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रविवार, 20 जून 2010

दफन


लेखक - मुकेश मिश्रा
दफन
ऐक बार मेरे मुल्क में एसा हुवा चलन
वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन
पहली थी बारी गाँधी की
गाँधी जी आ गये
जब सुट बूट देखे तो वो तिलमिला गये
जब कहि मिलती नही मुल्क में खादी
तो कहने लगे .....
चलता हु भूल आया हु लाठी
वो सो गये समाधि में फिर तानकर कफन
वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन

दूजी थी बारी चाचा नेहरू की .......
नेहरु जी आ गये

जब देखे बिगरे बच्चो तो वो भी तिलमिला गये
वो कह न सके सर्म के मारे पहले होश ढूंड लू
कहने लगे आता हु पहले रोज ढूंड लू
अब तक ना ढूंड पाए ,ऐसी लगी चुभन
वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन

तीजी थी बारी लाल की......
गये लाल जी भी आ
जब मुछ कटे देखे तो वो भी तिलमिला गये
कहने लगे ऐसा सितम सह नही सकता
संग मुछ कटो के माय रह नही सकता
ना लौटने की उन्होंने भी ली कसमे
और कहने लगे तीनो मिलकर ......

अरे मुल्क बालो कहो, सुधर जाते क्यों नही
जिस तरह गुजरा वो दिन उधर जाते क्यों नही
तुम्हे साफ साफ शब्दों में समझा चूका हु
सब भुला कर ना कहना की वो आते क्यों नही
जब देखा उन्होंने ये उजरा हुवा चमन
वो फिर से लगे मरने और हो गये दफन वो वापसी होने लगे जो हो चुके थे दफन
SONG WRITER-MUKESH MISHRA
CON..9990379449

6 टिप्‍पणियां:

  1. Dear Mr.Mukesh,
    Friend very very congratuation in this massase for, i am very happy your performance and very likely are friend so very fantaisty.
    Thanks with regards
    Chandan

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  2. बर निक मुकेश जी आहा क रानी ,दीपिका ,
    सोनी ,सुनील ,नितेश प्रिया क तरफ स बहुत
    बहुत प्यार

    जवाब देंहटाएं
  3. एगो चाँद उपर य दोसर चाँद निचा
    एक बेर आहा भेटीतऊ मुकेश जी
    आछी सोनी क इक्छा
    सोनी (मधुवनी मेंहथ)

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  4. जान में जान आबी गेल
    आहा स पहचान बनी गेल ,
    रहितौ हमरा ओरा
    ल लैतव हम कोरा,
    शालू (कोठिया)

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