकी में हल
आज आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में :
नाभि में रोजाना सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते।
प्रतिदिन दिन में एक गिलास गाजर का जूस पीने से शरीर में खून बढता है। साथ ही आंखों की रोशनी बढती है।
तुलसी की चार पांच पत्तियों को सुबह-शाम चबाकर खाने से मुंह की दुर्गध दूर होती है।
शरीर के किसी हिस्से में कांटा चुभने पर उसमें हींग का घोल लगाएं। थोडी देर में कांटा निकल आएगा। पेटदर्द होने पर भूनी हुई सौंफ को चबाएं। दर्द से राहत मिलेगी।
बादाम के तेल के इस्तेमाल से रूसी दूर होती है।
खांसी होने पर तुलसी के रस, शहद और अजवाइन के रस को बराबर मात्रा में लेने पर आराम मिलता है।
रात में नींद न आने पर पैरों में तिल का तेल मलें।
नारियल के तेल में लौंग के तेल की कुछ बूंदे डालकर सिर की मालिश करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है।
खाना न पचता हो, तो प्याज के रस में थोडा सा नमक मिलाकर खाएं।
अमरूद के पत्तों का काढा बनाकर कुल्ला करने पर मुंह के छालों और मसूडों के दर्द से आराम मिलता है।
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन काठमाण्डौ
सोमवार, 8 नवंबर 2010
!!!मैथिली क भेटल एकटा नया आधार!!!
अपन मैथिल समाज स सहयोगक अपेक्षित--
राजेश मिश्र
प्रोदुक्टिओं मेनेजर
निर्माण मोसन पिक्चर
बुधवार, 3 नवंबर 2010
गलचोटका बर
देखू-देखू हे दाए-माए
केहेन सुनर छथि गलचोटका बर।
तिलकक रूपैया छनि जे बॉंकि
सासुर मे खाए नहि रहल छथि एक्को कर।
अनेरे अपसियॉंत रहैत छथि
अल्लूक तरूआ छनि हुनका गारा में अटकल।
खाइत छथि एक सेर तीन पसेरी
मुदा देह सुखाएल छनि सनठी जॅंका छथि सटकल।
केने छथि पत्रकारिताक लिखाई-पढ़ाई
दहेजक मोह मे छथि भटकल।
ऑंखि पर लागल छनि बड़का-बड़का चश्मा
मुहॅं कान निक तऽ चैन छनि आधा उरल।
ओ पढ़हल छथि तऽ खूम बड़ाई करू ने
मुदा हमरा पढ़नाईक कोनो मोजर ने।
बाबू जी के कतेक कहलियैन जे हमरो पसीन देखू
मुदा डॉक्टर इंजीनियर जमाए करबाक मोह हुनका छूटल ने।
जेना डॉक्टर इंजीनियरे टा मनुख होइत छथि
लेखक समाजसेवीक एको पाई मोजर ने।
सोच-सोच के फर्क अछि मुदा केकरा समझाउ
दूल्हाक बज़ार अछि सजल खूम रूपैया लूटाउ ने।
एहि बज़ार में अपसियंॉत छथि लड़की के बाप
इंजीनियर जमाए कए छोड़ैत छथि अपन सामाजिक छाप।
एहि लेल तऽ अपसियॉंत छथि एतबाक तऽ ओ करताह
बेटीक निक जिनगी लेल ओ किछू नहि सोचताह।
अहॉं बेटी केॅ निक जॅंका राखब दहेज लैत काल
हमरा बाबू के ओ तऽ बड़का सपना देखौलनि।
ई तऽ बाद मे बूझना गेल जे किछूएक दिनक बाद
दहेजक रूपैया सॅं ओ पानक दोकान खोललैनि।
नहि यौ बाबू हम नहि पसिन करब एहेन सुनर बर
एतबाक सोचिए के हमरा लगैत अछि डर।
भले रहि जाएब हम कुमारी मुदा
कहियो ने पसिन करब, एहेन दहेज लोभी गलचोटका बर।
लेखक:- किशन कारीग़र
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
लोक और परलोक
गृहस्थ जीवन ही वैराग्य की पहली पाठशाला है
अब तो देवदत्त के अहंकार को दुगनी चोट लग गई। वह तुरंत आश्रम को चला गया। रात में सोने की व्यवस्था हो गई। अगले दिन सन्यास दीक्षा के लिए पुनीत महाराज के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा- "कपडे उतर दो और नहा कर आओ।" उधर वे नहाने गए, इधर संत के इशारे पर देवदत्त के सारे कपडे फाड़ दिए। कुछ कडवे फल स्वल्पाहार के लिए रखे। फटे कपडे देख कर देवदत्त बहुत नाराज हुआ और जैसे ही खाना खाने बैठा तो गुस्से के मरे आश्रम के ब्रहम्चारियों को अपशब्द कहने लगा। यह कैसी व्यवस्था है? महर्षि बोले- "वैरागी को पहले संतोषी, धैर्यवान, सहनशील बनना पड़ता है।" देवदत्त बोला -"यह तो मैं घर पर भी कर सकता था। आपके पास तो विशिष्ट साधनाओं के लिए आया था। " महर्षि बोले - "तात! घर लौट कर सदगुणों का अभ्यास करो। विभूतियाँ तो बाद की बातें हैं।" देवदत्त घर लौट आये। पत्नी से क्षमा मांगने लगे। पत्नी ने कहा-"आपका स्वागत है प्रियतम घर में।
यदि हर गृहस्थी यह समझ ले तो सभी ओर शांति की साम्राज्य हो।
अपने अन्दर छुपे हुए सत्य का एक छोटा सा एहसास भी जीवन की साडी अपवित्रता को मिटाने में सक्षम है। आग की एक छोटी सी चिंगारी भी फूस के विशाल भंडार को नष्ट करने की क्षमता रखती है। इसी तरह अपने अन्दर छुपे हुए देवत्व का स्पर्श पाकर पूरे व्यक्तित्व में आग सी लग जाती है। जब उस देवत्व के बारे में सुनकर मन में रस आने लगे तो मानना चाहिए कि हमारे अन्दर रूपांतरण हो रहा है। नर-पशु भी यदि इस ओर ध्यान देने लगे तो वह भी एक दिन देवमानव बन कर रहेगा।
महर्षि शमीक और उनके शिष्यों को कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के महारण में एक खंडित घड़े के नीचे टिटहरी के कुछ अंडे मिले। शिष्य आश्चर्य चकित थे कि इतने भीषण युद्ध में भी वे अंडे न सिर्फ सुरक्षित थे बल्कि उनमे से कुछ पक्षी भी निकल आये थे। ऋषि ने उन्हें आश्रम ले चलने को कहा क्योंकि अगले दिन फिर युद्ध होना था। शिष्यों ने कहा- "महाराज जब ईश्वर ने इन्हें महासंग्राम में बचाया है तो क्या वह इनकी आगे रक्षा नहीं करेगा?" ऋषि - "वत्स ! जहाँ भगवान का काम समाप्त होता है, वहां मनुष्य का काम आरम्भ होता है। ईश्वर के छोड़े काम को पूरा करना ही मनुष्यता है।
ईश्वर ने जो परिवार या सहयोगी हमें दियें हैं उनकी सहायता करना हमारा धर्म है क्योंकि हम भी किसी न किसी कि सहायता प्राप्त करके ही बड़े हुए हैं ।
सोमवार, 1 नवंबर 2010
छैठ परमेस्वरिक गीत चलचित्र में
रविवार, 31 अक्टूबर 2010
सम्बन्ध
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।
कहू माताक आँचर मे की सुख भेटल।
चढ़ते कोरा जेना सब हमर दुःख मेटल।
आय ममता उपेक्षित कियै रति-दिन,
सोचि कोठी मे मुंह कय नुकाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।
खूब बचपन मे खेललहुं बहिन-भाय संग।
प्रेम साँ भीज जाय छल हरएक अंग-अंग।
कोना सम्बन्ध शोणित कय टूटल एखन,
एक दोसर के शोणित बहाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।
दूर अप्पन कियै अछि पड़ोसी लगीच।
कटत जिनगी सुमन के बगीचे के बीच।
बात घर घर के छी इ सोचब ध्यान सँ,
स्वयं दर्पण स्वयं के देखाबैत छी।
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना हम ह्रदय के सुनाबैत छी।।
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
निरीक्षण
ध्यान सँ साफ दर्पण मे देखू नयन।।
बात बडका केला सँ नञि बडका बनब।
करू कोशिश कि सुन्दर बनय आचरण।।
माटि मिथिला के छूटल प्रवासी भेलहुँ।
मातृभाषा विकासक करू नित जतन।।
नौकरीक आस मे नञि बैसल रहू।
राखू नूतन सृजन के हृदय मे लगन।।
खूब कुहरै छी पुत्री विवाहक बेर।
अपन बेटाक बेर मे दहेजक भजन।।
व्यर्थ जिनगी अगर मस्त अपने रही।
करू सम्भव मदद लोक भेटय अपन।।
सत्य-साक्षी बनू नित अपन कर्म के।
आँखि चमकत फुलायत हृदय मे सुमन।।
बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
मैं वह हूं जो आप हैं,
आदि शंकराचार्य शिष्यों के साथ नर्मदा नदी तट पर स्नान के लिए जा रहे थे। शिष्य उनके लिए मार्ग साफ करते चल रहे थे। इस दौरान एक पथिक वहां से गुजरा। शिष्यों ने उससे कहा-मार्ग छोड दें। स्वामी जी यहां से गुजरेंगे। शिष्यों के बार-बार आग्रह करने के बावजूद पथिक रास्ते से नहीं हटा। इतने में आदि शंकराचार्य भी वहां आ गए। उन्होंने उस पथिक से पूछा कि आप कौन हैं? पथिक ने अत्यंत धैर्य से उत्तर दिया-मैं वह हूं, जो आप हैं।
पाथिक के इस कथन को सुनकर शंकराचार्य कुछ क्षण के लिए शांत खडे रहे और फिर झुक कर पथिक के चरणों को स्पर्श कर लिया। उन्होंने कहा-आज आपने मुझे जीवन का वास्तविक ज्ञान दे दिया। मैं आपको अपना गुरु स्वीकार करता हूं।
वहपथिक निम्न कुल का था। शंकराचार्य आजीवन उसे अपना गुरु मानते रहे। पथिक के कथन की उन्होंने दार्शनिक व्याख्या की, जिससे अद्वैत दर्शन का निर्माण हुआ। मानवतावादी चिंतन के लिए अद्वैत दर्शन एक आध्यात्मिक प्रेरणा है। सब एक हैं। कोई दूसरा नहीं है। इसका कारण है सर्वव्यापी ईश्वर और आत्म तत्व का ब्रह्म तत्व का अंश होना।
जबसृष्टि का नियामक एकमेव ब्रह्म है, तो फिर कोई किसी अन्य से पृथक क्यों? सब में वही आत्म तत्व है, जो सभी में है। उपनिषद में ऋषि कहते हैं कि अपने को जान, उसे जान, मुझे जान, और ईश्वर को जान। स्वयं से साक्षात्कार करने की स्थिति व्यक्ति को अमरत्व के दर्शन कराती है। जो आपमें है, उसमें है और हम में भी। छान्दोग्यउपनिषद में ऋषि कहते हैं कि सब कुछ ब्रह्म ही है। मनुष्य उसी से उत्पन्न हुआ है।
तैत्तिरीय उपनिषद में ऋषि ब्रह्म को आनंद का प्रतीक मानते हुए कहते हैं कि जिसने सृष्टि बनाई है, वह सबमेंहै और सब उसमें है। यह विचार भी अद्वैत दर्शन को पुष्ट करते हैं। साथ ही, ब्रह्म में आनंद की उपस्थिति उसके कल्याण रूप का प्रतीक है। ऋषि कहते हैं कि आनंद से ब्रह्म है, आनंद में ही ब्रह्म है, आनंद से ही ब्रह्म जीव पैदा होते हैं, आनंद से ही वे जीवित रहते हैं, आनंद में ही फिर समा जाते हैं।
भारतीय दर्शन में विभेद को मान्यता नहीं दी गई है। समरूपता,समरसता और एकाग्रता आत्मा के लक्षण हैं। उसे स्वीकार करते हुए कहा गया है कि एक ही ईश्वर सब प्राणियों के भीतर विराजमान है। वह सबको गति और ऊर्जा प्रदान करता है। सबके भीतर वही समाया है। वह सभी कर्मो का स्वामी है। वह साक्षी भी है, ज्ञाता भी है और न्यायाधीश भी। ईश्वर निर्गुण और अनंत है।
साधक की इच्छा होती है कि वह जीवन-जगत के रहस्यों को समझें। इसके लिए वह परमपिता परमेश्वर की निकटता चाहता है, क्योंकि उसकी निकटता का अनुभव मात्र ही अनेक रहस्यों को अनावृत्त कर देता है।
इश्वर को जानने से सारे संशय दूर हो जाते हैं और जीव के मोह भाव नष्ट हो जाते हैं। कोई गैर नहीं होता, किसी से बैर नहीं होता। सब अपने होते हैं और व्यक्ति अद्वैत की स्थिति प्राप्त कर लेता है।
मैं वह हूं जो आप हें
शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010
लिखैत रही - किशन कारीग़र
मोन होइए जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
मुदा कहियो कऽ किछू-किछू लिखैत रही
कनेक हमरो गप पर धियान देबैए
मोन होइए जे पाठक सभ सॅं भेंट करैत रही।
ग़ालिब सेहो एक मिसिया कऽ पिबैत छलाह
मुदा किछू-किछू तऽ लिखैत छलाह
अपना लेल नहि पाठक लोकनिक लेल
मुदा बड्ड निक लिखैत छलाह।
पद्य लिखनाई तऽ आब हम सीख रहल छी
हमरा तऽ नहि लिखबाक ढंग अछि
मुदा किछू निक पद्य लिखि नेनापन सॅं
एतबाक तऽ हमर सख अछि।
िक िलखू िकछू ने फुरा रहल अिछ
बढलैऍ मँहगाई तऽ अधपेटे भूखले रहैत छी
िकऍक ने रही जाऍ भूखल पेट मुदा
िकछू िलखबाक लेल मोन सुगबुगा रहल अछी।
पोथि लिखलनि महाकवि विद्यापति
लिखलनि पोथि बाबा नागार्जुन
किछू नव रचना जे नहि लिखब
तऽ कोना भेटत मैथिली साहित्यक सद्गुण।
लेखक समाजक सजग प्रहरी होइत छथि
अपना लेल तऽ नहि अनका लेल लिखैत छथि
कतेक लोक हुनका आर्थिक अवस्था पर हॅसैत अछि
मुदा तइयो ओ चुपेचाप लिखैत रहैत छथि।
कहू एहेन उराउल हॅसी पर कोनो लेखक
एक मिसिया कऽ पिबत कि नहि
अपन दुःखित भेल मोन के
कखनो के अपनेमने हॅंसाउत कि नहि
कतेक लोक गरियअबैत अछि
एक मिसिया पीब कऽ लिखब ई किएक सीखू
मुदा आई किशन’ मोनक गप कहि रहल अछि
पिबू आ कि नहि पीबू मुदा किछूएक तऽ लिखब सीखू।
आई हमरो मोन भए रहल अछि
जे एक मिसिया कऽ पिबैत रही
अपना लेल नहि तऽ पाठक लोकनिक लेल
मुदा किछू नव रचना लिखैत रही।
(समप्प्त )
लेखक:- छैथि - संचार मिडिया से
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010
ध्यान करने की सही विधि
आपको बाह्य संसार में वस्तुओं को देखने एवं परीक्षण करने के लिए सिखाया गया है। किसी ने आपको अंतर्मन में देखना एवं खोजना नहीं सिखाया है। संसार की कोई वस्तु आपको वह शक्ति प्रदान नहीं कर सकती जो आपको ध्यान प्रदान कर सकता है। यदि आप ध्यान के लिए प्रवृत्त नहीं हैं तो मत कीजिए। यदि ध्यान करना चाहते हैं तो आपको आदत का निर्माण करना होगा, क्योंकि आदतें आपके चरित्र एवं व्यक्तित्व को बुनती हैं। यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं तो आपको अपने समस्त मुखौटों को उतारना पडेगा। पूर्णरूप से नग्न होना पडेगा। अग्नि में जाना पडेगा। आप इसके लिए तैयार हैं तो ध्यान के मार्ग पर चलना सीख सकते हैं। बाह्य संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो आपको प्रसन्न कर सके, क्योंकि सभी वस्तुएं परिवर्तन, मृत्यु, क्षय एवं विघटन का विषय हैं। वह जो परिवर्तन का विषय है एवं शाश्वत नहीं है, कभी भी प्रसन्नता नहीं दे सकता है। केवल क्षणिक आनंद दे सकता है। क्षणिक आनंद उदाहरण है कि कहीं कुछ ऐसा है जिसे आनंद कहते हैं। आप गलत स्थान में इसे ढूंढ रहे हैं। यदि आपने शाश्वत आनंद को प्राप्त कर लिया है तो आप स्वतंत्र होंगे। आप उस स्वतंत्रता व उस महान आनंद के लिए जीवित हैं।
मैं आपको सलाह देता हूं कि जब आप ध्यान में बैठते हैं तो विभिन्न प्रकार के प्रकाश को देखने की चिंता न करें। आपको अपने स्थान को पूर्ण अंधकार में बनाना सीखना होगा ताकि आप उस मधुर प्रकाश को देख सकें। यदि आप कोई प्रकाश नहीं देखते या कोई अनुभव नहीं करते अथवा कुछ नहीं देखते तो चिंता मत कीजिए। यदि आपके पास धैर्य है एवं आप स्थिर होकर बैठना सीख जाते हैं, तो जीवन एवं प्रकाश का केंद्र आपके समक्ष स्वयं को प्रकट करना आरंभ कर देगा। तब तक व्यर्थ के प्रकाशों की कल्पना हानिप्रद है। प्रकाश की प्रतीक्षा करते हुए अंधकार में रहना सीखें। ध्यान में किसी प्रकार का अनुभव न होना ही सही अनुभव है। यदि आप ध्यान की विधि का क्त्रमिक रूप से अनुसरण कर रहे हैं तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं पडेगी कि आप उन्नति नहीं कर रहे हैं। जब कभी आप ध्यान कर रहे हैं या ध्यान का प्रयास कर रहे हैं तो आप कुछ न कुछ कर रहे हैं। यह मत सोचिए कि आप अपने कमरें का फल प्राप्त नहीं कर रहे हैं। यह संभव नहीं है।
यदि आप क्त्रमिक रूप से ध्यान करना सीखते हैं तो पाएंगे कि विवेक की शक्ति, बुद्धि आपको जीवन के बाहर एवं भीतर दोनों यात्रा में सहायता करेगी। आपको चार मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना पडेगा दृढ निश्चय का निर्माण करना, प्रार्थना करना सीखना, निर्देशों के अनुसार ध्यान करना सीखना एवं अपने मन को स्वचरित अपराध का धब्बा लगाने की आज्ञा न देना जो कि आंतरिक आध्यात्मिक शक्तियों को नष्ट करती है।
नि:स्वार्थ कर्म को करते हुए दैनिक जीवन में आध्यात्मिक बनना सीखें। प्रतिदिन कुछ मिनटों तक ध्यान करना सीखें। लंबे समय तक बैठकर एवं विभ्रम करते हुए पाखंडी न बनें। कुछ मिनटों तक ध्यान कीजिए एवं जीवन का आनंद लीजिए। ध्यान करना सीखिए एवं यहां और अभी में रहना सीखिए। ध्यान स्वयं का प्रयास है, आंतरिक जीवन का एक निरीक्षण है और यह समय आने पर समस्त रहस्यों को आपके समक्ष प्रकट कर देगा।
आवश्यक है प्रार्थना
अनेक शिक्षार्थी जो ध्यान करते हैं, सोचते हैं कि प्रार्थना आवश्यक नहीं है। क्योंकि वे यह नहीं समझते हैं कि प्रार्थना क्या होती है। आप प्रार्थना क्यों करना चाहते हैं? सुबह से शाम तक प्रार्थना करते रहते हैं, ईश्वर मुझे यह दो, वह दो। आप वास्तव में क्या कर रहे हैं? अपने अहं का पोषण कर रहे होते हैं, जो बुरी आदत है। यह अहं केंद्रित प्रार्थना है। इच्छाओं एवं चाहतों द्वारा डांवाडोल किए जाने से मनुष्य अहं केंद्रित प्रार्थना के शिकार बन चुके हैं जो कि उन्हें वास्तव में भिखारी बनाती है। फिर भी यह प्रार्थना है और इसीलिए कुछ भी न करने से बेहतर है। अपनी भाषा में जीवन के ईश्वर से प्रार्थना कीजिए जो कि आपके अस्तित्व के आंतरिक प्रकोष्ठ में बैठा हुआ है। वह आपको किसी भी अन्य की अपेक्षा बेहतर ढंग से जानता है। वह आपका मार्गदर्शन करता है, आपकी रक्षा करता है एवं आपकी सहायता करता है। शक्ति व बुद्धिमत्ता प्रदान करने के लिए हृदय से जीवन के ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, ताकि आप समस्त दृष्टिकोणों से जीवन को समझ सकें।
प्रात: एवं सायंकाल दिन में दो बार प्रार्थना अति आवश्यक है। हमारी सफलता के लिए अतिरिक्त ऊर्जा हेतु प्रार्थना एक निवेदन है। प्रार्थना किसे करनी चाहिए? ईश्वर समस्त शक्तियों का स्त्रोत, केंद्र, प्रकाश का शक्तिशाली घर, जीवन एवं प्रेम है। प्रार्थना द्वारा हम इस शक्तिशाली घर तक पहुंच सकते हैं एवं अपने मन के क्षेत्र एवं चेतना के क्षितिज को विस्तृत करने के लिए ऊर्जा ले सकते हैं। आप उससे प्रार्थना कर रहे हैं जो कि शरीर, श्वांस एवं मन नहीं है किंतु जो इस नश्वर ढांचे के पीछे एवं इससे परे बैठा है, जिसका केंद्र आपके भीतर एवं विस्तार विश्व है। एक ही असीम सत्ता अस्तित्व में है और यही सत्ता आपके भीतर है। कुछ उच्चतर शक्ति जिसे आप ईश्वर कहते हैं, उस तक पहुंचना एवं उसे स्पर्श करना चाहते हैं। अपने मन को एक इच्छा के तहत एक लक्ष्य पर बना लेते हैं जो आपको प्रार्थना के लिए प्रेरित करता है, प्रार्थना के लिए आपकी इच्छा में विलीन मन शांत बन जाता है। जब मन शांत होता है तो वह महान रहस्य स्वयं को प्रकट करता है और तब प्रार्थना का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है। प्रार्थना के कई चरण होते हैं, प्रथम कुछ मंत्रों का उच्चारण करना, फिर मानसिक रूप से इन मंत्रों को स्मरण करना, फिर उत्तर पाने की प्रतीक्षा करना। प्रत्येक प्रार्थना का उत्तर मिलता है। जब आप शरीर को दृढ एवं स्थिर रखते हुए, श्वांस को शांत बनाते हुए तथा मन को उपद्रवों से मुक्त करते हुए ध्यान करते हैं तो यह आपको आंतरिक अनुभव की एक स्थिति तक ले जाएगा। आप किसी उच्चतर को स्पर्श करते हैं एवं ज्ञान को प्राप्त करते हैं जो कि मन से नहीं, बल्कि भीतर की गहराई से आता है।
आपको इस भाव से ध्यान करना चाहिए कि शरीर एक पवित्र मंदिर है एवं अंतर्वासी जीवन का स्वामी ईश्वर है। मन एक साधक है। यह अपने आचरणों, मनोदशाओं एवं हथियारों का समर्पण करना यह कहते हुए सीखता है कि मेरे पास कोई क्षमता नहीं है, मेरी क्षमताएं सीमित हैं। ईश्वर मेरी सहायता करो, मुझे शक्ति दो, ताकि मैं समस्त समस्याओं का साहस के साथ समाधान कर सकूं। मात्र मैं की तरफ झुकाव बनाए बिना मन इस प्रकार से जीवन के स्वामी पर निर्भर हो जाने के लिए एक आदत का निर्माण कर लेता है। मात्र मैं अहं है एवं सत्य मैं अंतर्तम् ईश्वर है। यह अंतर्मुखी प्रक्त्रिया ध्यान एवं प्रार्थना है। अन्य समस्त प्रार्थनाएं तुच्छ इच्छाओं एवं चाहतों से परिपूर्ण, स्वार्थ से पूर्णतया रंगी हुई एवं अहं को ख्ुश करने के लिए होती हैं। किसी भी स्वार्थ के लिए कभी प्रार्थना मत कीजिए। ईश्वर से प्रार्थना कीजिए ताकि आपका मन ऊर्जा ग्रहण करे एवं आपके लिए तथा दूसरों के लिए जो सही है ईश्वर आपको उसे करने के लिए प्रेरित करे। वह जिसे किसी भी अन्य साधन के द्वारा पूर्ण नहीं किया जा सकता है उसे प्रार्थना के द्वारा पूर्ण किया जा सकता है। बाइबिल में एक ख्ूबसूरत पंक्ति है-खटखटाओ और यह आपके लिए खोल दिया जाएगा। यह नहीं लिखा है कि व्यक्ति को कितनी बार खटखटाना है।
प्रार्थना एवं प्रायश्चित महान शुद्धिकर्ता हैं, जो जीवन के मार्ग को विशुद्ध बनाते हैं एवं हमें आत्म-अनुभूति की तरफ ले जाते हैं। बिना प्रायश्चित के प्रार्थना अधिक सहायता नहीं करती है। प्रार्थनाएं सदैव सुनी जाती हैं (इनका उत्तर मिलता है), इसलिए अपने पूरे मन एवं हृदय के साथ प्रार्थना कीजिए। डॉ. स्वामीराम
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
हमहूँ मिथिला के बेटी छीक ?
रविवार, 10 अक्टूबर 2010
ओ स्थान जाहि ठाम देवक देव महादेव कवी-कोकिल विद्यापति के अपन अशली रूपक दर्शन देने छलखिन ओही ठाम "बाबा उगना" के मंदिर छैन और ओहिमे शिवलिंग जे छाई से अंकुरित छाई, जेकर कहानी किछु एहन, छाई जे एक बेर गामक एक बुजुर्ग ब्यक्ति के महादेव सपना देलखिन की "हम एकता गाछक जैर में छी" और ओतै बहुत पैघ जंगल छलई तखन गामक लोक सब तैयार भ क ओय ठाम गेला और पहुँच क जखन खुदाई केला त देखलखिन की एकटा बहुत सुन्दर शिवलिंग छाई, सब गेटे बहुत खुश भेला और विचार भेलय की हिनका बस्ती पर ल चलू ओय ठाम मंदिर बना क हिनक स्थापना करब और हुनका उठेबाक लेल जखने हाथ लगेलखिन की ओ फेर स जमीन के भीतर चली गेला, फेर स कोरल गेल और हुनका निकलवाक प्रयाश कैल गेलई, इ प्रयाश दू तीन बेर कैल गेल मुदा सब बेर ओ जमीन के भीतर चली जायत छला, तखन सब गोटे के बुझबा में एलईन जे इ अहि ठाम रहता और अय ठाम स नै जेता, तखन ओही ठाम साफ सफाए कैल गेल और तत्काल मंडप बनैल गेल और बाद में मंदिरक निर्माण सुरु भेल जे १९३२ में जा क तैयार भेल और अहि मंदिरक परिसर में ओ अस्थान सेहो अछि जाहि ठाम महादेव अपना जटा स गंगाजल निकलने छला और आय ओ इनारक रूप में अछि जेकरा "च्न्द्रकुप" के नाम स जानल जैत छाई और एखनो ओकर जल शुद्ध गंगाजल छाई, जे लैब टेस्टेड छाई !
दरभंगा के एकटा बहुत प्रशिद्ध डॉक्टर अपना मेडिकल लैब में एकर टेस्ट केने छलखिन और ओ अय बात के सुचना ग्रामीण सब के देलखिन जे अय में पूरा गंगाजल के तत्व बिद्यमान अछि, और इ दोसर रुपे सेहो टेस्टेड छाई, अय जल के यदि अहां बोतल में राखि देबय ता इ ख़राब नै होइत छाई
इ स्थान मधुबनी जिलाक भवानी पुर गाम में स्थित अछिएत' सब गेटे एकबेर जरुर आबी, एही स्थानक कुनु तरहक जानकारिक लेल अहां हमरा स संपर्क क सकैत छि"जय बाबा उग्रनाथ"
बसंत झा
e-mail- jha.basant@gmail.com
9310350503
शनिवार, 9 अक्टूबर 2010
करब नै हम नेतागिरी रोजगार
शनिवार, 2 अक्टूबर 2010
रचनाक नक़ल नहि हेबाक चाही - मनीष झा "बौआभाई"
हमरा लोकनिक समक्ष एक-दू टा एहेन रचना एहि चर्चित ब्लॉग पर प्रकाशित भेल अछि, जे कि स्पष्ट रूप स' नक़ल कयल गेल अछि आ ओहि रचनाक शीर्षक एहि प्रकारे अछि-
पहिल- तरुवाक पंच तिलकोर - रचनाकार (मुकेश मिश्रा)
दोसर- आमक झगरा -रचनाकार (मुकेश मिश्रा)
पोथीक जानकारी :
पोथीक नाम- संगम सुधा
(पन्ना सं.-६ आ पन्ना सं.-२४)
लेखक- महेन्द्र कुमार पाठक "अमर"
पेशा स'- मधुबनी कोर्ट में वकील
स्नेहाभिलाषी :
मनीष झा "बौआभाई"
Mailto: manishjhaonline@gmail.com
Blog: http://manishjha1.blogspot.com/
अपन गाम घर:- पहिल- तरुवाक पंच तिलकोर आ दोसर- आमक झगरा
एहि जालवृत्तसँ हटा देल गेल अछि आ मुकेश मिश्रा जीसँ आग्रह जे एहि प्रकारक रचनाक प्रस्तुति प्रविष्टिकर्ता वा आन रूपमे अपना नामसँ नहि करथि
जेना कि बौआभाइ ठीके लिखै छथि-
"हमर मिथिलाक माटि ककरो स' ज़रूर बेसी समृद्ध अछि ओ चाहे धन में होय, बल में होय वा बुद्धि में होय, ककरो स' दस डेग आगुए रहैत छी तैं अपन ह्रदय स' निकलल, अपन बुद्धि स' उपजल जे रचना होय ओएह टा प्रकाशित कराबी जाहि स' अपन आत्मसंतुष्टि सेहो भेटत संगहि लोकक अपार स्नेह आ प्रतिष्ठा I खास क' एहेन तरहक चर्चित ब्लॉग पर त' कथमपि नहि राखी जकरा लग रोज़ के लाखो पाठक अछि I हम आशा करै छी जे रचनाकार अपन मूल रचनाक संग समय-समय पर उपस्थित होइत रहताह आ एहेन तरहक क्रियाकलाप स' बचताह I"
बुधवार, 15 सितंबर 2010
UGNA MAHADEV: UGNA MAHADEV TEMPLE,BHAWANIPUR
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
अब कृपया इसे पढ़ें ......... "TAJ MAHAL - THE TRUE स्टोरी''
बुधवार, 1 सितंबर 2010
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
अपन भारतीय नोट (मुद्रा ) के पहचान करू -
Beware of Fake Money, Spread this message and Save India
There has been huge rise in the number of counterfeit notes in the last one year. According to recent RBI data, the value of fake currency detected in 2007-08 rose by 137 per cent to Rs 5.5 crore (Rs 55 million) from 2.4 crore (Rs 24 million) in the previous financial year. Counterfeited notes have even made it to ATMs! It's high time you should be aware of those fake currencies. Moreover, the counterfeited notes looks so convincing that it is very difficult to differentiate them from genuine notes. Here are a few intricate points that you should take care of while dealing with paper money.
Serial numbers are printed with fluorescent ink, which can be seen when viewed under an ultraviolet lens.
Floral design on the left side - half the denomination of the currency will be printed on the front side and the other half on the back side। If seen against bright light, the complete denomination appears. Just below the floral print, a mark is made in intaglio (embossed print, where the image is slightly raised) for the visually-impaired to identify the denomination. For the Rs 500 note, the mark is a circle, for the Rs 100, it is a triangle and a square for the Rs 50.
Except Rs.10/-, there is a symbol in intaglio, or raised print. This aids the visually impaired in identifying the currency easily. The symbols are a Vertical Rectangle for a Rs.20 note, A square for a Rs.50 note, A Triangle for a Rs.100 note, A circle for a Rs.500 note and A diamond for a Rs.1000 note.
Similarly, a portrait of Mahatma Gandhi, the RBI seal, a guarantee and promise clause, a Ashoka Pillar emblem on the left and RBI Governor's signature are all printed on intaglio
The guarantee clause, Mahatma Gandhi's picture, the Reserve Bank Seal, Ashoka Pillar and Emblem, and the RBI governor's signature are also printed in intaglio, i.e. raised print.
A band printed on the right side contains a latent image of the denomination of the banknote. The numeral appears when the currency is held horizontally at eye level.
On the extreme right of Rs20, Rs50, Rs100, Rs500, and Rs1000 notes the flowery pattern is actually a latent image of the denomination of the currency। This image of course can be seen only when the note is held horizontally and light is allowed to fall on it at 45 degrees.
Flowery Pattern
There are alphabets and numbers (and not patterned dots) behind the portrait of Mahatma Gandhi on the note. Depending on the currency, in very fine print you will find the words RBI 1000, RBI 500, RBI 100, RBI 50 or RBI 20 printed there. Get a magnifying mirror for this one if your eyesight isn't too good.
A wide security thread with inscriptions "Bharat" in Hindi and "RBI" runs through the banknote। The thread fluoresces on both sides in ultraviolet light. Govt's Take on Counterfeited CurrencyGovt's and the RBI's take on fake currency is not sufficient. All you can do while encountering counterfeited notes is lodge a complaint at the nearest police station mentioning the source of those notes such as ATM, Bank or the person. If bank finds counterfeited notes from a depositor it issues an official letter to the depositor and destroys the notes. There is no mechanism to ensure that the customer gets his money back and nor are there any guidelines or rules to protect the customer from this problem. The game is all about passing the buck, and whoever is in possession of the fake currency, is the culprit.
प्रेषक -- भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया
हम किस ओर जा रहे हैं
जब मै कक्षा नवम में गया तब वह अचानक एक नए बिषय से पला परा और वो था नागरिक शःत्र . यहाँ हमने पाया की मनुष्य एक समाजिक प्राणी है और अब जब की मै मिडिया में कार्यरत हूँ तब यह एह्शाश होता है की पुरे मानव से सामाजिकता का लोप हो गया है.
यहाँ आय दिन होने वाली घटनाओ को देखे तो पता चलेगा की हमारी सामजिकता किस और जा रही है.
सरे पवित्र रिश्ते किस तरह तर तर हो रहे हैं .कही शिक्षक छात्र का अवैध सम्बन्ध दीगर होता है तो कही बाप बेटी को एक हवाश पूर्ति का साधन मात्र समझता है.
संबंधो को अगर छोड़ भी दे तो हैवानियत इस कदर बढती जा रही है की दाहिने हाथ को अपने ही बाये हाथ का भरोषा नहीं रहा.
आज हमारे निर्वाचित उम्मीदवारों के लिए अपनी वेतन की ज्यादा फिकर है अपने निर्वाचन छेत्र की जनता से .
वो जिसके वोट से निर्वाचित होते हैं उन्ही से मिलने के लिए उनको अतिरिक्त राशी चाहिए .
बात अगर यही ख़त्म हो जाती तो मै समझता की चलो सायद उनको अपने जनता की परवाह है लेकिन इसके बाद भी जनता के ये रहनुमा इनके लिए आये बाढ़ और अन्यान्य रहत राशियों का बन्दर बाँट करने से गुरेज नहीं करते है.
मुझे तो लगता हिया की सर्कार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न योजना इनके व्यक्तिगत विकास के लिए ही आता है.
आज के युवा तो एक तरफ राजनीती को गाली देते है लेकिन इसकी गंदगी को दूर करने कोई सामने नहीं आना चाह रहा है .
किन्तु वो भी क्या करे हमारे यहाँ से राजशाही तो समाप्त हो गया लेकिन इसकी जड़े जमींन
में काफी अंदर तक गाड़ी है जिसका समूल नस्ट होता नहीं दिख रहा है.
राजनीती भी वंशवादी परम्परा जैसी दिख रही है.............................................
इन सब बातो को सोचने के बाद मन बेचैन हो उठता है और कोई रास्ता भी नजर नहीं आता.
आखिर ये समझ में नहीं आता की हम किस ओर जा रहे हैं
या तो हम आपनी वजूद को ही भूलते जा रहे हैं नहीं तो सभ्यता की दुहाई देकर पतन के राश्ते में दिनों दी आगे बढ़ते जा रहे हैं.
शनिवार, 21 अगस्त 2010
मिथिला राज्य की मांग
पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर प्रदर्शन
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के तत्वावधान में पृथक मिथिला राज्य की मांग को लेकर मिथिलावासियों ने शुक्रवार जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। इसकी अध्यक्षता डा. वैधनाथ चौधरी ने की। प्रदर्शन में सांसद कीर्ति झा आजाद, माहेश्वर हजारी, महाबल मिश्रा व विधायक अनिल कुमार झा ने शिरकत की। बाद में लोगों ने गिरफ्तारी भी दीं। इस दौरान प्रदर्शनकारी ..भीख नहीं अधिकार चाही हमरा मिथिला राज्य चाही का नारा लगा रहे थे। सांसद कीर्ति झा आजाद ने इस दौरान कहा कि मिथिलांचल की समस्याओं का हल अलग राज्य से ही संभव है। क्षेत्र को पृथक राज्य का दर्जा मिलने के बाद ही आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, भाषाई और औद्योगिक आजादी सहित बाढ़ व सुखाड़ से निदान मिल पाएगा। सांसद माहेश्वर हाजरी ने कहा कि बिना मिथिला राज्य के मिथिलांचल वासियों का विकास संभव नहीं है। महाबल मिश्रा ने घोषणा की कि पृथक मिथिला राज्य के लिए वे किसी भी तरह की कुर्बानी देने को तैयार हैं। विधायक अनिल कुमार झा ने भी लोगों को संबोधित किया। वहीं अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के अध्यक्ष वैधनाथ चौधरी ने कहा कि आगामी अक्टूबर-नवंबर महीने में बिहार में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। उन्होंने मिथिलावासियों की भावना की कद्र करते हुए राजनीतिक पार्टियों से अपील की कि वे अपने घोषणा पत्र में पृथक मिथिला राज्य की मांग को जरूर स्थान दें। इस मौके पर सुधिकांत झा, दिनेश मिश्र, अवधेश चौधरी व तपेश्वर लाल कर्ण मौजूद थे।
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
झलक मिथिला : मैथिलीक हलचल
हावडा-कोलकाता सं प्रकाशित हिंदी दैनिक समाचार पत्र सप्ताह मे एकदिन(Continue from Monday, 31 May, 2010) कs पृष्ठ - 5 पर आधा पृष्ठ मैथिलीसमाद आ साहित्यिक रचना प्रकाशित करबाक ठनलक अछि। एकर सफलताक बाद एकरादैनिक आ संपूर्ण पृष्ठक कs देल जायत. पत्र एहि मे अपनेक रचनात्मक सहयोगकेर आकांक्षा करैत अछि. आशा अछि अपने अपन रचना पठा हमरा लोकनिक मनोबलबढायब. किछु आवश्यक दिशा-निर्देश :-
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